चरित्र निर्माण के बिना अधूरी शिक्षा – चरित्र
निर्माण की बातें, आज परिवारों में उपेक्षित हैं, शैक्षणिक संस्थानों में नादारद
हैं, समाज में लुप्तप्रायः है। शायद ही इसको लेकर कहीं गंभीर चर्चा होती हो। जबकि घर-परिवार
एवं शिक्षा के साथ व्यक्ति निर्माण, समाज निर्माण और राष्ट्र
निर्माण का जो रिश्ता जोड़ा जाता है, वह चरित्र निर्माण की धूरी पर ही टिका
हुआ है। आश्चर्य नहीं कि हर युग के विचारक, समाज सुधारक चरित्र निर्माण पर बल देते
रहे हैं। चरित्र निर्माण के बिना अविभावकों की चिंता, शिक्षा के प्रयोग, समाज का
निर्माण अधूरा है। 
प्रस्तुत है इस संदर्भ में कुछ बुनियादी बातें, जो इस दिशा में प्रयासरत लोगों के लिए कुछ सोचने व करने की दिशा में उपयोगी हो सकती हैं।
प्रस्तुत है इस संदर्भ में कुछ बुनियादी बातें, जो इस दिशा में प्रयासरत लोगों के लिए कुछ सोचने व करने की दिशा में उपयोगी हो सकती हैं।
चरित्र, व्यक्तित्व का सार – चरित्र,
व्यक्तित्व का सार है, रुह की खुशबू है, जीवन की महक है, जिसे हर कोई महसूस करता
है। चरित्र बल के आधार पर ही व्यक्ति सम्मान-श्रद्धा का पात्र बनता है। विरोधी भी
चरित्रवान की प्रशंसा करने के लिए बाध्य होते हैं। चरित्रवान के लिए कुछ भी असम्भव
नहीं होता। तमाम प्रतिकूलताओं के बीच चरित्रवान व्यक्ति के लिए जमाना राह छोड़
देता है। ऐसा व्यक्ति अंततः काल के भाल पर अपने कालजयी व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़
जाता है। युगों तक पीढियाँ चरिवान व्यक्ति के स्मरण मात्र से धन्य अनुभव करती हैं
और प्रतिकूल परिस्थितियों में जूझने और आगे बढ़ने की प्रेरणा शक्ति पाती है।
चरित्र निर्माण की फलश्रृतियाँ - चरित्र ही
व्यक्ति की संपूर्ण सफलता को सुनिश्चित करता है। हालांकि इसमें समय लग सकता है,
क्योंकि चरित्र निर्माण एक क्रमिक प्रक्रिया है, जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है। हो सकता है, संसार-समाज की
अपेक्षा के अनुकूल इसके तुरंत फल न दिख रहे हों लेकिन अंततः इसकी शक्ति अचूक और
प्रभाव अमोघ है, जो सफलता के साथ गहन आत्मसंतोष लिए होती है। 
चरित्र के अभाव में व्यक्ति की सफलता लम्बे समय तक बनी रहे, टिकी रहे, संदिग्ध है। श्रम एवं भाग्य सफलता के द्वार तो खोल सकते हैं, लेकिन इसे हर हमेशा के लिए खुले रखना चरित्रबल के आधार पर ही सम्भव होता है। चरित्र के अभाव में शिखर से नीचे रसातल में लुढ़कते देर नहीं लगती। कहने की जरुरत नहीं कि चरित्र व्यक्ति को सहज ही सामाजिक सम्मान व सहयोग दिलाता है, जनता के आशीर्वाद और दैवी अनुग्रह का अधिकारी पात्र बनाता है।
चरित्र के अभाव में व्यक्ति की सफलता लम्बे समय तक बनी रहे, टिकी रहे, संदिग्ध है। श्रम एवं भाग्य सफलता के द्वार तो खोल सकते हैं, लेकिन इसे हर हमेशा के लिए खुले रखना चरित्रबल के आधार पर ही सम्भव होता है। चरित्र के अभाव में शिखर से नीचे रसातल में लुढ़कते देर नहीं लगती। कहने की जरुरत नहीं कि चरित्र व्यक्ति को सहज ही सामाजिक सम्मान व सहयोग दिलाता है, जनता के आशीर्वाद और दैवी अनुग्रह का अधिकारी पात्र बनाता है।
विश्वसनीयता और प्रामाणिकता चरित्र
निर्माण की दो फलश्रृतियाँ हैं, जो निम्न आधार पर फलित होती हैं।
चरित्र निर्माण के मूल घटक –
 1.संयम सदाचार – संयम
व सदाचार, चरित्र निर्माण का पहला आधार है। जबकि असंयम औऱ दुराचार, चरित्र की जड़ों
पर कुठाराघात करते आत्मघाती विषैले प्रहार हैं, जो आत्म सम्मान के भाव को क्षीण करते हैं और व्यक्ति को
दुर्बल बनाते हैं। चरित्र का क्षय करते हैं और आपसी रिश्तों में विश्वास को कमजोर
करते हैं। जबकि संयम-सदाचार आपसी रिश्तों में वफादारी का चौखा रंग घोलते हैं,
इन्हें मजबूत बनाते हैं। कहना न होगा कि संयम-सदाचार चरित्र निर्माण का पहला ठोस आधार
है।
1.संयम सदाचार – संयम
व सदाचार, चरित्र निर्माण का पहला आधार है। जबकि असंयम औऱ दुराचार, चरित्र की जड़ों
पर कुठाराघात करते आत्मघाती विषैले प्रहार हैं, जो आत्म सम्मान के भाव को क्षीण करते हैं और व्यक्ति को
दुर्बल बनाते हैं। चरित्र का क्षय करते हैं और आपसी रिश्तों में विश्वास को कमजोर
करते हैं। जबकि संयम-सदाचार आपसी रिश्तों में वफादारी का चौखा रंग घोलते हैं,
इन्हें मजबूत बनाते हैं। कहना न होगा कि संयम-सदाचार चरित्र निर्माण का पहला ठोस आधार
है।
2.सादा जीवन उच्च विचार – जब आमदनी
सीमित हो, लेकिन खर्चे बेशुमार। तो अपव्ययी, विलासी और फिजूलख्रर्ची का
भ्रष्टाचारी होना तय है। ऐसे में चरित्र संदिग्ध बनता है, व्यक्ति की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। इसी लिए सादा जीवन उच्च
विचार को बुजुर्गों ने सदैव से ही सचरित्र एवं सुखी जीवन का एक स्वर्ण सुत्र घोषित
किया है। जो अपनी आमदनी के अंदर जीवन निर्वाह की कला जानता है, उन्हीं
का चरित्र आर्थिक आधार पर सुरक्षित व अक्षुण्ण बना रह सकता है। 
3.श्रमशील एवं कर्तव्यनिष्ठ जीवन – चरित्र
का महत्वपूर्ण घटक है। और यह उदात एवं व्यवहारिक जीवन लक्ष्य की स्पष्टता के बिना संभव नहीं
होता, जिसके अभाव में जीवन पेंडुलम की भाँति इधर-उधर हिलता-डुलता भर रहता है,
पहुँचता कहीं नहीं। अव्यवस्थित जीवन व्यक्ति को लक्ष्य सिद्धि से वंचित रखता है। काम
में रूचि न होने पर व्यक्ति टालमटोल करता है, कामचोर बनाता है। ऐसे में असफलता
जीवन की नियति बन जाती है और नकारात्मक तथा कुंठित भावदशा चरित्र को दुर्बल बनाती है। श्रमशील और कर्तव्यनिष्ठा व्यक्ति को इस कुचक्र से बाहर उबारती है। 
4.सकारात्मक चिंतन एवं उदार भाव – कर्मठता जहाँ आत्म गौरव के भाव को जगाती है तथा व्यैक्तिक सफलता को सुनिश्चित करती है, वहीं संकीर्ण स्वार्थ और क्षुद्र अहंकार इन उपलब्धियों को बौना और चरित्र को संदिग्ध बना देते हैं। अपने साथ दूसरे जरुरतमंदों के उत्कर्ष का पारमार्थिक भाव चरित्र का अभिन्न घटक है। सिर्फ अपने ही स्वार्थ का चिंतन करने और मैं-मैं की रट लगाए रखने वाले व्यक्ति के पास कोई भी अधिक देर तक बैठना-सुनना
पसंद नहीं करता। हर व्यक्ति सृजन-समाधान, आशा-उत्साह से भरा
संग-साथ चाहता है, जो एक संवेदनशील एवं उदार व्यक्ति के लिए ही संभव होता है। कहना न होगा कि बिना किसी अधिक आशा-अपेक्षा के दूसरों की सेवा का भाव-चिंतन चरित्र निर्माण का एक महत्वपूर्ण घटक हैं।
 सार रुप में चरित्र निर्माण के दो आधार भूत घटक हैं -
अपने प्रति ईमानदारी और अपने कर्तव्य के प्रति नैष्ठिक जिम्मेदारी का भाव।
इसी के आधार पर चरित्र निखरता है और सेवा का महत्तर कार्य संभव हो पाता है। अपने प्रति वेईमानी चरित्र विघटन का मुख्य कारण
बनती है, जो कि व्यक्ति को अपनी ही नजरों में गिराता है। अपनी कर्तव्यों के प्रति
वेईमानी इंसान की अंतर्निहित क्षमताओं को प्रकट होने से रोकती है, जो एक असफल एवं कुंठित जीवन का कारण बनती है। जबकि चरित्र निर्माण की प्रक्रिया इस त्रास्दी से पार ले
जाती है और व्यक्ति को जीवन की समग्र सफलता की ओर आगे बढ़ाती है।
सार रुप में चरित्र निर्माण के दो आधार भूत घटक हैं -
अपने प्रति ईमानदारी और अपने कर्तव्य के प्रति नैष्ठिक जिम्मेदारी का भाव।
इसी के आधार पर चरित्र निखरता है और सेवा का महत्तर कार्य संभव हो पाता है। अपने प्रति वेईमानी चरित्र विघटन का मुख्य कारण
बनती है, जो कि व्यक्ति को अपनी ही नजरों में गिराता है। अपनी कर्तव्यों के प्रति
वेईमानी इंसान की अंतर्निहित क्षमताओं को प्रकट होने से रोकती है, जो एक असफल एवं कुंठित जीवन का कारण बनती है। जबकि चरित्र निर्माण की प्रक्रिया इस त्रास्दी से पार ले
जाती है और व्यक्ति को जीवन की समग्र सफलता की ओर आगे बढ़ाती है।चरित्र निर्माण से सम्बन्धित अन्य लेख नीचे पढ़ सकते हैं - 





 
 
 
