खरी खरी सुनाना बहुत सरल, क्या खरी सुनने को भी हैं तैयार
कौन शूरमा, झेले इसके तल्ख वार खरी-खरी सुनाने की बातें हो गई बहुत, अब हमारी भी खरी सुनलो इक बार, खरी सुनाने की आदत नहीं बैसे हमारी, लेकिन कुछ सुनाने को है मन इस बार। खरी खरी सुनाना बहुत सरल है दोस्त, क्या खरी सुनने को भी हो तैयार, सच की आंच झुलसाने वाली दाहक, कौन शूरमा, झेले इसके तल्ख वार। अगर अपने कड़ुवे सच को नहीं झेल सकते, फिर वह खरी-खरी, कुछ नहीं, पिटे अहंकार की विषैली फुफ्कार। सहने की शक्ति बढ़ाओ दोस्त, वाणी का संयम , व्यवहार की सहिष्णुता, हैं आत्मानुशासन, योग के पहले आधार। अगर, ऐसा कर सके, तो हर अग्नि परीक्षा में, निकलोगे कुंदन बनकर, निखरकर, नहीं तो झुलसोगे, हो जाओगे हर वार तार-तार।