मृत्यु का अटल सत्य और उभरता जीवन दर्शन
जीवन की महायात्रा और ये धरती एक सराय मृत्यु इस जीवन की सबसे बड़ी पहेली है और साथ ही सबसे बड़ा भय भी, चाहे वह अपनी हो या अपने किसी नजदीकी रिश्ते, सम्बन्धी या आत्मीय परिजन की। ऐसा क्यों है, इसके कई कारण हैं। जिसमें प्रमुख है स्वयं को देह तक सीमित मानना, जिस कारण अपनी देह के नाश व इससे जुड़ी पीड़ा की कल्पना से व्यक्ति भयाक्रांत रहता है। फिर अपने निकट सम्बन्धियों, रिश्तों-नातों, मित्रों के बिछुड़ने व खोने की वेदना-पीड़ा, जिनको हम अपने जीवन का आधार बनाए होते हैं व जिनके बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते। और तीसरा सांसारिक इच्छाएं-कामनाएं-वासनाएं-महत्वाकांक्षाएं, जिनके लिए हम दिन-रात को एक कर अपने ख्वावों का महल खड़ा कर रहे होते हैं, जैसे कि हमें इसी धरती पर हर-हमेशा के लिए रहना है और यही हमारा स्थायी घर है। लेकिन मृत्यु का नाम सुनते ही, इसकी आहट मिलते ही, इसका साक्षात्कार होते हैं, ये तीनों तार, बुने हुए सपने, अरमानों के महल ताश के पत्तों की ढेरी की भाँति पल भर में धड़ाशयी होते दिखते हैं, एक ही झटके में इन पर बिजली गिरने की दुर्घटना का विल्पवी मंजर सामने आ खडा होता है। एक ही पल मे