मेरा गाँव मेरा देश - घाटी की देवपरम्परा को समझने की कोशिश

बनोगी फागली की चिरप्रतिक्षित यात्रा एवं बर्फ से साक्षात्कार बिगड़ते मौसम में घरबंदी – गूगल गुरु की भविष्यवाणी के अनुकूल मौसम बिगड़ चुका था। उच्च शिखरों पर स्नोफाल हो रहा था, जिसकी बर्फीली हवा पूरी घाटी को अपने आगोश में ले चुकी थी। ऐसे में तंदूर के ईर्द-गिर्द जीवन का सिमटना स्वाभिक था। घर पहुँचा तो तंदूर सुलग रहा था, कमरे की गर्माहट एक चिरपरिचित सुख और आनन्द का विश्राँतिपूर्ण अहसास दिला रही थी। हालाँकि बाहर चहल-कदमी करने, खेतों में काम करने व पहाड़ी रास्तों पर चढ़ने उतरने में सर्दी का अहसास काउंटर हो जाता है, लेकिन घर के अंदर तंदूर कक्ष ही सबसे अनुकूल शरणस्थल रहता है। बाकि सही ढंग के गर्म कपड़े ही ठंड में सबसे बड़ा सहारा रहते हैं। नए मेहमान ग्रूजो से दोस्ती – घर में आया नया मेहमान 40 दिन का जर्मन शेफर्ड अपनी कूँ-कूँ से मौजूदगी का अहसास दिला रहा था। सो उससे परिचय, दोस्ती हुई। बचपन से ही पशुओं से विशेष लगाव रहा है। पहले घर में भेड़-बकरियाँ व गाय पलती थी। बचपन इनके मेमनों व बछड़ों से लाड़-प्यार संग खेलते-कूदते हुए बीता। जर्मन शेफर्ड एक उम्दा किस्म के कुत्ते की नस्ल है,