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कुछ एकांतिक पल, बस अपने लिए

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अपने संग संवाद के कुछ अनमोल पल आज इंसान इतना व्यस्त है कि उसके पास हर चीज के लिए समय है, यदि नहीं है तो बस अपने लिए। जीवन इतना अस्त-व्यस्त हो चला कि सुनने को प्रायः मिलता है कि यहाँ मरने की भी फुर्सत नहीं है। व्यक्ति जिंदगी के गोरखधंधे में कुछ ऐसे उलझ गया है कि उसे दो पल चैन से बैठकर सोचने की फुर्सत नहीं है कि जिंदगी जा कहाँ रही है। जो हम कर रहे हैं, वह क्यों कर रहे हैं, हम किस दिशा में बह रहे हैं। आजसे पाँच साल, दस साल बाद यह दिशाहीन गति हमें कहाँ ले जाएगी, इसकी दुर्गति की सोच व सुध लेने का भी हमारे पास समय नहीं है। कुल मिलाकर जीवन मुट्ठी की रेत की भांति फिसलता जा रहा है और हम मूकदर्शक बनकर जीवन का तमाशा देख रहे हैं। इस बहिर्मुखी दौड़ में खुद से अधिक हमें दूसरों का ध्यान रहता है, हम अपने सुधार की वजाए, दूसरों के सुधार में अधिक रुचि रखते हैं। अपनी हालत से बेखबर, दूसरों की खबर लेने में अधिक मश्गूल होते हैं। ऐसे में हम जीवन की सतह पर ही तैरने के लिए अभिशप्त होते हैं और अंदर का खालीस्थान यथावत बर्करार रहता है, जिसके समाधान के लिए गहराई में उतरने की बजाए हम फिर दूसरी बेह

आध्यात्मिक पथ के प्राथमिक सोपान

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अध्यात्म क्या ? – अपनी खोज में निकल पड़े मुसाफिर की राह , मंजिल है अध्यात्म। जब लक्ष्य अपनी चेतना का स्रोत समझ आ जाए तो अपने उत्स , केंद्र की यात्रा है अध्यात्म। थोड़ा एडवेंचर के भाव से कहें तो यह अपनी चेतना के शिखर का आरोहण है। अध्यात्म स्वयं को समग्र रुप से जानने की प्रक्रिया है। विज्ञजनों की बात मानें तो यह जीवन पहेली की मास्टर-की है। आश्चर्य़ नहीं कि सभी विचारकों-दार्शनिकों-मनीषियों ने चाहे वे पूर्व के रहे हों या पश्चिम के , जीवन के निचोड़ रुप में एक ही बात कही – आत्मानम् विद् , नो दाईसेल्फ , अर्थात पहले , खुद को जानो, स्वयं को पहचानो। इस तरह अध्यात्म आत्मानुसंधान का पथ है, एक अंतर्यात्रा है। अध्यात्म उस आस्था का नाम है जो जीवन का केंद्र अपने अंदर मानती है और जीवन की हर समस्या का समाधान अपने अस्तित्व के केंद्र में खोजते का प्रयास करती है। अध्यात्म की आवश्यकता – अध्यात्म मानवीय जीवन में अंतर्निहित दिव्य विशेषता है, इसका केंद्रीय तत्व है और जीवन की मूलभूत आश्यकता है। सभी सांसारिक जरुरतें पूरी होने के बाद , सभी तरह का लौकिक ज्ञान पाने के बाद , सभी तरह की भौतिक स

तेरे मन मोतियों के संग

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जीवन को सृजन का नया आयाम देंगे मन के ये मोती , अमृत बूंदें ये आसुंओं की(रुद्राक्ष मोती) दिल को छू गई , मन पर छा गई , प्राणों में समाकर , जड़-बुद्धि को हिलाकर , चैतन्य होश का एक नूतन वरदान दे गई।1   ऐसे में रहें हम अपनों संग घर-परिवार में , या किसी पद पर आसीन राज-दरवार में , रहें हम निर्जन बन-प्रांतर , गुफा-झील के किनारे , या इस संसार के भवसागर में डूबते-इतराते।2 तुम्हारे संग विताए अनमोल पलों को सुमिरन कर ,   भावों के अमृत सागर में डूबकी लगाकर , तेरी अमृत सी अश्रु बूँदों के संग , विनाश के मुहाने पर खड़े जीवन को सृजन का नया आयाम देंगे।3 दशकों से उजड़े चमन को सजाकर , खंडहर पड़े मन-मंदिर को नया रंग , नया रुप देकर , तेरी दिव्य स्मृतियों की शाश्वत ज्योति के संग , दुनियां को नयी आश, नयी सुवास , जीने का नया अंदाज देंगे।4