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जनवरी 11, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जागरण गीत

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ठहरे पथिक के लिए सही समय के इंतजार में बीत गयी सदियाँ, बीत चला जमाना, ऋतुओं का क्रम अपनी जगह, मौसम का बदलता तराना, कुछ सुख की खुमारी में डूबा तन, कुछ परिस्थितियों की मार से बिखरा मन, पथिक यह कहाँ ठहर गए, कब सुनाओगे सृजन का गीत नया, सुनने को आतुर जमाना। माना, चुनौतियों का मंजर थमने का नाम नहीं ले रहा,   एक के पीछे एक चल रहा इनका अविरल रेला, बढ़ने वाले बढ़ते जा रहे मंजिल की ओर, और, दुनियाँ का चल रहा अपना मेला, सही समय के इंतजार में, तू पथिक कहाँ खडा अकेला, कब तक डूबे रहोगे इस खुमारी में, कब आएगी तेरे जागरण की वेला। फिर, कब थमी हैं लहरें, कि नाव बढ़े, मंजिल की ओर, कब ठहरी है पथिक के इंतजार में समय की धारा, कब झुके हैं पर्वत, शिखर आरोही के मार्ग में, कब अनुकूल हुई हैं परिस्थितियाँ, पक्ष में जमाना सारा, कब सुप्त सिंह की गुफा में हाजिर हुए हैं हिरन, कब बिना खून-पसीना बहाए, खिलाड़ी ने है मैदान मारा, कब अखाड़े में बिन उतरे कोई बना है सिकंदर, कब किनारे पर लहरें गिनते, पार हुआ है समंदर। उठो वीर, रणध