मंगलवार, 31 मार्च 2015

विद्यार्थी जीवन का आदर्श




1. जिज्ञासा, ज्ञान पिपासा, एक सच्चे विद्यार्थी का परिचय, पहचान है। वह प्रश्न भरी निगाह से जमाने को देखता है, जीवन को समझने की कोशिश करता है, उसके जबाव खोजता है और अपने विषय में पारंगत बनता है। 

2. लक्ष्य केंद्रित, फोक्स – हमेशा लक्ष्य पर फोक्सड रहता है। अर्जुन की तरह मछली की आँख पर उसकी नजर रहती है। लक्ष्य भेदन किए बिन उसे कहाँ चैन- कहाँ विश्राम। 

3. अनुशासित – लक्ष्य स्पष्ट होने के कारण, उसकी प्राथमिकताएं बहुत कुछ स्पष्ट रहती हैं। आहार विहार, विश्राम, श्रम, नींद, अध्ययन, व्यवहार सबके लिए समय निर्धारित रहता है। एक संयमित एवं अनुशासित जीवन उसकी पहचान है। 

4. आज्ञाकारी – शिक्षकों का सम्मान करता है, उनकी आज्ञा का पालन करता है। विषय में गहन जानकार होने के बावजूद शिक्षक का ताउम्र सम्मान करता है। शिक्षक हमेशा उसके लिए शिक्षक रहता है।  

5. बिनम्र – अपने ज्ञान, विशेषज्ञता, प्रतिभा का अहंकार, घमण्ड उसे छू भी नहीं पाते हैं। ज्ञान के अथाह सागर के वीच वह खुद को एक अकिंचन सा अन्वेषक पाता है और परिपूर्ण ज्ञान के लिए सतत् सचेष्ट एवं प्रयत्नशील रहता है। 

6. सहकार-सहयोग – कमजोर सहपाठियों व जरुरतमंदो की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। लेकिन, साथ ही वह अपने विद्यार्थी धर्म को जानता है और व्यवहारिक गुणों को अपनाता हुआ अति सेवा जैसी भावुकता से दूर ही रहता है। 

7. अपडेट – वह क्लास रुम की पढ़ाई तक ही सीमित नहीं रहता, अपने विषय से जुड़े देश दुनियाँ भर के घटनाक्रमों से रुबरु रहता है और विषय की नवीनतम जानकारियों से अपडेट रहता है।  

8. नियमित – वह समय की कीमत जानता है। अपनी कक्षा में पंक्चुअल रहता है, समय पर पहुँचता है। अपने साथ दूसरों के समय की भी कीमत जानता है। अतः किसी के समय को वर्वाद नहीं करता। समय का कद्रदान होता है।

9. व्यसन-फैशन आदि से दूर ही रहता है। उसका जीवन सादगी से भरा होता है। इसका अर्थ यह नहीं कि वह जीवन का मजा लेना नहीं जानता। सार रुप में, वह अपने समय, संसाधन व ऊर्जा के अनावश्यक क्षय एवं बर्बादी से बचता है। 

10. मिताहारी – निश्चित रुप से वह मिताहारी होता है। स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक आहार लेता है। लेकिन अपने लक्ष्य में बाधक अहितकर या अति आहार से बचता है।

11. प्रेरक संग-साथ, बुरी संगत से अकेला भला, उसका मार्गदर्शक वाक्य होता है। यदि सही दोस्त नहीं मिल सके तो वह महापुरुषों की जीवनी व साहित्य के संग इस कमी को पूरा करता है। कहना न होगा वह स्वाध्यायप्रेमी होता है। 

12. प्रपंच से दूर – पर चर्चा, पर निंदा से दूर ही रहता है। अपने ध्येय के प्रति समर्पित उसका जीवन खुद में इतना मस्त मग्न होता है कि उसके पास दूसरों की निंदा चुग्ली व परदोषारोपण के लिए समय व ऊर्जा बच पाते हों।  

13. स्वस्थ मनोरंजन – खाली समय में स्वस्थ मनोरंजन का सहारा लेता है। प्रेरक गीत, संगीत, फिल्म आदि देखता-सुनता है। प्रकृति की गोद में जीवन के तनाव और अवसाद को दूर करना बखूवी जानता है। 

14. अंतर्वाणी का अनुसरण – सबकी सुनता है, लेकिन अपनी अंतरात्मा की आवाज का अनुसरण करता है। और अपने परिवेश के साथ एक सामंजस्यपूर्ण तरीके से रहता है।

इस तरह एक आदर्श विद्यार्थी एक अनुशासित एवं विद्यानुरागी जीवन का नाम है, जो एक 
15. स्वतंत्र सोच एवं मौलिक चिंतन का स्वामी होता है। वह एक सृजनात्मक, आशावादी और आत्म विश्वासी जीवन जीता है और समाज व जमाने को कुछ नया देने की क्षमता रखता है और भविष्य में एक आदर्श शिक्षक व नागरिक साबित होता है।

बुधवार, 25 मार्च 2015

खरी खरी सुनाना बहुत सरल, क्या खरी सुनने को भी हैं तैयार



 कौन शूरमा, झेले इसके तल्ख वार

खरी-खरी सुनाने की बातें हो गई बहुत,
अब हमारी भी खरी सुनलो इक बार,
खरी सुनाने की आदत नहीं बैसे हमारी,
लेकिन कुछ सुनाने को है मन इस बार।
खरी खरी सुनाना बहुत सरल है दोस्त,
क्या खरी सुनने को भी हो तैयार,
सच की आंच झुलसाने वाली दाहक,
कौन शूरमा, झेले इसके तल्ख वार।
अगर अपने कड़ुवे सच को नहीं झेल सकते,
फिर वह खरी-खरी, कुछ नहीं, 
पिटे अहंकार की विषैली फुफ्कार।
सहने की शक्ति बढ़ाओ दोस्त, 
वाणी का संयम, व्यवहार की सहिष्णुता,
हैं आत्मानुशासन, योग के पहले आधार।
अगर, ऐसा कर सके, तो हर अग्नि परीक्षा में,
निकलोगे कुंदन बनकर, निखरकर,
नहीं तो झुलसोगे, हो जाओगे हर वार तार-तार।

परिवर्तन का शाश्वत विधान


 हर दिन वसंत कहाँ 



        
कालचक्र का पहिया घूम रहा,  
परिवर्तन का शाश्वत विधान,

आए सुख-दुख यहाँ बारी-बारी
लेकिन हर दिन वसंत कहाँ ।1।

 

   
अंगार बरसात गर्मी का मौसम, 
चरम पर बरसात की शीतल फुआर,


जग सारा जलमग्न हो इसमें, 
सताए भूस्खलन, बाढ़ की मार।2।




 
 समय पर फूटे कौंपल जीवन की, 
आए फल-हरियाली की बहार,




फसल कटते ही फिर मौसम सर्दी का, 
पतझड़ का मौसम अबकी बार।3।




  
पतझड़ के साथ मौसम ठंड का, 
हाड़ कंपाती शीतल व्यार,



जीवन ठहर सा जाए, सब घर में दुबके,  
अब ठंड से राहत का इंतजार।4।




बर्फ के बाद मौसम वसंत का, 
झरने झर रहे घाटी-पहाड़,



उत्तुंग शिखरों से गिरते हिमनद, 
मस्ती का तराना घाटी के आर-पार।5।



  
 यही सच जीवन का शाश्वत सनातन, 
उतार-चढ़ाव, सुख-दुख आए क्रम बार,

 गमों की तपन झुलसाए मन को,  
सौगात में दे जाए जीवन का सार।6।




धुल जाए गिले-शिक्बे फिर सारे,
हो सृजन की नई शुरुआत,




सत्कर्मों के बीजों का रोपण, 
 पग-पग पर वासंती अहसास।7।







लेकिन साल भर कहाँ रहता बसंत, 
अगले मोड़ पर पतझड़ की मार,



शीतनिद्रा में गुमसुम सा जीवन, 
नए सृजन का फिर लम्बा इंतजार।8।


 



इंतजार का फल मीठा, 

दे गहन तृप्ति सुख आनन्द अपार,


छा जाए फिर मौसम वसंत का, 
 इसका भी आलम कहाँ शाश्वत अविराम।9।





समझ में रहे गर यह चक्र जीवन का, 
और प्रकृति का शाश्वत विधान,



बुलंदी में न फिर इंसान बौराए, 
न मंदी का जिम्मेदार भगवान।10।



खुशी में जाने फिर गम की सच्चाई, 
गमों में दिखे सुख की परछाई,
द्वन्दों के बीच फिर मस्त गंभीरा, 
सृजन में मग्न हिमवीर फकीरा।11।


समझ आए गर यह जीवन विज्ञान, 
तो नहीं कठिन फिर लक्ष्य संधान,

  परिवर्तन चक्र अपनी जगह
 मुट्ठी में ्रष्टा का द्रष्टा विधान।12।

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

जीवन शैली के चार आयाम, रहे जिनका हर पल ध्यान



आधुनिक जीवन के वरदानों के साथ जुड़ा एक अभिशाप है बिगड़ती जीवन शैली, जिससे तमाम तरह की शारीरीक-मानसिक व्याधियाँ पैदा हो रही हैं। इसके चलते जवानी के ढ़लते ही व्यक्ति तमाम तरह के मनो-कायिक (साइकोसोमेटिक) रोगों से ग्रस्त हो रहा है। इतना ही नहीं डिप्रेशन, मोटापा, डायबिटीज जैसी बीमारियां बचपन से अपना शिकंजा कसने लगी हैं। युवा इसके चलते अपनी पूरी क्षमता से परिचित नहीं हो पा रहे और जवानी का जोश सृजन की बजाए निराशा और अवसाद के अंधेरे में दम तोड़ने लगा है।

जीवन शैली क्या है? इसके प्रमुख आयाम क्या हैं?, इतना समझ आ जाए और इनके सर्वसामान्य सरल सूत्रों का दामन थाम कर जीवन शैली से जुड़ी विकृतियों से बहुत कुछ निजात पाया जा सकता है और एक स्वस्थ, सुखी एवं संतोषपूर्ण जीवन की नींव रखी जा सकती है। 
जीवन शैली के चार आयाम हैं – आहार, विहार, व्यवहार और विचार।

आहार हल्का एवं पौष्टिक ही उचित है। स्वस्थ तन-मन का यह सबल आधार है। यदि हम भोजन ठूस कर खाते हैं तो सात्विक भोजन को भी तामसिक बनते देर नहीं लगती। आहार का सार इतना है कि वह शरीर का पोषण करे,  इसे सशक्त बनाए व स्फुर्त रखे। 
भोजन शांत मन से खूब चबाकर खाएं, जिससे कि दांत का काम आंत को न करना पड़े। देश, काल, परिस्थिति के अनुरुप अपनी रुचि, प्रकृति एवं क्षमता के अनुरुप इसका विवेकसंगत चयन अभीष्ट है।

इसके साथ श्रम, व्यायाम का अनुपान। यथासम्भव शारीरिक श्रम को महत्व दें। यदि समय हो तो लिफ्ट की बजाए सीढियाँ चढ़कर जाएं। आस-पास कैंपस या मार्केट में स्कूटर की बजाए साइकल से जाएं या पैदल चलें। अपनी आयु और समय-क्षमता के अनुरुप नित्य टहल, कसरत या व्यायाम का न्यूनतम क्रम निर्धारित किया जा सकता है।

साथ में उचित नींद-विश्राम। औसतन नींद के 6-8 घंटे पर्याप्त होते हैं, जिसके बाद व्यक्ति तरोताजा अनुभव करता है। इसके लिए रात को कम्प्यूटर, गैजट्स व टीवी के अनावश्यक प्रयोग से बचें। दिन में थकान के पलों में झपकी (कैट नैप) का सहारा लिया जा सकता है।
यह शारीरिक स्वास्थ्य औऱ निरोगिता का सर्वसामान्य कार्यक्रम है, जिसके आधार पर व्यक्ति ताउम्र न्यूनतम फिटनेस के साथ जीवन का आनंद उठा सकता है।
इसके साथ जीवन शैली का दूसरा आयाम है – विहार
विहार – विहार का अर्थ है दैनन्दिन विचरण। सुबह उठने से लेकर रात्रि शयन तक की जीवन चर्या। समय पर शयन और समय पर प्रातः जागरण - पहला स्वर्णिम सुत्र है। सुबह जागते ही, अपने जीवन लक्ष्य व ईष्ट-आदर्श के सुमरण के साथ दिनचर्या का आगाज। फिर दिन भर के कार्यों का निर्धारण, इनको प्राथमिकताओं के आधार पर अंजाम देने की चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था। इस तरह व्यवस्थित, अनुशासित दिनचर्या जहाँ एक ओर कर्तव्य निर्वाह का संतोष देती है, तो वहीं दूसरी ओर सामाजिक जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। 

इसके साथ दिनभर का संग साथ मायने रखता है। अंग्रेजी कहावत है कि – अ मेन इज नोन वाई द कंपनी ही कीप्स। क्योंकि आपका संग-साथ आपकी सोच व व्यवहार को प्रभावित करता है। अतः सकारात्मक एवं प्रेरक संग-साथ ही वांछनीय है। आज के विषाक्तता से भरे टीवी, इंटरनेट, सिनेमा एवं मोबाइल के युग में सात्विक, प्रेरक एवं लक्ष्य को पोषित करने वाला संग-साथ महत्वपूर्ण है। ऐसे संग साथ से दूर ही रहें जो मन को दूषित करता हो, चित्त को कलुषित करता हो और ह्दय को दुर्भावनाओं से भरता हो।
दिनचर्या में प्रार्थना, ध्यान-जप, स्वाध्याय आदि का समावेश सकारात्मक विचारों से भरे वातावरण का सृजन करता है, जो नकारात्मकता भरे दमघोंटू वातावरण में हमारे लिए संजीवनी का काम करता है। इस तरह अनुशासित आहार-विहार के आधार पर हममें वह आत्म-विश्वास आता है, जिसके बल पर हम सकारात्मक एवं प्रभावी व्यवहार की ओर बढ़ते हैं।

व्यवहारशालीन एवं सहकार-सहयोग भरा व्यवहार, जीवन शैली प्रबन्धन का तीसरा चरण है। वाणी व्यवहार की मुख्य वाहक है। अतः इसका स्वर्णिम सुत्र विज्ञजनों द्वारा दिया गया है – मित, मधुर और कल्याणी। वाणी ऐसी हो जिससे किसी की भावना आहत न हो, जिसके सबका कल्याण हो। लेकिन अवांछनीय तत्वों से भरे इस संसार में आवश्यकता पड़ने पर प्रभावी निपटारे के लिए उपेक्षा का सहारा लिया जा सकता है। उपेक्षा कर सकते हैं अपमान नहीं, एक मार्गदर्शक वाक्य हो सकता है। व्यवहार में उदारता-सहिष्णुता का समावेश निश्चित रुप में व्यक्तित्व को भावप्रवण बनाता है और भावनात्मक स्थिरता की ओर ले जाता है, जो चारों ओर सहयोग-सहकार भरा सुख-शांतिपूर्ण वातावरण का सृजन करता है।

और अंत में, विचार, जीवन शैली का चौथा एवं सबसे सूक्ष्म एवं महत्वपूर्ण पक्ष है। विचारों की शक्ति सर्वविदित है। विचार ही क्रमशः कर्म बनते हैं, जो आगे चलकर आदतें बनकर व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण करते हैं। सो विचारों की शक्ति का सही नियोजन महत्वपूर्ण है। विचारों का सकारात्मक, विवेकसंगत, परिष्कृत और सशक्त होना वरेण्यं है। इसके लिए अपने आदर्श का सुमरण, सतसंग एवं सुदृढ़ धारणा आवश्यक है। 

इसके साथ मस्तिष्क का लक्ष्य केंद्रित होना जरुरी है, जिससे अपना कैरियर एवं प्रोफेशनल लक्ष्य का भेदन हो सके। इसके साथ व्यापक एवं गहन अध्ययन, बौद्धिक विकास को सुनिश्चित करता है। लेखन के रुप में विचारों की रचनात्मक अभिव्यक्ति मौलिक सोच को पुष्ट करती है, वहीं सृजन का आनंद देती है। इसी के साथ सामाजिक जीवन में एक प्रभावी संचार का मार्ग प्रशस्त होता है।

इस तरह जीवन शैली के चार आयाम हैं – आहार, विहार, व्यवहार और विचार, जो व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास को सुनिश्चित करते हैं। इनको साधने के लिए बनाया गया न्यूनतम कार्यक्रम स्वस्थ, सुखी एवं सफल जीवन की दिशा में एक समझदारी भरा साहसिक कदम माना जाएगा। 

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