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आस्था संकट एवं समाधान की राह

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  अध्यात्म शरणं गच्छामि आस्था जीवन की आध्यात्मिक संभावनाओं से उत्पन्न विश्वास का नाम है , जो अपने से श्रेष्ठ एवं विराट सत्ता से जुड़ने पर पैदा होता है। इसे अस्तित्व का गहनतम एवं उच्चतम आयाम कह सकते हैं , जहां से जीवन के स्थूल एवं सूक्ष्म आयाम निर्धारित , प्रभावित एवं प्रेरित होते हैं। जीवन का उत्कर्ष और विकास आस्था क्षेत्र के सतत सिंचन एवं पोषण से संभव होता है। यदि आस्था पक्ष सुदृढ़ हो तो व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का हंसते हुए सामना करता है , प्रतिकूल परिस्थितियों के साथ बखूबी निपट लेता है। सारी सृष्टि को ईश्वर की क्रीड़ा-भूमि मानते हुए वह एक खिलाड़ी की भांति विचरण करता है। लेकिन आस्था पक्ष दुर्बल हो , तो जीवन बोझिल हो जाता है , इसकी दिशाएं धूमिल हो जाती हैं , इसमें विसंगतियां शुरू हो जाती हैं और जीवन अंतहीन संकटों व समस्याओं से आक्रांत हो जाता है। आज हम आस्था संकट के ऐसे ही विषम दौर से गुजर रहे हैं , जहां एक ओर विज्ञान ने हमें चमत्कारी शक्तियों व सुख-सुविधाओं से लैस कर दिया है , वहीं दूसरी ओर हम अपनी आस्था के स्रोत से विलग हो चले हैं। ऐसे में जीवन का अर्थ भौतिक

गीता का सार्वभौमिक-सार्वकालिक संदेश

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संतप्त ह्दय को आश्वस्त करता गीता का शाश्वत-कालजयी संदेश   गीता वेदों का निचोड़ एवं उपनिषदों का सार है। श्रीकृष्ण रुपी ग्वाल उपनिषद रुपी गाय को दुहकर अर्जुन रुपी बछड़े को इसका दुग्धामृत पिलाते हैं, जो हर काल के मनुष्यमात्र के लिए संजीवनी स्वरुप है। हर युग में हर स्वभाव के सुपात्र व्यक्ति के लिए उपयुक्त ज्ञान एवं संदेश इसमें निहित है। इस रुप में गीता देश ही नहीं पूरे विश्वमानवता के लिए भारतभूमि का एक वरदान है। यह भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निस्सृत कालजयी ज्ञान का अक्षय निर्झर है, जिसने हर युग में इंसान को जीवन जीने की राह दिखाई है। भारत ही नहीं विश्व के हर कौने से प्रबुद्धजनों, विचारकों एवं ज्ञान पिपासुओं ने इसका पान किया और मुक्त कंठ से प्रशंसा की। भारतीय सांस्कृतिक नवजागरण के अगुआ स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में, वेदों पर गीता से बेहतर टीका नहीं लिखी गयी है और न ही संभव है।..गीता में उपलब्ध श्रीकृष्ण भगवान की शिक्षाएं भव्यतम हैं, जिन्हें विश्व ने जाना है। रामकृष्ण परमहंस गीता को अपना सतत सहचर बनाने की सलाह देते थे। महर्षि अरविंद के शब्दों में, गीता मानव जाति