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यात्रा वृतांत – पराशर झील, मण्डी,हि.प्र. की हमारी पहली यात्रा, भाग-3

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धुंध के बीच लुकाछिपी करती पराशर झील  पिछली पोस्ट में हम पराशर झील के किनारे मंदिर परिसर तक पहुँच चुके थे, लेकिन पूरी यात्रा घनी धुंध के बीच रही। लेकिन अब धुंध थोड़ा सा छंट रही थी। झील का किनारा दिख रहा था और इसमें तैरता टापू भी। झील के चारों ओर तार का बाढ़ा लगा हुआ था, जिसके अंदर प्रवेश करना मना है। बाढ़े के पास बुर्ज के साथ अलग-अलग रंग के झंड़े लगे हैं, जो यात्रियों को धुंध में परिक्रमा पथ का दिशा बोध कराते हैं। मंदिर की ओर सटी झील में छोटी मछलियों की अठखेलियाँ स्पष्ट दिख रही थी। हम जुता स्टैंड में जुता उतारकर परिसर की एक दुकान से प्रसाद लेते हैं व मंदिर में प्रवेश करते हैं। ऋषि पराशर की प्रतिमा के सामने माथा टेककर पूजारीजी से प्रसाद लेकर प्राँगण के मध्यम में बने स्थान पर धूप-अग्रबती जलाते हैं और कुछ पल ध्यान के बाद फिर कुछ पारिवारिक फोटो लेते हैं और इसके बाद पूजारीजी से बात करते हैं। तीर्थ स्थल से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ बटोरते हैं व कुछ शंकाओं का समाधान करते हैं। पूजारीजी के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण तो लगभग 500 साल पहले एक छः माह के बालक ने एक ही पेड