सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

यात्रा वृतांत – हरिद्वार से मसूरी, कैंप्टिफॉल वाया देहरादून


12 घंटों में जैसे सफर तीन लोकों का
हरिद्वार से अक्सर लोग एक दिन में बहुत कुछ घूमने का प्लान करते हैं, खासकर पास के पहाड़ उन्हें आकर्षित करते हैं। ऐसे पर्यटकों के लिए हरिद्वार से मसूरी, कैंप्टीफॉल का टूर इच्छा पूर्ण करने वाला साबित हो सकता है। अगर सस्ते में टूर करना हो तो स्थानीय किसी भी टूर-ट्रैब्ल से महज 250 रुपए में बुकिंग हो जाती है, रास्ते में खाने-पीने व कुछ विजिट टिक्टस को मिलाकर बजट 4-6 सौ के अंदर पूरा हो जाता है, यदि शॉपिंग भी करनी हो तो फिर तो कोई सीमा नहीं। हजार रुपए के अंदर एक बेहतरीन ट्रिप का प्लान किया जा सकता है।
हरिद्वार से बसें सुबह 8,9 बजे शुरु हो जाती हैं, जो शाम को 8,9 बजे तक पहुँचा देती हैं अर्थात् 12 घंटे में आप देहरादून से होते हुए मसूरी पहुँचते हैं और कैंप्टीफॉल से होकर बापिस आ जाते हैं। रास्ते में फन बैली, प्रकाशेश्वर महादेव, मसूरी सिटी लैक, मॉल रोड़, केंप्टीफॉल स्टेशन आते हैं। यदि पूरी बस बुक हो तो स्टेशनों को अपने अनुसार जोड़, घटाया जा सकता है। जैसे फन वैली की जगह सहस्रधारा को जोड़ा जा सकता है। समय बचने पर बापसी में देहरादून पलटन बाजार में शॉपिंग का समय निकाला जा सकता है।

हरिद्वार से हरकी पौड़ी पार करते ही वाईं और शिवालिक पहाड़ियों और दाईं ओर गढ़वाल हिमालय के दर्शन शुरु हो जाते हैं। वाईं ओर गगनचुम्बी भगवान शिव की प्रतिमा और नीचे गंगाजी की निर्मल धारा के दर्शन के साथ यात्रा का शुभारम्भ हो जाता है। आगे शांतिकुंज, देसंविवि से होते हुए रेल्वे फाटक पार करते ही रायवाला की ओर सफर बढ़ता है। रास्ते में ही पहाड़ों की गोद में बसे नरेंद्रनगर सहित शिखर पर स्थित सिद्धपीठ कुंजादेवी ध्यान आकर्षित करते हैं। देहरादून से आ रही सोंग नदी को पार करते ही नेपाली फार्म से सड़क वाईं ओर देहरादून की ओर मुड़ जाती है। जबकि सीधी सड़क ऋषिकेश जाती है, जो आगे बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि के लिए बढ़ती है।


नेपाली फार्म से बाई ओर मुड़ते ही सड़क कुछ दूरी तक सोंग नदी से कुछ दूरी बनाए बढ़ती है, नदी में मिलती एक छोटी सी जलधार के किनारे सदावहार हरे-भरे जंगल और दायीं ओर फसलों से लदे खेत-खलिहान यात्रियों का स्वागत करते हैं। बारहों महीनों जल से आवाद यह नाला सुना है कि बीच में घने जंगल से प्रकट होता है, जिसके उद्गम स्रोत की खोज स्वयं में एक रोचक एवं रोमाँचक ट्रेकिंग एडवेंचर का मसाला हो सकता है। आगे छिद्दरवाला कस्वा पड़ता है, इसको पार करते ही फेक्ट्री के आगे फन वैली आती है। 


इसमें कन्शेसन में 200 की एंट्री फीस के साथ अंदर के सुंदर नजारों एवं नाना प्रकार के खेलों का लुत्फ उठाया जा सकता है। प्रवेश करते ही वायीं ओर हनुमान मंदिर और सामने फब्बारा आपका स्वागत करते हैं। अंदर कई तरह की खेलों का इंतजाम है, जैसे स्ट्राइकिंग कार, जंपिंग फ्रॉग, गो कार्ट आदि। 


बीच-बीच में सागर की कृत्रिम लहरें यहाँ के स्वीमिंग पूल में देखी जा सकती हैं। कई तरह के झूलों का यहाँ इंतजाम है, जिनका रफ-टफ लोग ही आनन्द उठा सकते हैं। स्लाइंडिंग वाटर स्पोर्ट्स सर्दी में हालांकि बंद रहते हैं, गर्मियों में इनका भी आनन्द लिया जा सकता है। फन वैली का लैंडस्केप वेहतरीन है, हराभरा, फूलों से सजा। जिसके बीच में फब्बारे के सामने बेहतरीन यादगार फोटो ली जा सकती हैं। कुल मिलाकर फन वैली की दुनियां में एक वार अवश्य पधारकर कुछ यादगार पलों को सहेजा जा सकता है।

यहाँ 1 घंटे के बाद बस आगे बढ़ती है। रास्ते में दोनों ओर गन्ने, बास्मती चाबल के खेत मिलेंगे। दूर गढ़वाल की पहाड़ियां मौसम साफ होने पर आपके समानान्तर चलती प्रतीत होती हैं। नरेंद्रनगर से आगे मसूरी तक की पहाडियों के दर्शन रास्ते भर सहज ही होते हैं। भानेवाले त्रिराहे से वाईं ओर सड़क आगे डोईवाला की ओर बढ़ती है, जिसके आगे लच्छीवाला फ्लाईऑवर पुल के साथ घने जंगल में प्रवेश होता है। 

सड़क के किनारे यात्रियों द्वारा फैंकी जा रही सामग्री को बटोरते बंदरों की फोज को देखा जा सकता है। घना हरा-भरा साल के वृक्षों से जड़ा जंगल अगले कुछ किमी आपके सफर को सुकूनदायी बनाता है, जिसके अंतिम छोर पर आप देहरादून में प्रवेश करते हैं। रास्ते में हाल ही में बने जोगीवाला फ्लाईओवर से देहरादून के विस्तार को दायीं ओर पहाड़ों के तल तक देखा जा सकता है।


जोगीवाला से बाईपास सीधा राजपुर मसूरी रोड़ पर निकलता है। बीच में रायपुर कस्वे को पार करना होता है। रास्ते में राजधानी बनने के बाद बढ़ती आवादी के साथ फूलते देहरादून के दर्शन किए जा सकते हैं। रास्ते में साल के जंगल मिलेंगे, साथ ही कुछ वेहतरीन संस्थान और साथ ही घिच-पिच आवादी की बसावट। आधे पौन घंटे में बस उस पार राजपुर रोड़ पर निकलती है।
वहाँ से मसूरी की ओर मूड़ जाती है। यदि वाईपास की वजाए देहरादून शहर से प्रवेश किया जाए तो रास्ता रिस्पियाना पुल से होकर पलटन बाजार या फिर पैरेड ग्राऊँड से होकर किशनपुर मसूरी रोड़ तक पहुँचता है। इस सड़क पर भीड़ के बावजूद देहरादून शहर की भव्यता के दर्शन किए जा सकते हैं। रास्ते में कई राष्ट्रीय महत्व के प्रतिष्ठित संस्थान राजपुर सड़क के दोनों ओर पड़ते हैं।


यहाँ से चढ़ाई के साथ जंगल से आच्छादित हरी-भरी पहाडियाँ भी शुरु हो जाती हैं, जो नेत्रों को ठंड़क व मन को शांति देती हैं। इसी रुट पर वाईँ और डीआईटी, आईएमएस जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान और दायीं ओर डीयर पार्क और क्रिश्चियन रिट्रीट सेंटर रास्ते में पड़ते हैं। 

देहरादून से मसूरी की ओर आगे बढ़ते हुए रास्ते में आता है प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर, जहाँ स्फटिक शिवलिंग स्थापित है। 


इसके साथ ही है शाक्या कालेज, जो बौद्धधर्म का उच्च शिक्षा का केंद्र है, यदि समय हो तो इसके शांत परिसर में तिब्बती कला, स्थापत्य एवं अध्यात्म की झलक पायी जा सकती है। प्रकाशेश्वर शिवमंदिर में चाय नाश्ते की निशुल्क व्यवस्था रहती है, जिसके अंदर मार्केटिंग की सुविधा भी है। जिनमें तरह-तरह की मालाएं, रत्न, स्फटिक, ज्बैलरी आदि खरीदी जा सकती हैं।



आगे जलेबी रोड़ के साथ 4000 फीट से ऊपर 6500 फीट की ऊँचाई का मसूरी तक का आरोहण शुरु हो जाता है। । क्रमशः नीचे देहरादून के दर्शन, विहगम दृश्य व विस्तार बहुत स्पष्ट दिखाई देता है, ऐसे लगता है जैसे मैदान में पन्नियों को फैला रखा हो। रास्ते में ही देवदार व बांज के वृक्षों के दर्शन शुरु हो जाते हैं, साथ ही हवा में ठंडक का अहसास भी। लगता है कि हम पहाड़ी के आगोश में आ गए हैं। मसूरी से 6 किमी पहले ही बस रुकती है। नीचे 400 मीटर उतर कर मसूरी लेक आती है।


 यहाँ गढवाली परिधानों में फोटो की सुविधा रहती है, जिसमें पर्यटकों को खासी दिलचस्पी लेते देखा जा सकता है। साथ ही छोटी सी मार्केट है, जहाँ शाल, मफलर, स्वैटर जैसे गर्म कपड़े और लेडीज पर्स आदि खरीदे जा सकते हैं। साथ ही भोजन के ढावे हैं, जहाँ लंच किया जा सकता है। यात्रियों की राहत के लिए साथ ही सुलभ शौचालय की भी व्यवस्था है।


झील में बोटिंग की भी सुविधा है। पहाड़ों से झर रहे झरने के जल से यह झील बनी है। पानी एक दम ठंड़ा, हिमालयन टच लिए रहता है। यहाँ आधा घंटा घूमने-फिरने, फोटो खींचने व चाय-भोजन के बाद बापिस बस की ओर काफिला कूच करता है। रास्ते में तीव्र वेग से झर-झर बहता पानी दर्शनीय रहता है। पूछने पर कि यह पानी कहाँ से आता है, जबाव था कि पहाड़ों से। उसके उद्गम की सही जानकारी हमें नहीं मिल पायी। मेन रोड़ में बड़ा झरना पाईप से झर रहा था औऱ शेष जल तीव्र वेग के साथ नीचे वह रहा था।

यहाँ से बस आगे चल पड़ती है, कुछ ही देर में हम मसूरी चौराहे पर लगभग 6500 फीट की ऊँचाई पर थे, जिसके दायीं ओर माल रोड़ है, तो वायीं ओर पुरानी मार्केट।


हम सीधा आगे बढ़े मसूरी के उस पार, जहाँ से गंगोत्री-यमुनोत्री की ओर की हिमाच्छादित पर्वतश्रृंखलाएं दिख रही थीं। मसूरी शहर की छायादार जगहों में जमीं बर्फ के सफेद अवशेष दिख रहे थे। जैसे-जैसे हम आगे केंप्टीफॉल की ओर बढते गए, दूर बर्फ से ढकी पहाड़ियों का नजारा ओर निखरकर सामने आ रहा था। और साथ ही बादलों के बीच लुकाछपी करते धूप की रोशनी में जगमगाते पहाड़ भी। इन पहाड़ों की गोद में नीचे घाटी में बसे गाँव बरवस ध्यान आकर्षित करते हैं और किसी रुमानी दुनियाँ में ले जाते हैं। अधिकाँश दूर-दूर बसे इन गाँव में कच्ची सड़कें दिख रही थी। कुछ के लिए लगा पैदल ही चलना पड़ता होगा। 




अब हम केंप्टीफॉल के लिए नीचे उतर रहे थे। रास्ते में सड़क के दोनों ओर पिछले दिनों हुई बर्फवारी के अवशेष दिख रहे थे। मौसम में ठंडक थी। बांज-देवदार के जंगल के बीच सफर आगे बढ रहा था। रास्ते में पहाड़ी पर एक भव्य मंदिर के दर्शन हुए। उसके आगे कुछ ही मिनटों में मोड के बाद हम केंप्टीफाल के पास सामने थे। यहाँ बस स्टॉप पर बस खड़ी हो गई, सवारियाँ, नीचे केंप्टीफाल का नजारा लेती हैं।


यहाँ स्नान तो गर्मी में ही कोई सोच सकता है, ठंड में तो महज दर्शन कर सवारियाँ फोटो सेशन के बाद बापिस आ जाती हैं। रास्ते में कुछ यादगार मार्केंटिंग। समय हो तो मालरोड़ पर शांपिग की जा सकती है, हालाँकि खरीददारी यहाँ काफी मंहगी पड़ती है। फिर मसूरी से होकर नीचे उतरते हुए बापसी में सूर्यास्त का नजारा सफर में एक नया अध्याय जोड़ता है। 


सांय कालीन रोशनी में जगमगाते शिखरों के बीच देहरादून शहर का अद्भुत दृश्य रोमाँचित करता है और अस्त होते सूर्य की स्वर्णिम आभा ढलते सफर को आलोकित करती है। प्रकाशेश्वर मंदिर में चाय प्रसाद के बाद यात्रा आगे बढ़ती है। राह में अंधेरा शुरु जाता है। गाड़ी वाईपास से होते हुए हरिद्वार गन्तव्य पर छोड़ देती हैं।
12 घंटे के एक ही सफर में व्यक्ति इतने सारे अनुभव वटोर आता है, ऐसे लगता है जैसे कि तीनों लोकों का भ्रमण कर आए और यात्री सुखद स्मृतियों के साथ अपने गन्तव्य की ओर कूच कर जाते हैं।

 

गुरुवार, 31 जनवरी 2019

महापुरुषों की साधु संगत


चित्त् का भ्रम-बन्धन और अपना विशुद्ध आत्म स्वरुप
चेतना(आत्मा) विशुद्ध तत्व है। चित्त उसका एक गुण है। इच्छाएं, कामनायें यह चित्त हैं, प्रवत्तियाँ हैं, किंतु आत्मा नहीं, इसलिए जो लोग शारीरिक प्रवृत्तियों काम, भोग, सौंदर्य सुख को ही जीवन मान लेते हैं, वह अपने जीवन धारण करने के उद्देश्य से भटक जाते हैं। चेतना का जन्म यद्यपि आनन्द, परम आनन्द, असीम आनन्द की प्राप्ति के लिए ही हुआ है, तथापि यह चित्तवृत्तियाँ उसे क्षणिक सुखों में आकर्षित कर पथ-भ्रष्ट करती हैं, मनुष्य इसी सांसारिक काम-क्रीड़ा में व्यस्त बना रहता है, तब तक चेतना अवधि समाप्त हो जाती है और वह इस संसार से दुःख, प्रारब्ध और संस्कारों का बोझ लिए हुए विदा हो जाता है। चित्त की मलीनता के कारण ही वह अविनाशी तत्व, आप आत्मा बार-बार जन्म लेने के लिए विवश होते हैं और परमानन्द से वंचित होते हैं। सुखों में भ्रम पैदा करने वाला यह चित्त ही आत्मा का, चेतना का बन्धन है।                  
                               – युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

अपने जीवन को सरल बनाइए, सरल

मानवीय योनि मिलने पर भी हमारा जीवन छोटी-छोटी बातों में ही नष्ट हो जाता है। मैं कहता हूँ कि सैंकड़ों-हजारों कामों में उलझने के बजाय दो-तीन काम हाथ में ले लीजिए। इस सभ्य जीवन के सागर में अनगिनत बादल और तुफान होते हैं और जबर्दस्त दलदल हैं। इसमें ऐसी हजारों चीजें हैं कि यदि आदमी रसातल को नहीं जाना चाहता तो उसे बड़े हिसाब से रहना पड़ता है। अपने जीवन को सरल बनाइए, सरल। दिन में तीन चार खाने की जगह, आवश्यक हो तो एक ही बार खाईए। सौ पकवानों की जगह पाँच ही रखिए और इसी अनुपात में और सभी चीजों की संख्या घटाइए। 
                                - हेनरी डेविड थोरो

जगत के ऐश्वर्य में ही न खोएं, इसके मालिक की भी सुध लें
ईश्वर और उनका ऐश्वर्य। यह जगत उनका ऐश्वर्य़ है। लेकिन ऐश्वर्य़ देखकर ही लोग भूल जाते हैं, जिनका ऐश्वर्य है, उनकी खोज नहीं करते। कामिनी-काँचन का भोग करने सभी जाते हैं। परन्तु उसमें दुःख और अशांति ही अधिक है। संसार मानो विशालाक्षी नदी का भँवर है। नाव भँवर में पड़ने पर फिर उसका बचना कठिन है। गुखरु काँटे की तरह एक छूटता है, तो दूसरा जकड़ जाता है। गोरखधन्धे में एक बार घुसने पर फिर निकलना कठिन है। मनुष्य मानो जल सा जाता है।

उपाय - साधुसंग और प्रार्थना।

वैद्य के पास गए बिना रोग ठीक नहीं होता। साधुसंग एक ही दिन करने से कुछ नहीं होता। सदा ही आवश्यक है। रोग लगा ही है। फिर वैद्य के पास बिना रहे नाड़ीज्ञान नहीं होता। साथ साथ घूमना पड़ता है, तब समझ में आता है कि कौन कफ नाड़ी है और कौन पित्त की नाड़ी।.साधु संग से ईश्वर पर अनुराग होता है। उनसे प्रेम होता है। व्याकुलता न आने से कुछ नहीं होता। साधुसंग करते करते ईश्वर के लिए प्राण व्याकुल होता है – जिस प्रकार घर में कोई अस्वस्थ होने पर मन सदा ही चिन्तित रहता है और यदि  किसी की नौकरी छूट जाती है तो वह जिस प्रकार आफिस आफिस में घुमता रहता है, व्याकुल होता रहता है, उसी प्रकार।

एक ओर उपाय है – व्याकुल होकर प्रार्थना करना। ईश्वर अपने हैं, उनसे कहना पड़ता है, तुम कैसे हो, दर्शन दो-दर्शन देना ही होगा-तुमने मुझे पैदा क्यों किया? सिक्खों ने कहा था, ईश्वर दयामय है। मैने उनसे कहा था, दयामय क्यों कहूँ? उन्होंने हमें पैदा किया है, यदि वे ऐसा करें जिससे हमारा मंगल हो, तो इसमें आश्चर्य क्या है? माँ-बाप बच्चों का पालन करेंगे ही, इसमें फिर दया की क्या बात है? यह तो करना ही होगा। इसीलिए उन पर जबरदस्ती करके उनसे प्रार्थना स्वीकार करानी होगी।
साधुसंग करने का एक और उपकार होता है – सत् और असत् का विचार। सत् नित्यपदार्थ अर्थात् ईश्वर, असत् अर्थात् अनित्य। असत् पथ पर मन जाते ही विचार करना पड़ता है। हाथी जब दूसरों के केले के पेड़ खाने के लिए सूँड़ उठाता है तो उसी समय महावत उसे अंकुश मारता है।                - श्री रामकृष्ण परमहंस
 
    महापुुरुषों की साधुसंगत पर अन्य पोस्ट यहाँ पढ़ सकते हैं - 
 


मंगलवार, 29 जनवरी 2019

Live every day to its Fullest


Short is this Life, time running fast

Do what you can,
Just try your Best,
Facing Challenges on the way
And all the Fire Tests.

Challenges will turn into opportunities
 Just dare & persist on the way,
Fire tests will prove blessings,
Bringing out the very Best within you.

You just set your standards high,
Breaking your self-records with bold try,
Not indulging in comparison or contrast trap,
Sticking to your original Self, living your own life.


Try to live as a blessing in the World,
Leaving sweet memories behind,
Purifying the Ambience,
Radiating Positive vibes.

Spreading Peace, harmony & Goodwill,
Inspiring all struggling ones to the real Self,
Short is this life, my Dear, time running fast,
Live each moment as if this Day is the Last.

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पुस्तक सार - हिमालय की वादियों में

हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय से एक परिचय करवाती पुस्तक यदि आप प्रकृति प्रेमी हैं, घुमने के शौकीन हैं, शांति, सुकून और एडवेंचर की खोज में हैं ...