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शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

लेखन कला, युगऋषि पं.श्रीराम शर्मा आचार्यजी के संग

 लेखन प्रारम्भ करने से पूर्व मनन करने योग्य कुछ सुत्र

1 उत्कट आकांक्षा

महान लेखक बनने की उत्कट अभिलाषा लेखक की प्रमुख विशेषता होनी चाहिए। वह आकांक्षा नाम और यश की कामना से अभिप्रेरित न हो। वह तो साधना के परिपक्व होने पर अपने आप मिलती है, पर साहित्य के आराधक को इनके पीछे कभी नहीं दौड़ना चाहिए। आकांक्षा दृढ़ निश्चय से अभिप्रेरित हो। मुझे हर तरह की कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने ध्येय की ओर बढ़ना है, ऐसा दृढ़ निश्चय जो कर चुका है, वह इस दिशा में कदम उठाए। उत्कृष्ट लेखन वस्तुतः योगी मनोभूमि से युक्त व्यक्तियों का कार्य है। ऐसी मनोभूमी होती नहीं, बनानी पड़ती है। ध्येनिष्ठ साधक ही सफल रचनाकार बन सकते हैं।

 

2       एकाग्रता का अभ्यास

लेखन में साधक को विचारों की एकाग्रता का अभ्यास करना पड़ता है। एक निश्चित विषय के इर्द-गिर्द सोचना और लिखना पड़ता है। यह अभ्यास नियमित होना आवश्यक है। मन की चंचलता, एकाग्रता में सर्वाधिक बाधक बनती है। नियमित अभ्यास इस अवरोध को दूर करने का एकमात्र साधन है। व्यायाम की अनियमितता के बिना कोई पहलवान नहीं बन सकता। रियाज किए बिना कोई संगीतज्ञ कैसे बन सकता है? शिल्पकार प्रवीणता एक निष्ठ अभ्यास द्वारा ही प्राप्त करता है। लेखन कला के साथ भी यही नियम लागू होता है। न्यूनतम 5 अथवा 10 पन्ने बिना एक दिन भी नागा किए हर साहित्य साधक को लिखने का अभ्यास करना चाहिए। (यदि कोई नया लेखक है, तो शुभारम्भ एक पैरा या एक पन्ने से भी की जा सकती है।)

संभव है कि आरंभ में सफलता न मिले। विचार विश्रृंखलित हों, अस्त-व्यस्त अथवा हल्के स्तर के हों, पर इससे साधक को कभी निराश नहीं होना चाहिए। संसार में किसी को भी आरंभ में सफलता कहां मिली है? एक निश्चित समय के अभ्यास के उपरांत ही वे सफल हो सके। अपना नाम छपाने अथवा पैसा कमाने की ललक जिसे आरंभ से ही सवार हो गई, वह कभी भी महान लेखक नहीं बन सकता। भौतिक लालसाओं की पूर्ति की ओर ही उसका ध्यान केंद्रित रहता है। फलस्वरूप ऐसे मनोवृति के छात्र अभीष्ट स्तर का अध्यवसाय नहीं कर पाते। परिश्रम एवं अभ्यास के अभाव में लेखन के लिए आवश्यक एकाग्रता का संपादन नहीं हो पाता। ऐसे लेखक कोई हल्की-फुल्की चीजें भले ही लिख लें, विचारोत्तेजक रचनाएं करने में सर्वथा असमर्थ ही रहते हैं।

 

3       अध्ययनशीलता

अध्ययन के बिना लेखन कभी संभव नहीं है। जिसकी अभिरुचि प्रबल अध्ययन में नहीं है, उसे लेखन में कभी प्रवृत नहीं होना चाहिए। किसी विषय की गंभीरता में प्रवेश कर सकना बिना गहन स्वाध्याय के संभव नहीं। लेखक की रुचि पढ़ने के प्रति उस व्यसनी की तरह होना चाहिए जिसे बिना व्यसन के चैन नहीं पड़ता। प्रतिपाद्य विचारों के समर्थन के लिए अनेकों प्रकार के तर्कों, तथ्यों और प्रमाणों का सहारा लेना पड़ता है। मात्र मौलिक सूझबूझ से इन आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकना किसी भी आरंभिक लेखक के लिए संभव नहीं। ऐसे विरले होते हैं जिनके विचार इतने सशक्त और पैने होते हैं कि उन्हें किसी अन्य प्रकार के समर्थन की जरूरत नहीं पड़ती। यह स्थिति भी विशेष अध्ययन के उपरांत आती है। आरंभ में किसी भी लेखक को ऐसी मौलिकता के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए

इस संदर्भ में एक विचारक का कथन शत प्रतिशत सही है कि जितना लिखा जाए उससे 4 गुना पढ़ा जाए। पढ़ने से विचारों को दिशा मिलती और विषयों से संबंध उपयोगी तथ्य और प्रमाण मिलते रहते हैं। विचारों को पुष्ट करने, प्राणवान बनाने में इन तथ्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हिंदी रचनाओं में आजकल तथ्यों की कमी देखी जा सकती है। प्रायः अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं में मौलिकता के नाम पर विचारों की पुनरावृति ही होती रहती है। तर्क, तथ्य और प्रमाण के बिना ऐसी रचनाएं नीरस और उबाऊ लगती है। विचारों में नवीनता एवं प्रखरता न रहने से कोई दिशा नहीं दे पाती, न ही वह प्रभाव दिखा पाती जो एक उत्कृष्ट रचना द्वारा दिखाई पड़ना चाहिए।

यह वस्तुतः अध्ययन की उपेक्षा का परिणाम है। मानसिक प्रमाद के कारण अधिकांश लेखक परिश्रम से कतराते रहते हैं। अभीष्ट स्तर का संकलन ना होने से एक ही विचारधारा को शब्दावली में बदल कर दोहराते रहते हैं। पश्चिमी जगत के लेखकों की इस संदर्भ में प्रशंसा करनी होगी। संकलन करने, तथ्य और प्रमाण जुटाने के लिए वे भरपूर मेहनत करते हैं। जितना लिखते हैं उसका कई गुना अधिक पढ़ते हैं। तथ्यों, तर्कों एवं साक्ष्यों की भरमार देखनी हो तो उनके लेखों में देखी जा सकती है। यह अनुकरण हिंदी भाषी लेखकों को भी करना चाहिए। जो लेखन की दिशा में प्रवृत्त हो रहे हैं उन्हें स्वाध्याय के प्रति बरती गई उपेक्षा के प्रति सावधान रहना चाहिए।

यह भी बात ध्यान रखने योग्य है कि विचारों का गांभीर्य विशद अध्ययन के उपरांत ही आता है। विचार भी विचारों को पढ़कर चलते तथा प्रखर बनते हैं। उन्हें नवीनता अध्ययन से पैदा होती है। अतएव अध्ययनशीलता लेखन की प्रमुख शर्त है।

एक सूत्र में कहा जाए तो इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है, लेखन बाद में, पहले अपने विषय का ज्ञान अर्जित करना। सबसे पहले लिखने की जिनमें सनक सवार होती है वह कलम घिसना भले ही सीख लें, विषय में गहरे प्रवेश कर प्रतिपादन करने की विधा में कभी निष्णात नहीं हो पाते। लिखना उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना कि तथ्यों का संकलन। विषय के कई पक्षों-विपक्षों की जानकारी लिए बिना सामग्री संकलन संभव नहीं। बिना सामग्री के जो भी लिखेगा आधा-अधूरा, नीरस ही होगा।

 

4       जागरूकता

हर नवीन रचना में त्रुटियों एवं भटकाव की गुंजाइश रहती है। त्रुटियाँ अनेकों प्रकार की हो सकती हैं। भाषा संबंधी और वाक्य विन्यास संबंधी भी। व्याकरण की गलतियां भी देखी जाती हैं। प्रतिपादन में कभी-कभी भटकाव भी हो सकता है। इन सबके पति लेखक-साधक को पूर्णरूपेण जागरूक होना चाहिए। हर त्रुटि में सुधार के लिए बिना किसी आग्रह के तैयार रहना चाहिए। इस क्षेत्र में जो विशेषज्ञ हैं, उनसे समय-समय पर अपनी रचनाओं को दिखाते रहने से अपनी भूल मालूम पड़ती है। विषयांतर हो जाने से भी लेखक अपने लक्ष्य से भटक जाता है। फलस्वरुप रचना में सहज प्रवाह नहीं आ पाता। इस खतरे से बचने का सर्वोत्तम तरीका यह है कि किसी समीक्षक की निकटता न प्राप्त हो तो स्वयं को आलोचक नियुक्त करें, जो लेखे लिखे जाएं, उन्हें कुछ दिनों के लिए अलग अलमारी अथवा फाइल में रख देना चाहिए तथा दो-तीन दिनों बाद पुनः अवलोकन करना चाहिए। ऐसा इसलिए करना उचित है कि तुरंत के लिखे लेखों में मस्तिष्क एक विशिष्ट ढर्रे में घूमता रहता है। इस चक्र से बाहर चिंतन नहीं निकलने पाता। फलस्वरुप स्वयं की गलतियां पकड़ में नहीं आती। समय बीतते ही चिंतन का यह ढर्रा टूट जाता है। फलतः बाद में पुनरावलोकन करने पर भूल-त्रुटियों का ज्ञान होता है, जिन्हें सुगमतापूर्वक ठीक किया जा सकता है।

जागरूकता का यह तो निषेधात्मक पक्ष हुआ। विधेयात्मक पक्ष में लेखक को लेखनी से संबद्ध हर विशेषताओं को धारण करने के लिए तत्पर रहना पड़ता है। शैली लेखन कला की प्राण है। वह जितनी अधिक जीवंत-माधुर्यपूर्ण होगी, उतना ही लेख प्रभावोत्त्पादक होगा। इस क्षमता के विकास के लिए लेखक को उन तत्वों को धारण करना पड़ता है जो किसी भी लेख को ओजपूर्ण बनाते हैं। शब्दों का उपयुक्त चयन भी इसी के अंतर्गत आता है। प्रभावोत्पादक शब्दों का चयन तथा वाक्यों में उचित स्थानों पर उनका गुंथन लेखन की एक विशिष्ट कला है जो हर लेखक की अपनी मौलिक हुआ करती है। इसके विकास के लिए प्रयत्नशील रहना सबका कर्तव्य है।

 

5       ज्ञान को पचाने की सामर्थ्य का होना

जो भी कार्य हाथ में लिया जाए उसके सीमाबंधन को भी जानना चाहिए। असीम विस्तार वाला विषय हाथ में लेकर कोई भी व्यक्ति अपने प्रतिपाद्य शोध कार्य से न्याय नहीं कर सकता। अपनी सामर्थ्य कितनी है तथा किस प्रकार सिनॉप्सिस बनाकर आगे बढ़ना है, इसका पूर्वानुमान लगा लेना सफलता का मूलभूत आधार है। यह ठीक उसी प्रकार हुआ जैसे रोगी को व्याधि एवं शरीर के भार नाप-तोल आदि के बाद उसकी औषधि का निर्धारण किया जाए। यदि प्रारंभिक निर्धारण न करके अपनी हवाई उड़ान आरंभ कर दी तो फिर शोधकार्य कभी पूरा नहीं हो सकता। अपनी विषयवस्तु के बारे में लेखक को बड़ा स्पष्ट एवं टू द प्वाइंट होना चाहिए। इसी से भटकाव से बचना संभव हो पाता है। सफल शोधार्थी व लेखक पहले अपनी सीमा-क्षमता देखते हैं, तदुपरांत कुछ करने का संकल्प लेते हैं। अधूरे शोधकार्यों की भरमार इस दिशा में एक अच्छा खासा शिक्षण है।

 

6       संवेदनशीलता

कल्पना की नींव पर ही लेख का महल तैयार होता है, किसी विद्वान का यह कथन अक्षरशः सत्य है। कविता जैसी रचनाओं में तो एक मात्र कल्पना शक्ति का ही सहारा लेना पड़ता है। भाव-संवेदनाओं का शब्दों के साथ नृत्य, कविता की प्रमुख विशेषता होती है। लेखों में भी विचारों के साथ भाव-संवेदनाओं का गुंथन रचना में प्राण डाल देता है। लेखन में दीर्घकालीन अभ्यास के बाद यह कला विकसित होती है। एक मनीषी का मत सारगर्भित जान पड़ता है कि जिसका हृदय अधिक संवेदनशील और विराट है उसमें उतनी ही सशक्त सृजनात्मक कल्पनाएं-प्रेरणाएं उद्भूत होती हैं। हृदयस्पर्शी मार्मिक संरचनाएं भाव संपन्न ह्दयों से ही उद्भूत होती हैं। ऐसी रचनाओं में रचनाकार के व्यक्तित्व की अमिट छाप प्रायः झलकती है। जो दूसरों की पीड़ा, वेदना को अनुभव करता है वह अपनी रचना में संवेदना को अधिक कुशलता से उभार सकने में सक्षम हो सकता है। वेदना-विहीन हृदय में वह संवेदन नहीं उभर सकता, जो रचना में प्रकट होकर दूसरों के अंतःकरणों को आंदोलित-तरंगित कर सके।

(साभार – श्रीराम शर्मा आचार्य, युगसृजन के संदर्भ में प्रगतिशील लेखन कला, पृ.64-69)

 

 

बुधवार, 26 मई 2021

यात्रा वृतांत कैसे लिखें?

                                                      यात्रा वृतांत लेखन के चरण

निश्चित रुप में यात्रा वृतांत का पहला ठोस चरण तो यात्रा के साथ शुरु होता है। व्यक्ति कहाँ की यात्रा कर रहा है, किस भाव और उद्देश्य के साथ सफर कर रहा है और किस तरह की जिज्ञासा व उत्सुक्तता लिए हुए है, इनकी गहनता, गंभीरता एवं व्यापकता एक अच्छे यात्रा वृतांत के आधार बनते हैं तथा यात्रा वृतांत में रोचकता और रोमाँच का रस घोलते हैं और साथ ही ज्ञानबर्धक भी बनाते हैं।

यात्रा वृतांत ज्ञानबर्धक बने इसके लिए यह भी आवश्यक हो जाता है कि यात्रा स्थल या रुट का पहले से कुछ अध्ययन किया गया हो। या कह सकते हैं कुछ रिसर्च की हो। पहले इसका एक मात्र साधन दूसरों के लिखे यात्रा वृतांत पढ़ना या वहाँ से घूम आए लोगों से की गई चर्चा होती थी। लेकिन आज इंटरनेट के जमाने में यह काम बहुत आसान हो गया है। लगभग हर लोकप्रिय ठिकानों पर ब्लॉग से लेकर वीडियोज मिल जाएंगे। बाकि कसर गूगल गुरु पूरा कर देते हैं, जिसमें किसी भी स्थान पर तमाम तरह की जानकारियाँ उपलब्ध रहती हैं।

यहीं से यात्रा वृतांत में नूतनता लाने के सुत्र भी मिल जाते हैं, कि अब तक दूसरे यात्री क्या कवर कर चुके हैं और इसमें कौन से पहलु या एंग्ल अभी बाकि हैं। हो सकता है कि अमुक यात्रा में आपकी रुचि के विषय पर अभी कोई प्रकाश ही न डाला गया हो या जो जानकारियाँ उपलब्ध है वे आपकी जिज्ञासा व उत्सुक्तता का समाधान नहीं कर पा रही हों। ऐसे में यह जानकारी का अभाव या खालीपन आपके यात्रा लेखन के नूतनता का एक प्रेरक तत्व बन जाता है।

उदाहरण के लिए हम एक शैक्षणिक भ्रमण में ऋषिकेश के पास कुंजादेवी शक्तिपीठ से बापसी में नीरझरना घूमना चाहते थे, लेकिन हमें कोई इसकी जानकारी देने वाला नहीं मिला। इंटरनेट खंगालने पर भी नीरझरने की कुछ फोटो या वीडियो के अलावा रुट की कोई जानकारी नहीं मिली। सो शिखर पर बसे कुँजापुरी से बापसी में लोगों से पूछते हुए, बीच में राह भटकते हुए हम इसको कवर किए थे। लेकिन यह स्वयं में एक रोचक एवं रोमाँचक यादगार यात्रा बन गई थी। इसे आप चाहें तो आगे दिए लिंक में पढ़ सकते हैं।यात्रा वृतांत - कुंजापुरी से नीरझरना ट्रैकिंग एडवेंचर।

और यदि स्थान बहुत लोकप्रिय है और इसमें पर्याप्त कवरेज हो चुकी है, तो भी यात्रा लेखक  अपने विशिष्ट नजरिए, अंदाज व शैली के आधार पर इसे नयापन दे सकता है, बल्कि देता है। एक ही स्थान को देखने के अनगिन नजरिए हो सकते हैं। किसी भी स्थान का प्राकृतिक सौंदर्य, भौगोलिक विशेषता, ऐतिहासिक-पौराणिक पृष्ठभूमि, वहाँ का रहन-सहन, खान-पान, लोक संस्कृति, विशिष्टता, राह की खास बातें आदि कितनी बातें, कितने तरीकों से व्यक्त हो सकती हैं। इसमें व्यक्ति के अपने मौलिक अनुभव एक नयापन घोलने में सक्षम होते हैं, जिससे कि यात्रा वृतांत एक ताजगी लिए तैयार होता है।

इसके साथ कोई भी स्थान या रुट कितना ही सुंदर, आकर्षक या मनभावन क्यों न हो, वहाँ कि कुछ कमियाँ, राह की दुर्गमताएं, समस्याएं या क्लचरल शॉक्स आदि भी यात्रा वृतांत के रोचक विषय बनते हैं, जो पाठकों के लिए उपयोगी हो सकते हैं। इससे नए यात्री या पर्यटक इनसे परिचित होकर आवश्यक तैयारी या सावधानी के साथ यात्रा का पूरा आनन्द ले पाते हैं। यदि लेखक किसी विषय की जानकारी रखता हो या विशेषज्ञता लिए हो तो स्थानीय समस्याओं के संभावित समाधान पर भी प्रकाश डाल सकता है, जो यात्रा वृतांत में ज्ञानबर्धन आयाम जोड़ते हैं और इसकी पठनीयता बढ़ जाती है। इसमें संवेदनशील व संतुलित रवैया उचित रहता है तथा दोषारोपण या छिद्रान्वेषण आदि से हर हालत में बचना उचित रहता है।

यात्रा वृतांत में राह में मिले अन्य यात्रियों, स्थानीय लोगों के साथ चर्चाएं भी यात्रा वृतांत के अनिवार्य पहलु रहते हैं, जो जानकारी को और प्रामाणिक तथा रोचक बनाते हैं। इससे पाठकों की कई सारी जिज्ञासाओं व प्रश्नों के समाधान बात-बात में मिल सकते हैं। अतः यात्रा में लोगों से संवाद एक महत्वपूर्ण तत्व रहता है, जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यात्रा लेखक यदि घूमने के जुनून व जिज्ञासाओं से भरा हुआ है, तो ऐसे संवाद सहज रुप में ही घटित हो जाते हैं और प्रकृति भी राह में उचित पात्र के साथ मुलाकात में सहायक बनती है। इसमें कई लोगों को थोड़ा अचरज हो सकता है, लेकिन अनुभवी घुम्मकड़ ऐसे संयोगों को सहज रुप में समझ रहे होंगे व ऐसे संस्मरणों से नित्य रुबरु होते रहते हैं।

यात्रा वृतांत में फोटो का अपना महत्व रहता है। सटीक फोटो इसकी पठनीयत को बढ़ा देता है। यात्रा लेखक अपने लेखकीय कौशल के आधार पर जो कह नहीं पाता, वह एक उचित चित्र बखूबी व प्रभावशाली ढंग से स्पष्ट कर देता है, जिससे पाठक को यात्रा के साथ भाव चित्रण में सहायता मिलती है। हालाँकि किसी स्थल के प्राकृतिक सौंदर्य़, भौगोलिक विशेषता या भावों के सुंदर व जीवंत चित्रण को लेखक अपनी कलम से करने में काफी हद तक सक्षम होता है, जिसको पढ़ने का अपना आनन्द रहता है। किसी जमाने में जब फोटोग्राफी का चलन नहीं था, तो लोग पेन या पेंसिल के स्कैच से भी चित्रों का काम चला लिया करते थे।

यात्रा वृतांत लेखन में एक महत्वपूर्ण पहलू राह के पड़ाव व स्थानों के नाम व उनसे जुड़ी मोटी व खास जानकारियाँ भी रहते हैं। इसके लिए एक डायरी व पेन साथ में रहे, तो उचित रहता है। जहाँ भी जो स्थान आए, इनके नाम नोट किए जा सकते हैं। और यदि पहले से कुछ रिसर्च कर रखें हैं, तो इन स्थानों को पहले से ही डायरी में सुचिबद्ध कर रखा जा सकता है तथा साथ में सफर कर रहे लोगों से कुछ खास जानकारियों को बटोरा जा सकता है। फिर अपने अनुभव के आधार पर इनमें अतिरिक्त नयापन जोड़ा जा सकता है। अपनी डायरी या नोटबुक में नोट किए गए ये नाम या बिंदु बाद में लेखन में सहायक बनते हैं।

यात्रा पूरी होने के बाद फिर लेखन की बारी आती है। इसमें लेखन से जुड़े सर्वसामान्य नियमों का अनुसरण करते हुए पहला रफ ड्राफ्ट तैयार किया जाता है, जिसमें अपनी यात्रा के अनुभवों को एक क्रम में कागज या कम्पयूटर-लैप्टॉप पर उतारा जाता है। फिर शांत मन से कुछ और विचार मंथन व शोध के आधार पर दूसरे ड्रॉफ्ट में अतिरिक्त आवश्यक तथ्यों व जानकारियों को शामिल किया जा सकता है तथा इसमें भाषा की अशुद्धियों को ठीक करते हुए इसे पॉलिश किया जाता है। यदि लेखन की इस प्रक्रिया को विस्तार से जानना है तो हमारे ब्लॉग पर लेखन कला - लेखन की शुरुआत करें कुछ ऐसे को पढ़ा जा सकता है।

यात्रा वृतांत लेखन में यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए व इन चरणों का अनुसरण किया जाए, तो निश्चित ही एक बेहतरीन यात्रा ब्लॉग तैयार हो जाएगा। और पाठक इसको पढ़कर यात्रा के साथ जुडी रोचकता व रोमाँच को अनुभव करेंगे। उनके ज्ञान में इजाफा होगा तथा वे आपके साथ भावयात्रा करते हुए सफर के आनन्द का हिस्सा बनेंगे। शायद यही तो एक यात्रा लेखन का मकसद रहता है।

यात्रा लेखन के ऊपर दिए बिंदुओं को और बेहतर समझने के लिए नीचे दिए कुछ यात्रा वृतांतों को पढ़ा जा सकता है -

यात्रा वृतांत - हमारी पहली झारखण्ड यात्रा

यात्रा वृतांत - सुरकुण्डा देवी का वह यादगार सफर, भाग-1

यात्रा वृतात - कुल्लू से नेहरुकुण्ड-वशिष्ट वाया मानाली लेफ्ट बैंक

यात्रा लेखन से जुड़े कुछ अन्य उपयोगी लेख -

यात्रा लेखन के मूलभूत तत्व

हिंदी यात्रा लेखन की परम्परा एवं यात्रा लेखन के महत्व

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

ब्लॉगिंग - पहला कदम

ब्लॉगर पर ब्लॉगिंग की शुरुआत करें कुछ ऐसे
 
 
यदि आप ब्लॉगिंग की दुनियाँ से अधिक परिचित नहीं है व ब्लॉगिंग करना चाहते हैं, तो आपका स्वागत है। यह पोस्ट विशेषरुप से ऐसे जिज्ञासु पाठकों के लिए लिखी जा रही है, जो अपना ब्लॉग शुरु करना चाहते हैं, लेकिन इसके बारे में अधिक नहीं जानते। यह पोस्ट आपको मोटा-मोटी कुछ ऐसे जानकारियाँ देगी, जो नए ब्लॉगर के लिए उपयोगी साबित होंगी व आप निर्बाध रुप में अपना ब्लॉग जारी रख सकेंगे व इसके क्रिएटिव एडवेंचर का हिस्सा बनेंगे।
हमें याद है कि जब वर्ष 2013 में हमने अपना यह ब्लॉग शुरु करना चाहा, तो इसकी पहली पोस्ट डालने से कई माह लग गए। पहला कारण था उचित मार्गदर्शन का अभाव और दूसरा परफेक्ट समय का इंतजार। इस परफेक्शनिज्म के कुचक्र से अंततः हम अप्रैल 2014 में बाहर आते हैं और अपना पूरा साहस बटोर कर पहली पोस्ट के साथ ब्लॉगिंग की दुनियाँ में कदम रखते हैं। 

 
इसी तरह सप्ताह-दस दिन के अन्तराल में अगली पोस्ट डालते जाते हैं और शेयर करते हैं। बीच-बीच में उत्साहबर्धक कमेंट्स मिलते गए, तो लगा कि कंटेंट सही दिशा में जा रहा है। हालाँकि अधिकाँश पोस्टों में कमेंट्स नहीं भी मिले, लेकिन ब्लॉग में बने डैशबोर्ड पर आँकड़ों से पाठकों की संख्या को देख, लेखों की पठनीयता का अंदाजा मिलता रहता। हालाँकि अब हम इस लाईक-कमेंट्स के मायावी कुचक्र से काफी-कुछ बाहर आ चुके हैं, लेकिन शुरुआती दौर में तो ये सब काफी मायने रखता ही है।
 
मालूम हो कि ब्लॉग की शुरुआत वर्ष 1994 में वेब-डायरी के रुप में हुई थी, लेकिन आज इसका संसार इसके बहुत आगे निकल कर व्यापक रुप ले चुका है। 
 
ब्लॉग का उद्भव एवं विकास यात्रा...
 
हमारे विचार में ब्लॉग रचनात्मक अभिव्यक्ति का एक ऐसा प्लेटफोर्म है, जहाँ आप अपने विषय के ज्ञान को जिज्ञासु पाठकों के साथ साझा करते हैं। यदि आप अभी विषय विशेषज्ञ नहीं भी हैं, तो भी हर व्यक्ति कुछ मौलिक विशेषताएं लिए होता है, बाहर प्रकट होने के लिए कुछ मौलिक विचार, भाव एवं आइडियाज कुलबुला रहे होते हैं, इन्हें तराशकर दूसरों के साथ शेयर किया जा सकता है। ब्लॉग इसमें बहुत सहायक रहता है। क्रमशः आपकी एक वेब डायरी बनती जाती है, जहाँ आपकी मौलिकता एवं रचनात्मक उत्कृष्टता के कदरदान मिल ही जाते हैं। 
इस संदर्भ में यह पूरी तरह से लोकतांत्रिक माध्यम है। यदि कंटेट की गुणवत्ता में क्रमशः इजाफा करते रहेंगे, तो पाठकों का प्रवाह बना रहेगा। इसके अतिरिक्त कुछ नए सृजन का आनन्द अपनी जगह, जो स्वयं में एक पारितोषिक रहता है, जो दूसरों की तारीफ न मिलने पर भी ब्लॉगर को मस्त मग्न रखता है। क्रमशः ब्लॉगिंग के तमाम लाभ निष्ठावान ब्लॉगर को समझ आते हैं।
 
ब्लॉगिंग के लाभ
 
अतः ब्लॉग में क्या लिखें, क्या शेयर करें, तो मोटा सा नियम है कि जो रचनात्मक संभावनाएं (किएटिव पोटेंशियल) आपके अंदर पक रही हैं, विचार-भावनाओं का समन्दर लहलहा रहा है, कुछ खिच़ड़ी पक रही है। उसे आप थोड़ा मेहनत कर सृजनात्मक तरीके से पेश कर शेयर कर सकते हैं। यह एक लेख हो सकता है, एक कविता भी हो सकती है, यात्रा वृतांत हो सकता है, एक कहानी हो सकती है या कोई पुस्तक या फिल्म समीक्षा हो सकती है या किसी ज्वलंत मुद्दे फर आपकी परिपक्व राय हो सकती है या आपकी विशेषज्ञता के अनुरुप कुछ और। यह पाठकों की आवश्यकता के अनुुरुप तैयार किया गया कंटेट भी हो सकता है, जिसे आप अपनी विशेषज्ञता के आधार पर साझा करने में सक्षम होते हैं। कुल मिलाकर यह आपके पैशन, आपकी रचनात्मक संभावनाओं, आपके निहायत मौलिक अनुभवों एवं जीवन दर्शन की रचनात्मक अभिव्यक्ति होती है, जिनके साथ आप अपने जीवन की यात्रा में निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ रहे होते हैं। 
 
सृजनात्मक जीवन की साहसिक यात्रा

यदि आप लेखन के क्षेत्र में नौसिखिया हैं व शुरुआती लेखन के गुर जानना चाहते हैं तो इसके लिए आप हमारी ब्लॉग पोस्ट - लेखन की शुरुआत करें कुछ ऐसे को पढ़ सकते हैं, लेखन के विभिन्न चरणों को समझ सकते हैं व आजमा सकते हैं और ब्लॉग की पहली उमदा पोस्ट तैयार कर शेयर कर सकते हैं। इसे शेयर करने के लिए प्रारम्भिक ब्लॉगर्ज के लिए सबसे सरल एवं निःशुल्क व्यवस्था गूगल में उपलब्ध ब्लॉगर सेवा है।
 
 
अपने जीमेल (gmail) एकाउंट के साथ आप अपना खाता खोल सकते हैं, अपना मनभावन नाम देते हुए ब्लॉगर पर उपलब्ध उचित टैंपलेट का चुनाव कर तैयार की गई पहली पोस्ट के साथ शुभारम्भ कर सकते हैं।  
https://www.blogger.com  को खोलें।
create your blog बटन को क्लिक कर, इसमें जीमेल के साथ प्रवेश करें।
ब्लॉग को उचित शीर्षक (Title) दें,
Address में blogspot.com से पहले उचित नाम दें, जो इसमें स्वीकार्य हो। बाद में custom domain से इसे बदला या परिवर्धित किया जा सकता है।
theme में उपलब्ध कई थीम्ज से उपयुक्त का चयन करें, इसे आप बाद में अपनी आवश्यकता व रुचि के अनुरुप बदल सकते हैं।
आपका ब्लॉग तैयार हो जाएगा।
New post बटन को क्लिक कर उपयुक्त शीर्षक व नीचे खाने में टाईप किया मैटर पेस्ट् करें।
दायीं ओर ऊपर post setting में label को क्लिक कर पोस्ट से जुड़े तीन-चार की-वर्ड टाईप करें, जो पोस्ट प्रकाशित करने के बाद पोस्ट के नीचे अंत में दिखेगी
ऊपर दायीं ओर Publish बटन दवाने पर पोस्ट पब्लिश हो जाएगा। इससे पहले preview बटन को दबाकर पोस्ट के स्वरुप को प्रकाशन से पूर्व एक बार चैक कर सकते हैं। 
 अब आपका ब्लॉअपनी पहली पोस्ट के साथ तैयार है। जिस आप जब चाहें अपने मित्रों या पब्लिक के बीच विभिन्न सोशल मीडिया में शेयर कर सकते हैं।
 
 
एक ब्लॉग के लेआउट में मोटा-मोटी चार हिस्सा होते हैं।
 
एक ब्लॉग की आधारभूत संरचना
 
ऊपर हेडर में ब्लॉग का शीर्षक व इसके सार को अभिव्यक्त करता उपशीर्षक व उपयुक्त फोटो। इसके दायीं और मुख्य कंटेंट रहता है, जिसमें आपकी नयी पोस्ट की लिखी हुई सामग्री व फोटो रहती हैं। ब्लॉग के वायीं और साईडवार में आपका प्रोफाईल फोटो-संक्षिप्त परिचय, विज्ञापन, आपके अनुसरणकर्ता, लोकप्रिय पोस्टों की एक निश्चित संख्या, कुल दर्शक संख्या आदि होते हैं इसी तरह ब्लॉग के नीचे फुटर में अपनी संपर्क मेल, कॉपीराईट स्टेटमेंट, व कोई विशिष्ट पोस्ट आदि को सजा सकते हैं।

अपनी पोस्ट के साथ विषयानुरूप उचित चित्रों का संयोजन कर इसे और अधिक रोचक एवं प्रभावशाली बना सकते हैं। इसके साथ ब्लॉग के लेआउट में जाकर विभिन्न गैजेट्स जोड़कर अपने ब्लॉग को अधिक आकर्षक, यूजर फ्रेंडली एवं प्रभावशाली बना सकते हैं।
 
          ले आउट सेक्शन में उपलब्ध गैजेट वार
 
ब्लॉग के संदर्भ में एक अहं बात का यहाँ जिक्र करना चाहूंगा, जिससे आपका ब्लॉग एक बार शुरु होकर फिर अनवरत चलता रहे। वह है ब्लॉग से जुड़ा आपका पैशन या जुनून। एक बार इसको अवश्य टटोलें व खोजें, जो आपके जीवन के मकसद से जुड़ा हो, जिससे कि इसे आप परिस्थितियों के तमाम विषम थपेड़ों के बीच भी उत्साह एवं निष्ठा के साथ आगे बढ़ सकें। इसके अभाव में नियमित अन्तराल पर ब्लॉग को मेंटेन रखना कठिन हो जाता है। 
हम कितने ऐसे ब्लॉगर्ज को जानते हैं, जो शुरु तो जोश के साथ किए थे, लेकिन जोश कुछ माह बाद ठंडा पड़ता गया। फिर कई महिनों का गैप होता गया। कुछ तो सालों का गैप लिए हुए हैं तथा जोश में शुरु हुए ब्लॉग अपने वजूद के लिए संघर्ष की स्थिति में हैं तथा कई अपना दम तोड़ चुके हैं। 
आपके ब्लॉग के साथ भी ऐसा कुछ न हो, तो समझना जरुरी है कि ब्लॉग के बारे में आपका पैशन ही शुरुआत है, आपका जुनून ही मध्य है और यही आपको नए मुकाम तक पहुँचाने वाला कीमिया है। 
 
ब्लॉगिंग का सारा खेल आपके पैशन, आपके जुनून का है
 
यदि आप अपनी ब्लॉगिंग पर डटे रहे, तो क्रमशः आपकी लेखन शैली में सुधार आएगा। आपके विचारों में धार आएगी। हर ब्लॉग के साथ मन का गुबार हल्का होगा तथा सृजन का आनन्द आपकी झोली में होगा। इसके साथ आपके ब्लॉग पर ट्रेफिक बढ़ना शुरु होगा। एक सुहानी सुबह आपको सुखद अहसास होगा कि अपनी रूचि के कुछ विषयों में आप एक विशेषज्ञ के रुप में उभर रहे हैं। गूगल में अपने ट्रैफिक फ्लो के साथ इन विषयों का आप इसका सहजता से अनुमान लगा सकते हैं। 
और यदि आप कभी चाहें तो ब्लॉगिंग को एक प्रोफेशनल ब्लॉगर्ज के रुप में अपनी कमाई का माध्यम भी बना सकते हैं। हालांकि इसकी अलग दुनियाँ है, जिस पर अभी हम अधिक कहने के अधिकारी विद्वान नहीं है। लेकिन सार रुप में ब्लॉग कमाई का भी माध्यम हो सकता है। ब्लॉग शुरु करने के कुछ माह बाद ही ब्लॉगर में उपलब्ध एड-सेंस एक्टिवेट हो जात है और आपके ब्लॉग को विज्ञापन मिलना शुरु हो जाते हैं, जिन पर यदि कोई पाठक क्लिक करता है, तो एक निश्चित राशि आपके ब्लॉग खाते में जुड़ना शुरु हो जाती है।
आर्थिक पहलु को छोड़ भी दें, तो ब्लॉग क्रिएटिव लोगों के लिए एक अद्भुत प्लेटफॉर्म है। अध्ययन-अध्यापन एवं पढ़ने-लिखने से जुड़े लोगों के लिए तो यह अभिन्न सहचर है, जिसे आज के वेबमाध्यम के युग में नजरंदाज नहीं किया जा सकता। (और कोविड काल के बाद तो यह प्लेटफार्म ऑनलाईन पढ़ाई का एक सशक्त माध्यम बनकर उभर चुका है, जिसे कोई भी शिक्षा से जुड़ा व्यक्ति नजरंदाज नहीं कर सकता।)
 


ब्लॉगिंग का अकादमिक महत्व

तः एक बार शुरु करने के बाद फिर आपको अपने ब्लॉग पर नियमित अन्तराल पर कुछ लिखते रहना है, कोई भी माह नागा नहीं जाना चाहिए, यह न्यूनतम है। अधिक की कोई सीमा नहीं। औसतन दो से तीन पोस्ट तो माह में डाल ही सकते हैं। यह एक मेरी तरह स्वान्तः सुखाय ब्लॉगर्ज का औसत है, जबकि प्रोफेशनल ब्लॉगर्ज का औसत सप्ताह में दो-तीन पोस्ट रहती है। आप भी अपनी शुरुआत न्यूनतम निष्ठा के साथ हल्के एवं मस्ती भरे अंदाज में कर सकते हैं। 
यदि इतना कुछ समझ आ रहा हो, तो फिर इंतजार कैसा? 
आज, इसी सप्ताह आप अपने जुनून के साथ अपनी रचनात्मक संभावनाओं (creative potential) को अभिव्यक्त करते एक उम्दा ब्लॉग की शुरुआत कर सकते हैं। ब्लॉगिंग की रोमाँचक दुनियाँ आपका इंतजार कर रही है।
 
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