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साधु संगत, भाग-3, अध्यात्म पथ

मार्ग कठिन, लेकिन सत्य की विजय सुनिश्चित   मनुष्यमात्र का पहला और प्रधान कर्तव्य - आत्मज्ञान महापुरुषों के जीवन को फूल के समान खिला हुआ, सिंह की तरह अभय, सद्गुणों से ओत-प्रोत देखते हैं, तो स्वयं भी वैसा होने की आकांक्षा जागती है। आत्मा की यह आध्यात्मिक माँग है, उसे अपनी विशेषतायें प्राप्त किये बिना सुख नहीं होता। लौकिक कामनाओं में डूबे रह कर हम इस मूल आकाँक्षा पर पर्दा डाले हुए पड़े रहते हैं, इससे किसी भी तरह जीवन लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। श्रेष्ठता मनुष्य की आत्मा है। इसलिए जहाँ कहीं भी उसे श्रेष्ठता के दर्शन मिलते हैं, वहीं आकुलता पैदा होती है।...यह अभिलाषायें जागती तो हैं किन्तु यह विचार नहीं करते कि यह आकांक्षा आ कहाँ से रही है। आत्म-केन्द्र की ओर आपकी रुचि जागृत हो तो आपको भी अपनी महानता जगाने का श्रेय मिल सकता है, क्योंकि लौकिक पदार्थों में जो आकर्षण दिखाई देता है, वह आत्मा के प्रभाव के कारण ही है। आत्मा की समीपता प्राप्त कर लेने पर वह सारी विशेषताएं स्वतः मिल जाती हैं, जिनके लिये मनुष्य जीवन में इतनी सारी तड़पन मची रहती है। सत्य, प्रेम, धर्म, न्याय, शील, साहस, स्ने

आध्यात्मिक पथ के प्राथमिक सोपान

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अध्यात्म क्या ? – अपनी खोज में निकल पड़े मुसाफिर की राह , मंजिल है अध्यात्म। जब लक्ष्य अपनी चेतना का स्रोत समझ आ जाए तो अपने उत्स , केंद्र की यात्रा है अध्यात्म। थोड़ा एडवेंचर के भाव से कहें तो यह अपनी चेतना के शिखर का आरोहण है। अध्यात्म स्वयं को समग्र रुप से जानने की प्रक्रिया है। विज्ञजनों की बात मानें तो यह जीवन पहेली की मास्टर-की है। आश्चर्य़ नहीं कि सभी विचारकों-दार्शनिकों-मनीषियों ने चाहे वे पूर्व के रहे हों या पश्चिम के , जीवन के निचोड़ रुप में एक ही बात कही – आत्मानम् विद् , नो दाईसेल्फ , अर्थात पहले , खुद को जानो, स्वयं को पहचानो। इस तरह अध्यात्म आत्मानुसंधान का पथ है, एक अंतर्यात्रा है। अध्यात्म उस आस्था का नाम है जो जीवन का केंद्र अपने अंदर मानती है और जीवन की हर समस्या का समाधान अपने अस्तित्व के केंद्र में खोजते का प्रयास करती है। अध्यात्म की आवश्यकता – अध्यात्म मानवीय जीवन में अंतर्निहित दिव्य विशेषता है, इसका केंद्रीय तत्व है और जीवन की मूलभूत आश्यकता है। सभी सांसारिक जरुरतें पूरी होने के बाद , सभी तरह का लौकिक ज्ञान पाने के बाद , सभी तरह की भौतिक स

अथ योगानुशासन

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शाश्वत स्रोत से जोड़ता राज मार्ग 21 जून को योग अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रुप में योग को वैश्विक स्वीकृति मिल चुकी है। जीवन शैली, मानसिक स्वास्थ्य और वैश्विक अशांति के संकट से गुजर रही इंसानियत ने समाधान की उज्जली किरण के रुप में इसे एक मत से स्वीकारा है। यह इसके सार्वभौमिक, व्यवहारिक और वैज्ञानिक स्वरुप के कारण ही सम्भव हो पाया है। इसे किसी भी धर्म, जाति या सम्प्रदाय का व्यक्ति कर सकता है, अपना सकता है। यह किसी भी धार्मिक कर्मकाण्ड या आस्था से मुक्त एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। इसका सारोकार अपने ही तन-मन से है, इसके केंद्र में अपना ही बजूद है, अपनी ही सत्ता का यह अन्वेषण है, अपनी ही आत्म चेतना के केंद्र कहें या शिखर की यह यात्रा है, निताँत व्यैक्तिक, नितांत एकाकी। हालाँकि समाज, परिवेश भी इस यात्रा में समाहित हैं, जिसके साथ न्यूनतम किंतु स्वस्थ-सार्थक सामंजस्य का इसमें प्रावधान है। योग अपने शब्द के अनुरुप जुड़ने की प्रक्रिया है, अपनी अंतरात्मा से, अपने परिवेश से और फिर परमात्मा से। योग एक संतुलन है, जो खुद के साथ एवं परिवेश-समाज के साथ एक सामंजस्य को लेकर चल