रविवार, 28 फ़रवरी 2021

सिटी ब्यूटिफुल में बजट ट्रैब्ल के उपयोगी टिप्स

 टाउन प्लानिंग की मूक नसीहत देता यह सुंदर शहर


चण्डीगढ़ स्वयं में एक अद्भुत शहर है, भारत का पहला सुनियोजित ढंग से तैयार किया गया शहर, जिसे सिटी ब्यूटिफुल का दर्जा प्राप्त है। इस शहर के साथ हमारी किशोरावस्था की यादें जुड़ी हुई हैं, जब दसवीं के बाद दो वर्ष सेक्टर-10 के डीएवी कॉलेज में पढ़ने का मौका मिला था। इसमें एक साल पास के 15 सेक्टर स्थित रामकृष्ण मिशन के विवेकानन्द स्टूडेंट होम में रुकने व इसके स्वामी लोगों से सत्संग का सौभाग्य मिला था।

आज पहली बार सपरिवार चण्डीगढ़ रुकने का संयोग बन रहा था। हरिद्वार से चण्डीगढ़ तक वाया हथिनीकुण्डबैराज के सफर का जिक्र हम पिछली ब्लॉग पोस्ट में कर चुके हैं। अब चण्डीगढ़ पहुँचकर यहाँ रात को रुकने की व्यवस्था करनी थी। एक बाहरी घुम्मकड़ के लिए इस शहर में बजट ट्रैब्ल के साथ रुकने के क्या ऑपशन हो सकते हैं, इसको एक्सप्लोअर करते रहे। उपलब्ध जानकारियों को पाठकों के साथ शेयर कर रहा हूँ, जो पहली बार चण्डीगढ़ घूमने के लिए आ रहे किसी पथिक को शायद कभी काम आ जाए।

चण्डीगढ़ में परिवार संग बजट में रुकने के लिए धर्मशालाएं सबसे उपयुक्त रहती हैं। हालाँकि आजकल तो ओयो होटेल की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं, जिनका लाभ लिया जा सकता है। इनमें आधुनिक सुविधा के साथ सुरक्षा की उचित व्यवस्था रहती है, लेकिन दाम थोड़े अधिक रहते हैं। हमारे विचार से धर्मशालाएं बजट ट्रैब्लर के लिए अधिक उपयुक्त रहती हैं। सर्च करने पर हमें कुछ धर्मशालाएं मिली थीं, जैसे 28 सैक्टर में हिमाचल भवन और गुज्जर भवन, 15 सैक्टर में चनन राम धर्मशाला, 22 सेक्टर में सूद धर्मशाला आदि।


हरिद्वार से पंचकुला की ओर से चण्डीगढ़ में प्रवेश करते ही राह में सेक्टर 28 का हिमाचल भवन पहला पड़ाव था, लेकिन यहाँ कमरे फुल थे, फिर सेक्टर-15 में चननराम धर्मशाला पड़ती है, यहाँ भी कमरे फुल मिले। इन धर्मशालाओं की खासियत यह है कि इनमें वाहन के पार्किंग की सुविधाएं भी हैं, साथ ही भोजन की भी उत्तम व्यवस्था रहती है। परिवार के साथ यात्रा में ये काफी किफायती एवं उपयोगी रहती हैं।

अंत में हमें सेक्टर-22 की सूद धर्मशाला में जगह मिली। इसे चण्डीगढ़ की सबसे लोकप्रिय धर्मशाला माना जाता है, हमारा अनुभव भी कुछ ऐसा ही रहा। साफ सूथरे कमरे। पूरा स्टाफ वेल बिहेवड़। अनुशासन व सुरक्षा की उचित व्यवस्था। इसमें रुकने के लिए हर सदस्य का आधार कार्ड अनिवार्य होता है। धर्मशाला में प्रवेश करते ही बाहर पीपल पेड़ के नीचे विघ्नविनाशक गणेशजी एवं बजरंगवली हनुमानजी के विग्रह धर्मशाला के साथ एक सात्विक भाव को जोड़ते हैं।

एक और बात जो इस धर्मशाला को खास बनाती है, वह है इसकी कैंटीन में खान-पान से जुड़ी उपलब्ध सुविधाएं। यह प्रातः साढ़े छः बजे से रात साढ़े दस बजे तक चालू रहती है। यहाँ ब्रैकफास्ट, लंच और डिन्नर की बेहतरीन व्यवस्था दिखी, वह भी बहुत ही किफायती दामों में। इसके रेट को देखकर लगा की धर्मशाला चैरिटेवल भाव से चल रही है, ग्राहकों को लुटने का भाव यहाँ नहीं दिखा। सामान्य भरपेट भोजन 45 रुपए में था, स्पेशल थाली 50 रुपए में और डिलक्स थाली मात्र 60 रुपए में। जिसका दाम सड़क के किनारे ढावों में या होटलों में 80-100 से 150-200 से कम न होगा।

अपने अनुभव के आधार हर हम चण्डीगढ़ आ रहे नए यात्रियों को इस धर्मशाला में रुकने का सुझाव दे सकते हैं। सदस्यों की संख्या के आधार पर एक से तीन बेड़ वाले कमरे यहाँ 200 से 800 रुपए के बीच मिल जाएंगे और डोरमेट्री के चार्ज तो ओर भी कम मिलेंगे। इस धर्मशाला की खास बात है कि यह 17 सैक्टर के बहुत पास है, बल्कि 17 सेक्टर के पुराने बस अड्डे के सामने वाली मार्केट के पीछे। बस अड्डे को पार करते ही 17 सैक्टर की मार्केट में प्रवेश हो जाता है, जो कि चण्डीगढ़ की मुख्य मार्केट है, जिसमें आपको हर तरह के सामान व सुविधाएं उपलब्ध मिलेंगी। कपड़े, जुत्ते, घर के सामान से लेकर खाना-पीना, बर्दी, लैप्टॉप, पुस्तकें एवं मेडिसिन, हेंडिक्राफ्ट्स, कार्पेट आदि। फिल्मं थिएटर भी इसके दोनों छौर पर मौजूद हैं।


पुस्तक प्रेमियों एवं विद्यार्थियों के लिए कई पुस्तक भण्डार हैं, जहाँ हर तरह की पुस्तकें, मैगजीन व स्टेशनरी उपलब्ध रहती हैं। पर्चेजिंग के अतिरिक्त खास बात है इसके बीचों बीच खुला स्पेस, जहाँ शाम के समय हवा से बातें करते, आसमानं को छूते रंग-बिरंगे फब्बारे, संगीत की धुन के साथ थिरकते नजर आएंगे। इसके आस पास जगह-जगह पर हरे-भरे वृक्षों की छाया में बने रुकने, बैठने के साफ-सुथरे, कलात्मक ठिकाने हैं। परिवार के साथ यहाँ शॉपिंग के साथ खाने-पीने का व मौज-मस्ती का पिकनिक जैसा अनुभव लिया जा सकता है।

सेक्टर 17 के सामने ही मुख्य सड़क के उस पार सामने रोज गार्डन पड़ता है, जिसमें रंग-विरंगे गुलाब फूलों के दर्शन किए जा सकते हैं। इसके बीचों बीच फब्बारों के दर्शन के साथ आस-पास बड़े-बड़े घास के मैदानों के बीच टहलने व विश्राम का आनन्द लिया जा सकता है। फिर मुख्य मार्ग के उत्तरी छोर पर सुखना लेक पड़ती है, जो मानव निर्मित झील है। इसमें बोटिंग का लुत्फ लिया जा सकता है। इसके किनारे पर बनी सड़क पर वॉकिंग एक बेहतरीन अनुभव रहता है। यहाँ भी एक छोर पर खाने-पीने व रिफ्रेश होने के बेहतरीन ठिकाने हैं।

इसी के पास है रॉक गार्डन, जो शहर की टुटी फूटी एवं बेकार चीजों को कलात्मक ढंग से सजाकर बनाया गया स्व. नेकचंद का एक अद्भुत सृजन संसार है। यहाँ से पंचकुला से आगे चंडी माजरा क्षेत्र के मिलिट्री एरिया में काली माता को समर्पित चण्डी मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं, जिसके नाम पर शहर का नाम चण्डीगढ़ पड़ा। आज समय अभाव के कारण हमारी यह इच्छा अधूरी रह गई थी, लगा उचित समय पर यह इच्छा अवश्य पूरी होगी।


इसके स्थान पर आज 15 सेक्टर में स्थित रामकृष्ण मिशन जाने का संयोग बन रहा था, जहाँ पिछले कई वर्षों से नहीं आ पाया था। हालाँकि रात को 7 बजे के बाद आश्रम बंद हो चुका था। इसके पास के विवेकानन्द स्टुडेंट होम में भी विद्यार्थी नहीं थे, कोरोना काल के बीच घरों में रह रहे हैं।  स्टुडेंट होम और मिशन के मुख्य भवन के बीच एक नया भवन खड़ा दिखा, जाकर पता चला कि यह 2018 में नवनिर्मित मेडिटेशन सेंटर है, अंदर प्रवेश कर विशाल हाल की मद्धम रोशनी एवं नीरव शांति के बीच ध्यान के कुछ यादगार पल विताए। यहाँ से गुजरते हुए यात्रीगणों को सुझाव दे सकता हूँ कि थोड़ा समय निकालकर इस आध्यात्मिक स्थल में कुछ पल के सात्विक अनुभव का लाभ लिया जा सकता है, जो यादगार पल सावित होंगे।

चण्डीगढ़ की खास बात यहाँ के सेक्टरों में बंटा होना है। इसके नक्शे को देखकर स्पष्ट होता है कि शुरु में 1 से 25 सेक्टर प्रारम्भिक चरण में बने होंगे, जिनमें मध्य मार्ग के दोनों और सेक्टरों का योग 26 बनता है। जैसे 12-14, 11-15, 10-16, 9-17, 8-18, 7-19 आदि। इस तरह इसमें 13 सेक्टर नहीं है। अगली पंक्ति में 26 से 30 सेक्टर पड़ते हैं और फिर 31 से 56 सेक्टर अगली तीन पंक्तियों में व्यवस्थित हैं। सेक्टर 57 के बाद के सेक्टर मोहाली में पड़ते हैं।


हर सेक्टर इस तरह से बनाया गया है कि आवासीय भवनों के साथ इन सबकी अपनी दुकानें, शैक्षणिक और स्वास्थ्य सुविधाएं, पूजा स्थल, खुला स्पेस और हरियाली की व्यवस्था है। निसंदेह रुप में चण्डीगढ़ भारत का सबसे सुव्यवस्थित शहर है। फ्रेंच-स्विस आर्किटेक्स ली कार्बुजियर द्वारा डिजायन किया गया यह शहर निंसदेह रुप में भारत के अन्य शहरों के लिए एक मानक है। इसमें यात्रा के बाद इनकी दूरदर्शिता को देखकर मन अविभूत होता है और लगता है कि हम भारतीयों को शहरों व कस्वों की प्लानिंग के संदर्भ में कितना कुछ सीखना शेष है।


हरिद्वार से चण्डीगढ़ वाया हथिनीकुँड

गाँव-खेत-फ्लाइऑवरों व नहरों के संग सफर का रोमाँच


हरिद्वार से चण्डीगढ़ लगभग दो सवा दो सौ किमी पड़ता है, जिसके कई रूट हैं। सबसे लम्बा रुट देहरादून-पोंटा साहिब एवं नाहन से होकर गुजरता है। दूसरा बड़ी बसों का प्रचलित रुट वाया रुढ़की-सहारनपुर-यमुनानगर-अम्बाला से होकर जाता है। छोटे चौपहिया वाहनों के लिए शोर्टकट रुट वाया हथिनीकुंड वैराज से होकर है, जिस पर दिन के उजाले में सफर का संयोग पिछले दिनों बना। फरवरी माह के तीसरे सप्ताह में सम्पन्न यात्रा कई मायनों में यादगार रही, जिसे यदि आप चाहें तो इस रुट का चुनाव करते हुए अपने स्तर पर अनुभव कर सकते हैं।

इस रुट की खासियत है, गाँव-खेतों, छोटे कस्वों एवं गंगा-यमुना नदी की नहरों के किनारे सफर, जिसमें कितनी तरह की फसलों, फल-फूलों व वन-बगानों से गुलजार रंग-बिरंगे अनुभव कदम-कदम पर जुड़ते जाते हैं। साथ में मिलते हैं लोकजीवन के अपने विविधतापूर्ण मौलिक रंग-ढंग, जो अपनी खास कहानी कहते प्रतीत होते हैं।



हरिद्वार से बाहर निकलते ही गंगनहर के किनारे सफर आगे बढ़ता है। महाकुंभ 2021 के लिए बने नए फलाई-ऑवर के संग सफर एकदम नया अनुभव रहा, क्योंकि सड़क पहले से अधिक चौड़ी, सपाट, सुंदर और सुव्यवस्थित हो गई हैं, साथ ही एक तरफे ट्रैफिक के चलते काफी सुरक्षित एवं आरामदायक भी। फिर फ्लाई-ऑवर के टॉप से नीचे शहर, गंगा नदी इसके मंदिर-आश्रमों एवं चारों ओर दूर पहाड़ियों के दृश्यों के नजारे स्वयं में दर्शनीय लगे।

गुरुकुल कांगड़ी विवि से होकर ज्वालापुर को पार करते ही सफर शहर के बाहर गंगाजी की छोटी सी धारा (नहर-कुल्ह) के संग आगे बढ़ता है और फिर आता है उत्तराखण्ड संस्कृत विवि और थोड़ी देर में बहादरावाद, जहाँ वाईं ओर सड़क रुढ़की के लिए मुड़ जाती है, लेकिन हमारा रुट दायीं ओर से होकर गंग नहर के संग आगे बढ़ता है, कुछ देर में नहर को पार कर हम भगवानपुर की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में खेत-खलिहानों के दर्शन शुरु हो जाते हैं। बीच-बीच में छोटे कस्बे आते रहे, नाम तो सही ढंग सें याद नहीं, हाँ बीच में बोर्ड देख पता चला कि पिरान कलियर से दो किमी दूरी पर आगे बढ़ रहे थे। मालूम हो कि पिरान कलियर शरीफ, सूफी संत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर को समर्पित दरगाह है, जो हिन्दु और मुस्लिम दोनों के लिए महान आध्यात्मिक ऊर्जा का स्थान माना जाता है।

आगे मार्ग में मुस्लिम बहुल आवादी के दर्शन मिले। खेतों में गैंहूं की फसल तैयार हो रही थी, बीच में जौ की खेती भी दिखी। इसके साथ कहीं-कहीं सरसों के खेत कहीं खालिस पीला रंग लिए हुए थे, तो कहीं गैंहूं के बीच हरा पीला रंग लिए अपनी खास उपस्थिति दर्शा रहे थे। 


गन्ने की खेती भी रास्ते भर होती दिखी, कहीं ट्रैक्टरों में गन्ने को लादकर फेक्ट्री में ले जाया जा रहा था तो कहीं सड़क के किनारे गन्ने से ताजा गुढ़ बनते कई ठिकाने दिखे, जो अपनी धुँआ उगलती भट्टियों के साथ बिखरती मिट्ठी खुशबू के साथ अपना परिचय दे रहे थे।

बीच-बीच में आम के बगीचे मिले। इस सीजन में भी आम के फलों को देखकर आश्चर्य हो रहा था, जो सड़क के किनारे दुकानों पर सजे थे। इस बेमौसमी फल के साथ कुछ स्थानों पर अखरोटों से सज्जे ठेले भी दिखे, जिन्हें टोकरियों में सजाया गया था व इन पर काश्मीर के कागजी अखरोट होने के लेबल लगे थे।


सफेदे के पेड़ तो खेत की बाउँडरी पर बहुतायत में दिखे, लेकिन इनके साथ जो अधिक सुंदर लग रहे थे, वे थे पॉपलर के पेड़, जिन्हें खेतों के बीच कतारबद्ध उगाया गया था। आसमान को छूते इनके सीधे खडे पेड़ कौतुहल जगा रहे थे कि इनका क्या मकसद रहता होगा। पता चला कि इन्हें माचिस की तिल्लियों से लेकर प्लाईवुड व पैंसिल के लिए उपयोग किया जाता है, इससे कागज भी तैयार होता है और इनकी फसल किसानों के लिए आमदनी का बेहतरीन स्रोत्र रहती है। यह बहुत तेजी से बढ़ने वाला पौधा है, जो 50 से 165 फीट तक ऊँचाई लिए होता है, जो 5 से 7 साल में 85 फीट व इससे अधिक ऊँचाई पा लेता है। रास्ते में इनकी लकड़ी के लट्ठों से लद्दे ट्रैक्टर एवं ट्रकों को देखकर इसके व्यापार की झलक भी मिलती गई।

इस तरह कई खेत, कस्वे व गाँवों को पार करते हुए सफर आगे बढ़ता रहा। एक दूसरी नहर रास्ते में मिलती है, जिसका जल आसमानी नीला रंग लिए काफी निर्मल दिख रहा था। रास्ते में मिली गंग नहर जहाँ काफी गहरी थी, वहीं यह नई नहर उथली थी, लेकिन अपने दोनों ओर की दृश्यावलियों के साथ अधिक सुंदर एवं भव्य लग रही थी।


अगले लगभग आध-पौन घंटे तक इसके किनारे सुखद सफर आगे बढ़ता रहा, यथासंभव इसके सुंदर नजारों को कैप्चर करते रहे और उस पार बसे गाँव, घर, खेत, बगीचों को निहारते हुए सफर का आनन्द लेते रहे।

अब तक हम इसके उद्गम स्रोत्र की ओर पहुँच चुके थे, आवादी विरल हो चुकी थी, नदी के तट व नहरों के निकास मार्ग दिखे, जिनमें कुछ सूखे प़ड़े थे, तो कुछ में पानी बह रहा था। हम हथिनीकुंड बैराज की ओर बढ़ रहे थे। इसके उत्तर में जल सरोवर के रुप में एकत्र था, लेकिन जालीदार दिवार के कारण इसकी पूरी झलक नहीं मिल पा रही थी। वायीं ओर जल ना के बराबर था, ऐसा लग रहा था कि बाढ़ की स्थिति में ही इससे जल छोड़ा जाता होगा। अगले मुहाने पर जल नीचे एक नहर के रुप में बाहर छोडा गया था, जो आसमानी रंग लिए अपनी निर्मलता का सुखद अहसास दिला रहा था। बाँध के छोर पर एक ऊँट के दर्शन हमें थोड़ा चकित किए। अब हम इसके किनारे दायीं ओर से नीचे बढ़ रहे थे। लगभग आधा किमी तक हम नहर के किनारे दायीं ओर से बढ़ते गए, सुंदर नजारों का शीतल व सुखद अहसास लेते रहे। आश्चर्य़ हुआ कि दिल्ली में गंदे नाले का रुप लिए यमुनाजी यहाँ कितनी साफ व निर्मल थी।



मालूम हो कि हथिनी कुंड बैराज पोंटा साहिब की ओर से आ रही यमुना नदी पर बनी हुई है। इसका जल यमुना नदी के अतिरिक्त पूर्वी और पश्चिमी दो नहरों के माध्यम से निचले इलाकों में खेती के लिए सिंचाई के काम आता है। साथ ही बारिश में बाढ़ की स्थिति में यहाँ से जल को नियंत्रित करके आगे छोड़ा जाता है, हालाँकि पानी के बढ़ने पर इसके फाटकों के खुलने पर नीचे दिल्ली सहित मैदानी इलाकों में स्थिति विकराल हो जाती है, जिस कारण हथिनी बैराज का नाम एक वरदान के साथ एक खतरनाक संरचना के रुप में भी जोड़कर देखा जाता है। लेकिन आज तो हम इसके शांत-सौम्य स्वरुप के दर्शन कर रहे थे।

अब हम नीचे जंगल व खेतों के बीच आगे बढ़ रहे थे। दायीं ओर पीछे उत्तराखण्ड की छोटी शिवालिक पहाड़ियाँ दिख रही थीं और इसकी गोद में दूर तक फैले खेत-खलिहान एवं गाँव। रास्ते में ही एक ढावे में दोपहर के भोजन के लिए रुकते हैं। हम हरियाण में प्रवेश कर चुके थे और यहाँ भोजन में हरियाण्वी तड़का चख्न्ने को मिला। यहाँ मात्र तंदूरी रोटी और दाल-सब्जियाँ ही उपलब्ध थीं। चाबल का अभाव दिखा। बापसी के सफर में भी हथिनीकुँड के पास के वैष्णों ढावे में भोजन का यही अनुभव रहा। यहाँ सब्जी में मिर्च पर्याप्त मिली, जिसका दही के साथ संतुलन बिठाते रहे, हालाँकि लाल मिर्च पाउडर की वजाए यहाँ हरी मिर्च काटकर भोजन में उपयुक्त होती दिखी।


इसी रास्ते में सड़क के किनारे सेंट की दुकानें सजी मिली। फलों की दुकानें तो पूरे मार्ग में कदम-कदम पर आवादी बाले इलाकों में दिखती रही, जहाँ मुख्यता कीनूं, अमरुद, केला, अंगूर जैसे मौसमी फल बहुतायत में दिखे।

आगे का सफर जगाधरी से होकर गुजरा, जो यमुनानगर से पहले ही वाईपास रुट से मुड़ जाता है, जिसमें हम प्रचलित अम्बाला रुट से दूर ही रहे। यह सफर भी नए रुट पर था, जिस पर किसान आन्दोलन का असर साफ दिखा। मार्ग के टोल प्लाजा विरान पड़े थे, कहीं भी पैसा बसूली होती नहीं मिली। सड़क पर्याप्त चौड़ी और फ्लाई ऑवर से लैंस मिली। पंचकुला तक यह चौडी, स्पाट सड़कें हमारे सफर को सुकूनदायी बनाए रही।


 
इस रुट में भी खेत खलिहान, गाँव मिले, लेकिन पिछले रुट से कुछ चीजें नई दिखीं। यहाँ स्ट्रा बैरी की फसल अधिक मिली, जिनको सड़क के किनारे डब्बों में सजाकर बेचा जा रहा था। इनके खेत भी रास्ते में मिले, जिनको कतारबद्ध सुखी तरपाली की छाया में उगाया जाता है। इस राह में आम-अमरुद आदि के बगीचे कम दिखे, फूलगोभी, पत्तोगोभी, मटर जैसी सब्जियों के प्रयोग अधिक दिखे। लगा पास की शहरी आबादी की खपत के लिए इन्हें कैश क्रोप के रुप में तैयार किया जाता होगा। पोपलर के पेड़ इस रुट में भी खेतों में बीच-बीच में अपनी भव्य उपस्थिति दर्शा रहे थे।

साथ ही इस राह में एक नयी चीज दिखी, जो थी ईंट के भट्टे, जहाँ ईंटें तैयार की जा रही थी। शायद जहाँ जमीन अधिक उपजाई नहीं होती, एक खास किस्म की मिट्टी पाई जाती है, वहाँ ऐसे प्रयोग किए जाते होंगे। पंचकुला में प्रवेश करने से पूर्व हिमाचल प्रदेश की नाहन साईड़ की पहाडियाँ मिलती हैं, जिनमें कीकर के जंगल बहुतायत में दिखे और साथ ही बहुमंजिली ईमारतों के दर्शन भी शुरु हो गए थे, जिनमें शहर की फूलती आबादी को समेटने के प्रयास दिखे।

इसी के साथ थोडी देर में पंचकुला से चण्डीगढ़ शहर में प्रवेश होता है। इसके प्लानिंग के तहत बनाए गए सेक्टर, सुंदर गोल चौराहे, सड़कों के किनारे पर्याप्त स्पेस में सजे भव्य एवं सुंदर घर, सड़क के दोनों किनारों पर हरे-भरे सुंदर वृक्षों की कतारें, सिटी ब्यूटीफुल में प्रवेश का सुखद अहसास दिला रहे थे और सफर मंजिल की ओर बढ़ रहा था। इस तरह कई सुंदर चौराहों को पार कर हम अपने ठिकाने पर पहुँचते हैं। आज की शाम आस-पास चण्डीगढ़ में कुछ विशिष्ट स्थलों के नाम थी। धर्मशाला में फ्रेश होकर हम इनके दर्शन के लिए निकल पड़ते हैं, जिनका जिक्र अगली ब्लॉग पोस्ट में पढ़ सकते हैं।

अगले दिन बापसी का सफर एक और शॉर्टकट रुट से होकर रहा, इसमें पंचकुला के थोड़ा आगे से बायीं ओर मुड़ जाते हैं, जिसकी राह में नरायणगढ़ और बिलासपुर जैसे कस्बे पड़े। हिमाचल प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के बाद आज हम हरियाणा के बिलासपुर से परिचित हुए। इस मार्ग में सिक्खों के तीर्थ स्थल बहुतायत में दिखे। रास्ते में काफी दूर तक गुरुगोविंद सिंह मार्ग एवं इस पर बंदा बहादुर सिंह चौक एवं कुछ गुरुद्वारे मिले। बापसी में फिर हथिनीकुंड बैराज पहुँचते हैं, जहाँ बापसी में इससे निस्सृत नहर के किनारे ढलती शाम के साथ एक यादगार सफर पूरा होता है। आगे गंग नहर और फिर हर-की-पौड़ी को पार करते हुए अपने गन्तव्य स्थल पहुँचते हैं। इस तरह दिन के उजाले में हरिद्वार से चण्डीगढ़ वाया हथिनीकुंड का सफर एक यादगार अनुभव के रुप में अंकित होता है।


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