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आध्यात्मिक पथ के प्राथमिक सोपान

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अध्यात्म क्या ? – अपनी खोज में निकल पड़े मुसाफिर की राह , मंजिल है अध्यात्म। जब लक्ष्य अपनी चेतना का स्रोत समझ आ जाए तो अपने उत्स , केंद्र की यात्रा है अध्यात्म। थोड़ा एडवेंचर के भाव से कहें तो यह अपनी चेतना के शिखर का आरोहण है। अध्यात्म स्वयं को समग्र रुप से जानने की प्रक्रिया है। विज्ञजनों की बात मानें तो यह जीवन पहेली की मास्टर-की है। आश्चर्य़ नहीं कि सभी विचारकों-दार्शनिकों-मनीषियों ने चाहे वे पूर्व के रहे हों या पश्चिम के , जीवन के निचोड़ रुप में एक ही बात कही – आत्मानम् विद् , नो दाईसेल्फ , अर्थात पहले , खुद को जानो, स्वयं को पहचानो। इस तरह अध्यात्म आत्मानुसंधान का पथ है, एक अंतर्यात्रा है। अध्यात्म उस आस्था का नाम है जो जीवन का केंद्र अपने अंदर मानती है और जीवन की हर समस्या का समाधान अपने अस्तित्व के केंद्र में खोजते का प्रयास करती है। अध्यात्म की आवश्यकता – अध्यात्म मानवीय जीवन में अंतर्निहित दिव्य विशेषता है, इसका केंद्रीय तत्व है और जीवन की मूलभूत आश्यकता है। सभी सांसारिक जरुरतें पूरी होने के बाद , सभी तरह का लौकिक ज्ञान पाने के बाद , सभी तरह की भौतिक स

प्रकृति की गोद में एडवेंचर अविराम

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प्रकृति की गोद में कितनी शांति, कितना सुकून, कितना आनन्द विश्राम, एक बार चख लिया स्वाद जो इसका, मचले कूदे फिर मन मासूम नादान, बन जाए यायावर इंसान ताउम्र फिर, प्रकृति की गोद में एडवेंचर अविराम। झरते हैं स्वयं परमेश्वर प्रकृति से,  क्यों न हो फिर विराट से मिलान, हो जाता है अनंत से भी परिचय राह में,  आगोश में मिट जाए क्षुद्र स्व अभिमान, पा लेता है खुद को इंसान इस नीरवता में,  शाश्वत, सरल, सहज, स्फूर्त, आप्तकाम।   फिर क्या बादलों की गर्जन तर्जन, क्या राह की दुर्गम चढ़ाई, आँधी-तूफान, हिमध्वल शिखर पर ईष्ट-आराध्य अपने, प्रकृति की अधिष्ठात्री, कालेश्वर महाकाल, कौन रोक सके फिर दीवानगी इन पगों की, चल पड़े जो अपने ईष्ट के अक्षर धाम। यहीं से शुरु अंतर्यात्रा अपने उत्स की, एडवेंचर के संग प्रकटे दूसरा आयाम, बदले जिंदगी के मायने, अर्थ, परिभाषा सब, नहीं दूर जीवन पहेली का समाधान, चेतना के शिखर का आरोहण यह, प्रकृति की गोद में एडवेंचर अविराम।