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शांतिदूत, सौंदर्य उपासक और हिमालय के चितेरे – महर्षि रोरिक

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मानव एकता एवं उज्जवल भविष्य के दिव्यद्रष्टा निकोलस रोरिक, रुस के सेंट पीटसबर्ग में पैदा, धरती माँ के ऐसे सपूत थे, जो सौंदर्य, कला और रुहानियत की खोज में निमग्न शांति के मूर्तिमान प्रतीक थे। रोरिक का जीवन किसी देश काल जाति धर्म या राष्ट्रीयता की सीमा में नहीं बंधा था, पूरा विश्व उनका घर था। वे एक विश्वमानव थे, विश्व नागरिक बनकर वे एक सौंदर्य उपासक, विचारक एवं सृजनधर्मी के रुप में जीवन के उच्चतम मूल्यों का प्रचार-प्रसार करते रहे। कला को उन्होंने इसका प्रमुख माध्यम चुना। उनकी विरासत आज भी प्रेरक है। प्रस्तुत है बहुमुखी प्रतिभा के धनी महर्षि रोरिक के व्यक्तित्व के प्रेरक आयाम – एक चित्रकार के रुप में रोरिक – लगभग सात हजार चित्रों के रचनाकार रोरिक के प्रारम्भिक चित्र जहाँ पुरातात्विक खोज एवं इतिहास से प्रभावित रहे, वहीं परवर्ती काल में जीवन की उच्चतर प्रेरणा एवं जीवन दर्शन, प्रेरक रहा। रोरिक आलौकिक सौंदर्य से मंडित हिमालय के चित्रों के लिए विशेष रुप से जाने जाते हैं, जो कि उनके प्रकृति प्रेम और आध्यात्मिक सौंदर्य की खोज को अभिव्यक्त करते हैं। इन चित्रों में हिमालय की आत्मा

खुद को इस खुमारी से उबारो

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 इन शाश्वत सूत्रों पर तनिक विचार, जेहन में उतारो  कहाँ खोए बेहोशी, मदहोशी में, सुख की खुमारी से बाहर निकलो, नाव में जल सागर का भर चला, डगमग नैया को संभाल चलो, नहीं कोई विरोधी बैरी प्रतिद्वन्दी यहाँ, जो किसी को हरा सके, हैं अपने की छल छिद्र कुकर्म दुश्मन ऐसे, जो खुद को मात दें, आमदनी चवन्नी खर्च रुपया, तिरस्कार और कष्ट तो तय भैया, कर लो जितनी होशियारी-चालाकी, चोर-भ्रष्ट की रूह सदा कांपेगी।। खोज है अगर सच्चे सुख-शांति की, तो अपने भीतर तनि निहारो, सत्पुरुषों के अमृत वचनों पर, थोड़ा गौर फरमा, जेहन में उतारो। क्यों कहा गया धर्मो रक्षति धर्मः, क्यों कहा गया सत्यमेव जयते, क्यों कहा गया मातृवत परदारेषु, क्यों कहा गया परद्रव लोष्टवत्, क्यों कही गयी बातें यम-नियम, प्रत्याहार, आत्मवत् सर्वभूतेषू की, क्यों कहा गया काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहं को द्वार नरक का, क्यों कहा गया संसार को दुम कुत्ते की, फूलों ढका सड़ा मुर्दा। क्यों कहा गया संसार घर दुःख का, समाधान शरणागति प्रभु की, क्यों विषाद प्रारम्भ योग का, दुःख दूत भक्त-वत्सल प्रभु का।। ध