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वर्तमान दुर्दशा, दुर्गति का जिम्मेदार कौन

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अपनी जिम्मेदारी आप उठाएं और विषाद-अवसाद से बाहर उबरें हमारी वर्तमान दुर्दशा-दुर्गति का कौन जिम्मेदार है। दूसरों को इसका जिम्मेदार ठहरा कर हम थोड़ी देर के लिए स ु कून-राहत अवश्य महसूस कर सकते हैं, लेकिन इसमें जीवन का दीर्घकालीन समाधान नहीं, इससे स्थिति सुधरने वाली नहीं। यह कुल मिलाकर खुद से धोखा है, जो आगे चलकर हमारे चारित्रिक पतन और दुर्गति को ही सुनिश्चित करता है। यदि हमारा वर्तमान संतोषजनक नहीं है तो इसके समाधान के लिए सबसे पहले हमें अपनी वर्तमान दुर्दशा, दुर्गति के पीछे सक्रिय दुर्मति, नेगेटिव सोच को पहचानना होगा, उसका जिम्मा लेना होगा। हम परिस्थितियों, वाहरी व्यवस्था से शिकायत कर सकते हैं आवश्यक संसाधनों की, अपेक्षित सहयोग की, निहायत जरुरतों की, लेकिन ये हमारे सकल आशा, उत्साह, साहस को कुंद करने के कारण नहीं हो सकते। ये हमें अवसाद-विषाद में डूबने, जीवन के प्रति नकारात् मक होने व खुद में उल झने के कारण नहीं हो सकते।  एक इंसान होने के नाते, ईश्वर के दिव्य अंश होने के नाते, हमारे अंदर वह अग्नि, वह ज्वाला, वह चेतना, वह संकल्प, वह शक्ति, वह जिजीविषा, वह बल, वह संभ