दिल करता है दुनियाँ को हिला दूँ

अभी तो महज बीज हूँ दिल करता है दुनियाँ को हिला दूँ, लेकिन खुद हिल जाता हूँ, अभी तो महज़ बीज हूँ, देखो, कब पौध बन पाता हूँ। देखे हैं ऐसे भी बृक्ष मैंने, जो खिलने से पहले ही मुरझा गए, क्या मेरी भी है यही नियति, सोचकर घबराता हूँ। लेकिन आशा के उजाले में, नयी हिम्मत पाता हूँ, बढ़ चलता हूँ मंजिल की ओर, आगे कदम बढ़ाता हूँ। अभी तो करने के कई शिखर पार, देखो हिमवीर बन कहाँ पहुँच पाता हूँ।।