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मुट्ठी से दरकता रेत सा जीवन

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कभी न होगी जैसे अंधेरी शाम जी रहे इस घर-आंगन में ऐसे , जैसे हम यहाँ अजर-अमर-अविनाशी , रहेगा हमेशा संग हमारे यह संसार , घर-परिवार , संग कितने साथी सहचर शुभचिंतक , न होगा जैसे कभी अवसान। इसी संग आज के राग-रंग , कल के सपने बुन रहे , कभी न होगा वियोग-विछोह , जी रहे ऐसे जैसे रहेंगे यहाँ हर हमेशा , नहीं होगा अंत हमारा , न आएगी कभी अंधेरी शाम।  संसार की चकाचौंध में मश्गूल कुछ ऐसे, जैसे यही जीवन का आदि-अंत-सर्वस्व सार, बुलंदियों के शिखर पर मदमस्त ऐसे, चरणों की धूल जैसे यह सकल संसार। लेकिन काल ने कब इंतजार किया किसी का , लो आगया क्षण , भ्रम मारिचिका की जडों पर प्रहार , क्षण में काफुर सकल खुमारी, फूट पड़ा भ्रम का गु्ब्बार , उतरा कुछ बुखार मोह-ममता का, समझ में आया क्षणभंगुर संसार। रहा होश कुछ दिन , शमशान वैराग्य कुछ पल , फिर आगोश में लेता राग-रंग का खुमार , मुट्ठी से दरकता फिर रेत सा जीवन ,                      होश के लिए अब अगले प्रहार का इंतजार।

सार्थक यौवन की दिशा धारा

वसंत के आगमन के साथ सृजन के, उल्लास के, क्राँति के स्वर फिर चहु दिशाओं में गूंजने लगे हैं। प्रकृति का हर कौना एक नई स्फूर्ति, एक नए उत्साह, एक नई उमंग के साथ तरंगित हो चला है। ऐसे में सृष्टि का हर जीव प्रकृति के माध्यम से झर रहे परमेश्वर के दिव्य प्रवाह में वहने के लिए विवश है बाध्य है। जीवन के प्रति एक नई सोच, एक नई संकल्पना, एक नए उत्साह का उमड़ना स्वाभाविक है। यदि कोई ह्दय इन विशिष्ट पलों में भी अवसाद ग्रस्त है, जीवन के प्रति उत्साह-उमंग से हीन है, तो समझो जीवन का प्रवाह कहीं बाधित हो चला है, उसका यौवन कहीं ठहर गया है। यौवन का उमर से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं। यदि ह्दय में उत्साह, उमंग और कुछ कर-गुजरने का जज्बा है तो वह आयु में वयोवृद्ध होता हुआ भी युवा है। और यदि ह्दय उत्साह से हीन, जीवन की चुनौतियों से थका हारा और हर चीज को नकारात्मक भाव में लेने लगा है, तो समझो वह युवा होते हुए भी बृद्ध हो चुका है। जीवन में सार्थकता की अनुभूति से शून्य ऐसा जीवन एक भारभूत त्रास्दी से कम नहीं। ऐसे जीवन के प्रवाह को उत्साह, उमंग, सृजन से भरना ही जीवन का वसंत है, जीने की कला है और सार्थक यौवन

आध्यात्मिक पथ के प्राथमिक सोपान

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अध्यात्म क्या ? – अपनी खोज में निकल पड़े मुसाफिर की राह , मंजिल है अध्यात्म। जब लक्ष्य अपनी चेतना का स्रोत समझ आ जाए तो अपने उत्स , केंद्र की यात्रा है अध्यात्म। थोड़ा एडवेंचर के भाव से कहें तो यह अपनी चेतना के शिखर का आरोहण है। अध्यात्म स्वयं को समग्र रुप से जानने की प्रक्रिया है। विज्ञजनों की बात मानें तो यह जीवन पहेली की मास्टर-की है। आश्चर्य़ नहीं कि सभी विचारकों-दार्शनिकों-मनीषियों ने चाहे वे पूर्व के रहे हों या पश्चिम के , जीवन के निचोड़ रुप में एक ही बात कही – आत्मानम् विद् , नो दाईसेल्फ , अर्थात पहले , खुद को जानो, स्वयं को पहचानो। इस तरह अध्यात्म आत्मानुसंधान का पथ है, एक अंतर्यात्रा है। अध्यात्म उस आस्था का नाम है जो जीवन का केंद्र अपने अंदर मानती है और जीवन की हर समस्या का समाधान अपने अस्तित्व के केंद्र में खोजते का प्रयास करती है। अध्यात्म की आवश्यकता – अध्यात्म मानवीय जीवन में अंतर्निहित दिव्य विशेषता है, इसका केंद्रीय तत्व है और जीवन की मूलभूत आश्यकता है। सभी सांसारिक जरुरतें पूरी होने के बाद , सभी तरह का लौकिक ज्ञान पाने के बाद , सभी तरह की भौतिक स

तेरे मन मोतियों के संग

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जीवन को सृजन का नया आयाम देंगे मन के ये मोती , अमृत बूंदें ये आसुंओं की(रुद्राक्ष मोती) दिल को छू गई , मन पर छा गई , प्राणों में समाकर , जड़-बुद्धि को हिलाकर , चैतन्य होश का एक नूतन वरदान दे गई।1   ऐसे में रहें हम अपनों संग घर-परिवार में , या किसी पद पर आसीन राज-दरवार में , रहें हम निर्जन बन-प्रांतर , गुफा-झील के किनारे , या इस संसार के भवसागर में डूबते-इतराते।2 तुम्हारे संग विताए अनमोल पलों को सुमिरन कर ,   भावों के अमृत सागर में डूबकी लगाकर , तेरी अमृत सी अश्रु बूँदों के संग , विनाश के मुहाने पर खड़े जीवन को सृजन का नया आयाम देंगे।3 दशकों से उजड़े चमन को सजाकर , खंडहर पड़े मन-मंदिर को नया रंग , नया रुप देकर , तेरी दिव्य स्मृतियों की शाश्वत ज्योति के संग , दुनियां को नयी आश, नयी सुवास , जीने का नया अंदाज देंगे।4