सोमवार, 22 नवंबर 2021

यात्रा लेखन के मूलभूत तत्व

 यात्रा लेखन में इन बातों का रहे ध्यान

यात्रा वृतांत क्या है, यात्रा के रोचक, रोमाँचक एवं ज्ञानबर्धक अनुभवों का सांगोपांग वर्णन।

जो आपने अनुभव किया, उसको पाठकों के साथ साझा करने का उत्कट भाव, ताकि वे भी कुछ बैसा ही आनन्द ले सकें। साथ ही कुछ ऐसी मूलभूत जानकारियाँ पा सके, जो उनकी यात्रा को सरल व सुखद बनाए।

यात्रा वृतांत के तत्व निम्नलिखित तत्व एक यात्रा लेखन को प्रभावशाली बनाते हैं -

1. भाव-प्रवण्ता - जितना आप उस स्थल व यात्रा को फील कर पाएंगे, उसी अनुपात में आप उसे शब्दों में संप्रेषित कर पाएंगे। आपके उत्साह, उत्सुकतता, रोमाँच, आनन्द, विस्मय आदि के भाव आपके लेखन के माध्यम से पाठकों तक संचारित होंगे। इस तरह घुमक्कड़ी का जुनून Wander lust, Passion for travel, यात्रा लेखन में ईंधन का काम करते हैं। किसी ने सही ही कहा है कि यात्रा लेखन is All about the experience writer has during the journey and Sharing your joy. 

2. रोचकता Interesting, entertaining – जो पाठकों को रुचिकर लगे, जिससे पाठकों का मनोरंजन हो, ऐसे तथ्यों, जानकारियों तथा अनुभवों का प्रस्तुतिकरण, जिनको पाठक रुचि के साथ पढ़ते हुए उसका हिस्सा बनकर यात्रा का आनन्द ले सकें।

3. रोमाँचकता elements of Adventure – यात्रा में रुचि के साथ रहस्य व रोमाँच के पहलु व तथ्य भी पाठकों को बाँधे रखते हैं। यात्रा के बीच की चुनौतियाँ, इनका साहस व दृढ़ता के साथ सामना व पार करने के साहसिक किस्से पाठकों को रोमाँचक लगते हैं व पढ़ते-पढ़ते उनके अनुभव का हिस्सा बनते हैं।

4. ज्ञानबर्धक, Informative, adding value to reader life, useful info - यात्रा वृतांत पाठकों के ज्ञान का बर्धन करते हैं, अतः यहाँ पर रिसर्च का महत्व स्पष्ट हो जाता है, जिसे एक यात्रा लेखक यात्रा से पहले, इसके बाद और यात्रा के साथ अपने ढंग से अंजाम देता है। किसी स्थान से जुड़े नए ऐतिहासिक, पौराणिक, भौगोलिक व अन्य जानकारियाँ निसंदेह रुप में वृतांत को ज्ञानबर्धक बनाती हैं व पाठकों के ज्ञान भण्डार में इजाफा करती हैं।

5. खोजी दृष्टि - अमुक स्थल, घटना, परिवेश में क्या कुछ छिपा है, आप अपनी खोजी दृष्टि के आधार पर उभार सकते हैं, प्रकट कर सकते हैं। यह पाठकों के लिए ज्ञानबर्धक अनुभव सावित होता है। ऐसे में यहाँ पर एक खोजी पत्रकार की निहारती दृष्टि महत्वपूर्ण हो जाती है। साथ ही जीवन के प्रति आपकी दृष्टि जितनी व्यापक होगी, यात्रा लेखन का विस्तार भी उतना ही व्यापकता को समेटे होगा।

6. सामयिकता - सामयिक संदर्भ में यात्रा की उपयोगिता को उभारा जा सकता है, यदि आप देश - दुनियाँ और जमाने की समकालीन घटनाओं से वास्ता रखते हों और उस स्थान विशेष से जुडी घटनाओं के प्रति अपडेट हों। इसके साथ आप वहाँ के सामान्य ज्ञान के साथ तात्कालिक घटनाओं को अपने यात्रा वृतांत से जोड़ पाएंगे तथा यात्रा वृतांत जानकारियों की दृष्टि से उतना ही पठनीय बनेगा।

7. चित्रात्मकता – यह यात्रा वृतांत का एक महत्वपूर्ण तत्व है, कि एक लेखक परिवेश को कितनी जीवंतता के साथ शब्दों के माध्यम से उकेर पाता है। यात्रा का जीवंत चित्रण महत्वपूर्ण रहता है, जिसमें आप दृश्य को बताने की वजाए दिखाते हैं, इसके विस्तार एवं बारीकियों को उभारते हुए। वाकि जो आप नही कह पा रहे हों, वह एक सटीक फोटो के माध्यम से स्पष्ट हो जाता है।

8. भाषायी सरलता-तरलता - भाषा की सरलता लेख को ग्राह्य बनाती है, पठनीय बनाती है, जिसको पाठक का दिलो-दिमाग आसानी से ह्दयंगम कर सके। यही पाठक को शुरु से लेकर अन्त तक बाँधे रखती है और एक प्रभावशाली यात्रा लेखन को संभव बनाती है। वास्तव में यह भावों से जुड़ा मामला है। भाव जितना गहरे होंगे, शब्द उतने ही सरल होंगे व लेखन में एक प्रवाह होगा।

9. मौलिक प्रस्तुतीकरण – हर सृजन की तरह यात्रा लेखन में भी लेखक के व्यक्तित्व की छाप होती है, जो ईमानदारी व संवेदनशीलता के साथ यात्रा से जुड़े अपने अनुभवों को साँझा करते-करते स्वतः ही प्रस्फुटित होती है। आप किसी भी विशिष्ट कोण से यात्रा वृतांत को उठा सकते हैं, बस ध्यान पाठकों का हित साधन रहे, अनुभवों की सत्यं-शिवं एवं सुन्दरं अभिव्यक्ति रहे।

10. यात्रा से जुड़ा दार्शनिक एवं आध्यात्मिक आयाम अर्थात् जीवन संदेश का तत्व – यात्रा से जुडे कई पहलु ऐसे होते हैं, जिनमें गहरे जीवन संदेश छिपे होते हैं, जीवन के दार्शनिक आयाम प्रकट होते हैं व आध्यात्मिक अनुभव लिए होते हैं। इनके साथ पाठकों को सामान्य से दृश्यों व घटनाक्रम में देखने का एक नया नजरिया मिलता है, जीवन के प्रति एक गहरी समझ विकसित होती है। इन्हें यथासम्भव अपनी समझ के आधार पर उभारा जा सकता है, प्रकट किया जा सकता है।

11. समाधान परक दृष्टि – यात्रा में कई तरह के समस्या प्रधान पहलुओं से रुबरु होना पड़ता है। इनको संतुलित व सकारात्मक ढंग से प्रस्तुत करना ही यात्रा लेखन का कौशल है। यहाँ पर, समाधान का हिस्सा बनें, समस्या का नहीं, एक प्रेरक पथ-प्रदर्शक वाक्य हो सकता है। अतः समस्या पर चर्चा करते हुए, इसके संभावित समाधान को प्रस्तुत कर सकते हैं। तथ्य कितने ही कटु हों, इनके प्रति ईमानदार किंतु संवेदनशील प्रस्तुतीकरण महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके लिए क्षेत्रीय परिजनों के साक्षात्कार या संवाद के आधार पर पुष्ट तथ्यों को जोड़ा जा सकता है।

12. इसके साथ ही यात्रा वृतांत की लेखन शैली एक महत्वपूर्ण तत्व है, जो समय के साथ विकसित होती है। और यह हर व्यक्ति की उसके स्वभाव, प्रकृति एवं पृष्ठभूमि के अनुरुप विशिष्ट होती है, भिन्न होती है व उसके व्यक्तित्व की छाप लिए होती है। और यही क्रमशः उसका अपना एक अलग लेखन का अंदाज व शैली भी बन जाती है।

उपरोक्त तत्वों को ध्यान में रखते हुए यदि यात्रा लेखन होता है तो कोई कारण नहीं आपका यात्रा वृतांत रोचक, ज्ञानबर्धक एवं रोमाँचक न होगा, जो पाठकों के जीवन में कुछ सकारात्मक मूल्य जोड़ रहा होगा।

हिंदी में यात्रा लेखन की परम्परा एवं इसका महत्व

यात्रा वृतांत का इतिहास एव हिंदी में यात्रा लेखन

घुमक्कडी इंसानी फितरत, जन्मजात प्रवृति है और जिज्ञासा उसका नैसर्गिक स्वभाव। दोनों का जब मिलन हो जाता है, तो एक घुम्मकड, खोजी यात्री, अन्वेषक, यायावर, एक्सप्लोअरर जन्म लेता है।

आदि काल से देश व दुनियाँ के हर कौने में ऐसे लोग हुए, जिन्होंने विश्व के चप्प-चप्पे को छान मारा। शायद ही धरती पर कोई क्षेत्र ऐसा हो, जो उसके लिए अगम्य रहा हो। सागर की अतल गहराई, वीहड़ वनों के अगम्य क्षेत्र, रेगिस्तान के विषम विस्तार और बर्फीले प्रदेशों की दुर्गम वादियाँ और देश-दुनियाँ का कोई क्षेत्र उसकी पहुँच से दूर नहीं रहा।

इन स्थलों के प्राकृतिक सौंदर्य, भौगोलिक विशेषता, सामाजिक ताना-बाना, सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत का अनुभव और इनके सांगोपांग वर्णन के साथ यात्रा साहित्य का विपुल सृजन होता है, जिसके साथ पाठकों का ज्ञानबर्धन तथा मनोरंजन तो होता ही है, साथ में शिक्षण का उद्देश्य भी पूरा होता है। इसके साथ ही मानवीय समाज, संभ्यता एवं संस्कृति की विकास यात्रा भी आगे बढ़ती रहती है।

कुछ परिभाषाएं, टिप्पणियाँ –

जब उत्साह एवं उल्लास के भाव से यात्रा, सौंदर्यबोध की दृष्टि से प्रकृति-परिवेश को निहारते व हद्यंगम करते हैं, एक जिज्ञासु की दृष्टि से समाज का अवलोकन और उसकी मुक्तभाव से अभिव्यक्ति, उसे यात्रा साहित्य या यात्रा वृतांत का सृजन होता हैं।

यायावरी या घुमक्कड़ी एक प्रकार का नशा, जिसके चलते वह अधिक समय तक टिक कर बैठ नहीं सकता।

 'जिसने एक बार घुमक्कड़-धर्म अपना लिया, उसे फिर पेंशन कहाँ, उसे फिर विश्राम कहाँ? - किन्नर देश में राहुल सांकृत्यायन   

अज्ञेयजी लिखते हैं - 'यायावर को भटकते चालीस बरस हो गए, किंतु इस बीच न तो वह अपने पैरों तले घास जमने दे सका है, न ठाठ जमा सका है, न क्षितिज को कुछ निकट ला सका है।' ऐसे घुमक्कड़ सृजनशीलों की कलम से यात्रा-साहित्य सहज रुप में नाना रुपों में प्रवाहित होता है, जैसे हिमशिखरों से बहती नाना प्रकार की हिमधाराएं।

सार रुप में, सरल शब्दों में, यात्रा वृतांत को यात्रा के रोचक, रोमाँचक और ज्ञानबर्धक अनुभवों का सांगोपांग वर्णन कह सकते हैं। जो आपने अनुभव किया, उसको पाठकों के साथ साझा करने का उत्कट भाव, ताकि वे भी कुछ बैसा ही आनन्द ले सकें। साथ में कुछ ऐसी मूलभूत और नयी जानकारियाँ पा सकें, जो उनकी यात्रा को सरल व सुखद बना सके।

यात्रा साहित्य के प्रकार

चार प्रमुख प्रवृत्तियाँ  

1.वर्णनात्मक अथवा परिचयात्मक, जैसे - राहुल सांकृत्यायन   

2.सामाजिक-स्थिति का प्रस्तुतीकरण, जैसे - डॉ.सत्यनारायण सिन्हा 'आवारे यूरोप की यात्रा'   

3.वैयक्तिक प्रतिक्रिया को व्यक्त करनेवाली, जैसे - मोहन राकेश का 'आखिरी चट्टान तक

4.साहित्यिक, इसे लेखन की सर्वश्रेष्ठ पद्धति कह सकतके हैं, जैसे - अज्ञेय के यात्रा-वृतांत

इसके साथ पाँचवी प्रवृति को जोड़ सकते हैं, जो है –

5. आध्यात्मिक, जैसे आचार्य पं श्रीराम शर्मा आचार्य की रचना – सुनसान के सहचर

 

नामवर सिंह ने यात्रा साहित्य को देसी और मार्गी दो भागों में बांट दिया है।

देसी यात्रा वृतांत की शुरुआत हिंदी लेखन में भारतेंदु से होती हुई नागार्जुन तक आती है। तथा मार्गी परम्परा की शुरुआत अज्ञेय ने की। बाद में इसी परम्परा में मोहन राकेश, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और निर्मल वर्मा आते हैं।

यात्रा लेखन की परम्परा एवं विकास यात्रा -

पौराणिक यात्रा विवरण -

रामायण में राम सहित लक्ष्मण, सीता की वनवास यात्राएं, भाई भरत का राम से मिलन व

हरण हुई सीता माता की खोज की यात्राओं का विवरण, जिसमें हनुमान, विभीषण सहित वानर सेना के खोजी वृतांत मिलते हैं

महाभारत में पांडवों के वन गमन से लेकर अज्ञात वास के समय की यात्राओं का विशद विवरण, जिनके अवशेष आज भी पूरे भारत भर में व अन्यत्र मिलते हैं।

कालान्तर में कालिदास एवं वाणभट्ट के संस्कृत साहित्य में यात्रा विवरण मिलते हैं, हालाँकि ये प्रकृति प्रधान विवरण रहे हैं।

ऐतिहासिक यात्रा विवरण –

विदेशी यात्रियों एवं इतिहासकारों में अलबरूनी, इब्नबतूता, अमीर खुसरो, हेनसांग, फाह्यान, मर्कोपोलो, सेल्यूकस निकेटर आदि उल्लेखनीय हैं, जिनके यात्रा विवरणों में हमें मौर्य काल, गुप्तकाल, मुगल काल, अंगेजी शासन के समय की की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक, भौगोलिक जानकारियाँ मिलती हैं।

हिंदी साहित्य में यात्रा वृतांत की विधिवत शुरुआत – भारतेंदु-युग (19वीं सदी का उत्तरार्द्ध) से मानी जा सकती है। जिसमें वे कविवचन सुधा पत्रिका में हरिद्वार, लखनऊ, जबलपुर, सरयूपार, वैद्यनाथ, जनकपुर आदि की यात्रा पर खड़ी बोली में यात्रा वृतांत लिखते हैं। इसके बाद स्वतंत्रतापूर्व काल में जयशंकर प्रसाद युग में यात्रा वृतांतों में नए आयाम जुड़ते हैं। 

इस दौरान घुम्मकड़ी के लिए समर्पित पं. राहुल सांकृत्यायन अपनी देश-विदेश के एक छोर से दूसरे छोर एवं आर-पार की साहसिक यात्राएं करते हैं। जिनमें उल्लेखनीय रचनाएं रहीं - मेरी तिब्बत यात्रा’, ‘मेरी लद्दाख यात्रा’, ‘किन्नर देश में’, ‘रूस में 25 मास’, ‘तिब्बत में सवा वर्ष’, ‘मेरी यूरोप यात्रा’, ‘यात्रा के पन्ने’, ‘जापान, ईरान, एशिया के दुर्गम खंडों मेंआदि। 1948 में वे घुम्मकड़ी के लिए मार्गदर्शनक घुम्मकड़ शास्त्रग्रन्थ की रचना करते हैं। वास्रातव में राहुल सांकृत्यायनजी को यात्रा साहित्य का शिरोमणि कहें, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

राहुल सांकृत्यायन के बाद अज्ञेयजी यात्रा वृतांत को नए साहित्यिक मुकाम तक पहुँचाते हैं। वे इसे यात्रा संस्मरण कहना अधिक पसंद करते थे। इनके उल्लेखनीय यात्रा संस्मरण रहे भारत भ्रमण को लेकर अरे यायावर रहेगा याद’ (1953) और विदेशी यात्राओं को लेकर एक बूँद सहसा उछली’ (1960)। उनका मानना था कि यात्राएँ न केवल बाहर की जाती हैं बल्कि वे हमारे अंदर की ओर भी की जाती हैं। 

इस क्रम में, उल्लेखनीय यात्रा वृतांत, युगऋषि पं. श्रीरामशर्मा आचार्य की कृति सुनसान के सहचर है, जो हिंदी यात्रा लेखन की परम्परा में एक नया आयाम जोड़ती है। (इनके विराट व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व की एक झलक-झांकी इस लेख में पढ़ सकते हैं - वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं.श्रीराम शर्मा आचार्य)

1961 में सम्पन्न हिमालय यात्रा का जीवंत चित्रण इसमें मिलता है, जिसमें प्रकृति के विराट सौंदर्य के साथ उद्दात जीवन दर्शन पग-पग पर पाठकों को आलोकित करता है। बाहर के साथ अन्दर की यात्रा का सुन्दर, विलक्षण एवं प्रेरक प्रस्तुतीकरण इसमें मिलता है।

इसके साथ आज़ादी के बाद हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय यात्रा-साहित्य का सृजन होता है, जिसमें मोहन राकेश तथा निर्मल वर्मा जैसे रचनाकार नए आयाम जोड़ते हैं। 

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यात्रा लेखन के महत्व -

यात्रा लेखन के लाभ अनगिन हैं, जिनको एक सुधी लेखक वखूबी अनुभव कर सकता है।

1 यात्रा लेखन जहाँ लेखक के लिए और गहराई में यात्रा को अनुभव का माध्यम बनता है। और वह यात्राओं को एक अलग ही अंदाज में देखता है, जिसके साथ पाठकों की जिज्ञासा शाँत होती हैं, उनके ज्ञान का विस्तार होता है, दिलो-दिमाग के कपाट खुलते हैं। इसके साथ यात्रा लेखक एक अधिक जिम्मेदार, ज्ञानवान, संवेदनशील, काँफिडेंट, मजबूत और संजीदा इंसान बनता है।

 2 ऐतिहासिक डॉक्यूमेंटेशन, यदि होशोहवास एवं गहरी जिज्ञासा भरी दृष्टि के साथ यात्रा की जाए, तो सहज रुप में आपका यात्रा लेखन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक धरोहर का हिस्सा बनने वाला  है। यात्रा लेखन एक अज्ञात क्षेत्र की विशेषताओं को जिज्ञासु पाठकों के साथ साझा कर उनके अनुभव का हिस्सा बनाता है, उनको यात्रा के लिए प्रेरित करता है। जाने-अनजाने में इतिहास लिख रहा होता है, by Exploring the unexplored.   लेकिन इसके लिए न्यूनतम बौद्धिक ईमानदारी, सकारात्मकता एवं संवेदनशीलता अभीष्ट होती है, जिसमें वर्णित तथ्य प्रामाणिकता की कसौटी पर खरे उतरते हों, तथा जिनसे व्यापक स्तर पर पाठकों का हित सधता हो।

3 एक सांस्कृतिक सेतु, यात्रा लेखन सांस्कृतिक पर्यटन का प्रसार करता है, हर देश, समाज व सस्कृति के श्रेष्ठ तत्वों को उजागर करते हुए, आपसी संवाद की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा होता है। और अंतर्सांस्कृतिक संचार को संभव बनाता है, पुष्ट करता है। इस तरह यात्रा साहित्य सहज रुप में मानवीय सम्बन्धों को सशक्त करता है। लेकिन इसके लिए यात्रा लेखक में हर संस्कृति की श्रेष्ठ एवं आध्यात्मिक परम्पराओं व जीवन दर्शन की कुछ समझ अपेक्षित रहती है।

4 सृजन का आनन्द - यात्रा लेखन के साथ सृजन का आनन्द लेखक को सहज रुप में मिलता है, जो उसके मानसिक स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता का सशक्त आधार बनता है। यात्रा के जिस एडवेंचर को यात्रा लेखक ने यात्रा के दौरान अनुभव किया था, बैसे ही यात्रा लेखन के साथ सृजनात्मक एडवेंचर का आनन्द उसके हिस्से में आता है।  

 5 दूसरों के काम आने की संतुष्टि का भाव - दूसरों के कुछ काम आने वाली जानकारियों के साझा करने के साथ एक संतुष्टि का भाव लेखक अनुभव करता है। यात्रा लेखन में जिस अथक श्रम व तप-त्याग के साथ लेखक जुटता है, उसके आधार पर दूसरों के जीवन में कुछ गुणवत्ता या वेल्यू जुड़ने पर वह संतुष्ठि के रुप में अपना पुरस्कार पा जाता है। 

6 एक आध्यात्मिक अनुभव, यात्रा लेखन लेखक को अपने गहनतर सत्य से जोड़ता है, पाठकों से कन्नेकट करता है। इस प्रक्रिया में वह जीवन के प्रवाह से जुड़ता है, जो उसके लिए तरोताजा करने वाला एक आध्यात्मिक अनुभव जैसा होता है।

 7 स्वरोजगार का आर्थिक आधार -  यदि यात्रा लेखन में पकड़ बनना शुरु हो गई, तो व्यक्ति अपना ब्लॉग तैयार कर सकता है, इसके साथ स्वतंत्र लेखक के रुप में अखबारों व पत्रिकाओं में यात्रा लेख प्रकाशित कर सकता है। और समय के साथ अपनी यात्रा पुस्तक प्रकाशित कर सकता है तथा इस विधा में दूसरों को प्रशिक्षण भी दे सकता है।

यात्रा लेखन से जुड़ी उपरोक्त विशेषताएं व्यक्ति की जीवन यात्रा में सार्थकता का नया अहसास दिलाती हैं और नए सृजन के लिए प्रेरित करती रहती हैं।

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