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बाल विकास

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अभिभावक समझें अपनी जिम्मेदारी परिवार व्यक्ति एवं समाज को जोड़ने वाली सबसे महत्वपूर्ण कडी है। शिशु के निर्माण की यह प्राथमिक ईकाई है। इसी के साय में शिशु का निर्माण होता है , यह उसकी पहली पाठशाला है।   माँ-वाप एवं अभिभावक की छत्रछाया में शिशु का लालन-पालन होता है। शिशु के भावनात्मक विकास की नींव अधिकांशतः इस दौरान पड़ जाती है, जो जीवनपर्यन्त उसके व्यक्तित्व का एक अहं हिस्सा बनकर उसके साथ रहती है। इस प्रकार घर-परिवार का वातावरण बहुत अहम है। शिशु का विकास सही दिशा में हो इसके लिए आवश्यक है कि घर का वातावरण ठीक हो। जैसे कोई भी फसल सही वातावरण में ही पूरा विकास पाती है, और प्रतिकूल आवो-हवा में मुरझा जाती है। बैसे ही शिशु मन, अंकुर सा पनपता एक नन्हें पौध जैसा होता है, जिसको अपने सही विकास के लिए उचित वातावरण एवं खाद-पानी की जरुरत होती है, जिसकी व्यवस्था करना अभिभावकों का पावन कर्तव्य है। शिशु मन मिट्टी के लौंदे की तरह कोमल, सुकुमार होता है, जिसे आप मनचाहा रुप दे सकते हैं। लेकिन उस बीज की अपनी एक प्रकृति भी होती है, उसका अपना मौलिक स्वरुप एवं विशेषता भी होती ह