घुमक्कडी इंसानी फितरत, जन्मजात प्रवृति है और जिज्ञासा उसका नैसर्गिक स्वभाव। दोनों का जब मिलन हो जाता है, तो एक घुम्मकड, खोजी यात्री, अन्वेषक, यायावर, एक्सप्लोअरर जन्म लेता है।
आदि काल से देश व दुनियाँ के हर कौने में ऐसे लोग हुए, जिन्होंने
विश्व के चप्प-चप्पे को छान मारा। शायद ही धरती पर कोई क्षेत्र ऐसा हो, जो उसके लिए अगम्य रहा हो। सागर की अतल गहराई, वीहड़ बनों के अगम्य क्षेत्र, रेगिस्तान के विषम विस्तार और बर्फीले प्रदेशों की दुर्गम चोटियाँ
और देश-दुनियाँ का कोई क्षेत्र उसकी पहुँच से दूर नहीं।
इन स्थलों के प्राकृतिक सौंदर्य, भौगोलिक विशेषता, सामाजिक ताना-बाना, सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत का अनुभव, इनका सांगोपांग वर्णन तो यात्रा साहित्य का सृजन। इससे पाठकों का ज्ञानबर्धन, मनोरंजन व शिक्षण होता है और साथ ही मानवीय समाज, संभ्यता एवं संस्कृति की विकास यात्रा आगे बढ़ती है।
जब उत्साह एवं उल्लास के भाव से यात्रा, सौंदर्यबोध की दृष्टि से प्रकृति-परिवेश को निहारते व हद्यंगम
करते हैं, एक जिज्ञासु की दृष्टि से समाज का
अवलोकन और उसकी मुक्तभाव से अभिव्यक्ति, उसे यात्रा साहित्य या यात्रा वृतांत का सृजन होता हैं।
यायावरी या घुमक्कड़ी एक प्रकार का नशा, जिसके चलते वह अधिक समय तक टिक कर बैठ नहीं सकता।
'जिसने एक बार घुमक्कड़-धर्म अपना लिया, उसे फिर पेंशन कहाँ, उसे फिर विश्राम कहाँ? - किन्नर देश में राहुल सांकृत्यायन
अज्ञेयजी लिखते हैं - 'यायावर को भटकते चालीस बरस हो गए, किंतु इस बीच न तो वह अपने पैरों तले घास जमने दे सका है, न ठाठ जमा सका है, न क्षितिज को कुछ निकट ला सका है।' ऐसे घुमक्कड़ सृजनशीलों की कलम से यात्रा-साहित्य सहज रुप में नाना रुपों में प्रवाहित होता है, जैसे हिमवान से बहती नाना प्रकार की हिमनदियाँ।
सार रुप में, सरल शब्दों में, यात्रा वृतांत को यात्रा के रोचक, रोमाँचक और ज्ञानबर्धक अनुभवों का सांगोपांग वर्णन कह सकते हैं। जो आपने अनुभव किया, उसको पाठकों के साथ साझा करने का भाव, ताकि वे भी कुछ बैसा ही आनन्द ले सकें। साथ में कुछ ऐसी मूलभूत और नयी जानकारियाँ पा सकें, जो उनकी यात्रा को सरल व सुखद बनाए।
यात्रा साहित्य के प्रकार
चार प्रमुख प्रवृत्तियाँ
1.वर्णनात्मक अथवा परिचयात्मक, जैसे - राहुल
सांकृत्यायन
2.सामाजिक-स्थिति का
प्रस्तुतीकरण, जैसे - डॉ.सत्यनारायण सिन्हा 'आवारे यूरोप की यात्रा'
3.वैयक्तिक प्रतिक्रिया को व्यक्त करनेवाली, जैसे - मोहन राकेश का 'आखिरी चट्टान तक‘
4.साहित्यिक, इसे लेखन की सर्वश्रेष्ठ
पद्धति कह सकतके हैं, जैसे - अज्ञेय के यात्रा-वृतांत
इसके साथ पाँचवी प्रवृति को जोड़ सकते हैं, जो है –
5. आध्यात्मिक, जैसे आचार्य पं श्रीराम शर्मा आचार्य की रचना – सुनसान के सहचर
नामवर सिंह ने यात्रा साहित्य को देसी और मार्गी दो भागों में बांट दिया है।
देसी यात्रा वृतांत की शुरुआत हिंदी लेखन में भारतेंदु से होती हुई नागार्जुन तक आती है। तथा मार्गी परम्परा की शुरुआत अज्ञेय ने की। बाद में इसी परम्परा में मोहन राकेश, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और निर्मल वर्मा आते हैं।
यात्रा लेखन की परम्परा एवं विकास यात्रा -
पौराणिक यात्रा विवरण -
रामायण में राम सहित
लक्ष्मण, सीता की वनवास यात्राएं, भाई भरत का राम से मिलन व
हरण हुई सीता माता की खोज की यात्राओं का विवरण ।
महाभारत में पांडवों के बन गमन से लेकर अज्ञात वास के समय की यात्राओं का विशद विवरण।
कालान्तर में कालिदास एवं वाणभट्ट के संस्कृत साहित्य में यात्रा विवरण मिलते हैं, हालाँकि ये प्रकृति के विवरण प्रधान रहे हैं।
ऐतिहासिक यात्रा विवरण –
विदेशी यात्रियों एवं इतिहासकारों के यात्रा विवरणों, जैसे - अलबरूनी, इब्नबतूता, अमीर खुसरो, हेनसांग, फाह्यान, मर्कोपोलो, सेल्यूकस निकेटर आदि, जिनसे हमें मौर्य काल, गुप्तकाल, मुगल काल, अंगेजी शासन के समय की की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक, भौगोलिक जानकारियाँ मिलती हैं।
हिंदी साहित्य में यात्रा वृतांत की विधिवत शुरुआत – भारतेंदु-युग (19वीं सदी का उत्तरार्द्ध) से मानी जा सकती है। जिसमें वे कविवचन सुधा पत्रिका में हरिद्वार, लखनऊ, जबलपुर, सरयूपार, वैद्यनाथ, जनकपुर आदि की यात्रा पर खड़ी बोली में यात्रा वृतांत लिखते हैं। इसके बाद स्वतंत्रतापूर्व काल में जयशंकर प्रसाद युग में यात्रा वृतांतों में नए आयाम जुड़ते हैं। इस दौरान घुम्मकड़ी के लिए समर्पित पं. राहुल सांकृत्यायन अपनी देश-विदेश के एक छोर से दूसरे छोर एवं आर-पार की साहसिक यात्राएं करते हैं। जिनमें उल्लेखनीय रचनाएं रहीं - ‘मेरी तिब्बत यात्रा’, ‘मेरी लद्दाख यात्रा’, ‘किन्नर देश में’, ‘रूस में 25 मास’, ‘तिब्बत में सवा वर्ष’, ‘मेरी यूरोप यात्रा’, ‘यात्रा के पन्ने’, ‘जापान, ईरान, एशिया के दुर्गम खंडों में’ आदि। 1948 में वे घुम्मकड़ी के लिए मार्गदर्शनक ‘घुम्मकड़ शास्त्र’ ग्रन्थ की रचना करते हैं।
राहुल सांकृत्यायन के बाद अज्ञेयजी यात्रा वृतांत को नए साहित्यिक मुकाम तक पहुँचाते हैं। वे इसे यात्रा संस्मरण कहना अधिक पसंद करते थे। इनके उल्लेखनीय यात्रा संस्मरण रहे – भारत भ्रमण को लेकर ‘अरे यायावर रहेगा याद’ (1953) और विदेशी यात्राओं को लेकर ‘एक बूँद सहसा उछली’ (1960)। उनका मानना था कि यात्राएँ न केवल बाहर की जाती हैं बल्कि वे हमारे अंदर की ओर भी की जाती हैं।
इस क्रम में, उल्लेखनीय यात्रा वृतांत, पं. श्रीरामशर्मा आचार्य की कृति सुनसान के सहचर है, जो यात्रा लेखन में एक नया आयाम जोड़ती है।
1961 में सम्पन्न हिमालय यात्रा का जीवंत चित्रण इसमें मिलता है, जिसमें प्रकृति के विराट सौंदर्य के साथ उद्दात जीवन दर्शन पग-पग पर पाठकों को आलोकित करता है। बाहर के साथ अन्दर की यात्रा का भी सुन्दर, विलक्षण एवं प्रेरक प्रस्तुतीकरण मिलता है।
इसके साथ आज़ादी के बाद हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय यात्रा-साहित्य का सृजन होता है, जिसमें मोहन राकेश तथा निर्मल वर्मा जैसे रचनाकार नए आयाम जोड़ते हैं।
यात्रा लेखन के महत्व (Importance of travel writing)
0 जिज्ञासा को शाँत करे, ज्ञान का विस्तार करे, दिलो-दिमाग के कपाट को खोले और व्यक्ति को एक अधिक जिम्मेदार, ज्ञानवान, संवेदनशील, काँफिडेंट, मजबूत और संजीदा इंसान बनाए।
1 ऐतिहासिक डॉक्यूमेंटेशन, एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक धरोहर।
makes a place immortal, creating a history...Exploring the unexplored….
2 एक सांस्कृतिक सेतु,
promote cultural tourism...Intercultural communication…
3 मानवीय सम्बन्धों को सशक्त करे,
fostering human connection with one other
4 मानसिक स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता का आधार
important for human happiness and mental health
5 स्वयं से कन्नेकट होते हैं, दूसरों से जुड़ते हैं, जीवन के प्रवाह से जुड़ते हैं। एक आध्यात्मिक अनुभव। Spiritual benefits, refreshing experience
6 साथ में जब यात्रा अनुभवों को लिखते हैं, तो सृजन का आनन्द,
Creative adventure
7 दूसरों के कुछ काम की जानकारियाँ साँझा करने की संतुष्टि,
Satisfaction of adding value in others life
8 आर्थिक लाभ, एक स्वरोजगार का माध्यम।
Economic benefits, a means of self employment as a -
1फ्री लांसर Freelancer (अखबार, मैगजीन, वेबपोर्टल)
2यात्रा ब्लॉगर Travel blogger.
3पुस्तक लेखक Travel Book…
9 उपर दिए पहलुओं के साथ जीवन में परिपूर्णता का अहसास, Sense of fulfillment.