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शांघड़ - सैंज घाटी का छिपा नगीना

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  शांग्चुल महादेव के पावन धाम में शांघड़ सैंज घाटी के एक गुमनाम से कौने में प्रकृति की गोद में बसा एक अद्भुत गाँव है, जिसकी सैंज घाटी में प्रवेश करने पर शायद ही कोई कल्पना कर पाए। इसके नैसर्गिक सौंदर्य को शब्दों में वर्णन करना हमारे लिए संभव नहीं, इसे तो वहाँ जाकर ही अनुभव किया जा सकता है। शांघड़ देवदार के गगनचुम्बी वृक्षों से घिरा 228 बीघे में फैला घास की मखमली चादर ओढ़े ढलानदार मैदान है, जिसे देवसंरक्षित माना जाता है, क्योंकि यहाँ पर शांग्चुल महादेव का शासन चलता है। किसी को इस क्षेत्र में अवाँछनीय गतिविधियों की इजाजत नहीं। यहाँ के परिसर में किसी तरह की अपवित्रता न फैले, इसके लिए यहाँ कायदे-कानून बने हुए हैं। कोई यहाँ शोर नहीं कर सकता, शराब व नशा नहीं कर सकता, मैदान तक बाहन का प्रवेश वर्जित है। यहाँ तक कि पुलिस अपनी बर्दी व चमड़े की बेल्ट के साथ प्रवेश नहीं कर सकती। नियमों के उल्लंघन पर शांग्चुल महादेव की ओर से दण्ड का विधान भी है। इस तरह दैवीय विधान द्वारा संरक्षित शांघड़ प्रकृति का एक नायाव तौफा है, जिसके आगोश में कोई भी प्रकृति प्रेमी गहनतम शांति व आनन्द की अनुभूति पाता है और य

मेरा गाँव मेरा देश - बचपन का पर्वत प्रेम और ट्रैकिंग एडवेंचर, भाग-2

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पहाड़ों के बीहड़ बन की गहराईयों से पहला गाढ़ा परिचय प्रातः चाय-नाश्ता कर हम बीहड़ वन की गहराईयों को एक्सप्लोअर करने के लिए आगे बढ़ते हैं। गेस्ट हाउस से पीछे शाड़ी नामक ढलानदार थोड़े खुले क्षेत्र से होकर गुजरते हैं, जहाँ जंगली पालक बहुतायत में लगी थी। जरुरत पड़ने पर इसका चाबल या रोटी के साथ भोजन में बेहतरीय प्रयोग किया जा सकता था। अब देवदार का जंगल घना होता जा रहा था। थोड़ी देर में एक पहाड़ी नाला आता है, इसको पार कर हम दूसरी ओर एक ढलानदार मैदान की ओर चढ़ाई करते हैं। यहाँ भांड पात्थर नामक स्थान पर एक बड़ी सी समतल चट्टान पर चढ़कर यहाँ का सुंदर नजारा लेते हैं। यहाँ देवदार से घिरे बुग्याल में चम्बा के खजियार और काश्मीर की घाटियों की झलक आ रही थी। यह बुग्याल भेड़-बकरियों के चरने के लिए एक आदर्श स्थल था। यहीं पर सत्तु-गुड़ का हल्का नाश्ता लेते हैं। यहाँ ठण्ड इतनी थी कि हाथ की ऊँगलियाँ जैसे जम रही थी। नाश्ते के बाद हम वुग्याल के पार दाएं ऊपर की ओर जंगल में प्रवेश करते हैं। यह थोड़ा चट्टानी क्षेत्र था, जहाँ आगे देवदार के पेड़ के दो-तिहाई ऊँचाई को छूते दो समानान्तर चट्टानों को लेकर एक

मेरा गाँव मेरा देश - बचपन का पर्वत प्रेम और ट्रैकिंग एडवेंचर, भाग-1

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बीहड़ वन की गोद में विताए वो यादगार रोमाँचक पल बचपन में जब से होश संभाला, पहाड़ हमेशा मन को रोमाँचित करते रहे और साथ ही गहरी जिज्ञासा के भाव भी जगाते रहे। हमारा घर दो पहाड़ों के बीच फैली 2 से 3 किमी हल्की ढलानदार घाटी में स्थित था। जब भी घर की खिड़कियों या आँगन से झांकते तो दोनों और से गगनचुंबी पर्वतों से घिरा पाते। साथ ही उत्तर और दक्षिण में दोनों ओर फैली 30-40 किमी लम्बी घाटी का आदि अंत भी पर्वतों में ही पाते। कुल मिलाकर स्वयं को चारों ओर से कितनी ही पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा पाते, लेकिन सबसे प्रत्यक्ष थे घर के पूर्व और पश्चिम में खड़े समानान्तर दो आसमान छूते पहाड़, जहाँ से होकर क्रमशः सुबह सूर्य भगवान प्रकट होते और शाम को पर्वत के पीछे छिप जाते। दोनों पहाड़ों को ब्यास नदी की अविरल धारा विभाजित करती, जिसका कलकल निनाद ब्रह्ममुहूर्त में कानों में एक दिव्य अनुभूति के साथ गुंजार करता। हमारा गाँव ब्यास नदी के वायीं ओर मौजूद था, अतः इस साईड के पहाड़ गाँव के लोकजीवन से सीधे जुड़े हुए थे। नदी के उस पार के पहाड़ों से परिचय थोड़ा कम था, क्योंकि वहाँ जाना कम होता। इन पहाड़ों के उपर क्या