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सोमवार, 25 मार्च 2024

सफल-सार्थक विद्यार्थी जीवन के व्यवहारिक सुत्र, भाग-3

 

नोट्स बनाने व अधिक अंक प्राप्त करने के सुत्र

पढ़ाई में नोट्स बनाने के सुत्र -  नोट्स की शुरुआत को क्लास से ही शुरु हो जाती है, जो शिक्षक द्वारा पढ़ाया गया, उसके मुख्य बिंदुओं (की-प्वाइंट्स) को शीर्षक, उप-शीर्षक के रुप में तथा साथ में दिए गए उदाहरणों, आंकड़ों व तथ्यों के रुप में नोट करते गए। यदि विद्यार्थी पहले से विषय पर पढ़ कर आए हों, कुछ होमवर्क करके आए हों, तो क्लास को समझना और आसान हो जाता है और नोट्स भी क्वालिटी के उतार सकते हो।

शाम को फिर लाइब्रेरी में या कमरे की किताबों या फिर इंटरनेट पर क्लास में पढ़ाए नोट्स को पुष्ट किया जा सकता है, पढ़ाई गई परिभाषाओं, तथ्यों, आंकड़ों, उदाहरणों को नए संदर्भों के साथ सजाया जा सकता है। अगले दिन प्रातः इनको रिवीजन करना और जो कुछ समझ नहीं आया है, शिक्षक से पूछकर अपने संशय को स्पष्ट किया जा सकता है।

साथ ही नित्य अखबार, पत्रिकाओं को पढ़ने के साथ या फिर इंटरनेट पर उपलब्ध स्रोतों से विषय के समसामयिक विकास से अपडेट रहते हुए नोट्स को अपडेट किया जा सकता है। यदि यह क्रम जारी रहता है, तो कुछ माह बाद परीक्षा में नवीनतम तथ्यों व आंकड़ों के साथ आपका उत्तर दूसरों से दो कदम आगे होगा व परीक्षक को निश्चित ही अधिक अंक देने के लिए प्रेरित करेगा।

नोट्स को आसानी से याद करने के लिए कुछ कार्ड में शीर्षकों, उप-शीर्षकों, तिथियों, सुत्रों, नाम, चार्ट व इंफोग्राफिक्स आदि को सजाया जा सकता है औऱ इन्हें पॉकेट में रखकर, जब चाहें रास्ते में चलते-फिरते, सफर के दौरान या कहीं भी खाली समय में खोल कर रिवाइज किया जा सकता है। मेमोरी बैंक के रुप में ये कार्ड आपके सच्चे हितैषी सावित होते हैं, जो परीक्षा की तैयारी को बहुत आसान बना देते हैं।

नित्य समय-सारिणी बनाकर पढ़ने की आदत डाली जाए, तो सभी विषय कवर हो जाते हैं, यदि कुछ रोज छूट भी जाते हों, तो उन्हें सप्ताह अंत में या छुट्टियों में कवर किया जा सकता है। एक सिंसीयर स्टुडेंट के लिए छुट्टियाँ मौज-मस्ती या मटरगस्ती का समय नहीं होतीं, बल्कि अपने छूटे कार्यों व असाइन्मेंट्स को पूरा करने का स्वर्णिम अवसर होती हैं, जिसे वे किसी भी हालात में जाया नहीं होने देते। और सही मायने में छुट्टियों का आनन्द लेते हैं।

इसका फल परीक्षा की तिथि घोषित होने पर होता है, जब लापरवाह विद्यार्थियों के हाथ-पैर फूल रहे होते हैं व तनाव के शिकार देखे जाते हैं, जबकि समझदार औऱ जिम्मेदार विद्यार्थी इन परीक्षा के लिए पहले से ही तैयार होते हैं और हंसत्-खेलता परीक्षा का साहस के साथ सामना करते हैं तथा शांत, स्थिर औ आत्म-विश्वासपूर्ण मनःस्थिति के साथ परीक्षा में बैठते हैं।

अच्छे अंक के लिए कॉपी लेखन के सुत्र -   

कहने की आवश्यकता नहीं कि परीक्षा हाल में परीक्षा से पहले अपने ईष्ट-भगवान का सुमरन, भाव निवेदन व प्रार्थना पहला स्वाभाविक कृत्य रहता है। प्रश्न पत्र आने पर सबसे पहले प्रश्नों को समझें, ऊपर दिए नोट्स में देखें कि कुल कितने प्रश्न उत्तरित करने हैं। कई बार प्रश्न पैटर्न बदलने पर छात्र-छात्राएं पुराने ही ढर्रे पर बिना नोट्स देखे उत्तर देना शुरु करते हैं और पूछे गई संख्या से कम या अधिक उत्तर दे बैठते हैं। इस कारण वे इस लापरवाही का फल भुगतने के लिए विवश होते हैं। ऐसे में परीक्षक चाहते हुए भी कुछ सहयोग नहीं कर सकते।

प्रश्न अति लघुउत्तरीय हैं या लघु उत्तरीय या दीर्घ उत्तरीय, उसी हिसाब से उत्तर दें। शब्दों की सीमा का भी ध्यान रखें। उसी हिसाब से उत्तर छोटा या बड़ा रखें। कुछ विद्यार्थी छोटे प्रश्नों को ही बड़ा प्रश्न मानकर उत्तर देना शुरु करते हैं, और बढ़े प्रश्न आने तक समय अभाव का शिकार होते हैं और आते हुए भी अधिक लिखने की स्थिति में नहीं होते। समय का यह प्रबन्धन परीक्षा में एक महत्वपूर्ण कारक रहता है, जिसे नजरंदाज करना भारी पड़ता है।

प्रश्नों के उत्तर की सिकुएंस को क्रमवार पूरा कर सकते हैं औऱ यदि रणनीति पहले सरल प्रश्नों को पूरा करने की हो, तो फिर उनके खण्ड व प्रश्न संख्या को स्पष्ट रुप से लिखें, अन्यथा परीक्षक को प्रश्नों का क्रम खोजने में समय बर्वाद होता है, क्योंकि उसके पास सीमित समय होता है और उस पर कई कॉपिंयों की जाँच का दबाव रहता है। अतः इग्जामिनर फ्रेंडली कॉपी कुछ अधिक अंक की हकदार बनती है।

इसी क्रम में जहाँ प्रश्न का उत्तर खत्म होता हो, वहीं अंत होने की लाईन या क्रास मार्क खेंचे व अगले प्रश्न को उचित खण्ड व प्रश्न संख्या के साथ शुरु करें। नया प्रश्न अगले पृष्ठ में भी शुरु किया जा सकता है। साथ ही उत्तर में हेडिंग व सव-हेडिंग्ज को स्केच पेन या अलग रंग से दर्शाएं, जिससे परीक्षक को उत्तर समझने में आसानी हो। बिना हेडिंग्ज के प्लेन पैरा में दिए गिए उत्तर से बदतर कॉपी दूसरी नहीं हो सकती और यदि हेंड राइटिंग भी अपठनीय हो तो फिर परीक्षक से अधिक अंक की आशा नहीं की जा सकती। अतः सुलेख बनाकर लिखने की आदत डालें।

प्रश्न में प्रारम्भ में भूमिका, अंत में निष्कर्ष तथा बीच में प्रश्न के अनुरुप भिन्न-भिन्न हेंडिग डालते हुए दीर्घ उत्तर को विस्तार से लिखा जा सकता है। प्रश्न में यदि परिभाषा, विभिन्न प्रकार, लाभ-हानि व सामयिक प्रासांगिकता आदि पूछे गए हों, तो उत्तर की बॉडी में इन हेडिंग्ज के साथ उत्तर स्पष्ट होने चाहिए। अतः प्रश्न को अच्छी तरह से पढ़ना आवश्यक है। मात्र याद किया हुआ उत्तर देने से अधिक अंक की आशा नहीं की जा सकती। प्रश्न के अनुरुप उपयुक्त उत्तर की क्रिएटिविटी ही अधिक अंक की हकदार होती है। यह तभी संभव होता जब विषय का कांसेप्ट क्लीयर होता है तथा उपरोक्त तरीके में बताए गए ढंग से नोट्स तैयार किए जाते हैं तथा विषय की समझ शिक्षक व सहपाठियों के साथ चर्चा करके विकसित की गई हो। मात्र रटकर दिए गए उत्तरों के भरोसे अधिक दूर तक एक सफल-सार्थक विद्यार्थी जीवन की आशा नहीं की जा सकती।

उत्तर में यथास्थान चार्ट, चित्र, इंफोग्राफिक्स आदि का उपयोग किया जा सकता है। महत्वपूर्ण तथ्यों, परिभाषाओं, संदर्भों, आंकड़ों आदि को अलग रंग से स्केच पेन से हाइलाइट किया जा सकता है, जिससे वे सहज ही परीक्षक की नजर से गुजर सकें। क्योंकि परीक्षक के पास कई कॉपियों को समय सीमा में चैक करने का दबाव रहता है, उससे उत्तर की हर लाइन पढ़ने की आशा नहीं की जा सकती, ऐसी आशा बेमानी ही होगी। अतः परीक्षक फ्रेंडली उत्तर देने का प्रयास करें।

कोई भी प्रश्न खाली न छोड़ें। यदि आपकी अधिकाँश कॉपी बेहतरीन ढंग से कवर हुई है, तो परीक्षक पर विद्यार्थी अपनी छाप छोड़ने में सफल होता है, ऐसे में वह भी उसे अधिकतम अंक देना चाहेगा, लेकिन यदि विद्यार्थी प्रश्न ही छोड़ देता है, तो परीक्षक कोई मदद नहीं कर सकता। अतः समय का प्रबन्धन ऐसा करें कि कोई भी प्रश्न न छूटे। यदि प्रश्न का सटीक उत्तर न भी आता हो तो भी अपनी कॉमन सेंस के आधार पर कुछ उत्तर देने का प्रय़ास करें और छात्रों के हितचिंतक सद्भावना अर्जित परीक्षक को कुछ ग्रेस मार्कस देने की गुंजाइश छोड़ें।

कॉपी पूरा होने पर एक बार रिवाइज अवश्य करें। कहीं कुछ चीजें छूट गई हों, तो इनको जोड़ा जा सकता है। छूटी गई हेडिंग, सव-हेडिंग्ज, मुख्य तथ्यों व आंकड़ों को हाइलाइट किया जा सकता है। औऱ यदि एस्ट्रा कॉपीज ली गईं हों तो ध्यान रखें कि सब धागे या स्टेप्लर से सहीं ढंग से नत्थी हो गई हैं अन्यथा छूटने पर भारी खामियाजा भुगतने की नौवत आ सकती है, जो जल्दवाजी व लापरवाही के चलते यदा-कदा होती रहती है।

कहने की आवश्यकता नहीं कि जिस भाषा में उत्तर दे रहे हैं, उसकी व्याकरण ठीक हो, शब्द सरल हों, वाक्य छोटे हों और छोटे-छोटे पैरा में उत्तर हों। यदि इन सर्वसामान्य अनुभूत सुत्रों का पालने करते हैं, तो परीक्षा में बेहतरीन अंकों की आशा कर सकते हैं। आने वाली परीक्षा के लिए इस हिसाब से तैयारी करें व इन सुत्रों के चमत्कारिक प्रभावों को स्वयं अनुभव करें।

यदि कोई प्रश्न हो तो आप कमेंट-बॉक्स में पूछ सकते हैं। कोई सुझाव हो तो उसे भी नीचे दे सकते हैं।  

 

 

 

रविवार, 24 मार्च 2024

एक सफल सार्थक विद्यार्थी जीवन के व्यवहारिक सुत्र-2

 

एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति बढ़ाने के व्यवहारिक सुत्र

एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति विद्यार्थी जीवन के आधारभूत घटक हैं। नए ज्ञान के अर्जन व इसे याद रखने के फलस्वरुप ही एक विद्यार्थी जीवन सफल होता है और सार्थकता की ओर बढ़ता है। और दोनों का आपस में अभिन्न सम्बन्ध है। यदि मन की एकाग्रता अच्छी है, तो विषय गहरे अंकित हो जाता है और उसको याद करना सरल हो जाता है।

और इन दोनों का सम्बन्ध रुचि से है। यदि हमारी किसी विषय में रुचि है तो मन सहज रुप से एकाग्र हो जाता है और उससे जुड़े तथ्य व आंकड़े आदि आसानी से याद हो जाते हैं। एक क्रिकेट प्रेमी विद्यार्थी अपने प्रिय खिलाड़ी के सारे रिकॉर्ड उंगली पर याद रखता है औऱ घंटों उसे खेलते हुए देख सकता है, कभी बोअर नहीं होता। लेकिन यदि उसे इतिहास की तिथियों को या गणित के सुत्रों को याद करने को कहें, तो उसे मुश्किल पड़ता है। कारण रुचि की अभाव रहता है।

अतः यहाँ अविभावकों और माता-पिता का भी कर्तव्य बनता है कि बच्चों पर अपनी रुचि, महत्वकाँक्षा को न थोंपें। उन्हें अपनी रुचि के अनुसार विषय को चुनने की आजादी दें। अपनी अधूरी इच्छाओं, कामनाओं, महत्वाकाँक्षाओं का बोझ बच्चों पर लादने पर वे विषय को तो ले लेते हैं, लेकिन आगे उनके लिए बोझ बनना शुरु हो जाता है। रुचि के अभाव में मन एकाग्र नहीं होता, कुछ समझ नहीं आता, कुछ याद नहीं रहता और एक बोझिल जीवन जीने के लिए अभिशप्त होते हैं। जो जीवन में बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है।

नई शिक्षा नीति में इस समस्या के निदान का प्रय़ास किया गया है, जहाँ बच्चे अपनी रुचि के अनुरुप विषयों का चयन कर सकते हैं। और यदि विद्यार्थी जीवन में वाइ चान्स भी किसी विषय में प्रवेश हो गया हो तो चिंता की जरुरत नहीं, चान्स से भी चुआइस को खोजा जा सकता है। हर विषय में इतनी शाखाएं रहती हैं कि विद्यार्थी थोड़ा बड़ों के मार्गदर्शन व थोड़ा होमवर्क करके अपनी रुचि का विषय खोज सकता है।

रुचि के साथ पढ़े गए विषय की जीवन में उपयोगिता को समझें। शिक्षकों का भी कर्तव्य बनता है कि उसका प्रेक्टिकल हिस्सा भी कराएं, ताकि टॉपिक बच्चों के मस्तिष्क में, समझ में गहरे अंकित हो जाए। और यदि किसी कारण विषय में रुचि न हो, तो उसके महत्व, उपयोगिता एवं लाभ को समझते हुए रुचि पैदा की जा सकती है।

एकाग्रता एवं स्मृति का मुख्य आधार रहता है शांत, स्थिर और प्रसन्न चित् की अवस्था। अतः ऐसे आहार, विहार, विचार एवं व्यवहार से बचें जो चित्त को अशाँत, उत्तेजित एवं दुःखी-उदास करते हों। कुल मिलाकर एक अनुशासित जीवन शैली को अपनाने की आवश्यकता रहती है। इस संदर्भ में मोबाइल से सावधान रहें, जिसका उपयोग अनुशासित न होने पर यह विद्यार्थी के अधिकाँश समय, ऊर्जा और एकाग्रता को भंग कर सकता है। अतः मोबाइल के उपयोग में अपने विवेक और इच्छा शक्ति का प्रयोग करें तथा इसकी माया को हावी न होने दें, जिससे नित्य निर्धारित लक्ष्य की स्मृति बनी रहेगी तथा मन भी एकाग्र रहेगा।

कहने की आवश्यकता नहीं कि आहार हल्का रखें, मिताहारी बनें। ठुस-ठुस कर खाने से बचें, ऐसे भोजन से बचें, जो तन-मन को उत्तेजित करता हो। ऐसे ही टॉक्सिक संग-साथ से दूर रहें, जो विचार व भावों को दूषित करते हों, मन के फोक्स को कमजोर करते हों। रात को समय पर बिस्तर पर जाएं, तभी सुबह समय पर उठ सकेंगे। और भरपूर नींद संभव होगी, जो स्मरण शक्ति व एकाग्रता का एक महत्वपूर्ण आधार रहती है। आधी अधूरी नींद में मन उचटा रहता है, एकाग्र नहीं हो पाता, यादाश्त भी बुरी तरह से प्रभावित होती है।

अपने विचारों को भी सकारात्मक बनाए रखें। इसके लिए श्रेष्ठ विचारों में रमण करें। प्रेरक साहित्य का स्वाध्याय करें। इसके साथ स्नान के बाद नित्य कुछ जप-ध्यान व पाठ आदि की न्यूनतन आध्यात्मिक व्यवस्था रखें। प्रातः स्वच्छ वायु में भ्रमण मस्तिष्क को सक्रिय करता है, उपरोक्त दोनों क्षमताओं को सशक्त करता है। इसके साथ रोज कुछ व्यायाम या खेल में भाग लें। आखिर स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन वास करता है।

अपने कार्य स्थल व टेवल को साफ-सुथरा व सुव्यवस्थित रखें। कमरे में पर्याप्त हवा, धूप आदि की व्यवस्था हो। काम करते समय टेवल खाली हो, जो कार्य करना हो, वही सामने रहे। वाकि कार्य क्षेत्र को अपनी रुचि के अनुरुप अनुकूल बनाया जा सकता है।

टाइम टेबल बनाकर पढ़ने से भी पढाई अधिक प्रभावी ढंग से संभव होती है और अधिकाँश विषय कवर हो जाते हैं और एक साथ कई काम करने के मल्टिटास्किंग की समस्या से भी बच जाते हैं, जिसके कारण एकाग्रता और स्मरण शक्ति दोनों प्रभावित होते हैं। निर्धारित समय के बाद कुछ मिनट का ब्रेक ले सकते हैं। बौद्धिक श्रम से थकने पर कुछ शारीरिक श्रम वाले काम निपटा सकते हैं। कमरे में या वाहर प्रकृति में घूम टहल सकते हैं। जल या कुछ हेल्दी ड्रिंक ले सकते हैं।

इसके साथ ब्राह्मी, शंखपुष्पी, बच जैसे मस्तिष्क को पुष्ट करने वाली जड़ी-बुटियों का सेवन किया जा सकता है, जो स्मरण शक्ति व एकाग्रता में सहायक होते हैं। अखरोट व वादाम की गिरियाँ भिगों कर लेने पर टॉनिक का काम करती हैं।

इन सर्वसामान्य सुत्रों का ध्यान रखते हुए, एकाग्र चित्त के साथ पढते हुए, विषय को ह्दयंगम कर सकते हैं, लम्बे समय तक याद रख सकते हैं और परीक्षा में अच्छे अंकों को सुनिश्चित करते हुए एक सफल-सार्थक विद्यार्थी जीवन जी सकते हैं।

मंगलवार, 31 मार्च 2015

विद्यार्थी जीवन का आदर्श




1. जिज्ञासा, ज्ञान पिपासा, एक सच्चे विद्यार्थी का परिचय, पहचान है। वह प्रश्न भरी निगाह से जमाने को देखता है, जीवन को समझने की कोशिश करता है, उसके जबाव खोजता है और अपने विषय में पारंगत बनता है। 

2. लक्ष्य केंद्रित, फोक्स – हमेशा लक्ष्य पर फोक्सड रहता है। अर्जुन की तरह मछली की आँख पर उसकी नजर रहती है। लक्ष्य भेदन किए बिन उसे कहाँ चैन- कहाँ विश्राम। 

3. अनुशासित – लक्ष्य स्पष्ट होने के कारण, उसकी प्राथमिकताएं बहुत कुछ स्पष्ट रहती हैं। आहार विहार, विश्राम, श्रम, नींद, अध्ययन, व्यवहार सबके लिए समय निर्धारित रहता है। एक संयमित एवं अनुशासित जीवन उसकी पहचान है। 

4. आज्ञाकारी – शिक्षकों का सम्मान करता है, उनकी आज्ञा का पालन करता है। विषय में गहन जानकार होने के बावजूद शिक्षक का ताउम्र सम्मान करता है। शिक्षक हमेशा उसके लिए शिक्षक रहता है।  

5. बिनम्र – अपने ज्ञान, विशेषज्ञता, प्रतिभा का अहंकार, घमण्ड उसे छू भी नहीं पाते हैं। ज्ञान के अथाह सागर के वीच वह खुद को एक अकिंचन सा अन्वेषक पाता है और परिपूर्ण ज्ञान के लिए सतत् सचेष्ट एवं प्रयत्नशील रहता है। 

6. सहकार-सहयोग – कमजोर सहपाठियों व जरुरतमंदो की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। लेकिन, साथ ही वह अपने विद्यार्थी धर्म को जानता है और व्यवहारिक गुणों को अपनाता हुआ अति सेवा जैसी भावुकता से दूर ही रहता है। 

7. अपडेट – वह क्लास रुम की पढ़ाई तक ही सीमित नहीं रहता, अपने विषय से जुड़े देश दुनियाँ भर के घटनाक्रमों से रुबरु रहता है और विषय की नवीनतम जानकारियों से अपडेट रहता है।  

8. नियमित – वह समय की कीमत जानता है। अपनी कक्षा में पंक्चुअल रहता है, समय पर पहुँचता है। अपने साथ दूसरों के समय की भी कीमत जानता है। अतः किसी के समय को वर्वाद नहीं करता। समय का कद्रदान होता है।

9. व्यसन-फैशन आदि से दूर ही रहता है। उसका जीवन सादगी से भरा होता है। इसका अर्थ यह नहीं कि वह जीवन का मजा लेना नहीं जानता। सार रुप में, वह अपने समय, संसाधन व ऊर्जा के अनावश्यक क्षय एवं बर्बादी से बचता है। 

10. मिताहारी – निश्चित रुप से वह मिताहारी होता है। स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक आहार लेता है। लेकिन अपने लक्ष्य में बाधक अहितकर या अति आहार से बचता है।

11. प्रेरक संग-साथ, बुरी संगत से अकेला भला, उसका मार्गदर्शक वाक्य होता है। यदि सही दोस्त नहीं मिल सके तो वह महापुरुषों की जीवनी व साहित्य के संग इस कमी को पूरा करता है। कहना न होगा वह स्वाध्यायप्रेमी होता है। 

12. प्रपंच से दूर – पर चर्चा, पर निंदा से दूर ही रहता है। अपने ध्येय के प्रति समर्पित उसका जीवन खुद में इतना मस्त मग्न होता है कि उसके पास दूसरों की निंदा चुग्ली व परदोषारोपण के लिए समय व ऊर्जा बच पाते हों।  

13. स्वस्थ मनोरंजन – खाली समय में स्वस्थ मनोरंजन का सहारा लेता है। प्रेरक गीत, संगीत, फिल्म आदि देखता-सुनता है। प्रकृति की गोद में जीवन के तनाव और अवसाद को दूर करना बखूवी जानता है। 

14. अंतर्वाणी का अनुसरण – सबकी सुनता है, लेकिन अपनी अंतरात्मा की आवाज का अनुसरण करता है। और अपने परिवेश के साथ एक सामंजस्यपूर्ण तरीके से रहता है।

इस तरह एक आदर्श विद्यार्थी एक अनुशासित एवं विद्यानुरागी जीवन का नाम है, जो एक 
15. स्वतंत्र सोच एवं मौलिक चिंतन का स्वामी होता है। वह एक सृजनात्मक, आशावादी और आत्म विश्वासी जीवन जीता है और समाज व जमाने को कुछ नया देने की क्षमता रखता है और भविष्य में एक आदर्श शिक्षक व नागरिक साबित होता है।

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