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दिसंबर 21, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सेब उत्पादन में क्रांतिकारी पहल के अग्रदूत

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अब मैदानी इलाकों में सेब की महक सेब का नाम लेते ही शिमला , कश्मीर और कुल्लू जैसे पहाड़ी क्षेत्रों के नाम जेहन में कौंध जाते हैं जहां इसकी उम्दा फसल स्वाभाविक तौर पर बहुतायत में उगाई जाती है। गर्म मैदानी इलाकों में सेब की फसल की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। कुछ ऐसे ही जैसे ठंडे पहाड़ों में आम की फसल की कोई सोच भी नहीं सकता। इनकी गुठली से पौध अंकुरित हो भी जाएं तो सर्दी में पाला मार जाए। ऐसे ही मैदानों में सेब का बीज पौध बन भी जाए तो गर्मी में झुलस जाए या उसके फूल व फल सही ढंग से विकसित नहीं हो पाएं। लेकिन हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला के पनियाला गांव के प्रयोगधर्मी किसान हरिमन शर्मा ने अपनी सूझबूझ से सेब की एक ऐसी वैरायटी तैयार की है , जो गर्म मैदानी इलाकों में भी उम्दा सेब की फसल दे रही है। 1800 फीट पर बसी इनकी नर्सरी देशभर के किसानों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुकी है , जिसके चलते गर्म मैदानी इलाकों में भी सेब उत्पादन की संभावनाएं साकार हो रही हैं। हिमाचल के बिलासपुर , कांगड़ा , हमीरपुर , ऊना , सोलन , मंडी जैसे जिलों में उसके सफल प्रयोग बगीचों का रूप ले चुके

जंगलीजी का मिश्रित वन – एक अद्भुत प्रयोग, एक अनुकरणीय मिसाल

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जंगल में मंगल रचाने की प्रेरक मुहिम जंगल तो आपने बहुत देखे होंगे , एक खास तरह की प्रजाति के वृक्षों के या फिर बेतरतीब उगे वृक्षों से भरे बीहड़ वन। लेकिन उत्तराखण्ड के कोटमल्ला , रुद्रप्रयाग में स्थित जंगलीजी का मिश्रित वन इनसे हटकर जंगल की एक अलग ही दुनिया है , जहां लगभग साठ किस्म के डेढ़ लाख वृक्ष लगभग चार हैक्टेयर भूमि में फैले हैं। यह सब जंगलीजी के पिछले लगभग चालीस वर्षों से चल रहे भगीरथी प्रयास का फल है। चार दशक पूर्व बंजर भूमि का टुकड़ा आज मिश्रित वन की एक ऐसी अनुपम मिसाल बनकर सामने खड़ा है , जिसमें आज के पर्यावरण संकट से जुड़े तमाम सवालों के जवाब निहित हैं। यहां पर हर ऊंचाई के वृक्ष उगाए जा रहे हैं। जिन्हें सीधे धूप की जरूरत होती है , वे भी हैं , इनकी छाया में पनप रहे छायादार पेड़ भी। और जमीं की गोद में या जमीं के अंदर पनपने वाले पौधे भी इस वन में शुमार हैं। इनमें 25 प्रकार की सदाबहार झाड़ियां व पेड़ , 25 प्रकार की जड़ी-बूटियां व अन्य कैश क्रोप्स हैं। मिश्रित वन के इस प्रयोग ने जंगल में ऐसा वायुमंडल तैयार कर रखा है कि यहां 4500 फीट की ऊंचाई पर 7000 से 9000 फीट व

सेब उत्पादन में क्राँति के नायक, प्रगतिशील बागवान

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माटी में सोना उगाने वाले अग्रदूत सेब एक लोकप्रिय स्वादिष्ट फल है , जिससे जुड़ी कहावत ऐन एप्पल ए डे , कीप्स द डॉक्टर अवे हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। सेब को मूलतः मध्य एशिया का फल माना जाता है , जो यहां से पहले यूरोप के ठंडे प्रदेशों में व फिर कालान्तर में अमेरिका तक पहुंचा। भारत में सेब का पहला बगीचा शौकिया तौर पर 1870 में कुल्लू घाटी के बंदरोल स्थान पर अंग्रेज कैप्टन आरसी ली द्वारा रोपा गया था। लेकिन भारत में सेब की व्यावसायिक खेती का श्रेय अमेरिकन मिशनरी सेमुअल स्टोक्स को जाता है जो भारतीय रंग में इस कदर रंग जाते हैं कि शिमला की पहाड़ियों में बस जाते हैं।   1916 में सत्यानन्द स्टोक्स यहां के थानेधार क्षेत्र, कोटगढ़ में सेब की किस्मों को उगाते हैं , जिनका आगे चलकर पूरे हिमाचल व पहाड़ी क्षेत्रों में प्रसार होता है। इस समय भारत में जम्मू-कश्मीर , हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड सेब उत्पादन करने वाले मुख्य प्रांत हैं। इसके साथ पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में सेब उत्पादन शुरू हो चुका है। सेब की उम्दा फसल के लिए औसतन 1200 घंटे के चिलिंग ऑवर्ज (ह