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मई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वो पल दो-चार

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मई माह में बाद दोपहरी की शीतल वयार , सूरज अस्ताचल की ओर बढ़ रहा , झुरमुट के आंचल में बैठा चाय का कर रहा था इंतजार , गगनचुम्बी देवतरु के सान्निध्य में बैठा विचारमग्न , घाटी की गहराईयों से चल रहा था कुछ मूक संवाद , बाँज-बुराँश के हिलते पत्ते झूम रहे थे अपनी मस्ती में , आकाश में घाटी के विस्तार को नापती बाज़ पक्षियों की उड़ान , वृक्षों पर वानरसेना की उछलकूद , घाटी से गूंजता पक्षियों का कलरव गान , मन में उमड़-घुमड़ रही थी संकल्प-विकल्प की बदलियाँ , चिदाकाश पर मंडरा रहे थे अवसाद के अवारा बादल दो-चार , विदाई के नजदीक आते दिनों के लिए , कर रहा था मन को तैयार। लो आ गई प्रतीक्षित प्याली गर्म चाय की , चुस्की के साथ छंटने लगी आकाश में छाई काली बदलियाँ , अड़िग हिमालय सा ध्यानस्थ हो चला गहन अंतराल , थमने लगी चित्त की चंचल लहरें , शांत हो चली प्राणों की हलचल , मन का ज्वार , भूत भविष्य के पार स्मृति कौंध उठी अंतर में कुछ ऐसे , वर्तमान में चैतन्य हो चला अंतस तब जैसे , नई ताज़गी , नई स्फुर्ति का हो चला संचार , बढ़ चले कदम

नीलकंठ महादेव – श्रद्धा और रोमाँच का अनूठा संगम

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- नीलकंठ महादेव मंदिर , ऋषिकेश हरिद्वार के समीप, ऋषिकेश क्षेत्र का भगवान शिव से जुड़ा सबसे प्रमुख तीर्थ स्थल। स्थल का पुरातन महत्व, प्राकृतिक सौंदर्य और मार्ग की एकांतिकता, यात्रा को श्रद्धा और रोमाँच का अद्भुत संगम बना देती है, जिसका अपना आध्यात्मिक महत्व है। पुरातन पृष्ठभूमि – पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन के बाद कालकूट विष को कण्ठ में धारण किया तो वे नीलकंठ कहलाए। विष की उष्णता के शमन हेतु, शिव इस स्थल पर हजारों वर्ष समाधिस्थ रहे। उन्हीं के नाम से इसका नाम नीलकंठ तीर्थ पड़ा। भौगोलिक स्थिति – यह स्थान समुद्र तल से 5500 फीट(1300 मीटर) की ऊँचाई पर स्थित है और गढ़वाल हिमालय की ब्रह्मकूट, विष्णुकूट और मणिकूट पर्वत श्रृंखलाओँ के बीच पंकजा और मधुमति नदियों के संगम पर बसा है। मंदिर – मंदिर सुंदर नक्काशियों से सजा है, जिसमें समुद्र मंथन का दृश्य अंकित है। मंदिर में दक्षिण भारत का वास्तुशिल्प स्पष्ट है। मंदिर परिसर में शिवलिंग के साथ अखंड धुना भी विद्यमान है, जो अनादि काल से अनगिन सिद्ध-संतों की साधना का साक्षी रहा है। पीपल का अति विशाल एवं वृहद वृक्ष स्थ

छेड़ चला मैं तान झिंगुरी

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ब्लॉग सृजन प्रेरणा      कितनी बा र आया मन में , मैं भी एक ब्लॉग बनाउं , दिल की बातें शेयर कर , अपनी कुलबुलाहट जग को सुनाउं। लेकिन हर बार संशय, प्रमाद ने घेरा, कभी हीनता, संकोच ने हाथ फेरा, छाया रहा जड़ता का सघन अंधेरा , लंबी रात बाद आया सृजन सवेरा। ढलती शाम थी, वह वन प्रांतर की, सुनसान जंगल में था रैन बसेरा, रात के सन्नाटे को चीरती, गुंज रही थी तान झिंगुरी , बनी  यही तान मेरी ब्लॉग प्रेरणा, जब झींगुर मुझसे कुछ यूँ बोला। क्या फर्क पड़ता है तान, बेसुरी है या सुरमय मेरी , प्रकृति की गोद में रहता हूँ अलमस्त , गाता हूँ जीवन के तराने , दिल खोलकर सुनाता हूं गीत जीवन के , हैं हम अपनी धुन के दीवाने। तुम इसे झींगुरी तान कहो या संगीत या फिर, एक प्राणी का अलाप-प्रलाप या कुछ और, लेकिन मेरे दिल की आवाज़ है यह, अनुभूतियों से सजा अपना साज़ है यह, और शायद अकेले राहगीरों का साथ है यह। नहीं समझ आ रहा हो तो , निकल पड़ना कभी पथिक बनकर, निर्जन बन में शिखर की ओर अकेले , कचोटते सूनेपन में राह का साथ बनूंगा , सुनसान अंधेरी रात में