प्रगति मैदान विश्व पुस्तक मेला 2016

पुस्तक प्रेमियों का महाकुम्भ इस बार भी दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में जाने का सुयोग बना। संभवतः 1995 में शुरु पुस्तक मेला यात्रा का यह पूर्णाहुति पड़ाव था। अब आगे से संस्था की तरफ से शायद ही दुबारा पुस्तक मेले में जा पाऊँ। ब्रह्मवर्चस पुस्तकालय से जुड़ा होने के कारण 1995 से लगभग अधिकांश पुस्तक मेले में आने का क्रम बनता रहा, सो इस बार के पुस्तक कुम्भ में एक तुलनात्मक अध्ययन स्वतः ही चलता रहा। मेले के अपने कुछ नए अनुभवों के साथ यह ब्लॉग पोस्ट सुधी पाठकों की जानकारी हेतु शेयर कर रहा हूँ। 1. सिकुड़ता पुस्तक मेले का स्पेस – इस बार हॉल नं.1,2,3,4 तो खाली ही मिले। हॉल 6 और 18 नम्बर भी ग्राउंड फ्लोर तक सीमटे मिले। कारण शायद एक तो पुस्तकों का डिजिटलाइजेशन और इनकी ऑनलाई उपलब्धता को मान सकते हैं। पढ़ने का क्रेज कम हुआ, यह कहना मुश्किल है, क्योंकि पाठकों की भीड़ मेले में कम नहीं थी। 2. अंग्रेजी बनाम् हिंदी प्रकाशक – दोनों के केरेक्टर में मौलिक अंतर स्पष्ट दिखता है। अपनी भव्यता. स्पेस और वैभव में अंग्रेजी स्टॉल कुल मिलाकर हिंदी पर