गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

आदर्शों का यह पथ आत्म-बलिदानी



श्रद्धा की तासीर रूहानी

श्रद्धा एक चीज अनमोल, जिसकी तासीर रुहानी,
यह कभी माँगी न जाए, आदशों की सहज दीवानी,
श्रद्धा गहन अंतराल में प्रवाहित एक झरना,
आदर्शों की खातिर जूझना, जीना-मरना।

श्रद्धा न बिके बाजारों में, मंच-गली-चौबारों में,
सबकुछ खोकर सबकुछ पाने का हुनर यह,
खिले यह बलिदानी गलियारों में,
कुर्बान होते जहाँ अपने गुमनाम अँधियारों में।


श्रद्धा पलती खेत खलिहानों में,
तपे जहाँ जीवन मौसम सर्द अंगारों में।
श्रद्धा बरसती नींव के हर उस पत्थर पर,
जो पल-पल मिट रहा ईष्ट के ईशारों पर।

कबसे सुनता आया हूँ जमाने की ये बातें,
व्यवहारिक बनों, आदर्शों से पेट नहीं भरता,
सच है कि आदर्शों से परिवार नहीं पलता।

लेकिन, सोचो, क्या हम यह खुली सांस ले पाते,
अगर भगत सिंह, बिस्मिल, आजाद, सुभाष न होते।
आती क्या विदेशी हुकूमत को उखाड़ने वाली आँधी,

अगर न होते साथ आदर्शों के मूर्ति फकीर गाँधी।


सोचो अगर रामकृष्ण, महर्षि अरविंद-रमण न होते,
क्या इस कलयुग में सतयुगी प्रसून खिलते।
सोचो अगर स्वामी विवेकानन्द न होते,
क्या इतने दिए श्रद्धा-आदर्शों के जलते।
सोचो अगर युगऋषि आचार्य श्रीराम न होते,
क्या ऋषियों के सूत्र गृहस्थ में ग्राह्य बनते।


सारा इतिहास रोशन, इन्हीं संतों, सुधारकों, शहीदों की कहानी,
तभी इस माटी में दम कुछ ऐसा, जो हस्ती मिटती नहीं हमारी।

नहीं यह महज महापुरुषों, नायकों की कथा-व्यानी,
यह हर इंसान, नेक रुह की संघर्ष कहानी,
अंतर में जहाँ टिमटिमा रहा दीया श्रद्धा का,
आदर्शों की कसौटी पे कस रही रुह दीवानी,
श्रम-सेवा, संयम-त्याग का ले खाद पानी,
धधक रहा जहाँ जज्बा आत्म-बलिदानी।
आदर्शों की खातिर जीने-मरने की यह कहानी।







मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

ध्येय निष्ठा


मंजिल की ओर बढ़ती रुत दीवानी

कौन पूर्ण यहाँ, हर इंसान अधूरा,
लेकिन, पूर्णता की ओर बढ़ने की चाहत,
भीड़ से अलग कर देती है एक इंसान को।
अपने ध्येय के प्रति समर्पित,
लेजर बीम की तरह लक्ष्य केंद्रित,
एक विरल चमक देती है यह निष्ठा एक इंसान को।

उससे भी आगे,
हर प्रहार, हर चुनौती, हर मंजर के बीच भी,
मोर्चे पर खड़ा, अपने कर्तव्य पर अडिग-अविचल,
मिशन को सफल बनाने में तत्पर,
मोर्चे का चैतन्यतम घटक, प्रहरि सजग,
अभियान को मंजिल के करीब पहुँचा रहा हर ढग।

फिर, जमाने से दो कदम आगे की सोच,
बदलते जमाने की नब्ज भी रहा टटोल,
सबको आगे बढ़ने के लिए कर रहा प्रेरित-सचेत।
बिरल है यह कोटी तत्परता की, प्रेरक अतिभावन,
ऐसी सजग निष्ठा के संग हमने,
कई सफलतम् अभियानों को अंजाम होते देखा है।

नहीं यह महज किसी एक व्यक्ति की कहानी,
यह हर विजयी मुस्कान, सफल समाज की जुबानी,
तमाम मानवीय दुर्बलताओं, मजबूरियों के बीच,
हर कसौटी पर कसते, मंजिल की ओर बढ़ रही रुत दीवानी,
मानवीय नहीं, अतिमानवीय प्राण झरते हैं फिर वहाँ,

हवा के रुख को बदलने के होते हैं चमत्कार यहाँ।


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