मंगलवार, 13 जून 2017

मानवीय इच्छा शक्ति के कालजयी प्रेरक प्रसंंग



 मनुष्य ठान ले तो क्या नहीं कर सकता
मनुष्य इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना है, जिसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं। यदि वह ठान ले तो कुछ भी कर सकता है। जीवन का भौतिक क्षेत्र हो या आध्यात्मिक, वह किसी भी दिशा में चरम बुलन्दियों को छू सकता है। ऐसे अनगिन उदाहरण भरे पड़े हैं जो अपने संकल्प-साहस के बल पर अदनी सी, अकिंचन सी हैसियत से ऊपर उठते हुए जीरो से हीरो बनने की उक्ति को चरितार्थ करते हैं, व कर रहे हैं। रसातल से चरम शिखर की इनकी यात्रा थके हारे मन को  प्रेरणा देती है।

सेंडो और चंदगी राम जैसे विश्वविख्यात पहलवान बचपन में गंभीर रोगों से ग्रसित थे। शरीर से दुर्बल इन बालकों से दुनियाँ को कोई उम्मीद नहीं थी। किसी तरह वे शरीर से स्वस्थ हो जाएं, इतना ही काफी था। लेकिन दोनों बालक दूसरी ही मिट्टी के बने थे। दोनों अपने जमाने के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बनना चाहते थे।

इस लक्ष्य के अनुरुप वे अपनी कसरत जारी रखते हैं और एक दिन दुनियां के सामने अपने स्वप्न को साकार कर दिखाते हैं। ऐसे न जाने और कितने ही शरीर से रोगी, दुर्वल यहाँ तक कि अपंग व्यक्ति होंगे जो आज भी उसको पार करते हुए शरीरिक सौष्ठव एवं खेलों मे झंड़ा गाड़ रहे हैं। यदि व्यक्ति संकल्प का धनी है तो उसके लिए शारीरिक दुर्वलता के कोई मायने नहीं रह जाते। 
स्टीफन हॉकिन्स, आइंसटीन व एव्राह्म लिंकन इसी कढ़ी के दूसरे ऐतिहासिक नायक हैं।
लिंकन तो बचपन से ही परिस्थितियों के मारे थे। उसका जन्म लकड़हारा परिवार में हुआ था, जो जंगल की लकड़ियां काटकर किसी तरह अपना निर्वाह करता था। बच्चों के लिए पढ़ाई की सुविधा जंगल में कहाँ। लेकिन लिंकन पढ़-लिख कर आगे बढ़ना चाहता था। उसने संकल्प ने उसे जंगले से दूर स्कूल तक पंहुचने का संयोग दिया। पुस्तक खरीदने का पैसा गरीब माँ-बाप के पास कहाँ था। अतः वालक लिंकन मीलों दूर पैदल जाकर पुस्तकालय में पढ़ाई करता। शहर में पढ़ने गया तो लालटेन-मोमवती के पैसे न होने के कारण स्ट्रीट लैंप की रोशनी में ही पढ़ाई करता। 
शिक्षा के साथ लिंकन अपनी ही नहीं पूरी बिरादरी की दशा से रुबरु होता है। वह युग की मानवीय त्रास्दी से पूरे देश को आजाद करने के संकल्प के साथ सार्वजनिक जीवन में कूदता है। लेकिन यहाँ भी मनचाही सफलता से वंचित ही रहते हैं। तीस वर्ष तक निराशा से लम्बें संघर्ष के बाद अंततः वह अमेरिका के राष्ट्रपति के रुप में अपने अपराजेय जीवट का झंड़ा बुलन्द करते हैं। 

यह साहसी शूरमा इच्छाशक्ति के कारण मुसीबतों के तुफान से घिर जाने पर भी कभी निराश नहीं हुआ। इसने दुर्भाग्य से कभी हार नहीं मानी, दृढ़ आत्मविश्वास के सम्बल लेते हुए नित्य नवीन उत्साह के साथ जीवन पथपर आगे बढ़ता गया। आगे चल कर इसी जीवट के बल पर वे अमेरिका से दास प्रथा को मिटाने में अपनी ऐतिहासिक भूमिका अदा करते हैं। आज भी एव्राह्म लिंकन अपनी जिजीविषा एवं महानता के कारण अमेरिका ही नहीं पूरे विश्व में करोड़ों संघर्षशील व्यक्तियों के लिए प्रेरणा के प्रकाश स्तम्भ हैं।

यूनान के डेमोस्थनीज बचपन में तुतला कर बोलने की समस्या से पीडित थे। लेकिन बालक था बुद्धिमान एवं साहसी। साथ ही देश की माली हालत के बीच अपनी निर्णायक भूमिका भी निभाना चाहता था। विद्वानों-दार्शनिकों के देश युनान में सारे निर्णय वाद-विवाद एवं संवाद के आधार पर होते थे। अपनी वाक् अपंगता को देखकर डेमोस्थनीज तिलमिला कर रह जाते। लेकिन वह साहसी युवक था, लग्न का धनी था। उसकी अपंगता और स्वप्न के बीच की खाई के कारण वह लोगों की हंसी का पात्र भी बनता। 

लेकिन हर विफलता उसके संकल्प को और मजबूत करती। हार मानना तो जैसे इस बालक ने सीखा ही नहीं था। अभ्यास करते करते एक दिन डेमोस्थनीज अपने जमाने के सबसे मुखर वक्ता (सिल्वर टोंग्ड औरेटर) बन जाते हैं।

इसी श्रृंखला में गाँधीजी को भी ले सकते हैं। जब वे इंग्लैंड से पढ़ाई पूरा करके दक्षिण अफ्रीका में वकालत शुरु करते हैं तो प्रारम्भिक सभाओं में उनकी जुबान पर जैसे ताला लग जाता है। श्रोताओं का भय उन पर इस कदर हॉवी होता है कि वे पसीना-पसीना हो जाते हैं और सबकी हंसी का पात्र बनते हैं। लेकिन युवक मोहनदास अपने लौह संकल्प के बल पर आगे चलकर ऐसे धुरंधर बक्ता बन जाते हैं, जिसका लौहा विश्व की सबसे ताकतवर अंग्रेजी हकूमत भी मानती है।
आइंस्टीन स्कूल के दिनों में गणित में फिस्सडी विद्यार्थी माने जाते थे। लेकिन जब उनकी लगन जाग जाती है तो वे युग के सबसे महानतम् वैज्ञानिकों की श्रेणी में शुमार हो जाते हैं। इन्हीं की अगली पीढ़ी के वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिन्स तो इनसे भी चार कदम आगे हैं। हॉकिन्स शारीरिक रुप से लगभग पूरी तरह से अपंग हैं। युवावस्था में ये ऐसे रोग से पीड़ित हो जाते हैं कि इनके हाथ, पैर, जुवान सब कुछ जैसे लक्बा मार जाते हैं। इनके पास                                                                                                                                        बचता है - सिर्फ सोचने वाला एक मस्तिष्क और साथ में ऐसी अद्म्य इच्छा शक्ति जिसने ब्रह्माण्ड की सबसे जटिल गुत्थियों को सुलझाने की ठान रखी है।
आज अपनी शोध के कारण ये युग के आइंस्टाईन माने जाते हैं। ब्रह्माण्ड की उत्पति से लेकर ब्लैक होल एवं एलियन्स पर इनके विचारों को पूरा जमाना बहुत गंभीरता से सुनता है। अब तक ये कई वेस्ट सेलर पुस्तकों की रचना कर चुके हैं।

महान संकल्प एवं अध्यवसाय  के बल पर रॉक फैलर के कंगाल से धनकुबेर बनने की कथा भी एक मिसाल है। एक गरीब घर में उत्पन्न रॉकफैलर के पिता बचपन में ही चल बसे थे। बिधवा मां किसी तरह मुर्गी खाना चलाकर घर की गाढ़ी धकेल रही थी। बेटा रॉकफेलर मां के काम में हाथ बँटाता, साथ ही उसने मुर्गीखाने में सवा रुपया प्रतिदिन के हिसाब से नौकरी कर ली। इससे मिले एक-एक रुपये को वह टूटी केतली में इकट्ठा करता। एक दिन टूटी केतली में उसे दो सौ रुपये मिलते हैं, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। बालक रॉक फेलर को धनी बनने का गुर हाथ लग गया था।
वह धनी बनने के सपने को संकल्प का अमली जामा पहना लेता है और अविचल धैर्य के साथ मंजिल की ओर बढ़ चलता है। शुरु में वह मजदूरी ही करता है। लेकिन कछुए की चाल ही सही, वह अविराम गति से बढ़ता रहता है और एक दिन अमेरिका के सबसे धनिकों की श्रेणी में शुमार हो जाता है। लेकिन बाकि धनिकों से अलग एक विशिष्ट पहचान बनाता है। इसका आधार था-ईश्वर पर अगाध विश्वास और परोपकार का भाव, जो उसे सदा मानवीय गरिमा से युक्त रखी।
 उपासना उनके जीवन का अभिन्न अंग थी। बिना उपासना के कभी भोजन नहीं करते थे। स्कूली पढ़ाई अधिक नहीं थी, लेकिन अपने बौद्धिक परिष्कार, नैतिक विकास एवं आत्मिक उत्थान के लिए श्रेष्ठ साहित्य का स्वाध्याय निरंतर करते थे। धन को ईश्वर की दी हुई विभूति मानते थे और सत्पात्रों एवं जरुरत मंदो के लिए खुले हाथ से बाँटते थे। वे अपने युग के सबसे बड़े दानवीर माने जाते हैं, जो उस समय लगभग तीन अरब रुपया दान दिए। शिक्षा से लेकर चिकित्सा के क्षेत्र उनके परोपकार से उप्कृत होते रहे।
रॉक फैलर ने धन को कभी सर पर नहीं चढ़ने दिया। इतना बढ़ा धनपति होने के बावजूद सामान्य सा एवं प्राकृत जीवन जीते रहे। इसलिए एक स्वस्थ, सुखी एवं प्रसन्नचित्त सतानवें वसंत पूरे किए। आज उनका जीवन निर्धन एवं धनिक सबके लिए एक प्रेरणा का स्रोत है।
 
     इसी तरह की कितनी ही प्रतिभाएं है जो सामान्य सी स्थिति से ऊपर उठती हैं व अपनी शारीरिक कमियों या परिस्थितियों की विषमता को अपने विकास में रोढ़ा नहीं बनने देती। शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक जीवन की तरह आत्मिक प्रगति की दिशा में ऐसे कितने ही स्त्री-पुरुष हुए जिन्होंने अपने पिछले दागी जीवन को कैंचुली की तरह उतार कर फैंक दिया, एक नए जीवन की शुरुआत की और आध्यात्मिक विकास के शिखर का आरोहण किए।

संत आगस्टीन ऐसे ही संत हुए हैं, जिनका पूर्व जीवन पूरी तरह से तमाम तरह के कुटेबों से भरा हुआ था। शराब से लेकर नशाखोरी, वैश्यागमन तक उनका दामन दगीला था। लेकिन उनके ह्दय में इस गर्हित जीवन के प्रति वितृष्णा के भाव से भरे थे और एक ईश्वर के बंदे, संत का पवित्र-निष्कलंक जीवन जीना चाहते थे। हर पतन की फिसलन के साथ उनकी सच्चे जीवन जीने की पुकार तीव्र से तीव्रतर होती जाती है।
अंततः शुद्ध-बुद्ध जीवन की उनकी गहनतम पुकार जैसे जन्म-जन्मांतरों के अचेतन को भेद जाती है और आध्यात्मिक अनुभूति के साथ उनका कायाकल्प हो जाता है और वे अतिचेतन की ओर कूच कर जाते हैं। अपने जीवन के रुपाँतरण की ये मार्मिक अनुभूतियों को वे अपने प्रख्यात ग्रँथ द कन्फेशन में लिपिवद्ध करते हैं। पिछले जीवन को वे पूरी तरह से तिलाँजलि दे देते हैं और मध्यकालीन यूरोप में आध्यात्मिक प्रकाश के स्तम्भ के रुप में दार्शनिक-आध्यात्मिक जगत को अपनी दैवीय प्रभा से आलोकित करते हैं। संत अगस्टीन के नाम से वे आज भी लोगों के लिए प्रकाश एवं प्रेरणा के स्रोत्र हैं।
भारत में तुलसी दास, सूरदास की कथा कुछ ऐसे ही उदाहरण पेश करती हैं। डाकू अंगुली मान, वैश्या आम्रपाली के जीवन की दारुण-त्रास्द गाथा का सुखद रुपाँतरण मानव स्वभाव में निहित दैवीय तत्व की अपराजेय शक्ति के ही अदभुत उदाहरण हैं। कोई कारण नहीं कि मनुष्य इस सुरदुर्लभ मानव तन पाकर दीन-हीन और दगीला जीवन जीए। इस मानुष-तन में ऐसा खजाना भरा पड़ा है कि व्यक्ति इससे मनचाहा वरदान पा सकता है। आवश्यकता है वस संकल्प जगाने की और असीम धैर्य एवं अध्यवसाय के साथ उस और बढ़ने की।

बुधवार, 31 मई 2017

मुट्ठी से दरकता रेत सा जीवन


कभी न होगी जैसे अंधेरी शाम
जी रहे इस घर-आंगन में ऐसे,
जैसे हम यहाँ अजर-अमर-अविनाशी,
रहेगा हमेशा संग हमारे यह संसार, घर-परिवार,
संग कितने साथी सहचर शुभचिंतक, न होगा जैसे कभी अवसान।
इसी संग आज के राग-रंग, कल के सपने बुन रहे,
कभी न होगा वियोग-विछोह,
जी रहे ऐसे जैसे रहेंगे यहाँ हर हमेशा,
नहीं होगा अंत हमारा, न आएगी कभी अंधेरी शाम।
 संसार की चकाचौंध में मश्गूल कुछ ऐसे,
जैसे यही जीवन का आदि-अंत-सर्वस्व सार,
बुलंदियों के शिखर पर मदमस्त ऐसे,
चरणों की धूल जैसे यह सकल संसार।
लेकिन काल ने कब इंतजार किया किसी का,
लो आगया क्षण, भ्रम मारिचिका की जडों पर प्रहार,
क्षण में काफुर सकल खुमारी, फूट पड़ा भ्रम का गु्ब्बार,
उतरा कुछ बुखार मोह-ममता का, समझ में आया क्षणभंगुर संसार।
रहा होश कुछ दिन, शमशान वैराग्य कुछ पल,
फिर आगोश में लेता राग-रंग का खुमार,
मुट्ठी से दरकता फिर रेत सा जीवन,
                     होश के लिए अब अगले प्रहार का इंतजार।

शुक्रवार, 26 मई 2017

समग्र स्वास्थ्य और मीडिया




एक जागरुक मीडिया उपभोक्ता की भूमिका

स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव - आज सिर्फ स्वास्थ्य के बारे में चर्चा पर्याप्त नहीं। समग्र स्वास्थ्य पर विचार आवश्यक हो गया है। क्योंकि हमारे समाज व देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव दिखता है। जब कोई बिमार पड़ता है, दैनिक जीवन पंगु हो जाता है, कामकाज पेरेलाइज हो जाता है, तब हम किसी डॉक्टर की शरण में जाते हैं। दवा-दारू लेकर ठीक हो जाते हैं और जिंदगी फिर पुराने ढर्रे पर लुढकने लगती है। अपने स्तर पर स्वास्थ्य के लिए प्रायः हम सचेष्ट नहीं पाए जाते।


स्वास्थ्य के प्रति पुरखों की गहरी समझ और समग्र सोच जबकि स्वास्थ्य के प्रति हमारे पुर्वजों की सोच बहुत गहरी और समग्र रही है। स्वस्थ्य की चर्चा में शरीर, मन और आत्मा हर स्तर पर विचार किया गया है। शरीर को जहाँ समस्त धर्म का आधार वताया गया (शरीरं खलु धर्म साधनम्) वहीं रोग के कारण के रुप में धी, धृति और स्मृति के भ्रंषक अधर्म आचरण को पाया गया। इसके साथ स्थूल स्तर पर वात-पित-कफ त्रिदोष का असंतुलन और मानसिक स्तर पर तम और रज गुणों की प्रधानता को पाया गया। तथा इसी के अनुरुप समग्र उपचार का विधान मिलता है।

आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान और समग्रता की ओर बढते कदम जबकि आधुनिक प्रचलित चिकित्सा विज्ञान स्वास्थ्य की अधूरी सोच लिए हुए है, जो व्यक्तित्व के घटकों को अलग-अलग मानने की गल्ती के कारण हैं। शरीर में किसी विकार होने पर इसे स्वतंत्र रुप से ठीक करने की कवायद शुरु हो जाती है, जिसके मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारणों पर विचार नहीं किया जाता। शरीर और मन को अलग-अलग देखने का यह तरीका आधुनिक विज्ञान के अधूरेपन को दर्शाता है। हालाँकि अपने नवीनतम शोध निष्कर्षों के साथ यह साइकोसोमेटिक रोगों की चर्चा करने लगा है, जहाँ शरीर में पनप रहे रोगों के कारण मन की गहराइयों में खोजने की कोशिश की जाती है, जो समग्र स्वास्थ्य की दिशा में बढ़ रहे स्वागतयोग्य कदम हैं।


समग्र स्वास्थ्य समग्र स्वास्थ्य मनुष्य के व्यक्तित्व की विभिन्न इकाइयों को एक साथ लेकर समग्र रुप से विचार करता है। उसके शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्माक. आध्यात्मिक और सामाजिक आयामों पर विचार करता है। यह कौरा विचार नहीं जीवन शैली है, जिसके स्पष्ट मानक हैं। हम इसकी कसौटियों पर कसते हुए जाँच सकते हैं कि हम शारीरिक रुप से कितने फिट हैं, हमारा स्टेमिना-एंड्यूरेंस कैसा है। मानसिक स्तर पर संतुलन और मजबूती की स्थिति कैसी है। बौद्धिक स्तर पर सोच कितनी समग्र है, समझदारी व दूरदर्शिता के अंश कित मात्रा में हैं। भावनात्मक स्तर पर हम कितने परिवक्व, स्थिरता और संवेदनशील हैं। पारिवारिक-सामाजिक स्तर पर रिश्तों में कितने समस्वर, जिम्मेदार व सूझ लिए हुए हैं। और आध्यात्मिक स्तर पर कितने सरल-सहज, सकारात्मक (उदार-सहिष्णु) और आशावादी हैं।


जीवन शैली और वैकल्पिक चिकित्सा पद्वति के रुप में समग्र स्वास्थ्य को व्यक्तिगत स्तर पर आध्यात्मिक जीवन दृष्टि और यौगिक जीवन शैली के रुप में अपनाया जा सकता है। जिसके घटक हो सकते हैं आत्मबोध-तत्वबोध, आसन-प्राणायाम, स्वाध्याय-सतसंग, ध्यान-प्रार्थना और अनुशासित जीवनचर्या। रुगण होने पर इन वैकल्पिक चिकित्सा पद्वतियों का सहारा लिया जा सकता है प्राकृतिक चिकित्सा, पंचकर्म, यज्ञोपैथी, प्राणिक हीलिंग, वनौषधीय चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, योगिक चिकित्सा, आध्यात्मिक परामर्श और मनोचिकित्सा आदि।


मीडिया की भूमिका मीडिया स्वास्थ्य के प्रति जनमानस को जागरुक करने का एक सशक्त माध्यम है। प्रिंट, इलैक्ट्रॉनिक, न्यूमीडिया आदि अपने अपने ढंग से इसके प्रचार में अपनी भूमिका निभाते रहते हैं। अखबारों मे नित्य स्तम्भ और साप्ताहिक परिशिष्टों में लेख आते रहते हैं। कुछ पत्रिकाएं स्वास्थ्य को लेकर चल रही हैं। हेल्थ, वेलवीइंग और अध्यात्म को लेकर कई चैनल चल रहे हैं। इंटरनेट पर प्रचुर सामग्री स्वास्थ्य को लेकर पड़ी हुई है।


मीडिया की सीमाएं अपने प्रभाव के बावजूद मीडिया की अपने सीमाएं हैं। सबसे पहले तो मीडिया से सेवा का भाव लुप्तप्रायः है। यह विशुद्ध रुप से एक व्यापार बन चुका है। फिर टीआरपी की दौड़ में, हिट्स की आपाधापी में नेगेटिवी से लेकर सनसनाहट इसेक अभिन्न हिस्सा बनते जा रहे हैं। फिर मीडिया का हमेशा यह बहाना रहता है कि पाठक-दर्शक में उत्कृष्ट सामग्री को देखने, सुनने, पढ़ने की माँग नहीं रहती। और अगर माँग रहती भी है तो ऐसा कंटेट हमें उपलब्ध नहीं होता। इस सबके बीच समग्र स्वास्थ्य का अभीप्सु एक जागरुक मीडिया उपभोक्ता के रुप में मीडिया की सीमाओं को समझ सकता है और अपना सार्थक योगदान दे सकता है।

एक जागरुक मीडिया यूजर के रुप में हमारी भूमिका हर मीडिया यूजर एक मीडिया संवाहक, संचारक की भूमिका में भी है। यदि वह जीवन के समग्र उत्कर्ष, समग्र स्वास्थ्य के प्रति सचेत है तो अपने निष्कर्षों को मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर शेयर कर सकता है। वह इन सुत्रों को ट्विटर या फेसबुक पर शेयर कर सकता है। एक लेख के रुप में अखबार या ब्लॉग में प्रकाशित कर सकता है। यदि सामग्री की वीडियो क्लिप या डॉक्यूमेंट्री हो तो फेसबुक, यूटयूब आदि पर शेयर हो सकती है। यदि सामग्री प्रचूर मात्रा में विविधता लिए हो तो अपनी साइट खोलकर व्यापक स्तर पर शेयर किया जा सकता है।

निष्कर्षतः देश की जनता को समग्र स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करना समय की माँग है। सिर्फ रोगी होने पर ही स्वास्थ्य के प्रति सोचने की वजाए प्रोएक्टिव होकर में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकत करने की जरुरत है। जिससे की हर नागरिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्तर पर स्वास्थ्य के सुत्रों तो जीवनशैली में शुमार करते हुए एक स्वस्थ सुखी जीवन जी सके। इसी आधार पर स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज की परिकल्पना साकार होगी। इसकी शुरुआत हमें स्वयं से करनी है। हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा का युगऋषि का मंत्र तभी सिद्ध-साकार होगा। (देसंविवि में सम्पन्न सेंट्रल हेल्थ सर्विसिज मेडिकल ऑफिसर्ज फॉउंडेशन ट्रेेनिंग प्रोग्राम के दौरान दिया गया उद्बोधन-26 मई 2017 )

मंगलवार, 9 मई 2017

यात्रा वृतांत - कुंजापुरी शक्तिपीठ





कुंजापुरी से नीरझरना, ट्रेकिंग एडवेंचर



कुंजापुरी ऋषिकेश क्षेत्र का एक कम प्रचलित किंतु स्वयं में एक अद्वितीय एवं दर्शनीय तीर्थ स्थल है। शक्ति उपासकों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है क्योंकि कुंजापुरी पहाडी के शिखर पर बसा यह शक्तिपीठ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 52 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ माता सती का छाती वाला हिस्सा गिरा था। कुंजा पहाडी के शिखर पर बसे इस तीर्थ का एकांत-शांत वातावरण, प्रकृति की गोद में शांति को तलाशते पथिकों के लिए एक आदर्श स्थान है। 



राह का प्राकृतिक सौंदर्य़ – 
यह स्थान ऋषिकेश से महज 25 किमी की दूरी पर स्थित है। नरेन्द्रनगर से होकर यहाँ का रास्ता हरे-भरे सघन जंगल से होकर जाता है, जिसके बीच यात्रा जैसे प्रकृति की गोद में शांति-सुकून का गहरा अहसास देती है। जैसे-जैसे सफर ऊपर बढ़ता है नीचे ऋषिकेश, गंगाजी व ऊधर जोलीग्रांट-देहरादून का विहंगमदृश्य क्रमशः स्पष्ट होने लगता है। आसपास पहाड़ियों पर बसे गाँव, उनके सीढ़ीदार खेत दूर से दिलकश नजारा पेश करते हैं। बरसात के बाद अगस्त-सितम्बर के माह में इस राह का नजारा अलग ही रहता है जब पग-पग पर झरने झरते मिलते हैं। नरेन्द्रनगर रास्ते का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो टिहरी के राजा का आवास स्थल रहा है। यहाँ का आनन्दा रिजोर्ट बड़ी हस्तियों के बीच खासा लोकप्रिय है, जिसके दूरदर्शन कुंजापुरी से सहज ही किए जा सकते हैं।

कुंजादेवी ट्रेकिंग मार्ग
चम्बा-उत्तरकाशी की ओर जाता मुख्य मार्ग से हिंडोलखाल स्टॉप से एक सड़क दाईं ओर मुडती है। यहाँ से 4 किमी अपने वाहन से कुंजापुरी तक जाया जा सकता है। दूसरा एडवेंचर प्रेमियों के लिए 3 किमी का ट्रेकिंग रुट है। जो हल्की चढ़ाई और घने बाँज के जंगलों से होकर जाता है। इसकी बीच ट्रेकिंग एक यादगार अनुभव रहती है। रास्ते में बंदर, लंगूर, जंगली पक्षी सुनसान के सहचर के रुप में मिलते रहते हैं। इस सीजन में हिंसालू(आंछा), किल्मोडे (शांभल), मेहो (शेगल) जैसे कांटेदार झाडियों व वृक्षों में लगे खटे-मीठे जंगली फल सहज ही रास्ते में यात्रियों का स्वागत करते हैं।
ट्रेकिंग मार्ग का रोमाँच
रास्ते में कहीं-कहीं बहुत ही संकरे मार्ग से आगे बढ़ना होता है, नीचे सीधे गहरी खाई के दर्शन नवांतुकों को सर चकराने का अनुभव दे सकते हैं। ऐसे में सारा ध्यान अपनी राह पर आगे व बढ़ते चरणों में नीचे की ओर रहे तो ठीक रहता है। साथ में लाठी इस रास्ते में बहुत बड़ा सहारा सावित होती है। बहुत तंग जगह पर दाएं हाथ से पहाड़ का सहारा लेकर आगे बढ़ना सुरक्षित रहता है। नीचे खाई की और देखने की भूल न करें। ट्रेकिंग रास्ते में इस तरह के 3-4 छोटे-छोटे पड़ाव आते हैं। दूसरा, ऐसे स्थानों पर अपना सेल्फी प्रेम दूर ही रखें, क्योंकि ऐसा प्रयोग मिसएडवेंचर सावित हो सकता है। बीच-बीच में विश्राम के शानदार ठिकाने बने हुए हैं। पत्थरों के आसन पर, बांज-देवदार के घनी छाया के नीचे कुछ पल बैठकर यहाँ रिचार्ज हो सकते हैं। रास्ते में घने बाँज के बनों के बीच बहती हवा के झौंके नेचुलर ऐ.सी. का काम करते हैं। पूरे रास्ते में ऐसे झौंके दोपहरी की गर्मी के बीच ट्रेकरों के रास्ते को सुकूनदायी बनाए रखते हैं।

 मंदिर परिसर में
आधा-पौना घंटे बाद यात्री पीछे की ओर से मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं। यहां मुख्य गेट पर प्रहरी के रुप में दो शेर स्वागत करते हैं। मंदिर में प्रणाम, पूर्जा अर्चन के बाद बाहर परिसर के खुले एवं साफ-सुथरे परिसर में भ्रमण आनन्ददायी रहता है। यहाँ से चारों ओर घाटी, पर्वत, चोटियों का विहंगम दृश्य यात्रियों को दूसरे लोक में विचरण की अनुभूति देता है। 1675 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर इस क्षेत्र का सबसे ऊँचा स्थल है। यहाँ से नीचे दक्षिण की ओर ऋषिकेश, सुदूर हरिद्वार दक्षिण-पश्चिम की ओर जोलीग्रांट-देहरादून के दर्शन किए जा सकते हैं। 
 उत्तर में गढ़वाल के शिखरों के दर्शन साफ मौसम में सहज ही किए जा सकते हैं, जिनमें स्वर्गारोहण, बंदरपूँछ, चौखम्बा, गंगोत्री चोटियां प्रमुख हैं। यहाँ से इस क्षेत्र के अन्य दो शक्तिपीठ सुरकुण्डा और चंद्रवदनी के दर्शन भी किए जा सकते हैं, जो मिलकर एक शक्तिपीठों का दिव्य त्रिकोण बनाते हैं। यहाँ से नीलकण्ठ की पहाड़ियों सहज ही दर्शनीय हैं, जो यहाँ से काफी नीचे दीखती हैं।
यहाँ के परिसर में बने चबूतरे व इसके आसपास बने बेंचों पर बैठकर सहज ही हरपल वह रहे हवा के झौंकों का लुत्फ उठाया जा सकता है। यहाँ चाय-नाश्ता के लिए स्थानीय ढावा है। यहाँ के खुले व साफ परिसर में यात्री सुकून के पल विता सकता है, जो अन्य भीड़ भरे कंजेस्टेड तीर्थों में मुश्किल होता है। शहरों की भीड़ ते आजीज आ चुके तीर्थयात्रियों व प्रकृति प्रेमियों के लिए कुंजापूरी एक आदर्श स्थल है। यदि यहाँ प्रातः 7 बजे पहुंचने की व्यवस्था हो सके तो यहाँ के सूर्योदय का दर्शन एक यादगार अनुभव रहता है।

परिसर से बापसी का सीढीदार मार्ग
 यहाँ से बापसी मोटर मार्ग से हो सकती है। सड़क तक का रास्ता छत से ढकी लगभग 300 सीढियों से होकर जाता है। हर सीढ़ी में देवीसुक्त के मंत्र उत्कीर्ण हैं, जो इस यात्रा को विशेष बनाते हैं। श्रद्धालु इनका पाठ करते हुए सीढी का अवरोहण करते हैं। नीचे टैक्सी स्टेंड में भी चाय-नश्ते की कई दुकानें हैं। जहाँ से अपने बाहन से बापस आया जा सकता है। इसी रास्ते से सीधा बढ़ते हुए पुराने ट्रेकिंग मार्ग से नीचे हिंडोलखाल उतरा जा सकता है। जहाँ से चम्बा की ओर से आ रही बसों से सीधे ऋषिकेश पहुँचा जा सकता है।

गाँव से होता हुआ आगे का ट्रेकिंग मार्ग
ट्रेकिंग के इच्छुक रोमाँचप्रेमियों के लिए सडक के पहले मोड से वाइँ और नीचे की और जाते हुए पैदल मार्ग है, जो पटेर गांव से नीचे कच्ची सड़क तक पहुंचता है। यहाँ से एक सीधा मार्ग जंगल से होते हुए सीधे तपोवन पहुंचता है। जो 6 किमी लम्बा है। दूसरा ट्रेकिंग मार्ग वाइँ और से कोड़ाड, धारकोट व नीरगाँव से होकर बढ़ता है, जो कुल मिलाकर 15 किमी लम्बा है और अंत में नीरझरने से होकर नीचे ऋषिकेश-देवप्रयाग मुख्यमार्ग में निर्गड्डू पर मिलता है।
यह ट्रेकिंग मार्ग शांत वादियों से होकर गुजरता है। गांव के सीधे-सरल और मेहनती लोग यात्रा में अच्छे मार्गदर्शक और मेहमानवाज की भूमिका निभाते हैं। रास्ते में चाय व ठंडे के शौकीनों को रास्ते में निराश होना पड़ सकता है। रास्ता निर्जन है, कोई दुकान या ढावा नहीं है। नीरगाँव में आकर ही एक-दो दुकाने हैं, जहाँ ये जरुरतें पूरी की जा सकती हैं।

 नीरझरना ट्रेकिंग मार्ग
नीरगाँव से मोटर मार्ग से नीचे की ओर पैदल मार्ग नीर झरने की और बढ़ता है। गाँव के बीच से ही खेतों की मेड़ पर सीमेंट से बनी छोटी नहरें(कुल्ह) पानी को आगे प्रवाहित करती हैं। इसके कल-कल कर बहते जल की आबाज रास्ते के सफर में मिठास घोलती है। रास्ते में सीढ़ीदार खेतों में चाबल से लेकर अन्य फसलें देखी जा सकती हैं। हालांकि फल-सब्जी का चलन यहाँ नहीं दिखा, जो पानी की प्रचुरता के कारण सम्भव था। गांव के छोर पर नीचे नीर झरना आता है। अंतिम पढ़ाव गहरी उतराई से भरा है, जहाँ थके ट्रेकरों की कड़ी परीक्षा होती है। एक कदम फिसला कि गए सीधे खाई में। सामने झरना दो चरणों में नीचे गिरता है। उपर एक झील बनती है, फिर पानी नीचे दूसरी झील में गिरता है। यहाँ के निर्मल व शीतल जल में स्नान का लोभ शायद ही कोई संवरण कर पाए। इसमें डुबकी रास्ते की थकान को छूमंतर करती है। आसपास बने ढावों से मैगी चाय व नाश्ते का आनन्द उठाया जा सकता है।
यहाँ से नीचे आधा किमी भी छोटे छोटे झरनों से भरा है। जिसका यात्री पूरा लुत्फ उठा सकते हैं। कोई हरिद्वार-ऋषिकेश में आया यात्री कल्पना भी नहीं कर पाता कि यहाँ एक ऐसा प्राकृतिक झरने का खजाना भी छिपा हुआ है। ट्रेकिंग मार्ग नीचे आधा किमी बाद कच्ची सड़क से मिलता है। जो आगे लगभग 2 किमी के बाद निर्गड्डू में मुख्य मार्ग से मिलती है। जहाँ से तपोपन 1.5 किमी है। जहाँ से आटो टेक्सी आदि से यात्री ऋषिकेश बस स्टेंड होते हुए अपने गन्तव्य की ओर बढ़ सकते हैं।

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