यात्रा वृतांत - मेरी पहली कुमाउँ यात्रा – भाग-1

विकासपुत्रों की राह निहारती यह देवभूमि यह मेरी पहली कुमाउं यात्रा थी। यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य , सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक संपदा के वारे में बहुत कुछ पढ़ सुन चुका था। अतः कई मायने में यह मेरी चिरप्रतीक्षित यात्रा थी , भावों की अथाह गहराई लिए , नवांतुक की गहन जिज्ञासा के साथ एक प्रकृति प्रेमी घुमक्कड़ की निहारती दृष्टि लिए। अपने युवा साथियों , पूर्व छात्रों एवं कृषि-वागवानी विशेषज्ञ भाई के साथ सम्पन्न यह रोमाँचक यात्रा कई मायने में ऐतिहासिक, शिक्षाप्रद एवं यादगार रही। 1. अल्मोड़ा – हरिद्वार से हल्दवानी होते हुए अल्मोड़ा पहुंचे। रात्रि यात्रा थी , सो रास्ते के विहंगावलोकन से वंचित रहे , लेकिन प्रातः भौर होते होते अल्मोड़ की पहाडियों में बस अपनी मंजिल पर पहुँच चुकी थी। बस स्टेंड के पास ही अपने छात्र के परिचित समाजसेवी पांगतीजी के क्वार्टर – जोहार सहयोग निधि में रुकने का संयोग बना। यहाँ से अल्मोड़ा शहर के साथ उस पार की दूरस्थ पहाडियों का दूरदर्शन मन में कहीं गहरे प्रवेश कर जाता। इसी के साथ पूर्व की ओर से सुबह का स्वर्णिम सूर्योदय एक दर्शनीय दृश्य था। अल्मोड़ा