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यात्रा वृतांत - मेरी पोलैंड यात्रा, भाग-4

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विदेशी धरती में देशी जायके से रुबरु आज रविवार का दिन था। दिन भर प्रेजन्टेशन की तैयारियाँ चलती रहीं। आज की शाम बिडगोश शहर के एकमात्र भारतीय रेस्टोरेंट - रुबरु के नाम थी, जिसके दर्शन हम पिछले कल भ्रमण के दौरान मिल्ज टापू में कर चुके थे। काजिमीर यूनिवर्सिटी की इंटरनेशल रिलेशन विभाग की मेडेम जोएना काल्का हमें लेने अपनी गाड़ी में आती हैं। यहाँ आने से पूर्व मेल्ज के माध्यम से मैडेम का शाब्दिक परिचय हो चुका था। भारत में काल्का शब्द काली माता से जुड़ा हुआ है, जैसे चंडीगढ़ शिमला के बीच काल्का मंदिर व शहर, बैसे ही दिल्ली में काल्का मंदिर प्रख्यात है। गुरु गोविंद सिंहजी की आत्मकथा विचित्र नाटक में भी काल्का आराधना का रोमाँचक जिक्र मिलता है। खैर, इन भावों के साथ मैडेम का नाम आसानी से हमें याद था, आज प्रत्यक्ष मैडेम का परिचय हो रहा था, जो एक सरल, सुगड़, सजग एवं सज्जन महिला निकली। हमारे प्रवास के अंतिम पड़ाव तक जरुरत पड़ने पर इनका भावभरा सहयोग साथ रहा। शहर की स्पाट, सुंदर सड़कों के बीच कुशलतापूर्वक ड्राइविंग करती हुई मेडेम काल्का हमें अपने गन्तव्य की ओर ले जा रही थी। पिछले दो दिनों

हे सृजन साधक, हर दिन भरो कुछ रंग ऐसे

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मिले जीवन को नया अर्थ और समाधान हर दिवस, एक नूतन सृजन संभावना, प्रकट होने के लिए जहाँ कुलबुला रहा कुछ विशेष, एक खाली पट कर रहा जैसे इंतजार, रचना है जिसमें अपने सपनों का सतरंगी संसार।1। आपकी खूबियां और हुनर हैं रंग जिसके, अभिव्यक्त होने का जो कर रहे हैं इंतजार,  अनुपम छटा बिखरती है जीवन की या होता है यह बदरंग, तुम्हारे ऊपर है सारा दारोमदार।2। शब्द शिल्पी, युग साधक बन, हो सकता है सृजन कुछ मौलिक, जिसे प्रकट होने का है बेसव्री से इंतजार, आपके शब्द और आचरण से मिलेगी जिसे अभिव्यक्ति, झरेगा जिनसे आपका चिंतन, चरित्र और संस्कार।3। अतः हे पथिक, बन सृजन साधक, भरो जीवन में हर दिन रंग कुछ ऐसे,  झरता हो जिनमें जीवन का भव्यतम सत्य , मिलता हो जहाँ जीवन को नया अर्थ और समाधान।4।