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नवरात्रि साधना का व्यवहारिक तत्वदर्शन

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नवरात्रि साधना का राजमार्ग   नवदुर्गा   आजकल नवरात्रि का पर्व अपने पूरे जोरों पर है, आज इसका पांचवाँ दिन है, जो सकन्द माता के लिए समर्पित है। पहले दिन शैलपुत्री के रुप में साधक का संकल्प, ब्रह्मचर्य के तप में तपते हुए (ब्रह्मचारिणी), माँ चंद्रघंटा के दिव्य संदेशों को धारण करते हुए, माँ कुष्माण्डा से इस पिण्ड में व्रह्माण्ड की अनुभूति का वरदान पाते हुए आज बाल यौद्धा के रुप में माँ की गोद में जन्म लेता है। जो क्रमशः भवानी तलवार को धारण करते हुए (माँ कात्यायनी), सकल आंतरिक-बाहरी असुरता का संहार करते हुए (माँ कालरात्रि) एक महान रुपाँतरण (माँ गौरी) के बाद   अंतिम दिन सिद्धि (माँ सिद्धिदात्रि) को प्राप्त होता है। यह नवरात्रि वर्ष में दो वार ऋतु संधि की वेला में आती है, जिसका विशिष्ट महत्व रहता है। यह तन-मन में ऋतु बदलाव के साथ होने वाले परिवर्तनों के साथ सूक्ष्म लोक में उमड़ते-घुमड़ते दैवीय प्रवाह के साथ जुडने एवं लाभान्वित होने का विशिष्ट काल रहता है। ऋषियों ने इसके सूक्ष्म स्वरुप को समझते हुए इस काल को विशिष्ट साधना से मंडित किया। गायत्री परिवार में नैष्ठिक साधक चौबीस हजार का एक लघ

आस्था संकट एवं समाधान की राह

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  अध्यात्म शरणं गच्छामि आस्था जीवन की आध्यात्मिक संभावनाओं से उत्पन्न विश्वास का नाम है , जो अपने से श्रेष्ठ एवं विराट सत्ता से जुड़ने पर पैदा होता है। इसे अस्तित्व का गहनतम एवं उच्चतम आयाम कह सकते हैं , जहां से जीवन के स्थूल एवं सूक्ष्म आयाम निर्धारित , प्रभावित एवं प्रेरित होते हैं। जीवन का उत्कर्ष और विकास आस्था क्षेत्र के सतत सिंचन एवं पोषण से संभव होता है। यदि आस्था पक्ष सुदृढ़ हो तो व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का हंसते हुए सामना करता है , प्रतिकूल परिस्थितियों के साथ बखूबी निपट लेता है। सारी सृष्टि को ईश्वर की क्रीड़ा-भूमि मानते हुए वह एक खिलाड़ी की भांति विचरण करता है। लेकिन आस्था पक्ष दुर्बल हो , तो जीवन बोझिल हो जाता है , इसकी दिशाएं धूमिल हो जाती हैं , इसमें विसंगतियां शुरू हो जाती हैं और जीवन अंतहीन संकटों व समस्याओं से आक्रांत हो जाता है। आज हम आस्था संकट के ऐसे ही विषम दौर से गुजर रहे हैं , जहां एक ओर विज्ञान ने हमें चमत्कारी शक्तियों व सुख-सुविधाओं से लैस कर दिया है , वहीं दूसरी ओर हम अपनी आस्था के स्रोत से विलग हो चले हैं। ऐसे में जीवन का अर्थ भौतिक