यात्रा वृतांत – गड़सा घाटी के एक शांत-एकांत रिमोट गाँव में, भाग-2

जापानी फल के मॉडल बाग में हमारे सामने एक प्रयोगधर्मी किसान के 27 वर्षों के तप का फल, एक लहलहाता फलदार बगीचा सामने था, जो किसी भी बागवानी प्रेमी व्यक्ति का स्वप्न हो सकता है। जापानी फल से लदे पेड़ नेट से ढके थे, जो एक ओर चमगादड़ों के आतंक से फलों की रक्षा करते हैं, तो दूसरी ओर औलों की मार से। मालूम हो कि खराब मौसम में औलों की बौछार फलों को बर्वाद कर देती है, इनसे बचाव के लिए नेट का उपयोग किया जाता है। इस बार दुर्भाग्य से हवाईशा साईड से भयंकर औलावारी हुई थी, जिसका आंशिक असर यहाँ भी हुआ, महज आधे घंटे में नेट के बावजूद चालीस फिसदी फल इनसे बर्वाद हुए थे। इस नुकसान का दर्द एक किसान भली-भांति समझ सकता है, जो पूरे साल भर दिन-रात एक कर अपने खून-पसीने से उमदा फसल तैयार कर रहा होता है। अपने अभिनव प्रयोग पर चर्चा करे हुए श्री हुकुम ठाकुर ने वताया कि इस बगीचे का रोपण 27 वर्ष पूर्व किया गया था, जब इस फल की कोई मार्केट वेल्यू नहीं थी। मात्र 4-5 रुपए किलो तब यह बिकता था। शौकिया तौर पर इसकी शुरुआत हुई थी। चण्डीगढ़ किसी फल प्रदर्शनी में एक किसान प्रतिनिधि के रुप में वे गए थे, जहाँ इज्रा