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खेल जन्म-जन्मांतर का है ये प्यारे

  जब न मिले चित्त को शांति, सुकून, सहारा और समाधान जीवन में ऐसी परिस्थितियां आती हैं, ऐसी घटनाएं घटती हैं, ऐसी समस्याओं से जूझना पड़ता है, जिनका तात्कालिक कोई कारण समझ नहीं आता और न ही त्वरित कोई समाधान भी उपलब्ध हो पाता। ऐसे में जहाँ अपना अस्तित्व दूसरों के लिए प्रश्नों के घेरे में रहता है, वहीं स्वयं के लिए भी यह किसी पहेली से कम नहीं लगता। यदि आप भी कुछ ऐसे जीवन के अनुभवों से गुजर रहे हैं, या उलझे हुए हैं, तो मानकर चलें कि यह कोई बड़ी बात नहीं। यह इस धरती पर जीवन का एक सर्वप्रचलित स्वरुप है, माया के अधीन जगत का एक कड़ुआ सच है। वास्तव में येही प्रश्न, ये ही समस्याएं, येही बातें जीवन को ओर गहराई में उतरकर अनुसंधान के लिए प्रेरित करती हैं, समाधान के लिए विवश-वाधित करती हैं। उन्नीसवीं सदी के अंत तक व्यवहार में व्यक्तित्व की परिभाषा खोजने वाला आधुनिक मनोविज्ञान मन की पहेलियों के समाधान खोजते-खोजते फ्रायड महोदय के साथ  वीसवीं सदी के प्रारम्भ में   मनोविश्लेषण की विधा को जन्म देता है। फ्रायड की काम-केंद्रित व्याख्याओं से असंतुष्ट एडलर, जुंग जैसे शिष्य मनोविश्लेषण कि विधा में नया आयाम