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जीवन शैली के चार आयाम, रहे जिनका हर पल ध्यान

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आधुनिक जीवन के वरदानों के साथ जुड़ा एक अभिशाप है बिगड़ती जीवन शैली, जिससे तमाम तरह की शारीरीक-मानसिक व्याधियाँ पैदा हो रही हैं। इसके चलते जवानी के ढ़लते ही व्यक्ति तमाम तरह के मनो-कायिक ( साइकोसोमेटिक ) रोगों से ग्रस्त हो रहा है। इतना ही नहीं डिप्रेशन, मोटापा, डायबिटीज जैसी बीमारियां बचपन से अपना शिकंजा कसने लगी हैं। युवा इसके चलते अपनी पूरी क्षमता से परिचित नहीं हो पा रहे और जवानी का जोश सृजन की बजाए निराशा और अवसाद के अंधेरे में दम तोड़ने लगा है। जीवन शैली क्या है? इसके प्रमुख आयाम क्या हैं?, इतना समझ आ जाए और इनके सर्वसामान्य सरल सूत्रों का दामन थाम कर जीवन शैली से जुड़ी विकृतियों से बहुत कुछ निजात पाया जा सकता है और एक स्वस्थ, सुखी एवं संतोषपूर्ण जीवन की नींव रखी जा सकती है।  जीवन शैली के चार आयाम हैं – आहार, विहार, व्यवहार और विचार। आहार – हल्का एवं पौष्टिक ही उचित है। स्वस्थ तन-मन का यह सबल आधार है। यदि हम भोजन ठूस कर खाते हैं तो सात्विक भोजन को भी तामसिक बनते देर नहीं लगती। आहार का सार इतना है कि वह शरीर का पोषण करे,   इसे सशक्त बनाए व स्फुर्त रखे।  भोजन शा

यात्रा वृतांत - मेरी पहली झारखण्ड यात्रा

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धनबाद से राँची का ट्रेन सफर यह मेरी पहली यात्रा थी, झारखण्ड की। हरिद्वार से दून एक्सप्रेस से अपने भाई के संग चल पड़ा, एक रक्सेक पीठ पर लादे, जिसमें पहनने-ओढने, खाने-पीने, पढ़ने-लिखने व पूजा-पाठ की आवश्यक सामग्री साथ में थी। ट्रेन की स्टेशनवार समय सारिणी साथ होने के चलते, ट्रेन की लेट-लतीफी की हर जानकारी मिलती रही। आधा रास्ता पार करते-करते ट्रेन 4 घंटे लेट थी। उम्मीद थी कि, ट्रेन आगे सुबह तक इस गैप को पूरा कर लेगी, लेकिन आशा के विपरीत ट्रेन क्रमशः लेट होती गयी। और धनबाद पहुंचते-पहुंचते ट्रेन पूरा छः घंटे लेट थी। रास्ते में भोर पारसनाथ स्टेशन पर हो चुकी थी। सामने खडी पहाड़ियों को देख सुखद आश्चर्य़ हुआ। क्योंकि अब तक पिछले दिन भर मैदान, खेत और धरती-आकाश को मिलाते अनन्त क्षितिज को देखते-देखते मन भर गया था। ऐसे में, सुबह-सुबह पहाड़ियों का दर्शन एक ताजगी देने वाला अनुभव रहा। एक के बाद दूसरा और फिर तीसरा पहाड़ देखकर रुखा मन आह्लादित हो उठा। हालांकि यह बाद में पता चला की यहाँ पहाड़ी के शिखर पर जैन धर्म का पावन तीर्थ है। धनबाद पहुंचते ही ट्रेन रांची के लिए तुरंत मि

पार्वती नदी के तट पर बसा पावन मणिकर्ण तीर्थ

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सर्दी में भी गर्म अहसास देता यह पावन धाम गर्म पानी के प्राकृतिक स्रोत तो कई जगह हैं , लेकिन हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में , पार्वती घाटी में बसे मणीकर्ण स्थान पर गर्म पानी के स्रोतों का जो नज़ारा है , वह स्वयं में अद्भुत है। पार्वती नदी के किनारे बसे और समुद्र तल से लगभग 6000 फुट की ऊँचाई पर स्थित इस तीर्थ में गर्म पानी के इतने स्रोत हैं कि किसी घर को पानी गर्म करने की जरुरत नहीं पड़ती। यहां तक कि खाना भी इसी में पकाया जा सकता है। सर्दी के मौसम में यदि कोई यहाँ जाने का साहस कर सके तो , यात्रा एक यादगार अनुभव साबित हो सकती है। मणीकर्ण पावनतम् तीर्थ स्थलों में एक है। आश्चर्य नहीं कि घाटी के देवी-देवता नियत समय पर यहाँ दर्शन-स्नान करने आते रहते हैं। और आस्थावान तीर्थयात्री भी यहाँ स्नान-डुबकी के साथ अपने पाप-ताप एवं संताप से हल्का होने का गहरा अहसास लेकर जाते हैं। कुल्लू से लगभग 10 कि.मी. पहले भुंतर नामक स्थान से मोटर मार्ग पार्वती घाटी में प्रवेश करता है। नीचे से घाटी बहुत संकरी प्रतीत होती है , लेकिन पीछे मुख्य मार्ग से जुड़ी सड़कें खुली एवं मनोरम घाटियों में ले ज