शनिवार, 30 अप्रैल 2022

टीम बिल्डिंग और नेतृत्व (Team Building & Leadership)

 Importance of Team Building & Leadership

Types of Leadership

If we want to go fast, move alone, if we want to go far move together

यहीं से Team Building की बात शुरु होती है।

अगर कोई पहाड चढ़ना हो, अकेले भी काफी, लेकिन यदि माउँट एवरेस्ट, कंचनजंगा, नंदा देवी या दूसरा कोई बड़ी शिखर चढ़ना हो, तो टीम बनानी पड़ेगी, अकेले चढ़ना संभव नहीं। अगर कुछ लोगों को पढ़ाना हो तो अकेले काफी, लेकिन यदि पूरे गाँव को तो स्कूल की व्यवस्था, टीचरों की एक टीम। यदि पूरे जिले को पढ़ाना हो तो, कॉलेज, लेक्चररों की टीम, यदि पूरा देश या विश्व को शिक्षित तो यूनिवर्सिटी, प्रोफेसरों की टीम। साथ में तमाम नॉन अकादमिक स्टाफ की टीम। अपना इंस्टीच्यूट, अपना सेंटर।

टीम का अर्थ है like minded persons, एक लक्ष्य के लिए समर्पित committed सदस्यों का समूह, इनके साथ ही लीड़रशिप की बात शुरु होती है।

Leadership का मतलब नेताजी नहीं, जो आज काफी बदनाम शब्द हो चला है, जो किसी भी तरह जोड़-तोड़कर, जनता को बेवकूफ बनाकर बोट एंठने, सत्ता में आने के लिए आतुर।

Leadership का यहाँ अर्थ Quality, एक गुण, एक विशेषता है, एक influence, एक प्रभाव, एक motivation, inspiration, एक guiding force, जो team को लीड कर अंजाम तक पहुँचाए।

Leadership

If your action inspires others to Dream more, Learn more, Do more and Become more, you are a Leader. – John Quining Adam

So leadership is an influence, an impact, a motivation, an inspiration.

नेतृत्व के संदर्भ में दो मत

·         Trait theory, जो कहती है कि  

o   नेतृत्व एक वृति, जन्मजात, जिसे सीख नहीं सकते।, जैसे स्वामी विवेकानन्द, सुभाषचंद्र बोस। LaxmiBai,

·         Behavioral theory, जो कहती है कि  

o   नेतृत्व, एक व्यवहार की शैली है, जिसको सीखा जा सकता है।, जैसे – Lal Bahadur Shastry, IndiraGandhi (वाजपेयी जी के शब्दों में गुंगी गुड़िया से दुर्गा,1971 युद्ध)

Leadership कई तरह की हो सकती है।

Types of Leadership

1.      Dictatorship – Authoritarian – Autocratic तानाशाही, अधिनायकवादी,

Do what I tell you,  तानाशाही, यहाँ नेता माने - बॉस, जनता की बातों का कोई मोल नहीं, जो नेताजी ने सोचा, कहा वही आदेश।

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान, हिटलर, मुसोलिनी, स्टालिन आदि। आज उत्तरी कोरिया के किंम जोंग, मिलिट्री शासक।

आलोचना, प्रतिपक्ष का कोई अस्तित्व नहीं, विरोधी स्वरों को कुचल दिया जाएगा।

उपयोगी, 1 जब समय कम निर्णय का ,, 2, जब जनता अनपढ़, अनगढ़, कौशलहीन, तब सफल

यदि जनता पढ़ी लिखी, समझदार तो न चले तानाशाही। इसके अपने खतरे भी।

2.      Democratic – Participatory – लोकताँत्रिक – Your opinion are listened. to

जनता द्वारा चयनित नेता, जनता की राय व निर्णय को महत्व, प्रतिपक्ष का महत्व, जितना प्रतिपक्ष मजबूत लोकतंत्र भी मजबूत।

लेकिन यदि जनता अनपढ़, तो फिर गढ़वढ़ी शुरु। चुनाव गलत हो सकता है, जिसके कारण आज संसद में कितने अपराधी, बाहुबली नेता पहुँच चुके हैं।

यदि जनता समझदार तो सबसे वेहतरीन नेतत्व।

3.      Lassez-faire – Hand off, Individualistic,

Trust is the stepping stone of success...Minimum intervention of leadership…

टीम के हाथों नेतृत्व, जहाँ टीम स्किल्ड, समझदार, जानकार।

जैसे विश्वविद्यालय के विभाग। विभागाध्यक्ष। प्रोफेसर, टीचर व अन्य।

Warren Buffet…

4.      Transactional leadership – Profit/Motive driven, लाभ प्रेरित(आज के बिजनेस में प्रचलित)

Clear Goal, award, reward, punishment

Team as worker,

गुणा-भाग से चालित नेतृत्व, नफे-नुक्सान का रिश्ता। यदि लाभ तो पुरस्कार, यदि हानि तो दण्ड।

5.      Transformational –

Beyond profit-loss, Heart_Soul driven..

नेता यहाँ दिल पर राज करे,..

Team feels empowered, transformed….

यहाँ नेतृत्व नियमों से न चले, दिल से राज करे। प्रेरक नेतृत्व। जनता के मूल्य, विश्वास को बदल डाले।.. Visionary..दूरदर्शी, समग्र दृष्टि रखे..समझदार..

जैसे–गुरु गोविंद सिंह, सवा लख से एक लड़ाऊँ, तो गुरु गोविंद सिंह कहाऊँ।

परमपूज्य गुरुदेव, सुभाष चन्द्र बोस, स्वामी विवेकानन्द।....

6.      Charismatic – जादुई –

व्यक्तित्व का असर। कम्यूनिकेशन स्किल भी। Personal AURA..

जैसेरजनीकांत, जया ललिता आदि। Gandhi, JP Narayan..

7.      लोकप्रिय, Populist – अपनी पर्फोर्मेंस के आधार पर, लेकिन जनता के मूड़ को बदलते देर नहीं लगती, कब पलट जाए। सतत अपेक्षाओं पर खरा उतरना जरुरी, तभी।

 

8.      बिजनरी, दूरदर्शी,

Embrace my vision,

अबदुल कलाम आजाद, बिजन 2020, अटल विहारी वाजपेयी...परमाणु परीक्षण।

यशवंत सिंह परमार, गोविंद बल्लभ पंत......

9.      Service leadership –

सेवा,

जैसे गांधी (राजनीति भी सेवा, पत्रकारिता भी सेवा), बिनोवा, रामकृष्ण परमहंस(आध्यात्मिक नेतृत्व)। भक्ति भाव से, सेवा भाव से, निष्काम भाव से।

सबसे बड़ा उदाहरण – घर में माँ। सेवा करते हुए भी दिलों पर शासन।

 

10.  Burocratic –  Follow the procedure

प्रशासनिक. पद की शक्ति, बाकि बंधे बंधाए नियमों से चले। नेतृत्व का कार्य इनको लागू कर।

 

11.  Situational –

जैसे पक्षी का झुंड, कोई भी लीड़ कर सकता है।

उदाहरण – सोशल इंटर्नशिप – योग आसन, मनो-परामर्श, पर्यटन टूर गाईड, पर्यावरण समाधान, भाषा, संस्कृति पुरातत्व, रिपोर्टिंग-साक्षात्कार, शिक्षा, वेब डिजायनिंग, एनिमेशन आदि।

12.  Accidental Leadership वाई चांस, आक्समिक – परिस्थितिजन्य नेतृत्व

उदाहरणदेवगौड़ा, इंद्रजीत गुजराल, मनमोहन सिंह आदि।

 



गुरुवार, 31 मार्च 2022

गल्तियों से सीखें व बढ़ते रहें मंजिल की ओर...

 असीम धैर्य, अनवरत प्रयास

कहते हैं कि इंसान गल्तियों का पुतला है। अतः आश्चर्य़ नहीं कि गल्तियाँ इंसान से ही होती हैं। यदि उससे गल्तियाँ नहीं हो रही हैं, तो मानकर चलें कि या तो वह भगवान है या फिर पत्थर, पौध या जड़ इंसान। लेकिन इंसान अभी इन दो चरम छोर के बीच की कढ़ी है। विकास यात्रा में वह वृक्ष-वनस्पति व पशु से आगे मानव योनि की संक्रमणशील अवस्था में है, जहाँ वह एक ओर पशुता, पैशाचिकता के निम्न स्तर तक गिर सकता है, तो दूसरी ओर महामानव, देवमानव भी बन सकता है, यहाँ तक कि भगवान जैसी पूर्ण अवस्था को तक पा सकता है।

लेकिन सामान्य इंसानी जीवन इन सभी संभावनाओं व यथार्थ का मिलाजुला स्वरुप है और फिर उसकी विकास यात्रा बहुत कुछ उसके चित्त में निहित संस्कारों द्वारा संचालित है, जो आदतों के रुप में व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करती है। इसी चित्त को मनोविज्ञान की भाषा में अवचेतन व अचेतन मन कहा जाता है, जो वैज्ञानिकों के अनुसार 90-95 फीसदी सुप्तावस्था में है। साथ ही व्यक्ति के जीवन की असीम संभावनाएं चित्त के इस जखीरे में समाहित हैं, जिसमें जन्म-जन्मांतरों के शुभ-अशुभ संस्कार बीज रुप में मौजूद हैं। व्यक्तित्व का इतना बड़ा हिस्सा अचेतन से संचालित होने के कारण बहुत कुछ उसके नियन्त्रण में नहीं है। यही अचेतन गल्तियोँ का जन्मस्थल है, जिनके कारण व्यक्ति तमाम सजगता के बावजूद कुछ पल बेहोशी में जीने के लिए विवश-बाध्य अनुभव करता है।

इसलिए इंसान से यदि कोई गलती हो जाती है तो कोई बड़ी बात नहीं। यह उसकी आंतरिक संचरना में मौलिक त्रुटि होने के कारण एक स्वाभाविक सी चीज है। इसको लेकर बहुत अधिक गंभीर होने, बहुत चिंता व निराशा-हताशा के अंधेरे में डुबने की आवश्यकता नहीं। आवश्यकता, मन की प्रकृति को समझने की है, अपनी यथास्थिति के सम्यक मूल्याँकन की है तथा गलती के मूल तक जाने की है। इसको समझकर फिर इसके परिमार्जन के लिए ईमानदार प्रयास, बस इतना ही व्यक्ति के हाथ में है। चित्त में जड़ जमाकर बैठे संस्कारों का परिमार्जन धीरे-धीरे सचेतन प्रयास के संग गति पकड़ता है। यह कोई दो-चार दिन या माह का कार्य नहीं, बल्कि जीवन पर्यन्त चलने वाला महापुरुषार्थ है, जो तब तक चलना है, जब तक कि इसकी जड़ों तक हम नहीं पहुँच पाते व इसके रुपाँतरण की चाबी हाथ नहीं लगती।

आश्चर्य नहीं कि जीवन के मर्मज्ञ ऋषि-मनीषियों ने स्वयं को गढ़ने व तराशने की प्रक्रिया को विश्व का सबसे कठिन कार्य बताया है। यह समय साध्य कार्य है, कठिन प्रयोजन है, लेकिन असंभव नहीं। अपनी गलतियों पर नियमित रुप से कार्य करते हुए, हर गलती से सबक लेते हुए, अगला कदम अधिक होशोहवाश के साथ उठाते हुए हम आत्म-सुधार व निर्माण की सचेतन प्रक्रिया का हिस्सा बनते हैं। क्रमिक रुप में व्यक्ति अपनी नैसर्गिक सीमाओं, दुर्बलताओं व कमियों से बाहर आता जाता है, इनसे ऊपर उठता है और एक दिन समझ आता है कि ये गल्तियाँ, ये असफलताएं उसकी मंजिल की आवश्यक सीढ़ियाँ थीं। निसंदेह रुप में यह बोध असीम धैर्य एवं अनवरत प्रयास के साथ फलित होता है।

अतः अपने ईमानदार प्रय़ास के बावजूद जीवन में होने वाली गल्तियों, भूल-चूकों को अपनी सीढ़ियाँ मानें, प्रगति पथ के आवश्यक सोपान मानें, जो मंजिल तक पहुँचाने में मदद करने वाली हैं। इन्हें अपना शिक्षक मानें, सच्चा मित्र-हितैषी मानें, जो अभीष्ट सत्य तक हमें पथ प्रदर्शित करने वाली हैं। इनको लेकर अनावश्यक तनाव, विक्षोभ, अपराध बोध व कुण्ठा पालने की आवश्यकता नहीं। ऐसा करने पर चित्त में गाँठें पड़ती हैं, जो मानसिक ऊर्जा को अवरुद्ध कर जीवन के सृजन, संतोष व प्रसन्नता के मार्ग को बाधित करती हैं। अतः समझदारी गल्तियों से सबक लेते हुए आगे बढ़ने की है, जिससे धीरे-धीरे इनकी आवृत्ति कम होती जाए व जीवन अधिक दक्षता के साथ पूर्णता की मंजिल तक पहुंच सके।

अपने साथ दूसरों की गल्तियों के प्रति भी ऐसा ही दिलेर दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। अचेतन से संचालित इंसान के रुप में गल्तियाँ होनी तय हैं। उनको उदारतापूर्वक स्वीकार करें। उनको समझने व सुधारने का अवसर दें। ऐसे में परिवार, समूह या समाज में स्वाभाविक रुप में एक विश्वास, शांति एवं आत्मीयता का वातावरण बनेगा। परिवार व संस्था के सदस्यों की कार्यक्षमता समान्य से अधिक रहेगी, उनके व्यक्तित्व का भावनात्मक विकास अधिक गहराईयों से होगा तथा वे समाज के लिए अधिक उत्पादक होकर कार्य कर सकेंगे तथा उनका सृजनात्मक योगदान अधिक बेहतर होगा। जबकि एक दूसरे की छोटी-छोटी गल्तियों के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण, कटु व्यवहार एवं असहिष्णु रवैया हर दृष्टि से घातक ही रहता है।

अतः गल्तियों के प्रति समझदारी भरा लचीला वर्ताव वाँछित रहता है, तभी इनका सही ढंग से सुधार हो पाता है। बिगड़ैल मन को बहुत समझदारी के साथ संभालना होता है, तभी यह काबू में आता है। निसंदेह रुप में गल्तियों का सही उपयोग एक कला है, एक विज्ञान है, जिसमें मन की प्रकृति को समझते हुए कार्य करना होता है। और किसी महापुरुष ने सही ही कहा है कि जीवन का निर्माण हजारों ठोकरें खाने के बाद होता है। अतः मार्ग की गल्तियों व अबरोधों को जीवन निर्माण की स्वभाविक प्रक्रिया मानते हुए, अपने निर्माण के कार्य में सजगता के साथ जुटे रहें, ताकि परिवार व समाज निर्माण के कार्य में हम सकारात्मक योगदान दे सकें।

याद रखें, गल्तियाँ जीवन में आगे बढ़ाने वाली शिक्षिकाएं हैं और असफलताएं सफलता की मंजिल की आवश्यक सीढ़ियाँ हैं। इनके प्रति सकारात्मक भाव रखते हुए पूरी चुस्ती एवं मुस्तैदी के साथ आगे बढ़ें। बाह्य सफलता एवं आंतरिक संतुष्टि व आनन्द के साथ गन्तव्य तक पहुँचने का यही राजमार्ग है। असीम धैर्य, अनन्त सजगता एवं सतत प्रयास का दाम थामे हम जीवन का हर पल इसकी पूर्णता में जीने का प्रय़ास करें।

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

डायरी लेखन की कला

सृजनात्मक लेखन की प्राथमिक पाठशाला के रुप में

डायरी लेखन क्या? - डायरी लेखन सृजन की एक ऐसी विधा है, जिसकी शुरुआत तो अपने रोजर्मरा के जीवन के हिसाब-किताब के साथ होती है, लेकिन क्रमशः जब यह गहराई पकड़ती जाती है तो यह दैनिक जीवन के उताड़-चड़ाव के साथ मन में उठ रहे विचार-भावों की भी साक्षी बनती है। इसके साथ दिन भर के कुछ खास अनुभव, नए लोगों से हुई यादगार मुलाकातें, जीवन की कशमकश के साथ घट रहे संघर्ष, चुनौतियाँ व साथ में मिल रहे सबक इसके साथ सहज रुप में जुड़ते रहते हैं।

डायरी लेखन की सृजनात्मक विधा -

इस सबके साथ डायरी एक स्व-मूल्याँकन की विधा के रुप में व्यक्ति की सहचर बनती है, जिसके साथ जीवन के लक्ष्य एवं आदर्श और स्पष्ट होते जाते हैं। अपने व्यक्तित्व का पैटर्न इसके प्रकाश में शीसे की तरह साफ हो चलता है। मन की विभिन्न परतों के साथ, जीवन का स्वरुप और दूसरों का व्यवहार – सब मिलकर जीवन के प्रति एक गहरी अंतर्दृष्टि का विकास करते हैं और साथ में वजूद की गहरी समझ के साथ उभरता है एक मौलिक जीवन दर्शन, जो नियमित रुप में कुछ लाईन से लेकर पैरा तक लिखते-लिखते लेखन शैली का अवदान भी दे जाता है। पता ही नहीं चलता कि डायरी लेखन करते-करते व्यक्ति कब मौलिक विचारक और सृजनात्मक लेखन की राह पर चल पड़ा।

डायरी लेखन का क्रिएटिव एडवेंचर -

अतः जो भी जीवन के प्रति थोड़ा सा भी गंभीर हैं, इसे समग्रता में जीना चाहते हैं, इसे गहरे में एक्सप्लाओर करना चाहते हैं, एक सार्थकता भरा जीवन जीना चाहते हैं, उन्हें डायरी लेखन को जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लेना चाहिए। यदि इसके साथ थोडा सा स्वाध्याय, चिंतन-मनन व ध्यान का पुट भी जुड़ जाए, तो फिर यह सोने पर सुहागे का काम करता है। और यह नियमित रुप में डायरी लेखन करते-करते सहज ही सम्पन्न हो भी जाता है। ऐसे में डायरी लेखन के साथ जीवन का गहनता से अध्ययन, अन्वेषण एवं अभिव्यक्ति का क्रम शुरु हो जाता है और यह विधा क्रिएटिव एडवेंचर के रुप में व्यक्ति को  सृजन की एक रोमाँचक यात्रा पर ले जाती है।

आत्म-अन्वेषण की विधा के रुप में -

ऐसे में डायरी लेखन एक तरह की सृजनात्मक साधना का रुप लेती है। जिसकी शुरुआत सुबह उठते ही होती है, जब आप दिन भर के कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर लिखते हैं। दिन भर इन पर सजग निगाह रखते हैं और रात को सोने से पहले इनका लेखा-जोखा करते हैं, आत्म-मूल्याँकन करते हैं। अपनी दिनचर्या के हर पक्ष (आहार, विहार, विचार, व्यवहार) और अपने पारिवारिक, पैशेवर व सामाजिक जीवन का सम्यक मूल्याँकन करते हैं। कम्रशः व्यक्तित्व के चेतन पक्ष के साथ इसकी अवचेतन व अचेतन गहराईयों में भी डायरी लेखन का प्रवेश हो जाता है तथा अपने चरम पर आत्मक्षेत्र के पुण्य प्रदेश में भी इसकी पहुँच हो जाती है।

आत्म-उत्कर्ष की पाथेय के रुप में -

इस सबके साथ व्यक्तित्व के रुपाँतरण की पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है। प्रतिदिन अपनी आदतों व अपने संस्कारों की गहराईयों में जीवन की गुत्थी, व्यक्तित्व की जलिटला व अस्तित्व की पहेली को समझते-समझते इनके समाधान भी सूझते जाते हैं। इस आत्मचिंतन, मनन व स्वाध्याय की प्रक्रिया के साथ डायरी लेखन एक आध्यात्मिक प्रयोग बन जाता है व व्यक्ति  जीवन के नित नूतन अनुभवों के साथ जीवन जीने की कला के उत्तरोत्तर सोपानों को पार करता हुआ आत्म-उत्कर्ष की राह पर बढ़ चलता है।  

कुछ मूर्धन्य लेखकों-विचारकों-मनीषियों के मत में

प्रख्यात लेखक वाल्टेयर कहा करते थे, जिसे मौलिक लेखक-विचारक बनना हो, उसको नियमित रुप में डायरी लेखन करना चाहिए। इससे न केवल विचारों का विकास होता है, बल्कि भाषा भी उत्तरोत्तर परिमार्जित तथा सुललित होती जाती है। मूर्धन्य वैज्ञानिक आइंस्टाइन डायरी लेखन को अपना सबसे विश्वस्त मित्र व एकान्त के पलों का सहयोगी मानते थे। भूदान के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे, नियमित डायरी लेखन करते थे व इसके चार चरण बताते थे – आत्मनिरिक्षण, आत्मसमीक्षा, आत्मसुधार एवं आत्म जागरण।

डायरी लेखन के लाभ अनगिन हैं, जो क्रमिक रुप में जीवन का हिस्सा बनते जाते हैं। मोटे तौर पर सार रुप में डायरी लेखन के लाभ को निम्न बिंदुओं में समेटा जा सकता है -

1.      अपने व्यक्तित्व का आयना,

2.      स्व-मूल्याँकन की एक प्रभावशाली विधा,

3.      जीवन के प्रति गहरी अंतर्दृष्टि का विकास,

4.      मानव प्रकृति की समझ देने वाली शिक्षिका,

5.      मानसिक चिकित्सा की विधा के रुप में,

6.      सृजनात्मक लेखन की प्राथमिक पाठशाला,

7.      लेखन की मौलिक शैली का विकसित होना,

8.      एक मेमोरी बैंक व एक प्रेरक शक्ति के रुप में,

9.      जीवन जीने की कला की प्रशिक्षिका के रुप में,

10.  एक सच्चे मित्र, हितैषी व मार्गदर्शिका की भूमिका में,

11.  आत्म परिष्कार एवं विकास की एक विधा के साथ एक आत्मिक सहचर के रुप में,

12.  यदि किसी विधा में नियमित डायरी लेखन करते रहा जाए, तो उस श्रेणी में उत्कृष्ट साहित्य का सृजन

आगे दिए जा रहे कुछ उदाहरणों के साथ इसके महत्व को समझा जा सकता है।

रामकृष्ण परमहंस के सतसंग के दौरान उनके शिष्य मास्टर महाशय की डायरी, रामकृष्ण वचनामृत जैसे कालजयी आध्यात्मिक साहित्य का आधार बनती है। ऐसे ही नेहरुजी की जेल डायरी से, डिस्कवरी ऑफ इंडिया जैसे बेजोड़ ग्रंथ की रचना होती है। गांधीजी के शिष्य महादेव भाई की डायरी में इनके जीवन के मार्मिक क्षणों व तत्कालीन घटनाक्रमों पर महत्वपूर्ण प्रकाश मिलता है। घुमक्कड़ शिरोमणि राहुल सांकृत्यायनजी की यात्रा के दौरान का नियमित डायरी लेखन उनके यात्रा लेखन से जुड़े अनुपम साहित्य का आधार बनता है। आचार्य प.श्रीराम शर्मा की हिमालय यात्रा के दौरान की डायरी, सुनसान के सहचर जैसे कालजयी यात्रा साहित्य का आधार बनती है। हेनरी डेविड थोरो की क्लासिक रचना वाल्डेन एक सरोवर के तट पर बिताए पलों के अनुभवों का लेखा-जोखा ही तो थी। ऐसे ही अनगिन उदाहरणों को खोजा जा सकता है, जहाँ डायरी लेखन उत्कृष्ट साहित्य सृजन की सामग्री बनती है।

डायरी लेखन के इन फायदों को थोड़ा विस्तार से चाहें तो आप दूसरी ब्लॉग पोस्ट - डायरी लेखन के लाभ, में पढ़ सकते हैं।

डायरी लेखन की शुरूआत हो सकती है कुछ ऐसे -  

डायरी लेखन की कोई एक निश्चित शैली नहीं हो सकती, इसे कई ढंग व रुपों में लिखा जा सकता है। यहाँ आत्म-सुधार, जीवन निर्माण एवं सृजनात्मक लेखन (creative writing) की पृष्ठभूमि में डायरी लेखन पर प्रकाश डाला जा रहा है।

डायरी में वाएं नीचे की ओर दिन भर के घण्टों का विभाजन किया जा सकता है, प्रातः जागरण से लेकर शयन तक को 2-2 घण्टों के अन्तराल में, यथा सबसे उपर 4 फिर नीचे 6, 8,10,12,2,4,6 और अंत में अपने शयन के अनुरुप 8, 10 बजे आदि। इससे इस बीच घटी महत्वपूर्ण घटना, कार्यों, मुलाकातों आदि को लिखा जा सकता है।

दूसरा, डायरी में पन्ने के बीचो-बीच ऊपर की ओर कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर लिखा जा सकता है, एक तरह की टू डू लिस्ट तैयार की जा सकती है। डायरी के बीच के दो पेज आमने-सामने पड़ते हैं, इनके बीच में भी इस सूचि को बनाया जा सकता है, जिससे कि एक ही सूचि से हम दो दिन के कार्यों को एक साथ ट्रैक कर सकें। इन सूचिबद्ध कार्यों को फिर बीच में दिन भर जब चाहें ट्रैक करते हुए महत्वपूर्ण कार्यों को समय पर निपटाते हुए एक कार्यकुशल दिनचर्या को अंजाम दिया जा सकता है।

औसतन दिनचर्या में व्यक्ति परिस्थिति के दबाव या किसी प्रलोभन के वशीभूत अपनी प्राथमिकता के क्रम को भूल जाता है और कार्य की घड़ी समीप आने पर फिर आपातकाल की अफरा-तफरी में हैरान-परेशान व तनावग्रस्त हो जाता है। विद्यार्थी जीवन में परीक्षा के समय तनाव का मुख्य कारण दैनिक रुप में पढ़ाई के प्रति बरती गई यह लापरवाही ही रहती है। डायरी में कार्यों के विभाजन होने से इसमें झाँकते ही अपने गोल का स्मरण हो जाता है और ध्येयनिष्ठ भाव के साथ वह अपने कार्य पर फोक्स रहता है।

इसके लिए फुल पेज डायरी के साथ एक स्लिप पैड़ (पॉकेट डायरी) को अपने साथ रखकर इस कार्य को सम्पन्न किया जा सकता है, जिसमें दिन भर के कार्य क्रमवार लिखे गए हों। इसमें दिन भर के महत्वपूर्ण विचार, भाव, अनुभव व सबक सार आदि को भी समय-समय पर नोट करते रहा जा सकता है, जिन पर फिर डायरी लिखते हुए रात को स्व-मूल्याँकन के समय एक नजर डाली जा सके।

दिन के विशेष घटनाक्रम, यादगार लम्हें, खट्टे-मीठे अनुभव, अपनी आदतों पर छोटी-बड़ी जीत व जीवन के सबक - सबको कुछ शब्दों, पंक्तियों से लेकर पैरा में लिखा जा सकता है। इस तरह एक सप्ताह आठ-दस पैरा खेल-खेल में तैयार हो जाएंगे। यदि किसी एक ही विषय पर अलग-अलग अनुभवों के साथ माह में पाँच पैरा भी तैयार हो जाते हैं, तो मानकर चलें कि एक पूरे लेख की सामग्री तैयार हो चली। फिर इसको थोड़ा स्वाध्याय के साथ पुष्ट करते हुए एक उम्दा रचना तैयार की जा सकती है।

माना कि नए व्यक्ति (लेखक) के लिए शुरुआत में अपने विचार व भावों को कागज पर उतारना एक कठिन कार्य होता है, लेकिन रोजमर्रा के सशक्त अनुभवों को अपनी डायरी में लिखना कोई कठिन कार्य नहीं। बस संकल्पित होकर कापी-पेन लेकर बैठने की देर भर है। यदि जीवन का एक ध्येय, इसको समग्रता में जीना बन चुका है, आत्म-उत्कर्ष है और सृजनात्मक लेखन के माध्यम से अपने अनुभवों को व्यक्त करना है, तो फिर देर किस बात की। ऊपर दिए सुत्र-संकेतों के आधार पर डायरी लेखन को अपने मौलिक अंदाज में अंजाम देते हुए आप इसके क्रिएटिव एडवेंचर का हिस्सा बन सकते हैं और अपने जीवन में रोमाँच का एक नया रस घोल सकते हैं।   

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