मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

वर्ष-2020 के ऐतिहासिक-युगान्तरीय पल

अस्पताल की पाठशाला में जीवन का तत्व-बोध

वर्ष 2020 इतिहास के पन्नों में एक यादगार वर्ष के रुप में अंकित रहेगा, जिसमें इंसान एवं मानवीय सभ्यता कई ऐतिहासिक एवं युगान्तरीय घटनाओं की साक्षी बनी। घटनाओं का क्रम जिस तरह से व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं समूचे विश्व को मंथता हुआ आगे बढ़ा, इसमें कोई संदेह नहीं रहा कि ये ईश्वरीय विधान था, महाकाल की योजना का हिस्सा था, प्रकृति का अपने बच्चों की नादानियों के लिए कठोर सबक भरा उपचार था, जिसमें सभी को गहन आत्मावलोकन का अवसर मिला, अपने भूत की भूल-चूकों को सुधारने का संयोग बना और बेहतरीन भविष्य के लिए सरंजाम जुटाने की समझ मिली।

हमारी भी लम्बे अर्से की गुफा में प्रवेश करने व धुनी रमा कर रहने की इच्छा इसमें पूरी हुई। हिमालय यात्रा के दौरान प्रायः पर्वत कंदराओं को देखकर यह इच्छा बलवती होती थी। कोरोना काल के बीच अस्पताल की परिक्रमा, भर्ती से लेकर तमाम तरह के अनुभवों से रुबरु होते रहे, जो लगता है कोरोना काल के बीच अपनी पूर्णाहुति की ओर अग्रसर है।

20 फरवरी 2020 के आसपास लक्ष्ण शुरु हो गए थे। बहाना गंगाजी के बर्फीले जल में डुबकी रहा। लेकिन उसके पिछले कई माह से चल रही खाँसी व बदन में टूटन अब चरम पर थी। उपचार के नाम पर कोई खाँसी के नाम पर एलर्जी की दबा देता रहा तो कोई बुखार की। अंततः पीठ में व साइड पसलियों में ऐसा दर्द उठा कि चलना फिरना दुभर हो गया, रात को करबट बदलना मुश्किल हो गया। इसके लिए पेन किल्लर मल्हम, स्प्रै व दबाईयों से लेकर एंटिवायोटिक के डोज चलते रहे। इसी बीच मार्च माह में कोविड-19 का कोरोना काल शुरु हो चुका था। 20 अप्रैल तक आते-आते दो माह तक जब सारे उपचार विफल हुए तो सीटी स्कैन हुआ और मर्ज पकड़ में आया। इसका शुरुआती उपचार ऐसे अनाड़ी ढंग से हुआ कि दबाईयों के ऑवरडोज में अस्पताल भर्ती होना पड़ा।

यहाँ बात स्पष्ट हुई कि रोग का उपचार तब तक निष्प्रभावी रहता है, जब तक कि सही डायग्नोज न हो। अन्यथा शरीर दवाईयों की प्रयोगशाला बन जाता है और ऐसे में चल रहे एलौपेथिक उपचार और किन रोगों का कारण बनेंगे, कह नहीं सकते।

अप्रैल-मई के लगभग दो सप्ताह तक अस्पताल के वार्ड में ऐसा गुफा प्रवेश मिला, जहाँ मात्र एक व्यक्ति सेवा-सुश्रुषा के लिए साथ में था और चारों ओर था मरीजों का हुजूम, जिन्हें देखकर स्वस्थ व्यक्ति भी बिमार पड़ जाए। इनके बीच बिमारी को लेकर चिंता-भय एवं उद्गिनता (हेल्थ एंग्जायटी) के तमाम तरह के अनुभवों से गुजरते रहे, जिसे कोई भुगतभोगी अच्छे से समझ सकता है। बिमारी का आलम कुछ ऐसा रहा कि जीवन से लगभग मोहभंग की स्थिति आ गई थी। यकायक अपनों से बिछुडने की वेदना अंदर कहीं गहरे कचोट रही थी। बाहरी दुनियाँ से संपर्क लगभग कट चुका था, जीवन के मायने, अर्थ सब धुँधले हो चले थे। ऐसे में मोबाईल में तक झाँकने का मन नहीं करता था।

अप्रैल-मई माह में अस्पताल की गुफा में बिताए दो सप्ताह के अनुभवों में, कुछ पाठकों से शेयर करना चाहूँगा, जो शायद उनके कभी काम आएं। जो कभी बिमार न पड़ा हो और जो अस्पताल के जीवन से अधिक परिचित न हो, उसके लिए पहली बार भर्ती होना एक घबराहट भरा अनुभव रहता है। डायग्नोज से लेकर उपचार की प्रक्रिया के तहत हाथ की नसों से सीरिंज से खून का निकाला जाना, हाथ या बाँह की नसों में कैनूला डालकर ड्रिप लगाना या इंजेक्शन देना, शुरु में भयावह प्रतीत होते हैं, लेकिन धीरे-धीरे समझ आता है कि पूरा अस्पताल, इसके डॉक्टर्ज, सिस्टर्ज और पूरी टीम रोगी को जल्द से जल्द ठीक कर रोग मुक्त करने में लगे होते हैं। फिर जब व्यक्ति की स्थिति में थोड़ा सा भी सुधार शुरु हो जाता है, तो उसकी घबराहट कम हो जाती है और एक नया विश्वास जगता है।

साथ ही समझ आता है कि अस्पताल गाड़ियों को दुरुस्त करने वाले एक गैराज की तरह है जहाँ टूटी-फूटी गाड़ियों ठीक होने के लिए आती हैं और एक्सपर्ट मैकेनिक कुछ मिनट, घंटे या दिनों में उनके खराब या टूटे पूर्जों या हिस्सों की मुरम्मत कर या उन्हें बदलकर नया बना देता है और फिर गाड़ी नए सिरे से सड़क पर सपरट दौड़ने लगती है। ऐसे ही व्यक्ति अस्पताल में कुछ दिन सप्ताह भर्ती होकर भला चंगा हो जाता है और फिर जीवन की गाड़ी अपने ढर्रे पर चल पड़ती है। फिर व्यक्ति अस्पताल के भयावह अंधकार से भरे पलों को यादकर आश्चर्य करता है कि वह इनके पार हो चुका है और अपने अनुभवों को किवदंतियों की भांति सुनाने व चर्चा का आनन्द लेता है। यही जीवन का रंगमंच है, जिसमें व्यक्ति न जाने कितनी भूमिकाओं में हंसते-रोते हुए अभिनय करता हुआ आगे बढ़ता है।

अस्पताल में हर रोगी अपने कष्टों से उबरने के लिए जूझ रहा होता है और चारों ओर नित नए मरीजों का हुजूम जुड़ रहा होता है, जिन्हें देखकर कल्पना के घोड़े का यदा-कदा नकारात्मकता के भंवर में उलझना स्वाभाविक होता है। इन्हीं भंवरों से दो-चार होते हुए हमारी पहली भर्ती का काल पूरा होता है और फिर 6-7 माह तक दवाओं का कोर्स उचित पथ्य-कुपथ्य के साथ चलता रहा। माह में दो-तीन चक्र अस्पताल के लगते रहे। इसी परिक्रमा को नियति द्वारा निर्धारित 2020 का ट्रैब्ल एडवेंचर मानते हुए अपने घूमने के शौक को पूरा करते रहे।

इसी बीच हमारे गाल-ब्लैडर में स्टोन (पिताशय की पत्थरी) डिटेक्ट हो चुका था। एक दो स्टोन होते तो दवा दारू से ठीक हो जाते, यहाँ तो पूरी थैली ही पत्थरियों से भरी हुई मिली। भरने का अर्थ हुआ कि यह प्रक्रिया कई वर्षों से चल रही थी। इसका संकेत भी कभी नहीं मिल पाया, जो इसका समय रहते उपचार कर पाते। जब पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अब ऑपरेशन ही उपचार था। इसे प्रारब्ध का अटल विधान मानते हुए मन को इसके लिए तैयार करते रहे।

दिसम्बर माह के उत्तरार्ध में सर्जरी तय होती है। इस तरह की शल्य से हम पहली बार रुबरु होने जा रहे थे। अतः मन का एक बार घबराना स्वाभाविक था। लेकिन हम मानसिक रुप से तैयार हो चुके थे, क्योंकि और कोई विकल्प था नहीं। चारों ओर इस तरह के कितने ऑपरेशन के अनुभव के किस्से हम सुन चुके थे, जिनसे मन का ढाढ़स बनता गया। यहाँ मैं आधुनिक चिकित्सा की तारीफ के साथ हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहूँगा कि इसने दर्द के प्रबन्धन (pain management) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिसमें रोगी को ऑपरेशन के दौरान पता भी नहीं चलता कि हुआ क्या है, इतनी सफाई के साथ ऑपरेशन हो जाता है। इसके बाद भी घाबों के भरने तक दर्द निवारक दबाईयाँ रोगी को असह्य पीड़ा से बचाए रखती हैं। बाकि चिकित्सकों का संवेदनशील रवैया रोगी को हर कदम पर मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक सहारा देता है। वर्ष 2020 के अस्पताल के अनुभवों के बाद हमें यह बात और गहराई से समझ आई कि एक चिकित्सक रोगी के लिए ईश्वर के माध्यम (Next to God) की भूमिका में होता है, जिसपर पूरा विश्वास कर  रोगी निश्चिंत होता है तथा अपने मन के संशयों व प्रश्नों की खुलकर चर्चा कर अपने समाधान पाता है।

ऑपरेशन के पहले और बाद इससे जुड़े भय एवं उद्गिनता में सारा खेल मन का होता है। मन बेसिर पैर की कुकल्पानओं एवं आशंकाओं में उलझता रहता है, जो कई बार ऑपरेशन के भय के भूत को इतना विकराल बना देता है कि ऑपरेशन से पहले ही रोगी अनावश्यक मानसिक यंत्रणा से गुजर रहा होता है। हालाँकि मन के इस भय भूत से निपटने के तरीके रोगी अंदर से ही ईजाद करता है। सर्वन्तर्यामी ईश्वर-अराध्य का समरण जिसमें अहम् होता है। इस बीच बेहतरीन पुस्तकों का स्वाध्याय बहुत सहायक सिद्ध होता है, विशेष रुप से आध्यात्मिक पुस्तकों का। ये देहबोध से व्यक्ति को ऊपर उठाने में मदद करती हैं और सकारात्मक सोच के साथ सशक्त मनोभूमि को तैयार करती हैं।

यह समय आत्मचिंतन के लिए भी श्रेष्ठ होता है। इस दौरान यह बखूबी समझ आता है कि स्वस्थ व निरोग जीवन के लिए जीवनशैली का सुधार कितना आवश्यक है और इस दिशा में आगे क्या किया जाना है। एक तरह से पूरे जीवन का ही मंथन तथा चित्त प्रक्षालन ऐसे दौर में हो रहा होता है और जीवन का तत्वदर्शन गहरे से समझ आता है। जिन बातों को हम पुस्तकें पढ़कर, गुरुजनों द्वारा बारम्बार समझाए जाने के बावजूद वर्षों, दशकों से नहीं समझ पा रहे होते, वे अल्प काल में ही ह्दयंगम हो जाती हैं।

इस तरह अस्पताल एक तरह से जीवन की एक ऐसी पाठशाला सावित होता है, जहाँ रोगी अपने उपचार के साथ जीवंत एवं गहन प्रशिक्षण से होकर गुजरता है। भगवान करे कि किसी को जीवन के तत्वदर्शन को समझने के लिए ऐसी प्रक्रिया से न गुजरना पड़े। वह स्वस्थ एवं निरोग जीवन के रहस्य सामान्य अवस्था में ही समझे, सीखे व जीए। और प्रारब्धवश यदि कहीं ऐसे दौर से गुजरना पड़े, तो साहसपूर्वक इसका सामना करे और जीवन के तत्वदर्शन को अल्पकाल में ही आत्मसात कर आगे अधिक होशोहवाश में जीए।

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

रचनात्मक उत्कृष्टता (Creative excellence)

रचनात्मक उत्कृष्टता (Creative excellence)

अर्थ, उपकरण एवं प्रक्रिया (Meaning, its tools and process)

रचनात्मकता (Creativity) मनुष्य की एक ऐसी विशेषता है, जिसके आधार पर वह नित नूतन नया सृजन करता रहा है तथा समूची मानवीय सभ्यता-संस्कृति की विकास यात्रा आगे बढ़ी है। साहित्य, कला, मानविकी, धर्म-अध्यात्म, संस्कृति, दर्शन आदि इसी के परिणाम है, जो आज विज्ञान, टेक्नोलॉजी एवं संचार क्राँति के चरम पर विकास के वर्तमान मुकाम तक आ पहुँचा है।

रचनात्मकता (Creativity) का अर्थ कुछ नया सृजन करने की क्षमता से है, किसी कार्य को नए अंदाज से करने की प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति की मौलिकता झलकती हो। इसमें किसी समस्या के रचनात्मक ढंग से समाधान की क्षमता भी शामिल है। सार रुप में, Creativity is to create something as if out of nothing…जो पहले था नहीं...। जैसे – कोई नई कविता, गीत, संगीत, चित्रकला, लेखन, विचार-पटकथा, फिल्म, अभिनय, शोध, फोटोग्राफी, खोज, आविष्कार आदि

रचनात्मक उत्कृष्टता (Creative excellence) किसी व्यक्ति की रचनात्मक क्षमता का अपने श्रेष्ठतम रुप में प्रदर्शन एवं अभिव्यक्ति है। जीवन प्रबन्धन के संदर्भ में, रचनात्मक उत्कृष्टता (Creative excellence) - स्वयं के व्यक्तित्व की कमियों, दुर्बलताओं और दुर्गुणों का परिमार्जन, परिष्कार तथा अपनी अंतर्निहित क्षमताओ, विशेषताओं एवं सद्गुणों का विकास, उभार है, जिससे कि व्यक्ति का Best version, श्रेष्ठतम स्वरुप  उभर कर सामने आ सके।

इसका आधार रहता है अपने व्यक्तित्व एवं जीवन की समग्र समझ (Holistic understanding of your personality and life), मौलिक लक्ष्य का निर्धारण (Goal setting) तथा उसे हासिल करने की प्रक्रिया, जिसके प्रधान उपकरण (Tools of creative excellence) हैं - कल्पना शक्ति (Imagination), इच्छा शक्ति (Will power), विचार शक्ति (Thought power), भावनात्मक शक्ति (Emotional power) आदि। रचनात्मकता को एक कला (Art) माना जाता रहा है, लेकिन यह स्वयं में एक बुद्धिमता (intelligence) भी है, जो उपलब्ध संसाधनों से कुछ नया एवं मौलिक सृजन को संभव बनाती है तथा जटिल समस्याओं के सरल समाधान प्रस्तुत करती है।

कल्पना के आधार पर व्यक्ति अपने मनचाहे वाँछित स्वरुप का निर्धारण करता है, विचार शक्ति के आधार पर कल्पनाओं को काटता तराशता है, अपने लक्ष्य को स्पष्ट करता है, इसको हासिल करने की रणनीति बनाता है तथा ईच्छा शक्ति के आधार पर लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करता है तथा अपने निर्धारित लक्ष्य को साकार करता है। भावनात्मक शक्ति इसमें आवश्यक ईँधन एवं प्रेरक शक्ति का काम करती है।

इस तरह रचनात्मक उत्कृष्टता वह प्रक्रिया है, जिसके आधार पर व्यक्ति जो चाहे कर सकता है, जैसा चाहे बन सकता है और अपनी मनचाही सृष्टि का सृजन कर सकता है। लेकिन यह अपनी मौलिक विशिष्टता के साथ तभी सम्भव हो पाता है, जब व्यक्ति इसके विज्ञान-विधान को समझता है तथा इसकी प्रक्रिया का अनुसरण करता है।

रचनात्मक उत्कृष्टता की व्यवहारिक प्रक्रिया (Process of Creative Excellence)

पहला चरण है अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारण – लक्ष्य ऐसा हो जो आपके व्यक्तित्व से मेल खाता हो, जिसमें आपकी इच्छा, आकाँक्षा, रुचि, पैशन (Passion) अभिव्यक्त होते हों, साथ ही यह आपकी क्षमताओं से भी जुडा हो। दूसरों की देखा देखी बिना स्वयं को समझे किया गया लक्ष्य का निर्धारण आगे चलकर एक बडी चूक हो सावित होता है, जिसके कारण व्यक्ति जीवन भर इसे भार की तरह ढोता फिरता है। जबकि अपनी रुचि एवं क्षमता के अनुरुप चुना गया लक्ष्य व्यक्ति के लिए हर पग पर आनन्द का कारण बनता है, व्यक्ति इसको एन्जोय करते हुए आगे बढता है और धीरे धीरे अपने पूर्ण विकास को प्राप्त होता है। यदि आपका लक्ष्य आपकी मनपसंद का है तो रचनात्मक उत्कृष्टता स्वतः ही उभरने लगती है। आपके दैनिक कार्यों में मन की एकाग्रता सहज रुप से जुड़ती है तथा आप इसमें रोज प्रगति के नए आयाम छू रहे होते हैं।

दूसरा चरण है, जहाँ खड़े हैं वहीं से आगे बढ़ें। जीवन में आगे बढने के लिए किसी से तुलना-कटाक्ष में न उलझें। हर व्यक्ति की उपनी जीवन यात्रा है, वह आज जहाँ खड़ा है या खड़ी है, उसकी अपनी एक लम्बी विकास यात्रा का परिणाम है। आपकी अपनी जीवन यात्रा है, इसको समझने की कोशिश करें। सब एक विशेष मकसद के साथ धरती पर आए हैं। इसको जानने का प्रयास करें। अपना सही सही (सम्यक) मूल्याँकन आपको आगे बढ़ने का आधार देगा। यह जो भी है इसको ईमानदारीपूर्वक स्वीकार करें तथा यहाँ से आगे बढ़ना शुरु करें। आपको रोज अपने रिकॉर्ड तोड़ने हैं, अपना श्रेष्ठतम प्रदर्शन देना है। रात को सोते समय इस संतोष के साथ विस्तर पर जाना है कि जो बेहतरतम हम आज कर सकते थे वह हमने किया और कल हम इससे भी बेहतर करेंगे। प्रतिदिन पिछले कल से बेहतर करते हुए रचनात्मक उत्कृष्टता आपके जीवन का अंग बनती जाएगी। इस तरह परीक्षा की घड़ी के लिए आप हर रोज तैयार हो रहे होंगे न कि परीक्षा आने पर इसका आपात की तरह सामना करते हुए आपके हाथ पैर फूल रहे होंगे।

तीसरा चरण, रोज अपनी रचनात्मक प्रगति का लेखा जोखा करें – रोज रात को सोने से पूर्व स्थिर चित्त होकर बैठें। परमपूज्य गुरुदेव ने इसको तत्वबोध की साधना कहा है। इसमें दिन भर का लेखा जोखा करें। सुबह जो कार्य निर्धारित थे, उनमें से कितने काम संभव हुए और कहाँ पर चूक रह गई। अपने विचार, भाव एवं व्यवहार का क्रम दिन भर कैसा रहा, निर्धारित मानक से ये कहीं विचलित तो नहीं हुए। इसमें आहार-विहार, संग साथ की स्थिति को भी देख सकते हैं। इसके साथ आज की विशिष्ठ उपलब्धि क्या रही, क्या नए सबक मिले, दूसरों से क्या नया सीखा। इन सबका हिसाब किताब किया जा सकता है। समय कहाँ बर्वाद हुआ, इसका मूल्याँकन किया जा सकता है। अपनी भूल चूक के लिए प्रायश्चित का क्रम निर्धारित किया जा सकता है और संकल्प भी कि कल इससे बेहतर करेंगे। इस तरह हर रोज आप उत्कृष्टता के नए स्तर को छू रहे होंगे और आपका श्रेष्ठतम स्वरुप(Best version) उभर कर सामने आ रहा होगा।

चौथा चरण, डायरी लेखन को बनाए अपना साथी – इन अनुभवों को एक डायरी में कलमबद्ध करते जाएं। ये कुछ लाइन से लेकर कुछ पैरा में हो सकते हैं। यदि आप लगातार ऐसा करते गए तो, कुछ समय बाद आपके पास जीवन प्रबन्धन एवं व्यक्तित्व निर्माण से जुड़ी विचार सामग्री तैयार हो रही होगी। नियमित रुप से डायरी लेखन से आपकी लेखन शैली (Writing style) विकसित होगी, विचार-भाव और स्पष्ट होते जाएंगे, इनकी अभिव्यक्ति सटीक होती जाएगी। अपने व्यक्तित्व एवं स्वभाव का पैटर्न समझ आने लगेगा। जितना आप स्वयं को समझने लगेंगे, उतना ही दूसरों की समझ भी बढ़ेगी। धीर-धीरे जीवन का तत्व-दर्शन समझ आने लगेगा, जो स्वयं में एक बढ़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।

इसके आधार पर एक संतुलित, सफल एवं सुखी जीवन संभव होता है, अन्यथा इस समझ के अभाव में व्यक्ति को इस बेशकीमती जीवन को यूँ ही बर्वाद करते देखा जाता है, जीवन उत्कृष्टता की वजाए निकृष्टता की सीढियों पर नीचे लुढ़क रहा होता है और घोर निराशा, अवसाद, विषाद एवं पश्चाताप के बीच जीने के लिए अभिशप्त होता है। नित्य स्व-मूल्याँकन (Self introspection) एवं डायरी लेखन इस त्रास्दी से व्यक्ति को उबारता है और एक सफल-सार्थक जीवन के साथ क्रिएटिव एक्सलैंस के पथ पर आगे बढाता है।

डायरी लेखन के लाभ को यदि और जानना हो तो आप दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं।

रोज तराशें व्यक्तित्व का हर आयाम – व्यक्तित्व को मोटे तौर पर चार आयामों में बाँट सकते हैं - शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक-व्यवहारिक एवं आध्यात्मिक। इनको नियमित रुप से तराशने का न्यूनतम कार्यक्रम निर्धारित किया जा सकता है।

अपनी पढाई लिखाई के साथ शारीरिक स्वास्थ्य का न्यूनतम कार्यक्रम बनाएं। जिसमें योग आसन, प्राणायाम, खेल कूद, टहल, जिम आदि को अपनी आवश्यकता एवं क्षमता के अनुरुप शामिल किया जा सकता है। आहार का अपने स्वास्थ्य, रुचि एवं स्वभाव के अनुकूल निर्धारण करें। पर्याप्त नींद और विश्राम का अनुपान रचनात्मकता में सहायक रहता है। कहावत भी प्रसिद्ध है कि Sound mind in a sound body अर्थात् स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है।

बौद्धिक विकास के लिए अपनी क्लास की पढ़ाई के साथ मोटिवेशनल एवं प्रेरक पुस्तकों के स्वाध्याय को शामिल करें। विश्व के श्रेष्ठतम साहित्य को पुस्तकालय में जाकर देखें व अपनी रुचि के अनुरुप अपने बौद्धिक आयाम को विस्तार दें। यह प्रयोग बौद्धिक उत्कृष्टता के लिए आहार का काम करेगा और आपका जीवन स्वतः ही श्रेष्ठ एवं महान कार्यों के लिए प्रेरित होगा।

भावनात्मक विकास के तहत किसी की भावनाओं को आहत न करें। दूसरों को सम्मान दें, बिनम्र रहें तथा यथायोग्य जरुरतमंदों की सहायता करें। एक अच्छा श्रोता बनें, दूसरों की बात को ध्यानपूर्वक समझ कर ही समाधान या परामर्श दें। शालीनता, सहकारिता, कृतज्ञता, उदारता, सहिष्णुता जैसे सद्गुणों का अभ्यास करें। इससे आपसी सम्बन्ध बेहतरीन बनेंगे तथा आपके भावनात्मक स्तर पर उत्कृष्टता के द्वार खुलेंगे। दिन में एक कार्य बिना किसी आशा अपेक्षा के करें। निष्कार्म कर्म का ऐसा नन्हा सा प्रयोग मन को संतोष व आनन्द से भरेगा, जो रचनात्मक उत्कृष्टता का एक सबल आधार सावित होता है।

आध्यात्मिक विकास के तहत नित्य स्वाध्याय-सत्संग के साथ कुछ समय आत्मचिंतन मनन के लिए निकालें, जिसमें आत्म-सुधार से लेकर आत्म-निर्माण एवं विकास का खाका बनाया जा सकता है। कुछ मिनट ध्यान के लिए अवश्य निकालें। परिसर की आध्यात्मिक गतिविधियों में अपनी रुचि एवं समय के अनुरुप यथासंभव भाग लें। प्रातः आत्मबोध एवं सोते समय तत्वबोध को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।

इसके अतिरिक्त अपने विषय एवं भावी प्रोफेशनल जीवन के अनुरुप आवश्यक कौशल (Skill) के विकास पर ध्यान दें। जहाँ कमजोर पड़ रहे हों, वहाँ नियमित रुप से एक निश्चित समय लगाएं एवं नित्य अभ्यास करें। इसमें अपनी भाषा, टेक्निक्ल स्किल या अन्य प्रोफेशनल या सॉफ्ट स्किल पर काम किया जा सकता है और अपने पेशे के अनुरुप व्यक्तित्व को तराशते हुए रचनात्मक उत्कृष्टता की दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं।

इसके साथ जीवन के विद्यार्थी के रुप में अपने अनुभवों को अभिव्यक्त करते हुए रचनात्मक उत्कृष्टता के नए सोपान को छू सकते हैं। क्रिएटिव लेखन (Creative writing) इसका एक सशक्त माध्यम हो सकता है। अपने दैनिक अध्ययन, चिंतन, मनन, विचार मंथन, जीवन यात्रा के अवलोकन एवं अनुभव के आधार पर आप स्वयं के जीवन तथा चारों ओर की घटनाओं, स्थानों तथा तथ्यों को अपने अंदाज से देखते समझते हुए लिपिबद्ध करें। इसको डायरी लेखन का अगला चरण कह सकते हैं। नित्यप्रति अपने ऐसे अनुभवों एवं अवलोकन के आधार पर पक रही आपकी जीवन यात्रा एवं इसकी कहानी को आप चाहें तो जरुरतमंदों के साथ शेयर कर सकते हैं, जो किसी लेख, कविता, फीचर, यात्रा वृतांत, जीवन संस्मरण, कहानी, जीवन सार सुक्ति (Quotation) आदि के रुप में हो सकती है। यदि आपको उचित लगे तो इन्हें सोशल मीडिया के उचित प्लेटफार्म पर शेयर किया जा सकता है।

यदि आप रचनात्मक लेखन से अनभिज्ञ हैं तो आप लेखनकला के शुरुआती टिप्स को यहाँ पढ़ सकते हैं।

रचनात्मक उत्कृष्टता की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया (Psychological process of Creative Excellence) – यह इन चरणों में घटित होती है, जिसकी समझ आपके लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है –

पूर्व-तैयारी (Preparation) - पहले हम उस विषय को लेते हैं जिस में कुछ नया सृजन करना होता है, या समस्या को लेते हैं, जिसका समाधान करना होता है या नया प्रकाश डालना होता है।

विचार-मंथन (Brainstorming) – अब उस विषय या समस्या पर हर तरह से विचार करते हैं, विषय या समस्या के हर पहलु पर चिंतन, मनन एवं विचार मंथन करते हैं।

विश्रांति काल (Incubation) – अब आगे की प्रक्रिया को अवचेतन मन के हिस्से में छोड़ देते हैं और दूसरे कार्यों में लग जाते हैं। एक तरह से समस्या को तकिए के नीचे डाल कर सो जाते हैं या दूसरी चीजों पर विचार करते हैं।

प्रकाशन (Illumination) – यह अगला चरण है जब चलते फिरते, टेबल पर बैठ या नींद में या स्वप्न में समाधान कौंधता है, नए विचार आते हैं। एक तरह से दिमाग की बत्ती जल जाती है।

क्रियान्वयन (Execution) – अब नए विचार या समाधान को लागू करते हैं।

बार बार इन मनोवैज्ञानिक चरणों से होकर गुजरते हुए जब तक कि आपके प्रश्न या समस्या का संतोषजनक उत्तर या समाधान न मिले। इस तरह आपकी क्रिएटिव एक्सलैंस की राह तय होती है, जो हर क्रिएटिव व्यक्ति के दैनिक जीवन का अनुभव रहता है।

आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में इस प्रक्रिया को लागू करते हुए नित्य प्रति रचनात्मक उत्कृष्टता के नए आयामों को छू सकते हैं और हार्ड वर्क की वजाए स्मार्ट वर्क के साथ मनचाही सफलता की दिशा में ब़ढ़ सकते हैं।

जरा सोचें (Just Think & ponder!!)

·        आपका जीवन लक्ष्य क्या है? आप इसे कितना स्पष्ट मानते हैं? अर्थात् यह कितना अंतःप्रेरित है व कितना देखा देखी निर्धारित है?

·        आप अपने मूल्याँकन एवं विकास के लिए नित्य कितना समय दे पातें हैं?

·        क्या आप डायरी लेखन नियमित रुप से करते हैं? यदि नहीं, तो क्यों?

·        आप शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक-व्यवहारिक, आध्यात्मिक एवं प्रोफेशनल स्तर पर रचनात्मक उत्कृष्टता के पैमाने पर कहाँ खड़ा पाते हैं?

·        और इन क्षेत्रों में अपना श्रेष्ठतम स्वरुप (Best version) को कैसा देखते (visualize करते) हैं।

·        तथा इनके विकास के लिए आपका न्यूनतम दैनिक या साप्ताहिक कार्यक्रम क्या है?

·        आपकी रचनात्मक क्षमता की अभिव्यक्ति का सबसे सहज माध्यम एवं प्लेटफॉर्म क्या है?

शिमला के आसपास के दर्शनीय स्थल

                                 शिमला से कुफरी, चैयल, नारकण्डा, मशोवरा और सराहन

शिमला हिमालय की वादियों में

शिमला के बाहर आस-पास घूमने के कुछ बेहतरीन स्थल हैं, जहाँ हिमालय की वादियों में भ्रमण का आनन्द लिया जा सकता है। एडवांस्ड स्टडी में रहते हुए प्रायः एक माह का स्पैल पूरा होने पर हम अपने साथियों के साथ एक टैक्सी हायर कर इनका अवलोकन करते रहे। इसमें कुफरी, चैयल, मशोबरा, नारकण्डा, हाटू पीक, सराहन भीमाकाली मंदिर आदि उल्लेखनीय हैं, जो एक-दो दिन में आसानी से कवर हो जाते हैं। यहाँ शिमला के ग्रामीण आँचल में हो रहे खेती एवं बागवानी के प्रयोगों की एक झलक उठा सकते हैं। प्रकृति के वैभव को समेटे यहाँ की हिमालयन वादियों के बीच यात्रा सदैव रोमाँचक अनुभव रहता है और ज्ञानबर्धक भी।

फूलों से आच्छादित सेब के पेड़

ग्रामीण शिमला की ओर शिमला शहर से बाहर निकलने के दो रास्ते हैं। एक लक्कड़ बाजार से होकर। विक्टरी टन्नल को पार करते ही थोड़ी देर में लक्कड़ बाजार बस स्टैंड आता है, इसके आगे कुछ ही समय में सफर एक पुल के नीचे से होकर गुजरता है। आगे आता है शिमला का इंदिरा गाँधी मेडिकल कालेज एवं हॉस्पिटल। यहाँ तक व इसके थोड़ा आगे संजोली तक राजधानी की बढ़ती आबादी के दबाब को अनुभव किया जा सकता है। बेतरतीव भवन निर्माण, ढलान में भी बिल्डिंग के ऊपर बिल्डिंग खड़ी करने का चलन, सबकुछ शिमला के प्राकृतिक सौंदर्य पर तुषारापात करता प्रतीत होता है। भवन निर्माण और शहर की प्लानिंग के संदर्भ में सरकार एवं जनता के बीच किसी मानक रोड़मैप का न होना कचोटता है।

दूसरा मार्ग पुराने बस स्टैंड से होकर आगे सचिवालय भवन से होकर शिमला के सघन बनप्रदेश से गुजरता है। बन विभाग द्वारा संरक्षित इस क्षेत्र से सफर में शिमला के प्राकृतिक सौंदर्य की झलक मिलती है, कुछ पल शांति-सुकून के गुजरते हैं। इस दूरदर्शिता के लिए बन विभाग एवं सरकार के प्रति आभार के भाव फूटते हैं। इसी राह पर प्रतिष्ठित लेडीज सेंट बीड कालेज पड़ता है और इसके वायीं ओर से मोटर मार्ग जाखू मंदिर के लिए जाता है।

जाखू मंदिर, शिमला, हनुमान बजरंगबली

इसको पार करते ही संजोली क्षेत्र में प्रवेश होता है और फिर होते हैं ढलान के ऊपर कंक्रीट के जंगल के दर्शन, जो प्रकृति प्रेमी को व्यथित करते हैं। कई संजौली को शिमला का दिल कहते हैं, लेकिन बिना हरियाली, स्वस्थ आवोहवा के यह दिल कितने दिन धड़केगा और शिमला को स्वस्थ रखेगा, विचारणीय है। विषय गंभीर है, इस पर अधिक चर्चा न करते हुए आगे बढ़ते हैं। संजोली को पार करते ही आगे मानवीय हस्तक्षेप कम हो जाता है। दायीं ओर ग्रीन वैली के दर्शन होते हैं, जिसे एशिया का सबसे घना देवदार का जंगल माना जाता है। निश्चित ही इसमें जंगली जानवर बहुतायत में विचरण करते होंगे। सड़क पर भी हम कई बार बाघ के दर्शन कर चुके हैं। यहाँ हिरण, चकोर, जंगली मुर्गा, मोनाल आदि के दर्शन तो सामान्य घटना है। यहाँ कुछ पल रुककर कुछ यादगार फोटो के साथ आगे बढ़ा जा सकता है। 

इसके बाद आता है कुफरी, जो शिमला के समीपस्थ एक लोकप्रिय स्थल है, क्योंकि अधिक ऊँचाई (8924 फीट) पर होने के कारण यहाँ शिमला से अधिक बर्फ गिरती है तथा ठण्ड भी अधिक रहती है। यहाँ पर सीढ़ीदार खेतों में घूमना, स्लोप में फिसलना पर्यटकों को प्रकृति की गोद में कुछ पल खोने का मौका देता है।

बर्फ से ढकी कुफरी की ढलानें

इसके साथ यहाँ घोडे या खच्चर पर बैठकर यहाँ की यात्रा का आनन्द लिया जा सकता है। ऊपर पहाड़ी पर एक चिडियाघर भी है, जिसमें बाघ, तेंदुआ, काला भालू, ब्राउन बीयर, जंगली बकरी तथा अन्य पक्षी पर्याप्त प्राकृतिक परिवेश में रखे गए हैं। यहाँ पर ऊँचाई के बाँज बृक्षों के दर्शन किए जा सकते हैं, जिनके पत्ते मोटे, चमकीले, डार्क ग्रीन तथा कंटीले होते हैं। ऊँचाई के साथ बाँज के वृक्षों में कैसे परिवर्तन होता है, यहाँ देखा जा सकता है। अंदर चाय-नाश्ता के भी ठिकाने हैं। कुल मिलाकर कुफरी का टूर परिवार के साथ पैसा बसूल टूर साबित होता है। यदा-कदा यहाँ फिल्म शूटिंग के सीन भी देखे जा सकते हैं। बाहर गिफ्ट शॉप्स से कुछ यादगार चीजें खरीदीं जा सकती हैं।

कुफरी से नीचे उतरकर दायीं ओर शिमला के समानान्तर रास्ता चैयल की ओऱ जाता है। जहाँ कई दर्शनीय स्थल हैं। रास्ता देवदार के घने जंगलों से होकर गुजरता है। बीच-बीच में रास्ता धार (रिज) से होकर गुजरता है, ऐसे में दायीं ओर शिमला के दर्शन होते हैं और वायीं ओर जंगल विरल होने पर नीचे गाँव और दूर की घाटियोँ के दर्शन होते हैं। इस राह में चाय-नाश्ते के भी कुछ बेहतरीन ठिकाने मिलते हैं, जहाँ पर आवश्यकता पड़ने पर तरोजाजा हुआ जा सकता है।

चैयल पैलैस का विहंगम दृश्य

बीच में चैयल की पहाड़ियाँ दिखना शुरु हो जाती हैं। नीचे ढलान में सेब के बाग मिलते हैं। कुछ ही देर में घने बुराँश-देवदार के जंगल के बीच मुख्यमार्ग से रास्ता वाएं मुड़कर चैयल पैलेस की ओर बढ़ता है। थोड़ी ही देर में चैयल पैलेस आता है, जो अंग्रेजों के समय पटियाला के राजघराने का गर्मी का विश्रामगृह हुआ करता था। आज इसे एक हेरिटेज होटल में कन्वर्ट किया गया है। इसके अंदर सुंदर म्यूजियम है तो बाहर मैदान में चहलकदमी के लिए बेहतरीन लॉन और रुकने के ठिकाने। निसंदेह रुप में यहाँ परिवार के साथ कुछ समय अन्दर-बाहर शाही शानो-शौकत का अवलोकन व बजट के हिसाब से खर्च करते हुए विताए जा सकते हैं।

इसके आगे सिद्ध बाबा का मंदिर पड़ता है। माना जाता है कि बाबा महाराजा भूपिन्द्र सिंह के सपने में आते हैं और निर्देश देते हैं कि इस स्थान पर मैंने ध्यान किया था। महाराजा यहाँ पर मंदिर बनाते हैं। हमें इस मंदिर में एक औघड़ बाबाजी मिले थे। काफी पहुँचे हुए लग रहे थे। धुनी रमा कर बैठे थे। हमें चाय पिलाते हैं, कुशल-क्षेम पूछते हैं और कुछ व्यवहारिक ज्ञान की बातें बताकर विदा करते हैं। यहाँ से थोड़ा आगे क्रिकेट स्टेडियम पड़ता है, जिसे विश्व का सबसे अधिक ऊँचाई (7380 फीट) पर बना स्टेडियम माना जाता है। इसे पटियाला के महाराजा ने 1893 में बनाया था। आज इस मैदान का उपयोग चैयल मिलिट्री स्कूल के बच्चों के खेल के मैदान के रुप में होता है तथा सेना द्वारा इसका रख रखाब किया जाता है।

इसके थोड़ी दूरी पर काली का टिबा या काली मंदिर आता है, जो पहाड़ी की चोटी पर स्थित एक शांत-एकाँत स्थल है। चीड़, देवदार और बाँज के घने जंगल से होकर यहाँ का रास्ता जाता है, पहाड़ी के कौने पर सबसे ऊँचे स्थान पर बने इस मंदिर से चारों ओऱ का विहंगम नजारा देखते ही बनता है। साफ मौसम में यहाँ से चूड़ चांदनी और शिवालिक श्रृंखलाओं का नजारा दर्शनीय रहता है। यहाँ से हम बापस शाम तक 44 किमी दूरी तय करते हुए शिमला आते हैं। चैयल से दूसरा रास्ता सोलन की ओऱ जाता है, जो यहाँ से 45 किमी पड़ता है। यदि घूम कर आना हो तो इस रास्ते से भी शिमला आया जा सकता है।

कुफरी के पहले ही नीचे से एक रास्ता मशोबरा के लिए जाता है, जो आगे नालदेरा से होते हुए तता पानी तक पहुँचता है। इस रूट पर एक दिन का टूर प्लान हो सकता है। ततापानी में सतलुज नदी के बर्फिले जल के किनारे गर्म पानी के स्रोत थे, जो अब सतलुज नदी पर डैम बनने के कारण जल मग्न हो गए हैं, लेकिन इसके रुके पानी में बोटिंग से लेकर वार्टर स्पोर्टस का आनन्द लिया जा सकता है। साथ ही नदी के उपर रास्ते में बने तप्त जलकुण्डों में स्नान का लुत्फ उठाया जा सकता है। नालदेरा में पहाड़ों का सबसे पुराना और बेहतरीन गोल्फ कोर्स है। इसके अतिरिक्त यहाँ देवदार के घने वृक्षों के बीच पार्क बना हुआ है, जहाँ परिवार के साथ कुछ पल मौज-मस्ती के बिताए जा सकते हैं। राह में पड़ते स्थल मशोवरा में बागवानी से सम्बन्धित शोध संस्थान हैं। शिमला शहर के लिए फल एवं सब्जी का यह मुख्य आपूर्तिकर्ता है। इसके आसपास वाइल्ड़ फलावर हाउस, महासू देवता मंदिर तथा रिजर्व वन अभ्यारण्य पधार सकते हैं और समय हो तो यहाँ एडवेंचर एक्टिविटीज में भाग लिया जा सकता है। ततापानी जहाँ शिमला से लगभग 50 किमी की दूरी पर है, नालदेरा 23 किमी तथा मशोवरा 10 किमी की दूरी पर स्थित है।

जुलाई-अगस्त माह में तैयार सेब की फसल

कुफरी से आगे नारकण्डा की ओर रास्ता जाता है, जो मार्ग में ठियोग, मतियाना आदि कस्बों से होकर गुजरता है। यह रास्ता भी देवदार के घने जंगलों के बीच लुकाछिपी करते हुए पार होता है। एक मोड़ के बाद जंगल कम हो जाते हैं और सामने दिखती हैं कई घाटियाँ, जिनमें सेब के बगानों को बहुतायत में देखा जा सकता है। इन पर लगे सफेद और हरे रंग के नेट नए पर्यटकों में कौतुक जगाते हैं। वास्तव में ये सेब के फल को औलों से बचाने के लिए बगीचों के ऊपर ओढ़ा गया आच्छादन है। जिस इलाके में औलावृष्टि अधिक होती है, वहाँ इनका उपयोग किया जाता है। अन्यथा बागवानों की साल भर की मेहनत पर कुछ ही मिनटों में पानी फिर सकता है।

इस राह पर मतियाना में प्रायः हम भोजन के लिए रुकते रहे हैं। यह इलाका फल व सब्जि उत्पादन का एक मुख्य केंद्र है। इनके साथ इलाके की आर्थिकी में सुधार हुआ है, लेकिन साथ ही रसायनिक खाद एवं विषैले कीटनाशकों के बहुतायत में प्रयोग के साथ फल एवं सब्जियों के साथ जमीं पर भी इसके दुष्प्रभाव नजर आने लगे हैं। इसमें मेहनत करते किसानों पर भी इसकी घातक मार के समाचार आ चुके हैं। यह सब देखते हुए निसंदेह रुप में ऑर्गेनिक खेती औऱ बागवानी की ओर गंभीरता से बिचार करने का समय आ गया है। यह एक इलाके का नहीं पूरे प्रदेश एवं देश यहाँ तक कि पूरे विश्व पर लागू होता है, जहाँ जाने अनजाने ऐसे प्रयोग धड्ड़ले से चल रहे हैं।

औलों से बचाव के लिए नेट से ढके सेब को बागान

यहाँ से आगे नारकण्डा का रास्ता एक और पहाड़ों की गोद तो दूसरी ओर सेब, चैरी के बगीचों के बीच आगे बढ़ता है। मई माह में हम यहाँ पर पेड़ों में पीली और सुर्ख लाल चैरी के फलों का अवलोकन कर चुके हैं, जो देखने में बहुत सुंदर लगती हैं हालाँकि सेब तब कच्चे ही थे। सड़कों पर छोटे बक्सों में सजाकर किसानों को इनका विक्रय करते देखा। ऐसे दृश्यों के बीच हम नारकण्डा पहुँचते हैं। बीच में पानी की किल्लत की मार इस इलाके में दिखी। इसके लिए दूर-दूर से पाईपों से अपने खेत तथा बगीचों तक जल की व्यवस्था करते तथा बूंद-बूंद पानी का नियोजन करते किसानों को देखा। कितने पाईपों के जाल इस रास्ते में बिछे मिले।

नारकण्डा में फिर देवदार के सघन बन शुरु हो जाते हैं। यहाँ पर दायीं ओऱ से रास्ता हाटू पीक की ओर जाता है, जो स्वयं में एक बहुत ही रोमाँचक तथा नयनाभिराम यात्रा का अहसास देता है। रास्ते भर देवदार बुराँश के घने जंगल मिलते हैं और ऊपर हाईट के समीप ऊँचाई के बाँज वन। एक दम शिखर पर पेड़ कम हो जाते हैं, तथा बुग्याल अधिक। इन्हीं के बीच नवनिर्मित हाटू मंदिर के दर्शन किए, जो काली माता को समर्पित है। यहाँ पहाड़ी शैली में बना यह सुंदर मंदिर बहुत बारीक लकड़ी की नक्काशी लिए है, रामायण-महाभारत कालीन दृश्यों के साथ विविध देवी देवताओं के चित्र उत्कीर्ण हैं।

हाटू पीक पर स्थित शक्ति पीठ

मालूम हो कि हाटू पीक शिमला के आसपास 11,152 फीट की ऊँचाई पर सबसे ऊँचा बिंदु है। यहाँ पास के टीले पर चढ़कर चारों और घाटियों, दूर गाँव, खेत बगानों और बर्फ की चोटियों के नयनाभिराम दर्शन किए जा सकते हैं। नारकण्डा से ही एक रास्ता वायीं ओर नीचे उतरता है, जो आगे किन्नौर की ओर बढ़ता है। इसकी राह में चार-पाँच घण्टे बाद रामपुर शहर पड़ता है, जिसके थोड़ा आगे रास्ता जेओरी से सराहन गाँव की ओर मुड़ता है, जिसके एक छोर पर पड़ता है भीमाकाली मंदिर का भव्य परिसर।

नारकण्डा से रास्ता घने देवदार के जंगल के बीच ऩीचे उतरता है, रास्ते में फलों के बगीचे शुरु हो जाते हैं। इनके आगे दायीं ओर नीले रंग के फूलों से आच्छादित कई पेड़ कतारबद्ध मिले। काफी देर तक इनका सान्निध्य सफर में एक शीतल अहसास घोलता रहा। संभवतः ये मिल्ट्री के जवानों द्वारा रोपे गए लगे, जिनका कैंप आगे रास्ते में मिला। इसके बाद फिर इनके दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं। इसी रास्ते में नीचे सतलुज नदी की घुमावदार रेखा के दर्शन होते हैं, जो कुछ ही देर में नीचे पास हो जाती हैं। रास्ता इसके किनारे आगे बढता है। इसका मटमेला रंग और इसका तेज बहाव पीछे ग्लेशियरों से इसके पिघल कर तैयार होते रुप को दर्शाता है। निसंदेह रुप में यह बहुत ठण्डा होगा, ऐसा हम अनुमान लगाते रहे, जैसा कि हमारे इलाके में ब्यास नदी के साथ होता है।

इसी तरह हम रामपुर शहर पहुँचते हैं। यहाँ रात को सतलुज नदी के किनारे एक धर्मशाला में रुकते हैं। सुबह सतलुज के गर्जन तर्जन करते तेज बहाव को देखते रहे, उस पार चट्टानीं टीले पर लोगों के घर को देखकर आश्चर्य करते रहे कि लोग कहाँ-कहाँ बस सकते हैं। यहाँ से चाय नाश्ता कर सराहन की ओर चल पड़े। बस रामपुर-सराहन वाया ज्यूरी थी। आगे का रास्ता चट्टानों को काटकर बनाया गया था, जो पहाड़ों के खालिस चट्टानी सत्य से हमें रुबरु करा रहा था। ज्यूरी से बस दायं मुड़ जाती है। आगे का रास्ता हरा भरा और पर्याप्त उर्बर लगा। रास्ते में ही आर्मी का कैंप मिला, इसकी व्यवस्थित संरचना, अनुशासन सदैव से ही मन में श्रद्धा का भाव जगाता है। कुछ ही देर में हम सराहन बस स्टैंड पहुँच चुके थे।

यहाँ सामने बर्फ से ढके किन्नर कैलाश के दिव्य दर्शन होते हैं। थोड़ा पैदल चलने के बाद हम भीमाकाली मंदिर के परिसर में थे। अंदर के प्रवेश द्वार पर हाथ पैर धोकर प्रसाद भेंट लेकर माता के द्वार में प्रवेश करते हैं। तीन-चार मंजिला यह मंदिर अद्भुत नक्काशी और बास्तुशिल्प का नमूना है, जो स्वयं में अद्वितीय प्रतीत होता है। भीमाकाली राजपरिवार की कुलदेवी भी हैं। इस क्षेत्र में ही नहीं बल्कि पूरे हिमाचल में शक्ति उपासकों के बीच इनकी विशिष्ट मान्यता है। असुरों के संहार के लिए इनका अवतरण काली रुप में हुआ था। दुर्गासप्तशती में भगवती का आश्वासन है कि हर युग में देवताओं अर्थात सज्जनों की रक्षा तथा असुरों अर्थात दुष्टों के संहार के लिए मैं देवताओं की सम्वेत पुकार पर अवतरित होउँगी।

भीमाकील मंदिर, सराहन

मंदिर के बहुमंजिले भवन में तीसरी मंजिल से अंदर प्रवेश हुआ, भीमाकाली के दर्शन होते हैं, अपना भाव निवेदन के साथ यहाँ बाहर परिसर में आते हैं। यहाँ गुलाब के सुंदर फूलों के दर्शन होते हैं, साफ सुथरे परिसर में भवनों का अवलोकन करते हैं। यहाँ की कैंटीन में पेट पूजा करते हैं बाहर निकल कर परिक्रमा पथ पर सराहन गाँव के दर्शन करते हैं। रास्ते में सेब के नए बगान दिखे, कुछ घरों के बाहर जापानी फल के पेड़ लगे मिले। यहाँ से पीछे हरे-भरे देवदार-बाँज के जंगल शीतल अनुभव दे रहे थे। परिक्रमा पूरा कर हम बापिसी में मंदिर परिसर के बाहर मैदान में चल रहे भण्डारे में भोजन-प्रसाद ग्रहण करते हैं और बापिसी की बस में बैठकर अपने गन्तव्य शिमला की ओर उसी रास्ते से घर आते हैं।

इस तरह शिमला में रहते हुए 1-2 दिन में आसपास के इन स्थलों का भ्रमण और अवलोकन किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त और भी कई स्थल हैं, जिनको इस सूचि में जोड़ा जा सकता है।

शिमला की ऐतिहासिक विरासत संजोए दर्शनीय स्थल, IIAS, SHIMLA,  भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS) Shimla


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