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जीवन यात्रा – शांति की खोज में एक पथिक, भाग-1

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हिमालय की नीरव वादियों में जीवन के रुपांतरणकारी पल फुर्सत के कुछ लम्हें कितने दुर्ळभ हो चलें हैं आज की भागमभाग भरी जिंदगी में। यदि मिल भी जाएं तो टीवी , इंटरनेट , यार-दोस्त , पार्टी और गप्प-शप्प। पता ही नहीं चलता कि कैसे बीत गए। जबकि इन पलों को प्रकृति के संग विताया जाए तो ये क्षण जीवन के यादगार पल सावित हो सकते हैं। मनोरंजन के साथ शिक्षा के , प्रेरणा के , शाँति-सकून के और सृजन के आनन्द के , आत्म अन्वेषण , आत्म विकास के माध्यम हो सकते हैं। प्रकृति की गोद में फुर्सत के ये पल जीवन के रुपांतरण की पटकथा लिख सकते हैं। प्रस्तुत है एक ऐसी ही एक जीवन यात्रा जो किसी के भी जीवन का सत्य हो सकती है। हिमालय की गोद में यह उसकी पहली यात्रा थी। हिमालय के बारे में बहुत कुछ सुन-पढ़ रखा था। साथ ही बचपन से ही हिमाच्छादित पर्वतश्रृंगों के प्रति ह्दय में एक अज्ञात सा आकर्षण था , लेकिन जीवन के गोरखधंधे में उल्झा जीवन अभी तक इसकी इजाजत नहीं दे रहा था। तमाम उपलब्धियों के साथ विताया जा रहा संसारी जीवन अब बोझिल हो चला था। जीवन की जटिलताएं कुछ इस कदर हावी हो चलीं थी कि अपने लिए सोचने की

पुस्तक सार, समीक्षा - वाल्डेन

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प्रकृति की गोद में जीवन का अभूतपूर्व दर्शन वाल्डेन, अमेरिकी दार्शनिक , विचारक एवं आदर्श पुरुष हेनरी डेविड़ थोरो की कालजयी रचना है। मेसाच्यूटस नगर के समीप काँकार्ड पहाड़ियों की गोद में स्थित वाल्डेन झील के किनारे रची गयी यह कालजयी रचना अपने आप में अनुपम है, बैजोड़ है। प्रकृति की गोद में रचा गया यह सृजन देश, काल, भाषा और युग की सीमाओं के पार एक ऐसा शाश्वत संदेश   लिए है, जो आज भी उतना ही ताजा और प्रासांगिक है। ज्ञात हो कि थोरो दार्शनिक के साथ राजनैतिक विचारक, प्रकृतिविद और गुह्यवादी समाजसुधारक भी थे। महात्मा गाँधी ने इनके सिविल डिसओविडियेंस (असहयोग आंदोलन) के सिद्धान्त को स्वतंत्रता संघर्ष का अस्त्र बनाया था। यह थोरो का विद्रोही स्वभाव और प्रकृति प्रेम ही था कि वे जीवन का अर्थ खोजते-खोजते एक कुटिया बनाकर वाल्डेन सरोवर के किनारे वस गए।   थोरो के शब्दों में, मैने वन-प्रवास आरम्भ किया , क्योंकि मैं विमर्शपूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता था , जीवन के सारभूत तथ्यों का ही सामना करना चाहता था , क्योंकि मैं देखना चाहता था कि जीवन जो कुछ सिखाता है , उसे सीख सकता हूँ या नहीं।

यात्रा वृतांत - सावन में नीलकंठ महादेव - प्रकृति की गोद में श्रद्धा-रोमांच का अनूठा संगम

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मिले मन को शांति, हरे चित्त का संताप  नैक से जुड़ी लम्बी तैयारी, थकाउ पारी और काल की छलना पलटवारी के बीच जीवन का ताप कुछ बढ़ चला था, सो प्रकृति की गोद में चित्त को हल्का करने का मन बन गया था। ऐसे में स्वाभाविक ही कालकूट का शमन करने बाली नीलकंठ महादेव की मनोरम वादी की याद आ गई और लगा कि बुलावा आ गया। सावन में कांवर लिए यात्रा की इच्छा अधूरी थी, सो वह भी आज अनायास ही पूरी हो रही थी। कुछ ऐसी ही इच्छा लिए राह को प्रकाशित करते दीपक हमारे सारथी बने। और हम अपनी स्कूटी सफारी में नीलकंठ महादेव के औचक सफर पर निकल पड़े। दोपहर को अचानक प्रोग्राम बन गया था और तीन बजे हम चल दिए और लगभग दो घंटे बाद शाम पाँच बजे तक हम नीलकंठ महादेव पहुंच गए। रास्ते का सफर प्रकृति के सुरम्य आंचल में रोमाँच से भरा रहा, जितना गहरा हम इसके प्राकृतिक परिवेश में प्रवेश करते गए, उतना ही हम इसके आगोश में खोते गऐ और सहज ही मन शांत होता गया और संतप्त चित्त को एक हीलिंग टच मिलता गया। देसंविवि से यात्रा रेल्वे फाटक पार करते हए निर्मित हो रहे फोर लेन हाइवे से होती हुई नेपाली फॉर्म, श्यामपुर फाटक से आगे बढ़ी।