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जुलाई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बस एक ही खासियत देखता हूँ इस अंधियारे में

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हिम्मत नहीं हारा हूँ अभी लिए अंतिम विजय की आश, खुद पर अटल विश्वास एक ईमानदार कोशिश करता हूँ रोज खुद को गढ़ने की,  लेकिन अभी, आदर्श से कितना दूर, अज्ञात से कितना मजबूर। लोग कहते हैं कि सफल इंसान हूं अपनी धुन का,  दे चुका हूँ कई सफल अभियानों को अंजाम,  सफलता की बुलंदियों पर खुशियों के शिखर देखे हैं कितने , लगा जब मुट्ठी में सारा जहाँ। फिर सफर ढलुआ उतराई का, सफलता से दूर, गुमनामी की खाई, सफलता का शिखर छूटता रहा पीछे, मिली संग जब असफलता की परछाई, मुट्ठी से रेत सा फिसलता समय, हाथ में जैसे झोली खाली, ठगा सा निशब्द देखता हूँ सफलता-असफलता की यह आँख-मिचौली। ऐसे में, सरक रही, जीवन की गाड़ी पूर्ण विराम की ओर, दिखता है, लौकिक जीवन का अवसान जिसका अंतिम छोर, सुना यह एक पड़ाव शाश्वत जीवन का, बाद इसके महायात्रा का नया दौर, क्षण-भंगुर जीवन का यह बोध, देता कुछ पल हाथ में शाश्वत जीवन की ढोर। जीवन की इस ढलती शाम में, माना मंजिल, अभी आदर्श से दूर, बहुत दूर, एक असफल इंसान महसूस करता हूँ खुद को, आदर्श के आयने में, आदर्श से अभी कितना दूर, अज्ञात से कितना मज

फिल्म समीक्षा - बाहुबली, द बिगनिंग - विश्व सिनेमा की ओर भारतीय सिनेमा के बढ़ते कदम

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फिल्म माध्यम की कालजयी सत्ता का अहसास कराता अभिनव प्रयोग फिल्म बाहुवली ने व्यापत घोटालों के गमगीन माहौल के बीच रोमांच की एक ताजी ब्यार बहा दी है, जिसको लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। महज दो दिन में 100 करोड़ का आंकडा पार करने बाली यह फिल्म भारत में एक-एक कर सारे रिकोर्ड तोड़ रही है और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर 9.5 आईएमडीबी रेटिंग के साथ भारतीय सिनेमा की सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही है। आश्चर्य नहीं कि क्रिटिक्स भी इसकी तारीफ करते दिख रहे हैं।  जब मीडिया में इसकी चर्चा सुनी और इसका ट्रेलर देखा तो समझ में आ गया था कि थियेटर में जाकर ही देखना बेहतर होगा, लेप्टॉप या कम्पयूटर पर इसके साथ न्याय न हो सकेगा। फिल्म को लेकर अपने युवा मित्रों के साथ चाय पर चर्चा हो ही रही थी कि निर्णय हो गया कि शुभ कार्य में देर कैसी। बुकिंग हो गयी और दीवानों का टोला 10-15 किमी का सफर तय करता हुआ पेंटागन मल्टीप्लेक्स जा पहुंचा। हरिद्वार में रहते हुए यहांँ पर यह अपना पहला फिल्मी वाचन था। फिल्म देखकर लगा अपना निर्णय सही था और फिल्म अपनी चुनींदा चिर प्रेरक फिल्मों में शुमार हो गयी। फिल्म रहस्य-रोमांच,

यात्रा वृतांत - मेरी यादों का शिमला और पहला सफर वरसाती, भाग-2(अंतिम)

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घाटी की इस गहराई में, इतने एकांत में भी युनिवर्सिटी हो सकती है, सोच से परे था। मुख्य सड़क से कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि शहर के बीहड़ कौने में प्रकृति की गोद में ऐसा प्रयोग चल रहा हो। लेकिन यही तो मानवीय कल्पना, इच्छा शक्ति और सृजन के चमत्कार हैं। लगा इंसान सही ढंग से कुछ ठान ले, तो वह कोई भी कल्पना साकार कर सकता है, मनमाफिक सृष्टि की रचना कर सकता है। यहाँ इसी सच का गहराई से अनुभव हो रहा था। कुछ ही मिनटों में हम कैंपस में थे। राह में विचारकों, शिक्षाविदों, महापुरुषों के प्रेरक वक्तव्य निश्चित ही एक विद्या मंदिर में प्रवेश का अहसास दिला रहे थे। प्रकृति की गोद में बसे परिसर में, नेचर नर्चरिंग द यंग माइंड्ज, की उक्ति चरितार्थ दिख रही थी। चारों और पहाडियों से घिरे इस परिसर में उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर सामने पहाड़ी पर तारा देवी शक्तिपीठ प्रत्यक्ष हैं। आसमां पूरी तरह से बादलों से ढ़का हुआ था, मौसम विभाग की सूचना के अनुसार भारी बारिश के आसार थे। सम्भवतः हमारा गुह्य मकसद पूरा होने वाला था। गेस्ट हाउस में फ्रेश होकर, स्नान-ध्यान के बाद विभाग एवं विश्वविद्यालय के अकादमिक विशे