सूचना से बेहाल, संदेशों का अकाल, समाधान की राह

सूचना विस्फोट के युग में सकारात्मक संचार की चुनौती आज हम सूचना विस्फोट के युग में जी रहे हैं, जिसमें हर पल विभिन्न जन माध्यमों से सूचनाओं की बौछार (बम्बार्डमेंट) हो रही है। ऐसे में जो सूचनाएं इंसान के ज्ञानबर्धन का माध्यम रही हैं, मानवीय सभ्यता-संस्कृति के विकास का आधार रही हैं, वेही आज इंसान के लिए तनाव, अवसाद और शांति हनन का अहम् कारण बन गई हैं। सूचना विस्फोट से उपजे तनाव व दबाव के बीच अपनी शांति-संतुलन खोए बिना सृजनात्मकता बर्करार रखना और सार्थक संदेश की खोज एक दुष्कर कार्य बन गया है, जिसका समाधान एक युग प्रश्न की भांति हर पल ताल ठोंकता रहता है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – सूचनाओं के इस विस्फोट का तकनीक (टेक्नोलॉजी) से सीधा सम्बन्ध है। शुरुआत प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार से होती है, इसके बाद बौद्धिक पुनर्जागरण (रिनेसाँ) और औद्योगिक क्राँति के साथ पुस्तकों के प्रकाशन में तेजी आती है। इस युग में भी लोगों को शिकायत थी कि सूचनाओं का दबाव बढ़ रहा है। एक शोध के अनुसार, 1930 के दशक तक प्रिंट मीडिया के दौर में हर 30 वर्षों में सूचनाएं दुगुना हो रहीं थीं। इसके बाद इलैक्ट्रॉनिक म