हे प्रभु कैसी ये तेरी लीला-माया, कैसा ये तेरा विचित्र विधान
जीवन – मृत्यु का शाश्वत चक्र, वियोग विछोह और गहन संताप हे प्रभु कैसी ये तेरी लीला-माया, कैसा ये तेरा विचित्र विधान, प्रश्नों के अंबार हैं जेहन में, कितनों के उत्तर हैं शेष, लेकिन मिलकर रहेगा समाधान, है ये पूर्ण विश्वास ।0 आज कोई बिलखता हुआ छोड़ गया हमें , लेकिन इसमें उसका क्या दोष , उसे भी तो नहीं था इसका अंदेशा , कुछ समझ नहीं आया प्रभु तेरा ये खेल । 1 ऐसे ही हम भी तो छोड़ गए होंगे बिलखता कभी किन्हीं को , आज हमें कुछ भी याद तक नहीं , नया अध्याय जी रहे जीवन का अपनों के संग , पिछले बिछुड़े हुए अपनों का कोई भान तक नहीं ।2 ऐसे में कितना विचित्र ये चक्र सृष्टि का , जीवन का , कहीं जन्म हो रहा , घर हो रहे आबाद , तो कहीं मरण के साथ , बसे घरोंदे हो रहे बर्वाद , कहना मुश्किल इच्छा प्रभु तेरी , लीला तेरी तू ही जाने ।3 ऐसे में क्या अर्थ है इस जीवन का , जिसमें चाहते हुए भी सदा किसी का साथ नहीं , बिछुड़ गए जो एक बार इस धरा से , उन्हें भी तो आगे-पीछे का कुछ अधिक भान नहीं ।4 कौन कहाँ गया , अब किस अवस्था में , काश कोई बतला देता , दिखला