मंगलवार, 9 सितंबर 2014

प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

            लोकतंत्र के सजग प्रहरी – भविष्य की आस सुनहरी

   आज हम ऐसे विषम दौर से गुजर रहे हैं, जब लोकतंत्र के सभी स्तम्भ लड़खडा रहे हैं। कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका के साथ इनका प्रहरी - चतुर्थ स्तम्भ, प्रेस-मीडिया भी अपनी भूमिका में डगमगाता नजर आ रहा है। ऐसे में, देश के भविष्य को गढ़ने में सक्षम शिक्षा तंत्र से विशेष आशाएं हैं। इसे लोकतंत्र का पांचवां स्तम्भ कहें तो अतिश्योक्ति न होगी, क्योंकि इसके आधार स्तम्भ हैं प्रबुद्ध शिक्षक एवं जाग्रत आचार्य। अपनी प्रखरता एवं गुरुता के बल पर ये विद्यार्थियों में उस संजीवनी का संचार कर सकते हैं, जो उन्हें लोकतंत्र का एक उपयोगी घटक के रुप में अपनी भूमिका निभाने के काबिल बना सके।

     प्रस्तुत हैं शिक्षक को अपनी गरिमामयी भूमिका में स्थापित करने वाले नौ सुत्र, जो इस दिशा में विचारणीय हैं, वरणीय हैं -

1.   अपने विषय का जानकारशिक्षा का पहला उद्देश्य छात्रों को विषय ज्ञान देना है, उन्हें प्रबुद्ध नागरिक बनाना है, जिससे कि वे स्वावलम्बी एवं कौशलपूर्ण नागरिक बन सकें। इस नाते शिक्षक अपने विषय का जानकार होता है और इस जानकारी को अपडेट करने में, इसे धार देने में हर पल सचेष्ट रहता है। इस कारण एक शिक्षक जीवन पर्यन्त एक विद्यार्थी भी होता है।

2.     एक जीवनपर्यन्त विद्यार्थीज्ञान का कोई अंत नहीं। शायद ही कोई व्यक्ति कह सके की वह सर्वज्ञानी है। फिर हर रोज ज्ञान की नयी खोज करता विज्ञान, हमारे ज्ञान की सीमा का तीखा अहसास कराता रहता है और कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित एवं बाध्य करता रहता है। एक सच्चा शिक्षक जीवन पर्यन्त एक विद्यार्थी भाव में जीता है, विनम्र, ग्रहणशील और जिज्ञासु। अपने काम की चीजें हर कहीं से सीखने के लिए तत्पर रहता है। जमाने के साथ कदम-ताल बिठाने के लिए नई तकनीक से भी अपडेट रहता है।

3.    समय के साथ कदमताल तकनीकी के इस युग में विषय का ज्ञान हर दिन बदल रहा है, जिसके कारण आज के शिक्षक का नयी तकनीकी से रुबरु होना एक जरुरत है, एक कर्तव्य है। अन्यथा वह जमाने से पिछड़ जाएगा व अपने विषय से न्याय नहीं कर पाएगा। आज के बच्चों से लेकर किशोर-युवा जिस भांति नई टेक्नोलॉजी से परिचित एवं अपड़ेट रहते हैं, वैसे में एक शिक्षक से इनकी न्यूनतम जानकारी अपेक्षित है। अतः एक सजग शिक्षक इस पक्ष को नजरंदाज नहीं करता।

4.  छात्रों का माता-पिता और अविभावक - माता-पिता के बाद शिक्षक की भूमिका अहम् होती है। छात्र दिन का अधिकांश समय तो शिक्षकों की छत्रछाया में बिताता है। खासकर आवासीय शिक्षालयों में तो शिक्षक ही छात्रों का माता-पिता और अविभावक होता है। ऐसे में अपने बच्चों की तरह छात्रों का संरक्षण, पोषण एवं ध्यान रखना शिक्षकों का धर्म एवं कर्तव्य बनता है। एक आँख दुलार की, तो दूसरी सुधार की, यह सूत्र उसका निर्देशक होता है।

5.  एक सृजन धर्मी, एक मौलिक विचारकएक सच्चा शिक्षक एक मौलिक विचारक और स्वतंत्र चिंतक होता है। घिसी पिटी परम्पराओं की जगह अपने विवेक का उपयोग करते हुए नयी एवं स्वस्थ परम्पराओं को गढ़ता है। अपने पाठ्यक्रम को समय की चुनौतियों के अनुरुप ढालते हुए उन्हें व्यावहारिक रुप देता है। आदर्श और व्यवहार, थ्योरी और प्रेक्टिकल का संगम समन्वय करना उसे बखूबी आता है।

6.  एक सृजन साधक, एक प्रकाश दीपएक सच्चा शिक्षक, जीवन की चरम सम्भावनाओं को इसी सानन्त जीवन में साकार करने की दुस्साहसिक चेष्टा में निमग्न एक सृजन साधक होता है। खुद को गढ़ने के साहसिक प्रयोग वह पहले खुद पर करता है। अपने व्यक्तित्व के अंधेरे कौने-काँतरों को प्रकाशित करते हुए छात्रों के जीवन को प्रकाशित करने के प्रयास में संलग्न रहता है और उसका जीवन एक प्रकाश दीपक की तरह होता है।

7.   जीवन विद्या का प्रशिक्षक, आचार्यएक सच्चा शिक्षक, किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रहता। इसके पार वह अपने जीवन के प्रकाश में, जीवंत उदाहरणों के साथ जीवन विद्या का प्रशिक्षण देता है। जीवन मूल्य एवं नैतिकता का पाठ वह पुस्तकों से नहीं, प्रवचन से नहीं अपने उत्कृष्ट आचरण से संप्रेषित करता है। आवश्यकता पड़ने पर जीवन के मोर्चे पर खुद अग्रिम पंक्ति में खड़ा होकर, लीडिंग फ्रॉम द फ्रंट, की उक्ति चरितार्थ करता है।

8.   राष्ट्र पुरोहित, विश्व नागरिकएक सच्चे शिक्षक के पाठ खाली क्लास रुम तक सीमित नहीं होते। ये समाज व देश की यथार्थता से संवेदित होते हैं। समय की चुनौतियों का जबाब इनमें निहित होता है। सामाजिक सरोकार से इनका गहरा रिश्ता होता है। देश की समस्याओं के समाधान इनमें निहित होते हैं। इतना ही नहीं मानवीय संवेदनाओं से संवेदित इनके प्रयास पूरे विश्व को खुद में समेटे होते हैं। एक सच्चा शिक्षक एक देश भक्त के साथ, एक विश्व-नागरिक भी होता है। सर्वोपरि वह मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत एक सच्चा इंसान होता है।

9.   एक आदर्श, एक मॉडल, एक साँचा - नहीं भूलना चाहिए कि, शिक्षक एक साँचे की तरह होता है, जिसके अनुरुप अनायास ही छात्रों के मन, व्यक्तित्व ढला करते हैं। इन साँचों में विकृति एक विकलाँग पीढ़ी के निर्माण की दुर्घटना को जन्म देती है। आज कुछ ऐसा ही घटित हो रहा है। आज, जो परिवर्तन, हम समाज में चाहते हैं, शिक्षक उस परिवर्तन का हिस्सा बनकर, एक साँचे के रुप में अपनी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। पूरी पीढ़ी, पूरा राष्ट्र, समूची मानवता ऐसे आदर्श शिक्षकों को, ऐसे साँचों को आशा भरी निगाहों से निहार रही है।

क्या हम एक शिक्षक के नाते ऐसा एक आदर्श साँचा बनने के लिए सचेष्ट हैं। इसी में एक शिक्षक जीवन की सार्थकता का मर्म छिपा हुआ है।
  

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