शुक्रवार, 30 जून 2023

सावन में 14 घंटे का वह ऐतिहासिक सफर

                                      14 घंटे के जाम के बीच 14 घंटे का यादगार सफर

2023 के सावन का 14 घंटे का सफर, हरिद्वार से कुल्लू, हमेशा याद रहेगा। क्योंकि ऐसा जाम कभी नहीं देखा था, भोगा था और संभवतः आगे भी ऐसी नौवत नहीं आएगी। अपनी मंजिल पर पहुंचने से महज 2 घंटे पहले, ऐसे जाम में फंसे की अगले 14 घंटे, इसकी छत्रछाया में जीवन के सारे फलसफे चिदाकाश पर तैरते हुए, जीवन का गाढ़ा बोध दे गए। इस रुट पर पिछले चार दशकों के सफर की स्मृतियों का जैसे इस दौरान प्रक्षालन हुआ। दैवीय विधान के अन्तर्गत कुछ भी अनायास तो नहीं होता, ऐसा ही कुछ इस यादगार यात्रा के अनुभव रहे।

     जून के अंतिम सप्ताह के रविवार देसंविवि, हरिद्वार परिसर से हरिद्वार बस स्टैड की ओर चल पड़े थे। 4 बजे बस थी और सवा तीन चलते-चलते बच गए थे। तैयारियों की व्यवस्तता में भूल गए थे कि आज रविवार है और मालूम हो कि हरिद्वार-ऋषिकेश रोड़ पर सप्ताह अंत के दो दिनों में दिन भर वाहनो के काफिले रेंगते रहते हैं, 3-4 घंटे में 8-10 किमी का सफर पूरा होता है, और कभी तो इससे भी अधिक। आज भी वाहन ड्राईवर पहले ही चेतावनी दे रहे थे कि कल तक बस स्टैंड पहुंच जाओ, तो भी जल्दी मानना। वह पहले ही दिन की पारी में बस स्टैंड से विश्वविद्यालय परिसर तक एक राउँड में 3-4 घंटे के जाम में फंस चुका था।

     खैर हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। हाँ प्लान बी जरुर था कि यदि हरिद्वार से बस छूट गई तो, किसी भी बस में चण्डीगढ़ तक निकल जाएंगे, वहाँ से किसी भी दूसरी बस में अपने गन्तव्य की ओर कूच कर जाएंगे। इसी प्लान के साथ ड्राइवर को सप्तऋषि चूंगी से मैन हाइवे (जहाँ ट्रैफिक चिंटी की चाल रेंग रहा था) से हट कर भारत माता की ओर से आगे बढ़ते हैं। इसी के समानान्तर बांध के ऊपर गंगा के किनारे से भी वैकल्पिक मार्ग है, जो दिन को बड़े बाहनों के लिए बंद रहता है। हम भारत माता वाइपास के छोर पर भूपतवाला के पास मुख्यमार्ग में निकलते हैं, हमारी किस्मत के लिए यहाँ हमारी ओर का ट्रेफिक खुल चुका था, दूसरी ओर का बंद था। सो हम कुछ ही मिनट में हर-की-पौड़ी पार करते हुए फ्लाई ओवर पर चढ़ जाते हैं, क्योंकि नीचे के मार्ग में फिर जाम था। इस तरह फ्लाई ओवर के दूसरे छोर से मुड़ कर वाइं ओर से आगे बढ़ते हुए फ्लाई ओवर के नीचे से तिराहे के पार गंगनहर के समानान्तर पुलिया से पार होते हैं व अग्रसेन चौक से होकर प्रेस क्लव से होते हुए बस स्टैंड पहुँचते हैं। काऊंटर पर हरिद्वार-मानाली हिमधारा बस खड़ी थी। कन्डक्टर के ईशारे पर काउंटर पर जा पहुँचे हैं, 3 बज कर 45 मिनट हो चुके थे, 15 मिनट शेष थे। अनुमान था कि काउंटर पर भारी भीड़ होगी, जो पिछली बार हमने झेली थी। लेकिन आश्चर्य, इस बार मात्र एक सवारी खड़ी थी। हमे तुरन्त ही अपनी इच्छानुकूल खिड़की बाली 24 नम्बर सीट मिल जाती है। अंदर बस में पहुँचते हैं, एक तिहाई ही भरी थी। हमारे लिए इतनी सहजता से आज मनचाही सीट मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं था। हमारे प्लान बी को लागू करने की नौवत नहीं आने दी प्रभू ने।

     बस ठीक 4 बजे चल देती है, गन्तव्य तक कब पहुँचेगी, कंडक्टर ने 5,30 का समय बताया। 14 घंटे का हमारा अनुमान लगभग सही निकला, जितना औसतन इस रुट पर एक बस समय लेती है।

     हल्के अभिसिंचन के साथ यात्रा शुरु होती है। अनुमान था कि आगे भारी बारिश का सामना हो सकता है, क्योंकि 80 से 90 प्रतिशत बारिश की भविष्यवाणी गूगल देवता कर रहे थे। और पहाड़ों में तो भूसख्लन से लेकर बादल फटने की घटनाएं समाचारों में फ्लैश हो रही थी।

लेकिन हमारा यह अनुमान गलत निकला। रुढ़की – सहारनपुर से होते हुए हम मनका-मनकी के चण्डीगढ़ ढावे में शाम के अंधेरे के बीच पहुँचते हैं। रास्ते भर आसमान में हल्के बादलों के बीच ढलते सूरज के दर्शन होते रहे। रास्ते के हरे-भरे खेत, आम से लदे बगीचे, धान की ताजा रुपाई से पानी के बीच झूमते चावल के नन्हें पौधे और बीच में बरसाती जल से उफनता यमुना नदी का जलस्तर। सड़क के पास के गाँव की भी खबर लेते रहे, मोबाइल कैमरे को जूम कर इनको नजदीक लाकर केप्चर करते रहे। रास्ते का नजारा नीचे दिए विडियो लिंक में देख सकते हैं।

     मनका-मनकी ढावे तक पहुँचते-पहुँचते शाम हो चुकी थी। यहाँ अपनी पसंदीदा डिश का आनन्द लिया। सवा आठ के करीब यहाँ से बस चल पड़ती है। अम्बाला को पार करते हुए 10 बजे तक चण्डीगढ़ 43 सैक्टर के बस आइएसबीटी पहुँचते हैं। और रात के अंधेरे में मोहाली, खरड़, रुपनगर से होते हुए कीरतपुर पार करते हैं।

यहाँ पर सुना था कि टनल का कार्य पुरा हो चुका है, सो आज इसमें प्रवेश के नए अनुभव को लेकर रोमाँचित थे, लेकिन बस चढाई ही चढ़ती गई और स्वारघाट के शिखर तक पहुँच गई। पता चला टनल ट्रायल के लिए बीच में खुली थी, लेकिन आज बंद थी। सो हम पुराने घुमावदार व उतार-चढ़ाव भरे रास्ते से होकर रात को लगभग 1 बजे बिलासपुर पहुँचते हैं।

यहाँ से आगे सलापड़ में सतलुज नदी को पार करते हुए, सुन्दर नगर पहुँचते हैं व आगे नैर चौक से होकर प्रातः 3 बजे तक मण्डी  बस खड़ी होती है। हल्की सी बूंदावादी के दर्शन यहाँ हो रहे थे, लेकिन आगे कई बसों व वाहनों की कतार खड़ी दिख रही थी। जल्द ही सूचना मिली कि आगे 7 मील स्थान पर लैंड स्लाइड हुआ है और ट्रैफिक जाम पड़ा है। उम्मीद थी कि जाम कुछ देर में खुल जाएगा, इस रूट में बारिश के बीच यदा-कदा भूस्खलन और फिर कुछ देर में रास्ते का खुलना आम बात है।

बाहर निकलकर जब दूसरी सबारियों से चर्चा हुई तो पता चला कि जाम कुछ अधिक लम्बा है, और लैंड स्लाइड भी कई किमी में है, 5 से 7 किमी में लैंड स्लाइट की बात हो रही थी, जो समझ नहीं आ रही थी। रात को 3 बजे तो सड़क ठीक होने से रही, अनुमान था की प्रातः 6 बजे उजाला होते ही काम शुरु हो जाएगा औऱ 8-9 बजे तक सड़क खुल जाएगी। बस में कुल 7 सवारियां थी और ड्राइवर भी सबारियों को आगे किसी बस में बिठाने की बात कर रहा था। इसी के साथ आगे बढ़ता है, लगभग मंडी बस स्टैंड से 3 किमी आगे एक विरान से स्थान पर बस खड़ी होती है, हालाँकि एक ओर बंद दुकानें थी तो दायीं और ऊपर कुछ हॉटेल, जो विराने में जंगल के नीचे खड़े थे। सुबह 8-9 बजे तक यहां किन्हीं हलचल की उम्मीद भी नहीं थी। इस बीच बारिश थोड़ा तेज हो चुकी थी और गाढ़ी थोड़ा आगे सरक चुकी थी और वायीं ओर एक रिजार्ट था, नीचे व्यास नदीं की तेज धारा। दायीं ओर ऊपर जंगल व छोडी सी पहाड़ी। आगे भी दूर पहाड़ियों के दर्शन यहाँ से हो रहे थे, जो अंशतः बादलों से ढके थे।

प्रकृति की गोद में अद्भुत नजारे के बीच जैसे हमारी प्रातःकालीन संध्या हो रही थी। हमारी कोई चिरआकाँक्षित इच्छा इस सबके बीच पूरा हो रही थी। पूरा बस खाली थी, तीनों सीटों पर कभी पीठ के बल, तो कभी करवट लेते हुए नींद पूरी करते हैं। उठकर पीछे सड़क के किनारे एक पगडंडी के साथ थोड़ा ऊपर जंगल में जाकर हल्का होते हैं, पास के जल स्रोत में हाथ धोते हैं।

पुनः बस में बैठकर साथ में लाए दाल-मौंठ, न्यूट्री-च्वाइस बिस्कुट व का नाश्ता करते हैं, जल के साथ मुख शुद्धि करते हैं। ड्राइवर से टायलेट के सुविधा की पूछते हैं, तो निराशाजनक उत्तर मिलता है, लगा कि आज इस जंगल में हठयोग करना पड़ेगा। 400 मीटर पीछे एक ढावा भी दिख गया था, लेकिन कुछ भी भारी खाने से परहेज करते रहे। पास की दुकान से 25 रुपए के 3 केले व साल्टेड़ मूंगफली लिए। किसी तरह से आज का दिन पार करना था, लगा प्रीमिटिव सरवाइल तथा मैन वर्सेज वाइल्ड सीरियल्ज के एडवेंचर की इच्छा को पूरी करने का प्रभु मौका दे रहा था। बहुत देख लिए यू-ट्यूब पर, आज कुछ प्रैक्टिकल हो जाए।

ऐसे में दिन के 12 बज गए, फिर 1, 2 और 3। बारह घंटे जाम में फंस कर बीत चुके थे। बीच में खबर मिल चुकी थी कि जाम खुलने बाला है, लेकिन फिर खबर आई और कन्डकटर के पास वीडियो भी कि ऊपर से दूसरा लैंड स्लाइड हो चुका है। लगा कि आज का हढयोग तो भारी पड़ने वाला है। अब तक हम दो पत्रिकाओं, एक पुस्तक को पढ़ चुके थे व सारे आइजियाज को पन्नों में उतार चुके थे।  

ऐसे में उक्ता कर पास की सबारी से अपनी व्यथा सुनाते हैं, तो पता चला की पीछे 500 मीटर पर एक पेट्रोल पंप है व वहाँ फ्रेश होने की सुविधा है। अपना लैप्टॉप पीठ पर टांगे हम बिना देरी किए चल पड़े और वहाँ 2-3 पुरुषों को मेल काउंटर पर खड़ा पाकर राहत की सांस लिए। फिमेल काउंटर पर दर्जनों की भीड़ थी। जल्द ही अंदर प्रवेश मिलता है व हल्का होकर भारी राहत की सांस लेते हैं।

लगा कि दैवी कृपा भी तप के चरम पर ही बरसती है। यही बात सुबह ही ड्राइवर कहे होते, या किसी सवारी से पता चली होती, तो इतना लम्बा हठयोग न करना पड़ता।

लगभग साढ़े चार बज चुके थे। पता चला की जाम खुल चुका है। कई किमी लम्बे जाम को खुलने में आधा घंटा लगा, पहले ऊपर के बाहर नीचे आते गए। फिर हमारा नम्बर आया, लगभग 5 पजे हमारी गाड़ी बाकि वाहनों के काफिले के साथ आगे सरक रही थी। 14 घंटे के ऐतिहासिक जाम के बीच हम आज जैसे एक चिरस्मरणीय अनुभव लेकर जा रहे थे। हमारे लिए ये किन्हीं ऐतिहासिक पलों से कम नहीं थे। आप चाहें तो आगे की वीडियो में जाम के नजारे को नीचे दिए लिंक में देख सकते हैं। यह इस मायने में विशेष है कि इस रुट पर गुजरने वाली 14 घंटे की सभी देशी-विदेशी, डिलक्स, आर्डिनरी, सरकारी व प्राइवेट गाडियों तथा विभिन्न प्रकार के ट्रक, कारें व अन्य वाहनों के दिग्दर्शन कुछ मिनट में आप कर पाएंगें औऱ कुछ के नाम, रुप व डिजायन को देखकर आप चकित भी हो सकते हैं और कुछ रोचक व रोमाँचक जानकारियों आपको मिल सकती हैं। आगे 7 व 9 मील के लैंडस्लाइट प्वाइँट को भी आप इसमें देख सकते हैं।

आगे पँडोह को पार करते ही यहाँ के डैम के बरसाती स्वरुप को कैप्चर किए। जल की वृहद राशि, भयावह फब्बारे के रुप में आसमां को छुते हुए नीचे गिरती है। पंडोह को पार करते हुए रास्ते में टनल के कार्य रोमाँचित करते हैं और एक बिंदु पर इनमें प्रवेश करने का संयोग बनता है। इनकी सफाइ, लाइटिंग, टेक्नोलॉजी व पॉलिश अटल टनल को भी फेल कर रही थी। हनोगी माता के पीछे के गगनचूंबी पहाड़ के बीच आगे बढ़ते यह टनल इंजीनियरिंग के चमत्कार का एक वेजोड़ नमूना है। इसमें कार्यरत कम्पनी, कर्मचारी, इंजीनियर पर इनके नीति निर्माता नेतृत्व सभी साधुवाद के पात्र हैं।

टनन के बाहर निकलते-निकलते अंधेरा हो चुका था। थ्लौट से गुजरते हुए, ओउट टनल से गुजरते हैं, जो अब एक आदिम सुरंग प्रतीत हो रह थी। आउट के बाद पनारसा के पहले अंधेरे में पहाड़ों के शिखर पर बिजली महादेव के दर्शन हो रहे थे। आगे का सफर सड़क के दोनों ओर की बिजली की चकाचौंध के बीच पूरा होता है। इस तरह रात को 9 बजे हम कुल्लू के ढालपुर मैदान (अठारह करड़ू री सोह) में प्रवेश करते हैं और कुछ ही मिनट में सरबरी नदी को पार करते हुए सर्वरी बस स्टैंड पर पहुँचते हैं।

इस तरह 14 घंटे के जाम के बीच 14 घंटे का यह सफर कई ऐतिहासिक यादों का साक्षी बना, जो जीवन में पहली बार घटित हो रहा था। इसलिए स्मृति पटल पर चिरअंकित रहेगा। 

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