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सितंबर 30, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरा गाँव, मेरा देश - मौसम का बदलता मिजाज और बारिश का कहर

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प्रकृति के रौद्र रुप में निहित दैवीय वरदान वर्ष 2018 की वरसात कई मायनों में यादगार रहेगी, अधिकाँशतः प्रकृति के लोमहर्षक कोप के लिए। अगस्त माह में भगवान के अपने घर – केरल में बारिश का करह, 80 बाँधों से एक साथ छोड़ा जा रहा पानी, जलमग्न होते लोकजीवन की विप्लवी त्रास्दी। सितम्बर माह के तीसरे सप्ताह में देवभूमि कुल्लू में तीन दिन की बारिश में प्रकृति प्रकोप का एक दूसरा विप्लवी मंजर दिखा, जिसने ऐसी तबाही की 25 साल पुरानी यादें ताजा कर दी।      इन सब घटनाओं के पीछे कारणों की पड़ताल, इनमें मानवीय संवेदना के पहलु, यथासम्भव मदद और आगे के सबक व साबधानियां अपनी जगह हैं, लेकिन चर्चा प्रायः इनके नकारात्मक, ध्वंसात्मक पहलुओं की ही अधिक होती है। मीडिया हाईप को इममें पूरी तरह से सक्रिय देखे जा सकता है, जो इसका स्वभाव सा बन गया है। सोशल मीडिया पर अधिक हिट्स, तो टीवी में टीआरपी की दौड़। हालाँकि अखबारों में ऐसी संभावनाएं कम रहती हैं, लेकिन इनकी हेडिंग्ज में भी तबाही का ही मंजर अधिक दिखता रहा, पीछे निहित दैवीय वरदानों पर ध्यान नाममात्र का ही रहा।      कुल्लू घाटी में 3 तीन तक ब