संदेश

मार्च, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यात्रा वृतांत – अमृतसर सफर की कुछ यादें रुहानी, भाग-2

चित्र
राधा स्वामी सत्संग डेरा ब्यास अंतिम दिन दो विकल्प थे – वाघा बोर्डर और डेरा व्यास। ट्रेन शाम को थी। अभी कुछ घंटे थे। विकल्प डेरा व्यास को चुना। इसके वारे में भी बहुत कुछ सुना रखा था। बस स्टैंड से सीधा बस व्यास के लिए मिल चुकी थी। 40 किमी यहां से। रास्ते में हरे भरे खेतों व कुछ गांव कस्वों को पार करती हुई बस हमें मुख्य मार्ग में छोड़ चुकी थी। यहाँ से कुछ दूरी पर व्यास रेल्बे स्टेशन तक पैदल पहुँचे। स्टेशन पर सेमल का वृहद वृक्ष इतिहास की गवाही दे रहा था। स्टेशन के पुल को पार करते ही हम उस पार बस स्टेंड पर थे। कुछ ही मिनट में बस आ चुकी थी। बस कुछ देर में खुलने बाली थी। इस दौरान स्टेशन की हरियाली, स्वच्छता और शांति को अनुभव करते रहे। इतना साफ स्टेशन पहली बार देख रहे थे। बस के गेट खुल चुके थे। हम पीछे कंडक्टर के पास ही बैठ गए। कंडक्टर डेरे का ही सेवादार था। सवारियों का भावपूर्ण बिठाते हुए, इनके मुख से कुछ सतसंग के स्वर भी फूट रहे थे। जिनमें दो बातें हमें महत्वपूर्ण लगीं, बिन गुरु जीवन का वेड़ा पार नहीं हो सकता और बिन बुलाए कोई यहाँ आ नहीं सकता। बस भरते ही चल पड़ी। रास्ते में

यात्रा वृतांत – अमृतसर सफर की कुछ यादें रुहानी, भाग-1

चित्र
स्वर्ण मंदिर अमृतसर के दिव्य परिसर में   यह हमारी दिन के उजाले में अमृतसर की पहली यात्रा थी। सामुदायिक रेडियो की कार्यशाला के उद्देश्य से अमृतसर जाने का संयोग बना था । कार्यशाला के व्यस्त शेड्यूल के बीच अधिक घूमने की गुंजाइश न थी। सो तीन दिवसीय कार्यशाला में फुर्सत के पलों में दूसरे दिन स्वर्ण मंदिर जाने का सुयोग बना और अंतिम दिन विदाई समारोह के बाद, ट्रेन की वापसी के बीच के समय में डेरा व्यास । दोनों यात्राएं एक वेजोड़ रुहानी अनुभव के रुप में स्मृति पटल पर अंकित रहेंगी। 11 मार्च को ही सुबह हम दून-अमृतसर एक्सप्रेस से 800 बजे अमृतसर पहुंच चुके थे। रास्ते में ही सुबह हो चुकी थी। सो बर्थ से उ तरते ही बाहर ट्रेन के दोनों ओर हरे भरे गैंहूं से लहलहाते खेत हमारा स्वागत कर रहे थे, जिनका हरियाली भरा नजारा आंखों को शीतलता और मन को ठंडक दे रहा था। रास्ते में फलों के बगीचे भी दिख रहे थे, संभवतः फूलों को देखकर नाशपाती, बागुकोषा के लग रहे थे और कहीं कहीं आम के। लेकिन बहुतायत में गैंहूं के खेत ही मिले। अमृतसर शहर के बाहर ट्रेन किसी पुल के नीचे काफी देर खड़ी रही। संभवतः हम शहर मे

जेएनयू प्रकरण – एक आम भारतीय शिक्षक के जेहन को कचोटते सवाल

चित्र
जेएनयू के बारे में अधिक नहीं जानता था, न ही, वाम विचारधारा की गहराइयों को । लेकिन जब से 9 फरवरी को देश के प्रतिष्ठित शिक्षा केंद्र में देशद्रोही नारों का विस्फोट देखा, प्रकरण की नित नयी परतें सामने उधड़ती गईं ं। यह विचारधारा युवा विद्यार्थियों की सोच में देश की बर्वादी का जहर भी घोल सकती है, समझ से परे था । गरीब-शोषितों की समता-एकता की आबाज के रुप में तो इसके स्वरुप को जानता था, लेकिन देश को खंडित करने वाली इसकी खतरनाक सोच से परिचित न था। घटना के बाद नित्य एक विद्यार्थी की भांति रोज घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हूँ, देश-समाज व जीवन को संवेदित-आंदोलित करते इस घटनाक्रम के प्रकाश में किसी सार्थक समाधान तक ले जाते निष्कर् ष की खोज में । नित्य अपने पत्रकारिता विभाग में 12-14 हिंदी-अंग्रेजी के अखवारों पर एक नजर डालने का मौका मिलता है, हर दिन की घटनाओं से टीवी पर रुबरु होता हूँ, जो रह जाती हैं, वे सो शल मीडिया पर वायरल होते वीडियोज व शेयर से आ जाती हैं। सारा मंजर, सारा हंगामा, सारा खेल-तमाशा मूक दर्शक बन कर देखता रहा हूँ प्रकरण को पूरी तरह से समझने की कोशिश में कि ये देश में हो क्या