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समग्र स्वास्थ्य और मीडिया

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एक जागरुक मीडिया उपभोक्ता की भूमिका स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव - आज सिर्फ स्वास्थ्य के बारे में चर्चा पर्याप्त नहीं। समग्र स्वास्थ्य पर विचार आवश्यक हो गया है। क्योंकि हमारे समाज व देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव दिखता है। जब कोई बिमार पड़ता है , दैनिक जीवन पंगु हो जाता है , कामकाज पेरेलाइज हो जाता है , तब हम किसी डॉक्टर की शरण में जाते हैं। दवा-दारू लेकर ठीक हो जाते हैं और जिंदगी फिर पुराने ढर्रे पर लुढकने लगती है। अपने स्तर पर स्वास्थ्य के लिए प्रायः हम सचेष्ट नहीं पाए जाते। स्वास्थ्य के प्रति पुरखों की गहरी समझ और समग्र सोच – जबकि स्वास्थ्य के प्रति हमारे पुर्वजों की सोच बहुत गहरी और समग्र रही है। स्वस्थ्य की चर्चा में शरीर , मन और आत्मा हर स्तर पर विचार किया गया है। शरीर को जहाँ समस्त धर्म का आधार वताया गया (शरीरं खलु धर्म साधनम्) वहीं रोग के कारण के रुप में धी , धृति और स्मृति के भ्रंषक अधर्म आचरण को पाया गया। इसके साथ स्थूल स्तर पर वात-पित-कफ त्रिदोष का असंतुलन और मानसिक स्तर पर तम और रज गुणों की प्रधानता को पाया गया। तथा इसी के अनुरु