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पुस्तक समीक्षा, हिमालय की वादियों में

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  यायावरी का तिलिस्म प्रो. शंकर शरण, राष्ट्रीय अध्येता, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS), शिमला, हिं.प्र.   मात्र पचास - साठ वर्ष पहले तक यात्रा और भ्रमण साहित्य अच्छे प्रकाशन संस्थानों का एक विशिष्ट भाग होता था। न केवल बनारसी दास चतुर्वेदी , राहुल सांकृत्यायन , और कवि अज्ञेय जैसे ख्यातनाम , अपितु सामान्य व्यक्तियों द्वारा लिखे यात्रा - वृत्तांत भी प्रकाशक सहर्ष छापते थे । यहाँ तक कि बड़े लोग उस की भूमिकाएँ तक लिखते थे। कदाचित कारण यही रहा हो कि तब यात्राएँ उतनी सुलभ और प्रचलित नहीं थीं। इसलिए जो लोग यात्राएँ और भ्रमण करते थे , उनके विवरणों से सहृदय पाठक उसका घर बैठे आनंद , कल्पना और जानकारी प्राप्त कर लियाकरते थे। अब यातायात, संचार और पर्यटन उद्योग का ही भारी विस्तार हो चुका है। संभवतः इसीलिए अब इस विधा का महत्त्व कम हो गया   इसीलिए प्रो . सुखनन्दन सिंह जैसे जन्मजात घुमक्कड के प्रथम यात्रा वृत्तांत को जितना महत्त्व मिलना चाहिए था , वह नहीं मिला है। वह देव