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चरित्र निर्माण – कुछ बातें बुनियादी

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चरित्र निर्माण के मूलभूत आधार चरित्र निर्माण के बिना अधूरी शिक्षा – चरित्र निर्माण की बातें, आज परिवारों में उपेक्षित हैं, शैक्षणिक संस्थानों में नादारद हैं, समाज में लुप्तप्रायः है। शायद ही इसको लेकर कहीं गंभीर चर्चा होती हो। जबकि घर-परिवार एवं शिक्षा के साथ व्यक्ति निर्माण, समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण का जो रिश्ता जोड़ा जाता है, वह चरित्र निर्माण की धूरी पर ही टिका हुआ है। आश्चर्य नहीं कि हर युग के विचारक, समाज सुधारक चरित्र निर्माण पर बल देते रहे हैं। चरित्र निर्माण के बिना अविभावकों की चिंता, शिक्षा के प्रयोग, समाज का निर्माण अधूरा है।  प्रस्तुत है इस संदर्भ में कुछ बुनियादी बातें, जो इस दिशा में प्रयासरत लोगों के लिए कुछ सोचने व करने की दिशा में उपयोगी हो सकती हैं। चरित्र, व्यक्तित्व का सार – चरित्र, व्यक्तित्व का सार है, रुह की खुशबू है, जीवन की महक है, जिसे हर कोई महसूस करता है। चरित्र बल के आधार पर ही व्यक्ति सम्मान-श्रद्धा का पात्र बनता है। विरोधी भी चरित्रवान की प्रशंसा करने के लिए बाध्य होते हैं। चरित्रवान के लिए कुछ भी असम्भव नहीं होता। तमाम

चरित्र निर्माण, कालजयी व्यक्तित्व का आधार

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"Character has to be established trough a thousand stumbles. Swami Vivekananda"  चरित्र, अर्थात्, काल के भाल पर व्यक्तित्व की अमिट छाप      चरित्र, सबसे मूल्यवान सम्पदा -    कहावत प्रसिद्ध है कि , यदि धन गया तो समझो कुछ भी नहीं गया, यदि स्वास्थ्य गया तो समझो कुछ गया और यदि चरित्र गया, तो समझो सब कुछ गया। निसंदेह चरित्र, व्यक्तित्व क ी सबसे मूल्यवान पूँजी है, जो जीवन की दशा दिशा- और नियति को तय करत ी है। व्यक्ति की सफलता कितनी टिकाऊ है, बाह्य पहचान के साथ आंतरिक शांति-सुकून भी मिल पा रहे हैं या नहीं, सब चरित्र निर्माण के आधार पर निर्धारित होते हैं। व्यवहार तो व्यक्तित्व का मुखौटा भर है, जो एक पहचान देता है, जिससे एक छवि बनती है, लेकिन यदि व्यक्ति का चरित्र दुर्बल है तो यह छवि, पहचान दूर तक नहीं बनीं रह सकती। प्रलोभन और विषमताओं के प्रहार के सामने व्यवहार की कलई उतरते देर नही लगती, असली चेहरा सामने आ जाता है। चरित्र निर्माण इस संकट से व्यक्ति को उबारता है, उसकी पहचान, छवि को   बनाए रखने में मदद करता है, सुख के साथ आनन्द का मार्ग प्रशस्त करता है।  

विद्यार्थी जीवन का आदर्श

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1. जिज्ञासा, ज्ञान पिपासा , एक सच्चे विद्यार्थी का परिचय, पहचान है। वह प्रश्न भरी निगाह से जमाने को देखता है, जीवन को समझने की कोशिश करता है, उसके जबाव खोजता है और अपने विषय में पारंगत बनता है।  2. लक्ष्य केंद्रित, फोक्स – हमेशा लक्ष्य पर फोक्सड रहता है। अर्जुन की तरह मछली की आँख पर उसकी नजर रहती है। लक्ष्य भेदन किए बिन उसे कहाँ चैन- कहाँ विश्राम।  3. अनुशासित – लक्ष्य स्पष्ट होने के कारण, उसकी प्राथमिकताएं बहुत कुछ स्पष्ट रहती हैं। आहार विहार, विश्राम, श्रम, नींद, अध्ययन, व्यवहार सबके लिए समय निर्धारित रहता है। एक संयमित एवं अनुशासित जीवन उसकी पहचान है।  4. आज्ञाकारी – शिक्षकों का सम्मान करता है, उनकी आज्ञा का पालन करता है। विषय में गहन जानकार होने के बावजूद शिक्षक का ताउम्र सम्मान करता है। शिक्षक हमेशा उसके लिए शिक्षक रहता है।   5. बिनम्र – अपने ज्ञान, विशेषज्ञता, प्रतिभा का अहंकार, घमण्ड उसे छू भी नहीं पाते हैं। ज्ञान के अथाह सागर के वीच वह खुद को एक अकिंचन सा अन्वेषक पाता है और परिपूर्ण ज्ञान के लिए सतत् सचेष्ट एवं प्रयत्नशील रहता है।  6. सहकार-सहय