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चरित्र निर्माण, कालजयी व्यक्तित्व का आधार

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"Character has to be established trough a thousand stumbles. Swami Vivekananda"  चरित्र, अर्थात्, काल के भाल पर व्यक्तित्व की अमिट छाप      चरित्र, सबसे मूल्यवान सम्पदा -    कहावत प्रसिद्ध है कि , यदि धन गया तो समझो कुछ भी नहीं गया, यदि स्वास्थ्य गया तो समझो कुछ गया और यदि चरित्र गया, तो समझो सब कुछ गया। निसंदेह चरित्र, व्यक्तित्व क ी सबसे मूल्यवान पूँजी है, जो जीवन की दशा दिशा- और नियति को तय करत ी है। व्यक्ति की सफलता कितनी टिकाऊ है, बाह्य पहचान के साथ आंतरिक शांति-सुकून भी मिल पा रहे हैं या नहीं, सब चरित्र निर्माण के आधार पर निर्धारित होते हैं। व्यवहार तो व्यक्तित्व का मुखौटा भर है, जो एक पहचान देता है, जिससे एक छवि बनती है, लेकिन यदि व्यक्ति का चरित्र दुर्बल है तो यह छवि, पहचान दूर तक नहीं बनीं रह सकती। प्रलोभन और विषमताओं के प्रहार के सामने व्यवहार की कलई उतरते देर नही लगती, असली चेहरा सामने आ जाता है। चरित्र निर्माण इस संकट से व्यक्ति को उबारता है, उसकी पहचान, छवि को   बनाए रखने में मदद करता है, सुख के साथ आनन्द का मार्ग प्रशस्त करता है।  

जीवन के अधूरेपन को पूर्णता देता अध्यात्म

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अध्यात्म क्या ? आजकल अध्यात्म का बाजार गर्म है। टीवी पर आध्यात्मिक चैनलों की बाढ़ सी आ गई है। रोज मार्केट में अध्यात्म पर एक नई पुस्तक आ जाती है। न्यू मीडिया अध्यात्म से अटा पड़ा है। लेकिन अध्यात्म को लेकर जनमानस में भ्रम-भ्राँतियों का कुहासा भी कम नहीं है। इस ब्लॉग पोस्ट में अध्यात्म तत्व के उस पक्ष पर प्रकाश डालने का एक बिनम्र प्रयास किया जा रहा है, जिससे कि हमारा रोज वास्ता पड़ता रहता है।       शाब्दिक रुप में अध्यात्म, अधि और आत्मनः शब्दों से जुड़ कर बना है। जिसका अर्थ है - आत्मा का अध्ययन और इसका अनावरण। मन एवं व्यक्तित्व का अध्ययन तो आधुनिक मनोविज्ञान भी करता है, लेकिन इसकी अपनी सीमाएँ हैं। इसके अंतर्गत अपना वजूद देह मन की जटिल संरचना और समाज-पर्यावरण के साथ इसकी अंतर्क्रिया से उपजे व्यक्तित्व तक सीमित है। इस सीमा के पार अध्यात्म अपने परामनोवैज्ञानिक एवं पारलौकिक स्वरुप के साथ व्यक्तित्व का समग्र अध्ययन करता है। इसीलिए अध्यात्म को उच्चस्तरीय मनोविज्ञान भी कहा गया है। देह मन के साथ यह व्यक्तित्व के उस सार तत्व से भी वास्ता रखता है, जिसे यह इनका आदिकारण मानता है औ