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यात्रा वृतांत – अमृतसर सफर की कुछ यादें रुहानी, भाग-1

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स्वर्ण मंदिर अमृतसर के दिव्य परिसर में   यह हमारी दिन के उजाले में अमृतसर की पहली यात्रा थी। सामुदायिक रेडियो की कार्यशाला के उद्देश्य से अमृतसर जाने का संयोग बना था । कार्यशाला के व्यस्त शेड्यूल के बीच अधिक घूमने की गुंजाइश न थी। सो तीन दिवसीय कार्यशाला में फुर्सत के पलों में दूसरे दिन स्वर्ण मंदिर जाने का सुयोग बना और अंतिम दिन विदाई समारोह के बाद, ट्रेन की वापसी के बीच के समय में डेरा व्यास । दोनों यात्राएं एक वेजोड़ रुहानी अनुभव के रुप में स्मृति पटल पर अंकित रहेंगी। 11 मार्च को ही सुबह हम दून-अमृतसर एक्सप्रेस से 800 बजे अमृतसर पहुंच चुके थे। रास्ते में ही सुबह हो चुकी थी। सो बर्थ से उ तरते ही बाहर ट्रेन के दोनों ओर हरे भरे गैंहूं से लहलहाते खेत हमारा स्वागत कर रहे थे, जिनका हरियाली भरा नजारा आंखों को शीतलता और मन को ठंडक दे रहा था। रास्ते में फलों के बगीचे भी दिख रहे थे, संभवतः फूलों को देखकर नाशपाती, बागुकोषा के लग रहे थे और कहीं कहीं आम के। लेकिन बहुतायत में गैंहूं के खेत ही मिले। अमृतसर शहर के बाहर ट्रेन किसी पुल के नीचे काफी देर खड़ी रही। संभवतः हम शहर मे