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मार्च 31, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दिल करता है दुनियाँ को हिला दूँ

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अभी तो महज बीज हूँ   दिल करता है दुनियाँ को हिला दूँ, लेकिन खुद हिल जाता हूँ, अभी तो महज़ बीज हूँ, देखो, कब पौध बन पाता हूँ। देखे हैं ऐसे भी बृक्ष मैंने, जो खिलने से पहले ही मुरझा गए, क्या मेरी भी है यही नियति, सोचकर घबराता हूँ। लेकिन आशा के उजाले में, नयी हिम्मत पाता हूँ, बढ़ चलता हूँ मंजिल की ओर, आगे कदम बढ़ाता हूँ। अभी तो करने के कई शिखर पार, देखो हिमवीर बन कहाँ पहुँच पाता हूँ।।

कुछ एकांतिक पल, बस अपने लिए

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अपने संग संवाद के कुछ अनमोल पल आज इंसान इतना व्यस्त है कि उसके पास हर चीज के लिए समय है, यदि नहीं है तो बस अपने लिए। जीवन इतना अस्त-व्यस्त हो चला कि सुनने को प्रायः मिलता है कि यहाँ मरने की भी फुर्सत नहीं है। व्यक्ति जिंदगी के गोरखधंधे में कुछ ऐसे उलझ गया है कि उसे दो पल चैन से बैठकर सोचने की फुर्सत नहीं है कि जिंदगी जा कहाँ रही है। जो हम कर रहे हैं, वह क्यों कर रहे हैं, हम किस दिशा में बह रहे हैं। आजसे पाँच साल, दस साल बाद यह दिशाहीन गति हमें कहाँ ले जाएगी, इसकी दुर्गति की सोच व सुध लेने का भी हमारे पास समय नहीं है। कुल मिलाकर जीवन मुट्ठी की रेत की भांति फिसलता जा रहा है और हम मूकदर्शक बनकर जीवन का तमाशा देख रहे हैं। इस बहिर्मुखी दौड़ में खुद से अधिक हमें दूसरों का ध्यान रहता है, हम अपने सुधार की वजाए, दूसरों के सुधार में अधिक रुचि रखते हैं। अपनी हालत से बेखबर, दूसरों की खबर लेने में अधिक मश्गूल होते हैं। ऐसे में हम जीवन की सतह पर ही तैरने के लिए अभिशप्त होते हैं और अंदर का खालीस्थान यथावत बर्करार रहता है, जिसके समाधान के लिए गहराई में उतरने की बजाए हम फिर दूसरी बेह

देहरादून –शैक्षणिक यात्रा, भाग-2

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ऑर्गेनिक फार्मिंग, जैव विविधता संरक्षण की प्रयोगशाला - नवधान्या विद्यापीठ हेस्को के बाद डेवकॉम के शैक्षणिक भ्रमण का अगला पड़ाव था प्रख्यात पर्यावरणविद, विदुषी एवं जैविक कृषि एक्टिविस्ट डॉ. वंदना शिवा की प्रयोगशाला – नवधान्या बीजपीठ, जो शिमला वाईपास के अंतिम छोर पर वायीं ओर स्थित है। प्रेमनगर से आगे मुख्यमार्ग से 4-5 किमी बढ़ने के बाद वांय मुड़ते हुए हिमगिरि जी यूनिवर्सिटी आती है, इसके आगे पुल पारकर आईएसबीटी की ओर लगभग 1 किमी दूरी परनवधान्या वीज विद्यापीठ का पट लगा है, जहाँ से अंदर मुड़ने पर थोड़ी देर बाद आम्रकुंज में प्रवेश होता है। आम के बौर से लदे वृहद पेड़ जैसे हमारा स्वागत कर रहे थे। वाहन एक किनारे पर खड़ा कर हम पैदल ही बगीचे से होकर प्रवेश करते हैं। यहाँ का प्राकृतिक परिवेश , इसकी नीरव शांति , पक्षियों की चहचाहट यहाँ चल रहे प्रयोग की जीवंत प्रस्तुति दे रहे थे।विकाससंचार विशेषज्ञ श्री दिनेश सेमवाल अपनी चिरपरिचित मुस्कान व शालीनता के साथ ग्रुप का स्वागत करते हैं व विस्तार से नवधान्या में चल रहे प्रयोगों पर प्रकाश डालते हैं। किन्हीं मीटिंग में व्यस्त होने के क

देहरादून – शैक्षणिक यात्रा, भाग-1

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हेस्को - प्रकृति-पर्यावरण एवं ग्रामीण विकास की अभिवन प्रयोगशाला देहरादून हरिद्वार से महज 55-60 किमी की दूरी पर स्थित है। राष्ट्रीय महत्व के कई प्रतिष्ठित संस्थान यहाँ पर स्थित हैं। प्रकृति-पर्यावरण , आर्गेनिक खेती एवं समावेशी विकास( सस्टेनेवल डेवेल्पमेंट ) पर भी अभिनव प्रयोगों की यह ऊर्बर भूमि है , देहरादून के बाहरी छोर पर एकांत ग्रामीण एवं वन्य परिवेश में ऐसे प्रयोग दर्शनीय हैं , जिनको राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है। डेवकॉम पाठ्यक्रम के तहत टूर की दृष्टि से ऐसे शैक्षणिक भ्रमण अपना महत्व रखते हैं। प्राकृतिक दोहन , पर्यावरण प्रदूषण एवं रसायनकि खेती के साथ विकास की सर्वनाशी पटकथा के बीच ऐसे प्रयोग आशा के दीपक की तरह हैं , जो सृजन की ओर अभिमुख युवाजेहन में कब एक प्रेरक बीज डाल   दें , सृजन की एक चिंगारी सुलगा दे , कह नहीं सकते , जो कि महत्वपूर्ण है। हरिद्वार से देहरादून की यात्रा हमेशा ही एक सुखद अनुभव रहती है। राह में हरेभरे खेत , सुदूर पर्वतों से घिरि घाटियों के बीच प्रकृति की गोद में सफर सदा ही खुशनुमा अहसास रहता है। हाँ , पिछले तीन-चार