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कोरोना काल के बीच उभरता जीवन दर्शन

अपनों के वियोग-विछोह की पीड़ा एवं आध्यात्मिक सम्बल कोरोना काल ने कई मायनों में जीवन की परिभाषा और जिंदगी के मायने बदल दिए हैं, जिनमें एक है अपनों का असामयिक अवसान और इस जीवन की नश्वरता का तीखा बोध। सबसे पहले ह्दय की गहराई से अपनी संवेदनापूरक श्रद्धाँजलि उन सभी दिवंगत मित्रों, परिवारजनों, परिजनों एवं जीवात्माओं को, जो कोरोना के कारण असमय ही अपनों को बिलखते हुए छोड़ गए। परमात्मा, भगवान, गुरुसत्ता उन सब दिवंगत आत्माओं को शांति दे, सद्गति दे, अपने चरणों में विश्राँति दे। साथ ही परमात्मा शोकाकुल एवं दुःखी परिवारजनों, आत्मीयजनों एवं मित्रों को इनके बिछुड़ने के असह्य दुःख को सहन करने की शक्ति दे। निश्चित ही कोरोना के रुप में संव्याप्त जानलेवा अदृश्य वायरस ने एक आशंका, भय और आतंक का माहौल पैदा कर दिया है। प्रारम्भ में, पहली लहर के दौर में स्थिति इतनी विकट नहीं थी, जब मात्र बिमार या न्यून इम्यूनिटी बाले बृद्ध-बुजुर्गों को अपना निशाना बनाया था और इसका प्रभाव सीमित था तथा यह उतना घातक नहीं था। कोरोना की दूसरी लहर के साथ इसके घातक स्वरुप ने स्वस्थ लोगों तथा युवाओं को भी अपनी लपेट में ले लिया ह